Lok Sabgha Election 2024 Second Phase : सविधान और आरक्षण पर भरोसे लायक नहीं है : संघ और मोदी का अतीत!

2024 के लोकसभा चुनाव के दो चरणों के बाद जो स्थिति है, वह भाजपा के लिए बेहद चिंताजनक है, कई राजनीतिक विश्लेषकों ने मोदी सरकार के विदाई की खुली घोषणा कर दी है. ऐसा इसलिए कि अनंत हेगड़े, ज्योति मिर्धा, लल्लू सिंह, अरुण गोविल जैसे भाजपा नेताओं ने जिस तरह अबकी बार 400 पार के निहितार्थ का खुलासा किया।

लेखकः एचएल दुसाध
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन

Lucknow: 2024 के लोकसभा चुनाव के दो चरणों के बाद जो स्थिति है, वह भाजपा के लिए बेहद चिंताजनक है, जिसे देखते हुए कई राजनीतिक विश्लेषकों ने मोदी सरकार के विदाई की खुली घोषणा कर दी है. ऐसा इसलिए कि अनंत हेगड़े, ज्योति मिर्धा, लल्लू सिंह, अरुण गोविल जैसे भाजपा नेताओं ने जिस तरह अबकी बार 400 पार के निहितार्थ का खुलासा किया, उससे संविधान और आरक्षण बचाना चुनाव का मुख्य मुद्दा बन चुका है. ऐसा होने से चुनाव उस सामाजिक न्याय पर केंद्रित होता नजर आ रहा है, जिस पर हारने के लिए भाजपा बराबर अभिशप्त रही है. ऐसे में पिछले दो चरणों के चुनाव का पैटर्न देखते हुए कई विश्लेषकों का मानना है कि यदि तीसरे चरण में भी इसी तरह दलित,पिछड़े, आदिवासी और अल्पसंख्यक संविधान और आरक्षण बचाने के लिए छूटकर वोट करते रहे तो मोदी सरकार की सत्ता में वापसी असंभव हो जाएगी. संविधान और आरक्षण को सबसे बड़ा मुद्दा बनते देख संघ प्रमुख और भाजपा नेतृत्व भी 400 पार की बात भूलकर आरक्षण और संविधान पर सफाई देने में मुस्तैद हो गया है. भाजपा और आरएसएस पर आरक्षण को लेकर कांग्रेस और सहयोगी दलों के हमले के बीच दूसरे चरण के चुनाव के एक दिन बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सफाई देते हुए कहा कि जब से आरक्षण अस्तित्व में आया है, संघ ने संविधान के अनुसार आरक्षण का पूरी तरह समर्थन किया है. हमारा मानना है आरक्षण तबतक जारी रहना चाहिए, जबतक इसकी जरूरत है. क्योंकि यह पिछड़ेपन और सामाजिक हैसियत में समानता की कमी के चलते दिया जाता है. जब तक भेदभाव खत्म नहीं हो जाता, तब तक आरक्षण बना रहना चाहिए!

