Ambedkar Jayanti 2024: आंबेड़करवाद की रक्षा का आखिरी अवसर है : लोकसभा चुनाव 2024

Ambedkar Jayanti 2024: डॉ. आंबेडकर की 133 वीं जयंती, देश एक ऐसे समय में बाबा साहेब की जयंती मनाने जा रहा है, जब आंबेडकरवाद बुरी तरह संकटग्रस्त हो चुका है व आज से कुछ ही दिन बाद आजाद भारत का सबसे निर्णायक लोकसभा चुनाव शुरू होने जा रहा है.

लेखकः एचएल दुसाध
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन

Lucknow: 14 अप्रैल, देश भारतरत्न बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की जयंती एक ऐसे समय में मनाने जा रहा है, जब आंबेडकरवाद बुरी तरह संकटग्रस्त हो चुका है एवं आज से कुछ ही दिन बाद आजाद भारत का सबसे निर्णायक लोकसभा चुनाव शुरू होने जा रहा है. आज जब आंबेडकरवाद दिन ब दिन दुनिया में विस्तारलाभ करते जा रहा है, इसके बुरी तरह संकटग्रस्त होने की बात कइयों को हजम नहीं हो सकती है. पर, आंबेडकरवाद की दुनिया में विस्तारलाभ पाते दौर में यह अप्रिय सच्चाई स्वीकार कर लेना ही बेहतर होगा कि भारत मे आंबेडकरवाद बुरी संकटग्रस्त हो चुका है और हर एकनिष्ठ आंबेडकरवादी का अत्याज्य कर्तव्य है कि वह इसे संकटमुक्त करने की दिशा में कुछ करे. लेकिन इस दिशा में कुछ करने के पहले या जान लेना जरूरी है कि क्या है आंबेडकरवाद और कैसे हो गया है यह संकटग्रस्त!

क्या है आंबेडकरवाद!
वैसे तो आंबेडकरवाद की कोई निर्दिष्ट परिभाषा नहीं है, किन्तु विभिन्न समाज विज्ञानियों के अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि जाति, नस्ल, लिंग, धर्म, भाषा, क्षेत्र इत्यादि जन्मगत कारणों से शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक इत्यादि) से जबरन बहिष्कृत कर सामाजिक अन्याय की खाई में धकेले गए मानव समुदायों को शक्ति के स्रोतों में कानूनन हिस्सेदारी दिलाने का प्रावधान करने वाला सिद्धांत ही आंबेडकरवाद है और इस वाद का औंजार है :आरक्षण! भारत के मुख्यधारा के बुद्धिजीवियों द्वारा दया-खैरात के रूप में प्रचारित आरक्षण और कुछ नहीं, शक्ति के स्रोतों से जबरन बहिष्कृत किये गए लोगों को कानून के जोर से उनका प्राप्य दिलाने का अचूक औजार मात्र है. बहरहाल दलित, आदिवासी और पिछड़ों से युक्त भारत का बहुजन समाज प्राचीन विश्व के उन गिने-चुने समाजों में से एक है जिन्हें जन्मगत कारणों से शक्ति के समस्त स्रोतों से हजारों वर्षों तक बहिष्कृत रखा गया. ऐसा उन्हें सुपरिकल्पित रूप से हिन्दू धर्म के प्राणाधार उस वर्ण-व्यवस्था के प्रावधानों के तहत किया गया जो विशुद्ध रूप से शक्ति के स्रोतों के बंटवारे की व्यवस्था रही. इसमें अध्ययन-अध्यापन, पौरोहित्य, भूस्वामित्व, राज्य संचालन, सैन्य वृत्ति, उद्योग-व्यापारादि सहित गगनस्पर्शी सामाजिक मर्यादा सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त उच्च वर्णों के मध्य वितरित की गयी. स्व-धर्म पालन के नाम पर कर्म-शुद्धता की अनिवार्यता के फलस्वरूप वर्ण-व्यवस्था ने एक आरक्षण व्यवस्था का रूप ले लिया, जिसे कई समाज विज्ञानी हिन्दू आरक्षण व्यवस्था कहते हैं.

