Role Of Reservation: मानव संसाधन के सदुपयोग में आरक्षण की भूमिका और मुस्लमान
रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के जरिए केंद्र से लेकर राज्यों तक सत्ता में आई भाजपा जितने भी चुनावों मे उतरी प्रायः सभी मे मुसलमानों के खिलाफ नफरत की राजनीति को नई-नई ऊंचाई देकर ही सत्ता का लक्ष्य हासिल की। भाजपा नफरत की राजनीति से बाज नहीं आ सकती।
लेखकः एचएल दुसाध
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज़ इंप्रेशन
लखनऊः सात चरणों में पूरा होने वाला अठारहवीं लोकसभा का चुनाव का अंतिम चरण शेष रहा गया है। इस चुनाव में दस सालों से केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा ने फिर साबित किया है कि वह किसी भी सूरत से नफरत की राजनीति से बाज नहीं आ सकती। ऐसा इसलिए कि मुसलमानों के खिलाफ नफरत ही उसकी प्राणशक्ति है। रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के जरिए केंद्र से लेकर राज्यों तक सत्ता में आई भाजपा जितने भी चुनावों मे उतरी प्रायः सभी मे मुसलमानों के खिलाफ नफरत की राजनीति को नई-नई ऊंचाई देकर ही सत्ता का लक्ष्य हासिल की। इसके लिए वह रामजन्मभूमि मुक्ति के आंदोलन के समय से ही मुख्यतः गुलामी प्रतीकों की मुक्ति के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाकर ही चुनावों में कामयाबी हासिल करती रही। किन्तु कोर्ट के सौजन्य से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की हरी झंडी मिलने के बाद गुलामी के प्रतीकों के खिलाफ नफरत फैलाना कमजोर पड़ने लगा। इसे देखते हुए उसने पैतरा बदला और मुसलमानों को आरक्षण का हकमार वर्ग के रूप में चिन्हित करने का वैसा ही अभियान छेड़ा, जैसे वह यादव, कुर्मी, जाटव, दुसाध इत्यादि को आरक्षण का हकमार वर्ग बताकर आरक्षित वर्गों की अनग्रसर जातियों को आक्रोशित करती रही है। इसका पहला सबल प्रयोग उसने 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किया, किन्तु कांग्रेस द्वारा वहां सामाजिक न्याय की राजनीति को एक नई ऊंचाई देने के कारण, उसका वह प्रयोग विफल रहा। पर, जैसा कि पूर्व पंक्तियों में बताया गया है कि राम मंदिर निर्माण शुरू होने के बाद गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति पहले जैसी असरदार नहीं रही, इसलिए 2024 के लोकसभा में चुनाव में भाजपा द्वारा शुरू में काशीदृमथुरा बाकी है का मुद्दा उछाला गया, पर, अपेक्षित असर न होते देख उसे कर्नाटक वाले प्रयोग की ओर लौटना पड़ा। फिर तो उसके बाद मोदी- शाह-योगी सहित तमाम भाजपा नेता मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताते हुए, उनके कब्जे से दलितदृपिछड़ों का आरक्षण मुक्त कराने का उच्च उद्घोष करने लगे। मोदी प्रायः हर सभा में कहने लगे कि जब तक मोदी है दलित-पिछड़ों का आरक्षण कोई नहीं छीन सकता।छठे चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने बाद अमित शाह ने कह दिया,’ 400 सीटें दें, खत्म कर देंगे मुस्लिम आरक्षण!’