राहुल ने कहा संघ प्रमुख कई बार आरक्षण का किया विरोध
मोहन भागवत की सफाई पर निशाना साधते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कह दिया कि यह संघ प्रमुख ही थे, जिन्होंने अतीत में कई बार आरक्षण का विरोध किया. राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि जिन लोगों ने आरक्षण का विरोध किया है, वे उनकी पार्टी(भाजपा) में शामिल हो रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस और भाजपा अपने नेताओं को देश का राजा बनाने और 20-22 अरबपतियों की मदद करने के लिए संविधान और विभिन्न संस्थाओं को खत्म करने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि नरेंद्र मोदी और आरएसएस देश पर साम्राज्य की तरह शासन करना चाहते हैं. उधर प्रधानमंत्री मोदी ने सफाई देने के बजाय उलटे हमलावर होते हुए कह दिया है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देने के लिए संविधान को बदलना चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा है, ’मैं अपने दलित, आदिवासी और ओबीसी भाई-बहनों को यह गारंटी देना चाहता हूँ कि कांग्रेस के ऐसे इरादों को सफल नहीं होने दूंगा. आपके अधिकारों, आपके आरक्षण की रक्षा के लिए मोदी किसी भी हद तक जाएगा.मैं आपको इसका आश्वासन देना चाहता हूँ.’ उधर आरक्षण के विषय में मोदी की गारंटी पर भरोसा जताते हुए अमित शाह नें कह दिया, ’मैं आपको यह बताने आया हूँ कि मोदी की गारंटी है कि वह आदिवासियों, दलितों या ओबीसी के आरक्षण को न तो छुएगें न किसी को छूने देंगे.प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार पिछले 10 वर्षों से स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में है. अगर ऐसा करने का इरादा होता तो संविधान बदल सकती थी!’ बहरहाल भाजपा सत्ता में आने पर संविधान बदलने और आरक्षण को खत्म करने का काम नहीं करेगी, इस पर जितनी भी सफाई क्यों न दी जाए , किन्तु संघ और प्रधानमंत्री मोदी के अतीत को देखते हुए आरक्षित वर्गों में भरोसा पनपता दिख नहीं रहा है.संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण संबंधी बयान से अगर आरक्षित वर्गों में भरोसा नहीं पैदा हो पा रहा है तो उसके लिए सर्वाधिक जिम्मेवार संघ की हिन्दू धर्म के प्रति अतिरिक्त आस्था है.

संघ संविधान, सामाजिक न्याय व धर्मनिरपेक्षता का स्वाभाविक हिमायती न बन सका

हिन्दू धर्म में गहरी आस्था के कारण संघ अपने जन्मकाल से लेकर आजतक लोकतंत्र, संविधान, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता का स्वाभाविक हिमायती न बन सका. हिन्दू धर्म मे गहरी आस्था के कारण उस में गहराई से यह विश्वास जमा है कि शक्ति के स्रोतों(आर्थिक,राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक) के भोग का धर्म-सम्मत अधिकार सिर्फ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग(मुख,बाहु,जंघे) से जन्मे सवर्णों को है. विपरीत इसके इस आस्था के कारण ही दलित,पिछड़े और आदिवासियों द्वारा शक्ति के स्रोतों का भोग उसके लिए अधर्म व हिन्दू विरोधी है. इसीलिए पूना पैक्ट के जमाने से ही संघ आरक्षण का विरोधी एवं इसके खात्मे की ताक में रहा! और मण्डल रिपोर्ट के जरिए जब आरक्षण का विस्तार हुआ, मौका माहौल देखकर वह आरक्षण के खात्मे के लिए राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन छेड़ दिया ,जो अटल बिहारी वाजपेयी के अनुसार आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन रहा. इस आंदोलन के फलस्वरूप देश की अपार संपदा और असंख्य लोगों की प्राणहानि हुई, कितु इसके जरिए उसे एकाधिक बार अपने राजनीतिक संगठन भाजपा को सत्ता में पहुंचाने का अवसर मिल गया और संघ प्रशिक्षित प्रधानमंत्रियों ने मंदिर आंदोलन से मिली राजसत्ता का इस्तेमाल मुख्यतः आरक्षण के खात्मे मे किया. चूंकि आरक्षण सवर्णों की भांति ही शुद्रातिशूद्रों को भी शक्ति के स्रोतों के भोग का अवसर प्रदान करता है, इसलिए हिंदुत्ववादी संघ की सभी शख्सियतें आरक्षण के विरुद्ध रहीं. यही कारण है आरक्षण को समानता के सिद्धांत के खिलाफ मानने वाले संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में लिख सकेः‘ भारतीय संविधान हॉचपॉच यानी गड़बड़ है; इसमें भारतीय संस्कृति के अनुरूप कुछ भी नहीं है; इसके संघीय स्वरूप को गहराई में गाड़ दिया जाना चाहिए तथा संविधान को रिजेक्ट कर फिर से लिखा जाना चाहिए!’ ‘आरएसएस’ किताब के लेखक जयदेव डोले ने लिखा है कि संघ की भूमिका आरक्षण के खिलाफ है तथा जब संविधान तैयार हो रहा था, तब गोलवलकर ने आरक्षण का जोरदार विरोध किया था. बहरहाल संविधान और आरक्षण के विषय में जो सोच गोलवलकर की रही, उससे बहुत भिन्न सोच बाद के संघ संचालकों में भी न पनप सकी!