दलितः गुलामों के गुलाम
हिन्दू आरक्षण व्यवस्था ने चिरस्थाई तौर पर भारत समाज को दो वर्गों में बांट कर रख दिया. एक विशेषाधिकारयुक्त सुविधाभोगी वर्ग और दूसरा, शक्तिहीन बहुजन समाज! इस हिन्दू आरक्षण में शक्ति के सारे स्रोत सिर्फ और सिर्फ विशेषाधिकारयुक्त तबकों के लिए आरक्षित रहे. इस कारण जहाँ विशेषाधिकारयुक्त वर्ग चिरकाल के लिए सशक्त तो दलित, आदिवासी और पिछड़े अशक्त व गुलाम बनने के लिए अभिशप्त हुए. इनमें सबसे बदतर स्थिति दलितों की रही. वे गुलामों के गुलाम रहे. इन्हीं गुलामों को गुलामी से निजात दिलाने की चुनौती इतिहास ने डॉ.आंबेडकर के कन्धों पर सौंपी, जिसका उन्होंने नायकोचित अंदाज में निर्वहन किया.

आंबेडकरी आरक्षण से हुई हिन्दू आरक्षण की काट

अगर जहर की काट जहर से हो सकती है तो हिन्दू आरक्षण की काट आंबेडकरी आरक्षण से हो सकती थी, जो हुई भी. पूना पैक्ट के जमाने से इसी आंबेडकरी आरक्षण से सही मायने में सामाजिक अन्याय के खात्मे की प्रक्रिया शुरू हुई. हिन्दू आरक्षण के चलते जिन सब पेशों को अपनाना अस्पृश्य-आदिवासियों के लिए दुसाहसपूर्ण सपना था, अब वे खूब दुर्लभ नहीं रहे. इससे धीरे-धीरे वे सांसद-विधायक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर इत्यादि बनकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने लगे. दलित दृआदिवासियों पर आंबेडकरवाद के चमत्कारिक परिणामों ने जन्म के आधार पर शोषण का शिकार बनाये गए अमेरिका, फ़्रांस, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका इत्यादि देशों के वंचितों के लिए मुक्ति के द्वार खोल दिए. संविधान में डॉ.आंबेडकर ने अस्पृश्य-आदिवासियों के लिए आरक्षण सुलभ कराने के साथ धारा 340 का जो प्रावधान किया, उससे परवर्तीकाल में मंडलवादी आरक्षण की शुरुआत हुई, जिससे कई राष्ट्रों के बराबर विशाल संख्यक पिछड़ी जातियों के लिए भी सामाजिक अन्याय से निजात पाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. उसके बाद ही आंबेडकरवाद नित नई ऊंचाइयां छूते चला गया तथा दूसरे वाद म्लान पड़ते गए. लेकिन मंडल की जिस रिपोर्ट के बाद आंबेडकरवाद नित नई ऊंचाइयां छूना शुरू किया, उसी से इसके संकटग्रस्त होने का सिलसिला भी शुरू हुआ और इसे संकटग्रस्त करने में भूमिका निभाया आरएसएस और उसके राजनीतिक संगठन ने!