विफल होगा मुसलमानों को आरक्षण का हकमार वर्ग बताने का अभियान
बहरहाल इस चुनाव में मुसलमानों को आरक्षण का हकमार वर्ग बताने तथा ‘धर्म के आधार पर आरक्षण’ का मुद्दा खड़ा करने का अभियान कर्नाटक विधानसभा चुनाव की भांति ही दो कारणों से विफल होने जा रहा है। पहला, हिन्दू समाज के आरक्षित वर्ग की जिन वंचितों जातियों को अपने पाले मे करने के लिए मोदी-शाह-योगी मुसलमानों को आरक्षण का हकमार साबित करने की मुहिम छेड़े हुए हैं, उस समाज के बुद्धिजीवियों को पता है कि मुस्लिमों की जिन जातियों को थोड़ा सा आरक्षण मिल रहा है, वह जातियाँ पिछड़े वर्ग में शामिल हैं। उनकों हिन्दू समाज की पिछड़ी जातियों की भांति आरक्षण इसलिए मिल रहा है क्योंकि अनुच्छेद 16(4) के तहत संविधान इसकी इजाजत देता है, जिसमें कहा गया है कि राज्य जिन नागरिकों को पिछड़ा मानता है, उन्हें ओबीसी में शामिल कर आरक्षण का लाभ दे सकता है। हालांकि दक्षिण भारत के पाँच राज्यों : केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मुसलमानों की सभी जातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है पर, उसकी मात्रा अन्य प्रांतों में मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर मिलने वाले आरक्षण से बहुत ज्यादा नहीं है। इसी को धार्मिक आधार पर आरक्षण का हौव्वा भाजपा खड़ा कर रही है, जो दलितदृपिछड़ों को बिल्कुल ही प्रभावित नहीं कर प रहा है। दूसरा, मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा इसलिए कारगर नहीं हो पा रहा है, क्योंकि सामाजिक न्याय का जो मुद्दा भाजपा को पूरी तरह बेदम कर देता है, वह कांग्रेस के न्याय पत्र के जरिए अभूतपूर्व ऊंचाई अख्तियार कर लिया है। परिणाम यह है कि छठे चरण के मतदान के बाद अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों ने दावे के साथ कह दिया है कि 400 पार का सपना देखने वाली भाजपा 200 सीटों के लिए भी तरस कर रह जाएगी। परंतु मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताने का मुद्दा फूंकी कारतूस की भांति फ्यूज हो जाने के बावजूद भाजपा दो कारणों से इसे उठाए जा रही है।
आरक्षण का असल हकमार वर्ग सवर्ण
जिस कारण से भाजपा अनवरत मुसलमानों को आरक्षण का हकमार बताए जा रही है, उसका पहला कारण यह है कि वह आरक्षण के असल हकमार वर्ग से राष्ट्र का ध्यान भटकाए रखना चाहती है। आरक्षण का असल हकमार वह सवर्ण वर्ग है, जिसके लिए भाजपा वर्षों से आरक्षण को कागजों का शोभा बनाने तथा संविधान को बदलने का षड्यंत्र करती रही है और आरक्षण तथा संविधान बदलना इस चुनाव में उसका प्रधान एजेंडा है। आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा के चलते भारत की जनसंख्या में 15 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले सवर्ण वर्ग का 50 प्रतिशत आरक्षण पर कब्जा हो चुका है। अपने चहेते सवर्णों की स्थिति और बेहतर करने के लिए ही मोदी सरकार ने संविधान का माखौल उड़ाते हुए ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू कर दिया है और इसके तहत प्राथमिकता के साथ उनको आरक्षण दिया जा रहा है। अगर भाजपा को दलित, आदिवासी और पिछड़ों की