Bahujan Diversity Mission Sthapna Divas: डाइवर्सिटी को सम्मान देने में कांग्रेस ही चैंपियन पार्टी है
Bahujan Diversity Mission Sthapna Divas: 15 मार्च, 2007 को दलित लेखकों का संगठनः ’बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ (बीडीएम) वजूद में आया, जिसका संस्थापक अध्यक्ष खुद एचएल दुसाध लेखक रहें। चूंकि बहुजन डाइवर्सिटी मिशन से जुड़े लेखकों का यह दृढ़ विश्वास रहा कि आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या है।
लेखकः एचएल दुसाध
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन
Lucknow: स्वाधीनोत्तर भारत के दलित आंदोलनों के इतिहास में 12-13 जनवरी, 2002 तक मध्य प्रदेश के कांग्रेस मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा आयोजित भोपाल सम्मेलन का एक अलग महत्व है, जिसमें प्राख्यात दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद के नेतृत्व में 250 से अधिक शीर्षस्थ दलित बुद्धिजीवियों ने शिरकत किया था। भोपाल के दलित सम्मेलन में दो दिनों के गहन विचार मंथन के बाद 21 सूत्रीय भोपाल घोषणापत्र जारी हुआ था, जिसमें अमेरिका की डाइवर्सिटी पॉलिसी (विविधता नीति) का अनुसरण करते हुए, वहां के अश्वेतों की भांति ही भारत के दलित-आदिवासियों को नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लायर, डीलर, ठेकेदार इत्यादि बनाने का एजेंडा पेश किया गया था। भोपाल घोषणा जारी करते समय दिग्विजय सिंह ने कहा था कि भारत का पहला दलित करोड़पति मध्य प्रदेश से ही निकलेगा। किन्तु किसी को भी यकीन नहीं था कि भारत में डाइवर्सिटी पॉलिसी लागू हो सकती है। पर, भोपाल घोषणा जारी करते समय किए गए वादे के मुताबिक, एक अंतराल के बाद 27 अगस्त, 2002 को मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सरकारी खरीद में एससी-एसटी उद्यमियों को 30 प्रतिशत सप्लाई का आदेश देकर सप्लायर डाइवर्सिटी की शुरुआत कर दिया। दिग्विजय सिंह की उस छोटी सी शुरुआत से दलितों में यह विश्वास पनपा कि यदि सरकारें चाह दें तो सदियों से उद्योग-व्यापार से बहिष्कृत किए गए एससी/एसटी को उद्योगपति/ व्यापारी बनाया जा सकता है। फिर क्या था! देखते ही देखते डाइवर्सिटी लागू करवाने के लिए ढेरों दलित संगठन मैदान में कूद पड़े। किन्तु, कुछ साल बाद ही वे थक-हार कर बैठ गए। वैसे में डाइवर्सिटी के विचार को आगे बढ़ाने के लिए मान्यवर कांशीराम के भागीदारी दर्शन और अमेरिका के डाइवर्सिटी सिद्धांत से प्रेरणा लेकर, 15 मार्च, 2007 को दलित लेखकों का संगठनः ’बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ (बीडीएम) वजूद में आया, जिसका संस्थापक अध्यक्ष खुद यह लेखक रहा। चूंकि बहुजन डाइवर्सिटी मिशन से जुड़े लेखकों का यह दृढ़ विश्वास रहा कि आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी ही मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या है तथा शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक-में सामाजिक और लैंगिक विविधता का असमान प्रतिबिंबन कराकर ही सारी दुनिया के शासक इसकी सृष्टि करते रहे हैं, इसलिए हमने शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता का सम्यक प्रतिबिंबन कराने की कार्ययोजना बनाया। ऐसे मे हमने शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता का प्रतिबिंबन कराने अर्थात भारत के विविध सामाजिक समूहों एससी, एसटी, ओबीसी, धार्मिक अल्पसंख्यक और सवर्ण समुदाय- के स्त्री-पुरुषों के संख्यानुपात में अवसरों के बंटवारे की निम्न दस सूत्रीय कर्म सूची स्थिर किया।
बहुजन डाइवर्सिटी मिशन का दस सूत्रीय एजेंडा
1-सेना व न्यायालयों, सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी स्तर की सभी प्रकार की नौकरियों सहित पौरोहित्य।
2-सरकारी और निजी क्षेत्रों द्वारा दी जाने वाली डीलरशिप।
3-सरकारी और निजी क्षेत्र द्वारा की जाने वाली खरीदारी।
4-सड़क-भवन निर्माण इत्यादि के ठेकों, पार्किंग,परिवहन।
5-सरकारी और निजी क्षेत्र द्वारा चलाए जाने वाले छोटे-बड़े स्कूलों, विश्वविद्यालयों, तकनीकी- व्यवसायिक शिक्षण संस्थानों के संचालन, प्रवेश व अध्यापन।
6-सरकारी और निजी क्षेत्रों द्वारा अपनी नीतियों, उत्पादित वस्तुओं इत्यादि के विज्ञापन मद में खर्च की जाने वाली धनराशि।
7-देश-विदेश की संस्थाओं द्वारा गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) को दी जाने वाली धनराशि।
8-प्रिन्ट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं फिल्म-टीवी के सभी प्रभागों।
9-रेल-राष्ट्रीय मार्गों की खाली पड़ी भूमि सहित तमाम सरकारी और मठों की जमीन व्यवसायिक इस्तेमाल के लिए अस्पृश्य- आदिवासियों के मध्य वितरित हो।
10-ग्राम-पंचायत, शहरी निकाय , संसद- विधानसभा की सीटों एवं केंद्र की कैबिनेट, विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालयों, विधान-परिषद दृ राज्यसभा, राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में लागू हो सामाजिक और लैंगिक विविधता!