आंबेडकरवाद को संकटग्रस्त करने के लिए सर्वाधिक जिम्मेवार : मोदी
पूना पैक्ट के जमाने से ही हिंदुत्ववादी भाजपा का पितृ संगठन आरएसएस आरक्षण के खात्मे की साजिश में जुटे रहा. वह इसलिए कि संघ अपने जन्मकाल से ही उस हिन्दू राष्ट्र का आकांक्षी रहा है जिसमें देश उन हिन्दू धर्मशास्त्रों के तहत चलेगा जिसमें शक्ति के स्रोतों के भोग का अधिकारी सिर्फ उच्च वर्ण होगा और शुद्रातिशूद्रों का काम होगा तीन उच्च वर्णों की निःशुल्क सेवा. संक्षेप में संघ के हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य शक्ति के समस्त स्रोत उच्च वर्णों के हाथों में देना और शुद्रातिशूद्रों को वैसी स्थिति में पहुचाना, जिस स्थिति में उन्हें रहने का निर्देश हिन्दू धर्मशास्त्र देते हैं. लेकिन आंबेडकरी आरक्षण ने हालात बदल दिए। हिन्दू धर्म के गुलाम आरक्षण के जरिए शासन-प्रशासन इत्यादि में हिस्सेदारी पाकर उस स्थिति में पहुंचने लगे, जिस स्थिति के भोग अधिकार धर्मशास्त्रों ने सिर्फ उच्च वर्णों को दिए थे। इसीलिए ही हिंदुत्ववादी संघ पूना पैक्ट के जमाने से आरक्षण का विरोधी रहा। बहरहाल पूना पैक्ट के जमाने से ही आरक्षण के खात्मे की ताक में बैठे संघ परिवार को 7, अगस्त, 1990 के बाद उस समय मौका मिल गया, जब पिछड़ों के आरक्षण के खिलाफ हिन्दू आरक्षण के सुविधाभोगी वर्ग के तमाम तबके-छात्र और उनके अभिभावक, लेखक दृ पत्रकार और साधु-संत और धन्ना सेठ-आरक्षण के खात्मे के लिए लामबंद हो गए। ऐसे में आरक्षण विरोधी जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग को एक साथ इककट्ठे होते देख संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा ने साधु-संतों, लेखक- पत्रकारों इत्यादि को साथ लेकर राम मंदिर आंदोलन छेड़ दिया। मंदिर आंदोलन के सहारे भाजपा चुनाव दर चुनाव मजबूत होते-होते आज अप्रतिरोध्य बन गई है। मंदिर आंदोलन से मिले राजसत्ता सत्ता का इस्तेमाल संघ प्रशिक्षित प्रधानमंत्रियोंः अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने हिन्दू राष्ट्र की जमीन तैयार करने किया, जिसके लिए आरक्षण का खात्मा जरूरी था, जो उन्होंने किया! इस मामले में नरेंद्र मोदी ने अटल बिहारी वाजपेयी को बिल्कुल ही बौना बना दिया.चूंकि हिन्दू राष्ट्र का छुपा एजेंडा उच्च वर्णों के हाथों में शक्ति के समस्त स्रोत सौंपना तथा शूद्रातिशूद्रों को उस स्थिति में पहुंचाना रहा, जिस स्थिति में रहने का निर्देश हिन्दू धर्मशास्त्र देते हैं, इसलिए नफरती राजनीति के चूड़ामणि नरेंद्र मोदी हिन्दू राष्ट्र के हिडेन एजेंडे के तहत देश का सारा कुछ अपने चहेते उच्च वर्णों के हाथों मे सौंपने की दिशा में सर्वशक्ति से आगे बढ़े और प्रत्याशा से अधिक सफल हो गए!
हिन्दू आरक्षण के सुविधाभोगी वर्ग का 80-90 प्रतिशत कब्जा
हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए मोदी राज में पिछले दस सालों में जो नीतियाँ ग्रहण की गई हैं, उसके फलस्वरूप आज की तारीख में दुनिया के किसी भी देश में भारत के परम्परागत सुविधाभोगी जैसा शक्ति के स्रोतों पर औसतन 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा नहीं है. आज यदि कोई गौर से देखे तो पता चलेगा कि पूरे देश में जो असंख्य गगनचुम्बी भवन खड़े हैं, उनमें 80-90 प्रतिशत फ्लैट्स जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हैं. मेट्रोपोलिटन शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में 80-90 प्रतिशत दूकानें इन्हीं की है. चार से आठ-आठ लेन की सड़कों पर चमचमाती गाड़ियों का जो सैलाब नजर आता है, उनमें 90 प्रतिशत से ज्यादे गाड़ियां इन्हीं की होती हैं. देश के जनमत निर्माण में लगे छोटे-बड़े अख़बारों से लेकर तमाम चैनल व पोर्टल्स प्राय इन्हीं के हैं. फिल्म और मनोरंजन तथा ज्ञान-उद्योग पर 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा इन्हीं का है. संसद, विधानसभाओं में वंचित वर्गों के जनप्रतिनिधियों की संख्या भले ही ठीक-ठाक हो, किन्तु मंत्रिमंडलों में दबदबा इन्हीं का है. मंत्रिमंडलों में लिए गए फैसलों को अमलीजामा पहनाने वाले 80-90 प्रतिशत अधिकारी इन्हीं वर्गों के हैं. शक्ति के स्रोतों पर जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के बेनजीर वर्चस्व के मध्य जिस तरह मोदी-राज में विनिवेशीकरण और निजीकरण के साथ लैट्रल इंट्री को जूनून की हद तक प्रोत्साहित करते हुए रेल, हवाई अड्डे, चिकित्सालय, शिक्षालय इत्यादि बेचने सहित ब्यूरोक्रेसी के निर्णायक पद उच्च वर्णों को सौपें जा रहे हैं, उससे डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित संविधान की उद्द्येशिका में उल्लिखित तीन न्याय- आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक-पूरी तरह एक सपना बनते जा रहे है. इस क्रम में ही भारत में आंबेडकरवाद संकटग्रस्त हुआ है और तेजी से अपना असर खोते जा रहा है.
आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करने का आखिरी अवसर है
बहरहाल आज हिन्दू राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना के तहत मोदी जिस अमृत- काल का उद्घोष कर रहे हैं, वह बहुतों के हिसाब से अन्याय- काल है! आंबेडकरवाद के संकटग्रस्त होते इसी अन्यायकाल में 18वीं लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और इस चुनाव में मोदी जहां भी जा रहे हैं, वहां अबकी बार 400 पार की अपील मतदाताओं से कर रहे हैं.वह 400 पार की अपील, 2025 में जब संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होंगे उस अवसर पर हिन्दू राष्ट्र की घोषणा करने तथा आंबेडकर के संविधान को बदलने के मकसद से कर रहे हैं, यह ढेरों राजनीतिक विश्लेषकों ने प्रमाणित कर दिया है. ऐसे में यह तय है कि यदि मोदी तीसरी बार सत्ता में आते हैं तो वह हिन्दू राष्ट्र की घोषणा के साथ बाबा साहेब का संविधान बदल कर मनु का विधान लागू कर देंगे,जिसमें उच्च वर्ण के लोग शक्ति के स्रोतों का भोग करने के अभ्यस्त तो शुद्रातिशूद्र दैविक सर्वस्वहारा के रूप में जीवन जीने के लिए अभिशप्त होंगे! ऐसे में मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से पहले से ही संकटग्रस्त आंबेडकरवाद की क्या स्थिति हो सकती है, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है. अतः कहा जा सकता है कि आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करने का आखिरी अवसर है लोकसभा चुनाव- 2024! यदि इस अवसर का इस्तेमाल कर आंबेडकरवादी संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा को सत्ता में आने से रोक सके तो न सिर्फ आंबेडकरवाद संकट-मुक्त हो जाएगा, बल्कि इसकी जड़ें इतनी मजबूत हो जाएंगी कि उसे खत्म करने का सपना देखने में भी हिंदुत्ववादी संघ परिवार के पसीने छूट जाएंगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इंडिया गठबंधन जिस एजेंडे और घोषणापत्र के साथ मोदी की भाजपा को चुनौती देने के लिए आगे बढ़ रहा है, उसमें आंबेडकरवाद के एवरेस्ट सरीखी ऊंचाई छूने के भरपूर तत्व हैं!