सचमुच चिन्ता होती तो वह आरक्षण का 50 प्रतिशत दायरा तोड़कर इन जातियों को संख्यानुपात मे आरक्षण देने का घोषणा करती, जैसा कि कांग्रेस पार्टी कर चुकी है। लेकिन हिन्दू धर्मशास्त्रों में अगाध आस्था के कारण जो भाजपा यह विश्वास करती है कि शक्ति के समस्त स्रोतों के भोग का दैविक अधिकारी सिर्फ सवर्ण वर्ग है, वह आरक्षण और संविधान के खिलाफ षड्यंत्र करने से ज्यादा कुछ कर ही कैसे सकती है! इसीलिए वह अपने चहेते वर्ग के आरक्षण को अक्षत रखने के लिए मुसलमानों को आरक्षण का हकमार वर्ग बताते हुए इनके कब्जे से आरक्षण छीनने की घोषणा जोर-शोर से किए जा रही है, जो कि निहायत ही देश-विरोधी काम है।
निहायत ही देश-विरोधी काम है मुसलमानों को आरक्षण से महरूम करना
भाजपा का मुसलमानों को आरक्षण से महरूम करने तथा दलित-आदिवासी और पिछड़ों के आरक्षण के खात्मे का षड्यन्त्र वास्तव में निहायत ही देशदृ विरोधी काम है, वह इसलिए कि आरक्षण वंचितों को उनका हक दिलाने के साथ विशाल वंचित आबादी के मानव संसाधन के सदुपयोग का सबसे बड़ा जरिया है। भारत मे जिस हिन्दू धर्म का ठेकेदार भाजपा है, उसके कारण दलित, आदिवासी, पिछड़े और आधी आबादी के रूप में विशालतम मानव संसाधन के दुरुपयोग का जो अध्याय रचित हुआ, वह विश्व इतिहास की बेनजीर घटना है। समग्र विश्व इतिहास में वंचितों को शक्ति स्रोतों से बहिष्कृत कर मानव संसाधन के दुरुपयोग का जो जघन्य कार्य हुआ, उसका संभवतः आधा अकेले शायद भारत में हुआ। लेकिन आरक्षण के जरिए मानव संसाधन के सदुपयोग का पहला दृष्टांत भी भारत में ही आंबेडकरी आरक्षण के जरिए स्थापित हुआ। हिन्दू धर्म के प्राणाधार वर्ण- व्यवस्था के प्रावधानों द्वारा हजारों साल से दलित, आदिवासी, पिछड़ों और आधी आबादी को लिखने- पढ़ने, हथियार स्पर्श, राज-काज, व्यवसाय वाणिज्य इत्यादि से पूरी तरह वंचित कर निःशुल्क दास बनाए रखा गया। यह सब कार्य सिर्फ ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्यों तक सीमित रखा गया। नतीजा यह हुआ कि आर्थिक, सामरिक, व्यवसाय-वाणिज्य, कला-संस्कृति सहित राष्ट्र के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भारत की समस्त आबादी की सहभागिता न हो सकी। फलतः मुट्ठी-मुट्ठी भर विदेशी आक्रमणकारियों को सिर्फ क्षत्रियों से सजी भारतीय सेना को पराजित कर देश को गुलाम बनाने में कभी दिक्कत ही नहीं हुई। अध्ययन-अध्यापन का अधिकार सिर्फ पोथी- पत्रा बाँचने वाले ब्राह्मणों तक सीमित रहने के कारण भारत ज्ञान-विज्ञान में नीचले पायदान पर रहने के लिए अभिशप्त रहा। सिर्फ सामरिक और ज्ञानदृक्षेत्र ही नहीं, आर्थिक सहित तमाम क्षेत्रों में भी बहुसंख्य आबादी की भागीदारी निषिद्ध होने के कारण समस्त क्षेत्रों मे ही भारत की स्थिति निहायत ही कारुणिक हुई, जिससे आज भी देश उबर नहीं पाया है।
आरक्षण के जरिए मानव संसाधन के सदुपयोग का पहला दृष्टांत स्थापित हुआ भारत में