बीडीएम की ओर से 150 से अधिक पुस्तकें प्रकासित
बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के एजेंडे उपरोक्त 10 सूत्रीय एजेंडा घोषित करने के बाद बीडीएम से जुड़े लेखकों ने जुनून के साहित्य और अखबारी लेखन के जरिए दस सूत्रीय एजेंडे को लागू करवाने का वैचारिक अभियान छेड़ा। इसके लिए साहित्य प्रकाशन के साथ बीडीएम की ओर देश के विभिन्न शहरों मे 15 मार्च को ‘बीडीएम का स्थापना दिवस’ और 27 अगस्त को ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन भी होता रहा। देखते ही देखते बीडीएम साहित्य के लिहाज से देश के समृद्धतम संगठनों में शुमार हो गया। आज बीडीएम की ओर से 150 से अधिक पुस्तकें और पम्फलेट्स प्रकासित हो चुके हैं, जिनमें 85 के करीब किताबें खुद इस लेखक की हैं।
कई राज्य सरकारों ने लागू किया डाइवर्सिटी
बीडीएम की ओर से साहित्य के जोर से चलाया गया डाइवर्सिटी आंदोलन रंग लाया। इसके फलस्वरूप कुछ ही वर्षों बाद ढेरों लेखक/ऐक्टिविस्ट अपने-अपने तरीके से नौकरियों से आगे बढ़कर व्यवसाय-वाणिज्य सहित शक्ति के समस्त स्रोतों में हिस्सेदारी की बात करने लगे। यही नहीं कई राज्य सरकारों ने परंपरागत आरक्षण से आगे बढ़कर अपने राज्य के कुछ-कुछ विभागों के ठेकों, आउट सोर्सिंग जॉब, सप्लाई में आरक्षण देकर राष्ट्र को चौकाय। कई राज्य सरकारों ने आरक्षण का 50 प्रतिशत दायरा तोड़ने के साथ निगमों, बोर्डों, सोसाइटियों में एससी/एसटी, ओबीसी को आरक्षण दियाः धार्मिक ट्रस्टों में आरक्षण देकर सामाजिक और लैंगिक विवधता को सम्मान दिया। इस मामले में कुछ राज्यों ने डाइवर्सिटी अर्थात विविधता लागू करने का विशेष दृष्टांत स्थापित किया। खासकर, झारखंड की हेमंत सोरेन और तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने विविधता को सम्मान देने का विशेष काम अंजाम दिया। 2020 में झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भवन- निर्माण विभाग के 25 करोड़ के ठेकों मे एसटी, एससी, ओबीसी को प्राथमिकता दिए जाने की घोषणा कर डाइवर्सिटी समर्थकों को हतप्रभ कर दिया। कुछ ऐसा ही काम 2021 में तमिलनाडु में स्टालिन सरकार नें किया। जून 2021 में एमके स्टालिन ने तमिलनाडु के 36,000 मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं को आरक्षण देकर पौरोहित्य के पेशे में विविधता लाने का ऐतिहासिक मिसाल कायम किया। बहरहाल नौकरियों से आगे बढ़कर सीमित पैमाने पर ही सही सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों, आउट सोर्सिंग जॉब, मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति इत्यादि में बिना वंचित वर्गों के सड़कों पर उतरे, कलम के जोर से जो हिस्सेदारी मिली, उससे बीडीएम से जुड़े लेखकों को भारी संतुष्टि मिली। संतुष्टि इस बात की भी रही कि भाजपा सहित कई पार्टियों ने डाइवर्सिटी को अपने चुनावी घोषणापत्रों में जगह दिया।
डाइवर्सिटी को घोषणापत्रों में जगह देने में सबसे पहले सामने आई : भाजपा