कांग्रेस का घोषणापत्र, हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ क्रांतिकारी दस्तावेज
यह तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सीधी लड़ाई कांग्रेस के नेतृत्ववाली इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस) और भाजपा नीत एनडीए के बीच हैं. इस चुनाव में मोदी अपने भाषणों में हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद, मटन- मीट इत्यादि के भावनात्मक मुद्दे उठा रहे हैं!वह पिछले दस सालों की उपलब्धियां गिनाकर वोट नहीं मांग रहे हैं. वह उपलब्धियां गिनाएंगे कैसे, पिछले दस सालों का पूरा उपयोग तो उन्होंने सारा कुछ उच्च वर्णों के हाथों में सौंपने तथा बहुजनों को अधिकारविहीन कर आंबेडकरवाद को संकटग्रस्त करने में किया है! भाजपा के विपरीत इंडिया में शामिल दलों ने जो अपना घोषणापत्र तैयार किया है, उसमें आंबेडकरवाद के अभूतपूर्व तत्व अर्थात दलित, आदिवासी, पिछड़े, अल्पसंख्यकों से युक्त 90 प्रतिशत वंचित आबादी को शक्ति के स्रोतों में बेहिसाब हिस्सेदारी प्रदान के वादे हैं! इस मामले में इंडिया गठबंधन दलों को नेतृत्व दे रहे कांग्रेस का घोषणापत्र तो हिंदुत्ववादी संघ के हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ एक क्रांतिकारी दस्तावेज की शक्ल अख्तियार कर लिया है.