दुनिया में मानव संसाधन के सदुपयोग का पहला दृष्टांत भारत में आंबेडकरी आरक्षण के जरिए स्थापित हुआ। इसके जरिए दलित और आदिवासी के रूप में विश्व इतिहास की सर्वाधिक बहिष्कृत व वंचित को पहली बार उन क्षेत्रों में भागीदारी का अवसर मिला, जो सिर्फ सवर्णों के लिए आरक्षित रहे। इसके फलस्वरूप जिनके लिए कल्पना करना भी दुष्कर था, वे सांसद-विधायक, डॉक्टर-प्रोफेसर- इंजीनियर, आईएएस-आईपीएस इत्यादि बनकर चमत्कार घटित करने लगे। आरक्षण के जरिए भारत मे मानव संसाधन के सदुपयोग का विरल दृष्टांत स्थापित होने के बाद ही अमेरिका, फ्रांस, न्यूजीलँड, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका इत्यादि सहित विश्व के प्रायः समस्त देशों ने अपनी-अपनी वंचित-बहिष्कृत आबादी के मानव संसाधन के सदुपयोग के लिए आंबेडकरी आरक्षण का अपने-अपने देश-काल की परिस्थितियों के अनुरूप इस्तेमाल किया। इस मामले मे सबसे आगे निकल गया अमेरिका! अमेरिका विश्व का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध देश है और हर देश की तरह भारत के लोग भी देश को अमेरिका जैसा बनने का सपना देखते रहते हैं। पर, आरक्षण के प्रति घोरतर विरक्ति पोषण करने वाले भारत के शासक और बुद्धिजीवी वर्ग ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि कैसे अमेरिका समृद्ध व शक्तिसंपन्न देश बन गया। अमेरिका की समृद्धि में सबसे बड़ा कारण बनी भारत से उधार ली हुई आरक्षण की आइडिया है।इसे समझने के लिए उसकी सामाजिक संरचना को समझ लेना होगा। अमेरिका एक ऐसा देश है जहां का समाज गोरों, रेड इंडियंस, हिस्पानिक्स, कालों एवं एसियाई नस्ल के लोगों से गठित है। अमेरिका कभी नस्लवाद के लिए बहुत कुख्यात रहा। वहां नस्लवाद के तहत यह विश्वास कायम हुआ था कि गोरे श्रेष्ठ होते हैं और बाकी गैर-गोरा नस्लीय समुदाय हीनतरः जिनका सिर्फ पशुवत इस्तेमाल किया जा सकता है। इस विश्वास के कारण ही दासदृप्रथा के तहत अफ्रीकी मूल के कालों का पशुवत इस्तेमाल कर मानवता को शर्मसार किया गया। इस नस्लीय विश्वास के कारण अल्पसंख्यक के रूप में गण्य रेड इंडियंस, हिस्पानिक्स, काले इत्यादि अवसरों ने वंचित किए जाते रहे। इस कारण ही अमेरिका में शक्ति के समस्त स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक- पर प्रायः 70 प्रतिशत आबादी के स्वामी गोरों का एकाधिकार स्थापित हुआ। इस कारण ही वहां भयावह असमानता की स्थिति पैदा हुई। इस असमानता और वंचना के खिलाफ बीसवीं सदी के साठ के दशक में कालों में विद्रोह की ज्वाला उठी और अमेरिका नस्लीय दंगों की चपेट में आ गया। यही वह समय था जब अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन अमेरिका को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के सपने मे विभोर थे। किन्तु नस्लीय दंगों से उनके मंसूबों पर पानी फिरने लगा। ऐसी स्थिति में उन्होंने दंगों से पार पाने और अमेरिका की समृद्धि की राह सुझाने के लिए जस्टिस ओट्टो कर्नर की अध्यक्षता में 27 अगस्त, 1967 को एक आयोग गठित किया, जिसने मार्च, 1968 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी। कर्नर आयोग ने अपनी रिपोर्ट मे बताया कि अमेरिका श्वेत और अश्वेत दो भागों में विभाजित हो रहा है, जिसका आधार नस्लीय अलगाव और विषमता है।उसने अलगाव व विषमता से निजात दिलाने तथा राष्ट्र की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने के लिए वंचित नस्लीय समूहों को अवसरों को और संसाधनों के बंटवारे में हिस्सेदार बनाने का सुझाव दिया।
