Holika Dahan Why: क्यों जलाई जाती है होलिका 

Holika Dahan Why: प्रत्येक वर्ष होलिका दहन होता है। होलिका को जलाकर यह संदेश दिया जाता है कि होलिका बुराई का प्रतीक थी। हमलोग बुराई को पनपने नहीं देंगे। तो क्या बार-बार होलिका को जलाए जाने के बाद भी बुराई पनप नहीं पा रही है?

 

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

Bihar: प्रत्येक वर्ष होलिका दहन होता है। होलिका को जलाकर यह संदेश दिया जाता है कि होलिका बुराई का प्रतीक थी। हमलोग बुराई को पनपने नहीं देंगे। तो क्या बार-बार होलिका को जलाए जाने के बाद भी बुराई पनप नहीं पा रही है ? क्या यह सच नहीं है कि होलिका को जलाने वाले के अंदर बुराई ही बुराई है ? परन्तु बुराई मिटाने का दंभ भरते जा रहे हैं। फिर होलिका को जलाने का कोई दूसरा तात्पर्य तो नहीं है? जनश्रुति के अनुसार जो यह कहा जाता है कि होलिका राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। होलिका का भतीजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद विष्णु का भक्त था। जिसे होलिका गोद में बैठाकर जला देना चाहती थी। यह नहीं बताया गया है कि होलिका किस मानसिकता की लड़की थी? मनगढ़ंत कहानियों का कोई ओर छोर तो रहता नहीं है? कहा जाता है कि प्रहलाद बच गया था और होलिका जल गई थी। क्या यह तर्कसंगत लगता है कि कोई महिला किसी बच्चे को गोद में बैठाकर आग में बैठ जाएगी, तो वह बच्चा बच जाएगा ? क्या वह बच्चा चिड़िया था, जो उड़ गया था ? होलिका कैसे जान रही थी कि गोद में लेकर आग में बैठूंगी, तो मैं नहीं जलूंगी? दूसरी बात यह कि जब प्रहलाद विष्णु का भक्त था, तो आगे चलकर उसके बारे में उसकी उपलब्धियां क्यों नहीं मिलती ? जो साबित करता है कि ऐसी कहानी गढ़ने वालों को जो उद्देश्य पूरा करना था,कर लिया। हिन्दुस्तान तो भेड़िया धसान है। आंख मूंदे लोग मानते आ रहे हैं?

हिरण्यकश्यप बौद्धिष्ट राजा था

कुछ विद्वानों का यह मानना है कि हिरण्यकश्यप उत्तर प्रदेश के हरदोई का राजा था। जिसे कभी जमाने में हरि द्रोही भी कहा जाता था। क्योंकि हिरण्यकश्यप बौद्धिष्ट राजा था। जिसका बेटा प्रहलाद और बहन होलिका थी। प्रहलाद अत्यंत ही उजड और उदंड स्वभाव का लड़का था। जिसकी संगति वहां के कुछ व्यभिचारियों के साथ थी। जिन्होंने अपनी संगति में रखकर प्रह्लाद को पिता विरोधी बना दिया था। इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद का बहिष्कार कर दिया था। उन्हीं व्यभिचारियों ने होलिका के साथ दुष्कर्म किया था। दुष्टों की संगति में रहने के बाद ऐसा ही होता है। फिर उन व्यभिचारियों ने साक्ष्य को मिटाने के लिए हड़बड़ में लड़की आदि जो भी मिला, इंतजाम किया और होलिका को गांव से बाहर जला दिया था। ताकि कोई जान न सके। आज तक जलावन चुराकर जमा करने की परम्परा चली आ रही है। सबसे बड़ी चीज यह है कि होलिका अगर जलाई गयी होगी तो कोई नियत समय तो अवश्य रहा होगा? फिर कभी 12 बजे रात के पहले तो कभी 12 बजे के बाद होलिका दहन क्यों किया जाता है? उसमें भी जलाने का एक नियत समय क्यों नहीं रहता है। जो दर्शाता है, यह सब कुछ मनगढ़ंत है।

मनुवादियों ने अवीर को शुभ का प्रतीक बना दिया

जब राजा हिरणकश्यप तक यह समाचार पहुंचा, तो उसने उन व्यभिचारियों को पकड़कर लाने के लिए अपने दूतों को भेजा। जब दूत पड़कर उन व्यभिचारियों को लाये, तो राजा हिरण्यकश्यप ने उन व्यभिचारियों के ललाट पर तलवार की नोक से अवीर लिख दिया था कि तुम लोग कभी वीर नहीं हो सकते। तुमलोग कायर ही रहोगे। फिर आदेश दिया कि इन्हें गली-गली में घुमाओ। जैसे आज भी गलती करने वाले को सर मुंड़वाकर गधा पर बैठाकर घुमाया जाता है। फिर यह भी आदेश दिया कि इन पर धूल, गंदगी, कीचड़ फेंकों। वही परंपरा होली के त्यौहार में आज भी चली आ रही है। लोगों के ललाट पर अवीर लगाने की परंपरा आज भी चली आ रही है। परंतु मनुवादियों ने इसका स्वरूप बदल दिया है और उसकी जगह पर अवीर को शुभ का प्रतीक बना दिया है। यह मनुवादियों की चाल की देन है।

आखिर बुराई पर अच्छाई का प्रतीक यह कैसा त्योहार है?

उसी परम्परा के अनुसार आज भी लोग होली में जमकर उन व्यभिचारियों की तरह एक से एक नशीली चीजों का सेवन करते हैं। गालियां बकते हैं और दूसरों के साथ बदतमीजियां करते हैं।इस अवसर पर आम इंसानों को वैसे लोगों से बचना मुश्किल हो जाता है। संभ्रांत स्त्रियां को बचना मुश्किल हो जाता है। आखिर बुराई पर अच्छाई का प्रतीक यह कैसा त्योहार है? इसे यहां के मूल निवासियों को समझने की जरूरत है और अपने इतिहास की सच्चाई को समझने की जरूरत है और होलिका दहन का बहिष्कार करने की जरूरत है। यह समझने की जरूरत है कि तुम्हारे पुरुखों को तो उस समय पढ़ने लिखने का अधिकार ही नहीं था। जो भी अधिकार था उन्हीं मनुवादियों के पास था। इसलिए उनलोगों ने पौराणिक ग्रंथों में जो भी लिखा है, वह तुम्हारे नहीं, अपने हितों में लिखा है। जिसे तुम भी अकाट्य मान ले रहे हो, यही तुम्हारी सबसे बड़ी मूर्खता है। इसी मूर्खता की वजह से तुम्हारे ही पुरखों को मनुवादियों ने मारा भी है और तुम्हीं से जश्न भी मनवाता है।

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