संघ हिंदुत्ववादी विचारधारा से सराबोर होने के कारण संविधान व आरक्षण का रहा विरोधी

संघ हिंदुत्ववादी विचारधारा से सराबोर होने के कारण शुरू से ही संविधान और आरक्षण का विरोधी रहा है, जिसकी झलक समय दृसमय पर मिलती रही है. 1981 में संघ ने एक प्रस्ताव पारित किया था ,जिसमें आरक्षण की समीक्षा के लिए गैर-राजनीतिक लोगों की एक समिति बनाने का आह्वान किया गया थाः बाद के दशकों में भी उसका यही रुख रहा, जिसका खासतौर से प्रतिबिंबन 2015 में वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान में हुआ था. भागवत ने सितंबर 2015 में संघ के साप्ताहिक पत्र पाँचजन्य और ऑर्गेनाइजर को दिए एक साक्षात्कार में आरक्षण की समीक्षा की बात उठाते हुए कहा था,’पूरे राष्ट्र के हित के बारे में वास्तव में चिंतित और सामाजिक समानता के लिए प्रतिबद्ध लोगों की एक समिति बनाएं. उन्हें यह तय करना चाहिए कि किन श्रेणियों को आरक्षण की आवश्यकता है और कितने समय के लिए!’ बिहार बिधनसभा चुनाव के दौरान दिए गए इस बयान चुनाव की दिशा बदल दी. विपक्षी दलों ने मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा वाले बयान को आरक्षण के खात्मे से जोड़कर देखा और लालू प्रसाद यादव ने इसका चतुराई से इस्तेमाल करते हुए चुनाव को मण्डल बनाम कमंडल पर केंद्रित कर दिया. बाद में जब चुनाव परिणाम आया तो देखा गया कि प्रधानमंत्री मोदी की अपार लोकप्रियता के बावजूद भाजपा शर्मनाक हार झेलने के लिए विवश हुई. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरक्षण के खात्मे की आशंका से आरक्षित वर्ग जिस जुनून से वोट किया था, 2024 में भाजपा के लिए हालात उससे भी कहीं ज्यादा बदतर हो चुके हैं. ऐसे हालात में संघ के अतीत को देखते हुए दलित-पिछड़े इत्यादि मोहन भागवत के बयान से पूरी तरह उदासीन दिख रहे हैं! जहां तक प्रधानमंत्री मोदी का सवाल है, उनका भी अतीत वर्तमान हालात में भाजपा के लिए बाधक साबित होता दिख रहा है.