आंबेडकरी आरक्षण से अमेरिका बना सबसे समृद्ध और शक्तिशाली देश
कर्नर आयोग के सुझावों का सम्मान करते हुए लिंडन ने वंचित नस्लीय समूहों को हिस्सेदार बनाने का निर्णय लिया और इसके लिए भारत की आरक्षण प्रणाली के विचार को उद्धार लिया। किन्तु उस समय तक जिस तरह भारत में आरक्षण के तहत दलित आदिवासियों को सिर्फ नौकरी और राजनीति में हिस्सेदारी मिल रही थी, लिंडन बी जॉनसन ने नौकरियों से आगे बढ़ाकर सप्लाई, डीलरशिप , ठेकदारी सहित समस्त आर्थिक गतिविधियों, नासा, हार्वर्ड इत्यादि सहित समस्त शिक्षण संस्थानों, फिल्मकृटीवी-मीडिया सहित राष्ट्र के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र तक प्रसारित कर दिया। इस तरह नस्लीय विविधता(रेसियल डाइवर्सिटी) के आधार पर मिलने वाला भारत का आरक्षण वहां सर्व-व्यापी आरक्षण का रूप ले लिया। इसके तहत जहां शक्ति के समस्त स्रोतों में गोरों हिस्सेदारी उनके संख्यानुपात प्रायः 70 प्रतिशत पर सिमटी, वहीं रेड इंडियंस , हिस्पानिक्स, कालों और एसियन पैसेफिक मूल के लोगों से युक्त 30 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को प्रत्येक क्षेत्र में उनके संख्यानुपात मे अवसर मिलने लगा। नस्लीय आरक्षण सिर्फ सरकारी नहींः समान रूप से निजी क्षेत्र में भी लागू हुआ, जिससे निजी क्षेत्र के संस्थान भी यह लागू करने लगे। इस तरह नस्लीय डाइवर्सिटी के आधार पर मिलने वाले आरक्षण के जरिए अमेरिका में मानव संसाधन के सदुपयोग का अभूतपूर्व मार्ग प्रशस्त हुआ। इस आरक्षण के जरिए अमेरिका अल्पसंख्यकों की प्रतिभा का विविध क्षेत्रों में उपयोग करने की स्थिति में आ गया। वंचितों के मानव संसाधन के मुकम्मल उपयोग के जरिए देखते ही देखते वह प्रगति की दौड़ में दुनिया के बाकी देशों को पीछे छोड़कार सर्वशक्तिमान देश बन गया। अमेरिका जहां आरक्षण के जरिए विश्व का सर्वाधिक समृद्ध व शक्तिसंपन्न देश बना, वहीं विविधता केंद्रित नस्लीय आरक्षण के गर्भ से अश्वेतों में रॉबर्ट एल जॉनसन जैसे उद्योगपति, रास्प बेरी जैसे पत्रकार, ओप्रा विनफ्रे जैसी टीवी एंकर, डेंजिल वाशिंगटन, विल स्मिथ, हैले बेरी जैसे फिल्म सितारे, डोरोथी जॉनसन वान- मार्क ई डीन दृ मे सी. जेमिसन इत्यादि जैसे भूरि-भूरि वैज्ञानिकों के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। नस्लीय आरक्षण के गर्भ से ही निकलीं कल्पना चावला-सुनीता विलियम अंतरिक्ष में पहुंची तो, इंदिरा नुई-सुंदर पिचाई-निकेश अरोड़ा जैसे ढेरों भारतीय बड़ी-बड़ी कंपनियों की सीईओ बने और नोरा जोन्स-एम. नाइट श्यामलन-कालपेन सुरेश मोदी जैसे सैकड़ों भारतीय अमेरिकी फिल्म व मनोरंजन जगत मे जगह बनाए। वहां विविधता नीति के तहत मिलने वाला आरक्षण ठीक से लागू होता रहे, इसके डाइवर्सिटी कमीशन स्थापित हुआ। डाइवर्सिटी कमीशन इस बात की निगरानी करता है कि वहां की सरकारी और निजी क्षेत्र की संस्थाएं ठीक से आरक्षण लागू करती हैं कि नहीं।