आंबेडकरवाद को एवरेस्ट सरीखी ऊंचाई प्रदान करेगा कांग्रेस का घोषणा पत्र
कांग्रेस ने न्याय पत्र के नाम से जो घोषणापत्र तैयार किया है, उसमें किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य, युवाओं के लिए 30 लाख सरकारी नौकरियां तथा श्रमिकों को न्यूनतम 400 मजदूरी देने की गारंटी तो है ही, पर, इसके हिस्सेदारी और नारी न्याय के तहत आरक्षण का दायरा एक्सट्रीम पर पहुँचाने का वादा भी शामिल है, जो आंबेडकरवाद को एवरेस्ट सरीखी ऊंचाई प्रदान करेगा. उसका घोषणापत्र कहता है कांग्रेस नीत सरकार बनने पर एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने के लिए पार्टी संविधान संशोधन बिल पास कराएगी. एससी, एसटी समुदायों से संबंधित ठेकेदारों को ज्यादा सार्वजनिक कार्य का ठेका देने के लिए खरीद पॉलिसी का दायरा बढ़ाएगी. एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों स्कालरशिप की धनराशि दो गुना करने के साथ कांग्रेस एससी, एसटी छात्रों को विदेश में पढ़नें में सहायता देने और उनके पीएचडी करने के लिए धनराशि दो गुना करेगी. गरीबों, एससी और एसटी छात्रों के लिए आवासीय विद्यालयों का एक नेटवर्क बनाने और इसे हर ब्लॉक तक बढ़ाने की बात भी कांग्रेस के घोषणापत्र में आई है. सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की गारंटी के क्रम में कांग्रेस ने दलित बुद्धिजीवियों द्वारा चलाए जा रहे डाइवर्सिटी आंदोलन को सम्मान देते हुए अपने घोषणापत्र में कहा है,’ कांग्रेस एक विविधता आयोग (डाइवर्सिटी कमीशन) की स्थापना करेगी जो सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में विविधता की स्थिति का आंकलन करेगी और बढ़ावा देगी. ’कांग्रेस ने महिलाओं को पुरुषों की बराबरी पर लाने के लिए सरकारी नौकरियों में उनको 50 प्रतिशत आरक्षण देने के साथ प्रत्येक गरीब परिवार की महिला को साल में एक लाख अर्थात 8333 रुपये देने वादा भी अपने घोषणापत्र में किया है. ऐसी और भी कई गारंटियाँ और वादे कांग्रेस के घोषणापत्र में हैं. क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस की गारंटियों और वादों से आंबेडकरवाद बुलंदियों को छूएगा तथा हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना ध्वस्त होगी!
मोहमुक्त होना होगा भाजपा-हितैषि आंबेडकरवादी दलों से उपरोक्त तथ्यों के आईने में यह साफ है कि कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन को सत्ता में लाकर आंबेडकरवादी आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करने के साथ इसे एक नई ऊंचाई प्रदान कर जरूरी कर्तव्य निभा सकते हैं! लेकिन आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करने के लिए बाबा साहेब के नाम पर राजनीति करने वाले उन दलों और नेताओं से मोहमुक्त होना पड़ेगा जो दलित समाज में जन्मने के कारण खुद को आंबेडकरवादी समझते हैं. ये कथित आंबेडकरवादी दल और नेता ही आज आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करने सबसे बड़ी बाधा हैं! बहुत पहले से निज दृ स्वार्थ में आंबेडकरवाद को संकटग्रस्त करने का अपराध करने वाले रामदास आठवले, मायावती, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी इत्यादि की चिन्ता आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करना नहीं, बल्कि इस वाद के जरिए खड़े किए गए अपने आर्थिक साम्राज्य को बचाना है। अपने साम्राज्य को बचाने के लोभ में ये प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से इस चुनाव में भाजपा को मदद कर रहे हैं, जो आंबेडकरवाद को संकट ग्रस्त करे के लिए पूरी तरह जिम्मेवार है।एक बच्चा तक भी जान गया है कि इन कथित आंबेडकरवादियों को वोट देने का मतलब भाजपा के 400 पार अभियान में सहयोग करना होगा। ऐसे में आंबेडकरवादी यदि आंबेडकरवाद को संकट-मुक्त करना चाहते हैं तो उन्हें इस चुनाव में भाजपा-हितैषि आंबेडकरवादियों से मोह-मुक्त होने का कठिन निर्णय लेना होगा!

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