आरक्षण को काफी हद तक कागजों की शोभा बना दिया

2015 में संविधान दिवस की घोषणा करने के बावजूद मोदी ने अपने दस सालों के कार्यकाल में साबित किया है कि वह संविधान को लागू करने वाले सबसे बुरे प्रधानमंत्री हैं! उनके कार्यकाल में संविधान भारत के लोगों को तीन न्याय-सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक-सुलभ कराने में काफी हद तक व्यर्थ हो चुका है. उन्होंने संविधान सौंपने के एक दिन पूर्व : 25 नवंबर, 1949 को संविधान निर्माता आंबेडकर द्वारा दी गई इस चेतावनी-हमें निकटतम समय के मध्य आर्थिक और सामाजिक विषमता का खात्मा कर लेना होगा, नहीं तो विषमता से पीड़ित जनता लोकतंत्र के उस ढांचे को विस्फोटित कर सकती है, जिसे संविधान निर्मात्री सभा ने इतनी मेहनत से बनाया है-की बुरी तरह अनदेखी कर दिया, जिसके फलस्वरूप आज भारत में आर्थिक और सामाजिक विषमता सारी हदें पार कर गई हैं. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मोदी की सारी नीतियाँ शक्ति के समस्त स्रोतों पर हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे लोगों का एकाधिकार जमाने पर केंद्रित रहीं. जहां तक आरक्षण का सवाल है, उन्होंने आरक्षण पर निर्भर आंबेडकर के लोगों (दलित-आदिवासी) को ही नहीं, बल्कि वर्ण व्यवस्था के सम्पूर्ण वंचित समूहों को वर्ग-शत्रु के रूप में ट्रीट करते हुए ऐसी नीतियाँ बनाईं, जिसके फलस्वरूप इन वर्गों की उन्नति और प्रगति का आधार : आरक्षण देखते ही देखते प्रायः कागजों की शोभा बनकर रह गया. इसका बड़ा दृष्टांत 5 अगस्त, 2018 को नितिन गडकरी द्वारा दिया गया वह बयान है, जिसमें कहा गया था, ’सरकारी नौकरियां खत्म हो चुकी हैं, इसलिए आरक्षण का कोई अर्थ नहीं रह गया है!’ दरअसल प्रधानमंत्री पिछले दस सालों में कभी नहीं भूले कि जिस संघ से प्रशिक्षित होकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं, उस संघ का लक्ष्य सारा कुछ सावर्णों के हाथ में सौंपना तथा शुद्रातिशूद्रों को उस स्थिति में पहुंचाना है, जिस स्थिति में उनको बने रहने का निर्देश धर्मशास्त्र देते हैं. संघ के लक्ष्य की पूर्ति के लिए ही मोदी राज के पिछले दस सालों में श्रम कानूनों को निरंतर शिथिल करने के साथ नियमित मजदूरों की जगह ठेकेदारी-प्रथा को बढ़ावा देकर शक्तिहीन शुद्रातिशूद्रों को शोषण और वंचना के दलदल में फंसाने का काम जोर-शोर से हुआ. इनकी उन्नति और प्रगति का आधार : आरक्षण के खात्मे के लिए ही एयर इंडिया, रेलवे स्टेशनों, बंदरगाहों हॉस्पिटलों इत्यादि को निजी क्षेत्र में देने का काम जोर-शोर से हुआ. आरक्षण के खात्मे की योजना के तहत ही सुरक्षा तक से जुड़े उपक्रमों में 100 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी दी गई. वर्ग-शत्रु शुद्रातिशूद्रों का जीवन बदहाल बनाने के लिए ही 62 यूनिवर्सिटीयों को स्वायतता प्रदान करने के साथ नई शिक्षानीति 2020 लागू की गई, जिसके फलस्वरूप आरक्षित वर्गों, खासकर एससी-एसटी के लोगों का विश्वविद्यालयों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति पाना सपना बनते जा रहा है. कुल मिलाकर जो सरकारी नौकरियां वंचित वर्गों के धनार्जन का आधार थीं, मोदी राज में उसे कागजों की शोभा बना दिया गया. मोदी राज में जहां बहुजनों के आरक्षण को कागजों की शोभा बनाया गया, वही संविधान का मखौल उड़ाते हुए आनन-फानन में संघ के चहेतेः वर्ग के लिए ईएसडब्ल्यू के नाम पर 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दिया गया. उसके चहेते वर्ग के हिट लैटरल इंट्री का प्रवधान हुआ जिसके जरिए अपात्र सवर्णों को भी धड़ल्ले से आईएएस के पदों पर बिठाया जाने लगा. ऐसे में ध्यान से देखा जाए तो पिछले दस सालों में भले ही मोदी ने संविधान और आरक्षण के खात्मे की खुली घोषणा नहीं किया पर, व्यवहारिक सच्चाई यही है कि उन्होंने अघोषित रूप से संविधान को बदलने तथा आरक्षण के खात्मे की खुली घोषणा न करने के बावजूद संविधान को निरर्थक तथा आरक्षण को काफी हद तक कागजों की शोभा बना दिया है. ऐसे में कुल मिलाकर संघ और मोदी के अतीत देखते हुए कहा जा सकता है कि इन पर भरोसा करने के बजाय दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक चुनाव के अगले पाँच चरणों में संविधान और आरक्षण बचाने के लिए वोट को भाजपा के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करेंगे ही करेंगे!

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