अमेरिका के प्रत्येक संस्थान को विविधता आयोग के समक्ष हर साल डाइवर्सिटी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी पड़ती है। जो संस्था ठीक से आरक्षण लागू नहीं करती उस पर आयोग इतना बड़ा आर्थिक दंड लगा देता है कि कई बार कंपनियां दिवालिया हो जाती हैं।बहरहाल अमेरिका में भारतीय आरक्षण को सर्वव्यापी आरक्षण(डाइवर्सिटी) का रूप देकर वंचितों के मानव संसाधन के सदुपयोग का जो बेमिसाल दृष्टांत स्थापित हुआ, उससे हर बात में अमेरिका की नकल करने वाले भारतीय शासकों और बुद्धिजीवियों ने कोई प्रेरणा नहीं लिया, जिसके लिए जिम्मेवार रही हिन्दू धर्म प्रसूत जातिवादी सोच!
अमेरिका की डाइवर्सिटी पॉलिसी से प्रेरणा लिए कांग्रेसी दिग्विजय सिंह
हिन्दू धर्म के अनुपालन के नाम पर सदियों से वर्ण- धर्म का अनुसरण कर रहे भारतीयों में अपने धर्म के प्रति गहरी आस्था के कारण समग्र-वर्ग की चेतना विकसित न हो सकी। उनकी सोच जाति/वर्ण वर्ण की स्वार्थ-सरिता के मध्य प्रवाहित होती रही। इस जाति/वर्णवादी सोच ने भारतीयों को राष्ट्र-विरोधी समुदायों में तब्दील कर दिया। अपनी जातिवादी सोच के कारण भारतीय राष्ट्र के वृहद हित की अनदेखी कर अपने-अपने जाति/वर्ण के हित में निमग्न रहे। इसी स्व-जाति हित के कारण आजाद भारत के शासक आरक्षण के जरिए अमेरिका की भांति अपने देश के वंचितों के मानव संसाधन के सदुपयोग की दिशा में अग्रसर न हो सके। वे इस दिशा में अग्रसर हों, इसके लिए भारत के बुद्धिजीवी वर्ग, जो आंबेडकर के शब्दों में ब्राह्मण वर्ग है, ने भी कोई अभियान नहीं चलाया। क्योंकि ऐसा होने पर उनके स्व-वर्ण का शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार टूटता। ऐसे में अपनी वर्णवादी सोच के कारण भारत का शासक वर्ग आरक्षित वर्गों को नौकरी तक महदूद रखाः नौकरियों से आगे बढ़कर वह आरक्षण को सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, फिल्म-मीडिया इत्यादि समस्त क्षेत्रों तक प्रसारित न कर सका। यही नहीं हिन्दू धर्म के ठेकेदार भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने तो आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने में राजसत्ता का अधिकतम इस्तेमान किया, जिसके फलस्वरूप आज आरक्षण लगभग समाप्ति के करीब पहुंच गया है और करोड़ आबादी निकम्मा बनकर मुफ़्त के 5 किलो अनाज पर गुजर-बसर करने के लिए विवश है। बहारहाल भारत के वर्णवादी शासकों के मध्य अपवाद बने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, जिन्होंने 2002 में डाइवर्सिटी केंद्रित भोपाल सम्मेलन के जरिए अमेरिका के नस्लीय वंचितों की भांति दलित-आदिवासियों को नौकारियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि में आरक्षण दिलाने का एजेंडा जारी किया। सिर्फ एजेंडा ही जारी नहीं किया,बल्कि उन्होंने 27 अगस्त, 2002 को सप्लाई में आरक्षण की शुरुआत कर आरक्षण के विस्तार की एक नई राह दिखाया। लेकिन 2003 की विधानसभा चुनाव में हार के कारण वह डाइवर्सिटी की आइडिया को आगे न बढ़ा सके। किन्तु उन्होंने मध्य प्रदेश में सप्लाई डाइवर्सिटी लागू कर मानव संसाधन के अधिकतम उपयोग की जो राह दिखाया वह व्यर्थ नहीं गया! दलित बुद्धिजीवियों ने अनवरत चलाया डाइवर्सिटी का वैचारिक आंदोलन मध्य प्रदेश प्रदेश में दिग्विजय सिंह द्वारा लागू की गई सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेकर कुछ दलित बुद्धिजीवी और संगठन अमेरिका की तरह भारत में भी सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों के साथ सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, पार्किंग, परिवहन, फिल्म- मीडिया इत्यादि समस्त क्षेत्रों मे विविधता लागू करवाने अर्थात दलित, आदिवासी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और सवर्णों के संख्यानुपात मे शक्ति के स्रोतों के बंटवारे का वैचारिक आंदोलन छेड़े ,जो आज भी जारी है। दलित बुद्धिजीवियों के डाइवर्सिटी आंदोलन के फलस्वरूप हाल के वर्षों में कई राज्य सरकारों ने परंपरागत आरक्षण से आगे बढ़कर ठेकों, आउट सोर्सिंग जॉब, सप्लाई, डीलरशिप मे आरक्षण देकर राष्ट्र को चौकाया है। कई राज्य सरकारों ने निगमों, बोर्डों, सोसाइटियों में एससी, एसटी, ओबीसी को आरक्षण दिया : धार्मिक न्यासों में वंचित जातियों के साथ महिलाओं को आरक्षण दिया। इसके अतिरक्त 2020 में झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भवन निर्माण विभाग में 25 करोड़ तह के ठेकों में एसटी, एससी,ओबीसी को प्राथमिकता दिया तो 2021 में तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार ने वहां के 36 हजार मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में गैर-ब्राहणों और महिलाओं को आरक्षण देकर चौकाया। कुल मिलाकर 2002 में दिग्विजय सिंह ने अमेरिका की तरह नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई में आरक्षण लागू करने की राह दिखाया, उसके बाद कई राज्य सरकारें आंशिक रूप से इस दिशा में योगदान किया, किन्तु बड़े पैमाने पर सर्वव्यापी आरक्षण लागू करने की उम्मीद राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जगाया है।
कांग्रेस के घोषणापत्र में मुसलमान
वास्तव में 2024 में भारत के इतिहास में पहली बार मानव संसाधन के मुकम्मल उपयोग का त्रुटि-हीन नक्शा लेकर सामने आए हैं राहुल गांधी! वह जिस तरह ‘जितनी आबादी-उतना हक’ की बात करने वाला कांग्रेस का न्याय पत्र लेकर आए हैं; जिस तरह वह 90 प्रतिशत आबादी को न्याय दिलाना अपने जीवन का मिशन बताए जा रहे हैं, उससे उनकी छवि भारत के इतिहास में सबसे बड़े न्याय- योद्धा के रूप में स्थापित होती जा रही है। जितनी आबादी-उतना हक को जमीन पर उतारने के लिए वह लगभग साल भर से जाति जनगणना और आर्थिक सर्वे कराने की बात करते रहे हैं।जो बात वह पिछले कई महीनों से करते रहे है, उसका सही नक्शा न्याय पत्र के नाम से जारी कांग्रेस के घोषणापत्र में आया है। जहां तक मुसलमानों का प्रश्न है, शायद ध्रुवीकरण के डर से घोषणापत्र में कहीं भी ‘मुसलमान’ शब्द का उल्लेख नहीं हुआ है पर, जिस तरह घोषणापत्र के पृष्ठ 7 पर अल्पसंख्यकों के विषय में संदेश दिया गया है, निश्चय ही वह मुसलमानों को ध्यान में रखकर ही दिया गया है।उसमें कहा गया है, ’धार्मिक बहुलता भारत के विविध इतिहास को दर्शाता है। इतिहास को बदला नहीं जा सकता। भारत में रहने वाले सभी लोग और भारत में पैदा हुए सभी बच्चे समान रूप से मानवाधिकारों के हकदार हैं, जिसमें कि अपने धर्म का पालन करने का अधिकार भी शामिल है। बहुलतावाद और विविधता भारत की प्रकृति के मूल में हैं और हमारे संविधान की प्रस्तावना में निहित है। भारत के इतिहास और लोकतान्त्रिक परंपराओं को समझते हुए कांग्रेस का मानना है कि तानाशाही या बहुसंख्यवाद के लिए देश में कोई जगह नहीं हैं। भाषीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत के किसी अन्य नागरिक की तरह ही मानव और नागरिक अधिकार प्राप्त हैं। कांग्रेस भारत के अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बनाए रखने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।‘
कांग्रेस स्थापित करेगी अमेरिका की भांति विविधता आयोग
घोषणापत्र में कहा गया,’ कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी आर्थिक- सामाजिक जाति जनगणना करवाएगी। इसके माध्यम से कांग्रेस जातियों उपजातियों और उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति का पता लगाएगी। जनगणना से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस उनकी स्थिति में सुधार के लिए सकारात्मक कदम उठाएगी।‘ उल्लेख न होने के बावजूद निश्चय ही सकारात्मक कदम के दायरे में मुसलमान समुदाय भी आएगा। घोषणापत्र में कहा गया है,’ कांग्रेस शिक्षा एवं नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को बिना किसी भेदभाव के सभी जाति और समुदाय के लोगों के लिए लागू कराएगी।‘ पहले यह मुख्यतः सवर्णों के लिए था , अब इसमे गैर- सवर्णों को भी अवसर मिलेगा, जिसमे मुसलमान भी है। कांग्रेस के घोषणापत्र में आरक्षण का 50 प्रतिशत दायरा खत्म करने के साथ महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों मे 50 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की गई है। साथ ही अमेरिका के डाइवर्सिटी कमीशन की तरह भारत में भी विविधता आयोग गठित करने की बात आई है जिसमें कहा गया है, ’कांग्रेस एक विविधता आयोग (डाइवर्सिटी कमीशन) की स्थापना करेगी जो सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रोजगार और शिक्षा के संबंध में विविधता की स्थिति का आंकलंन करेगी और बढ़ावा देगी।‘ कुल मिलाकर कहा जा सकता है कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र के आरक्षण में उस विविधता नीति को लागू करने का संकेत कर दिया है, जिस विविधता नीति की जोर से अमेरिका विश्व का सबसे समृद्ध व शक्तिशाली देश बना। ऐसा होने पर भारत के विविध समुदायों-एससी, एसटी, ओबीसी,अल्पसंख्यक और सावर्णों-स्त्री और पुरुषों को उनकी संख्यानुपात मे नौकरियों के साथ सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, मीडिया इत्यादि में आरक्षण का अवसर मिलेगा। इससे भारत अपार मानव संसाधन के सदुपयोग का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा, जिससे मुसलमान भी लाभान्वित होंगे। लेकिन ऐसा होगा तब जब कांग्रेस सत्ता में आकर अपना घोषणापत्र लागू करे। लेकिन जबतक ऐसा नहीं होता है मुसलमानों के संख्यानुपात में आरक्षण का समर्थन करते रहें,यदि आपको देश से सच्चा प्रेम है तो। क्योंकि इससे देश को गुणवत्तापूर्ण मानव संशधन मिलेगा, जो भारत को अमेरिका बनाने के लिए जरूरी है।