Bharat Ratna:  राजनीति की चपेट में भारत रत्न

Bharat Ratna: ’हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद को, आज तक भारत रत्न जैसा सम्मान नहीं दिया गया। क्योंकि वे पिछड़ी जाति से आने वाले जो थे। वहीं, क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न जैसे सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। क्योंकि सचिन ब्राह्मण जाति से हैं। यह सबकुछ भेदभाव को दर्शाने के लिए काफी है।

रिपोर्टः अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज इंप्रेशन

Bihar:  भारत रत्न हमारे देश का सर्वोच्च सम्मान रहा है। जिस नागरिक को भी यह सम्मान मिलता है, उसे विशिष्ट व्यक्ति की श्रेणी में आंका जाता है। जिन पर लोग गर्व भी महसूस करते हैं कि इस व्यक्ति के व्यक्तित्व और उनकी महानता के लिए यह सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। परंतु इसे नकारा नहीं जा सकता कि आजादी के बाद से ही यह सर्वोच्च सम्मान पूरी तरह से राजनीति की चपेट में ही रही है। यही कारण है कि इतना बड़ा सम्मान सिर्फ कुछ जाति और कुछ वर्ग के लोगों को को ही मिलते रहे हैं। क्योंकि सत्ता उनके ही हाथों में रही थी। इसके लिए कांग्रेसी हुकूमत कम जिम्मेवार नहीं रही है। क्योंकि कांग्रेस की सरकार नेहरू परिवार के ही हाथों में रही थी। जवाहरलाल को चाहे कोई जितना भी बेहतर प्रधानमंत्री क्यों न मान लें, फिर भी वे जातिवाद से उबर नहीं सके थे। उस समय भी केन्द्र से लेकर राज्य स्तर तक एक ही जाति का वर्चस्व रहा था। शायद यही कारण रहा था कि उस समय भी पिछड़े या दलित जाति से आने वाले अच्छे व्यक्तित्व वालों या अच्छे नेताओं को जो इतने बड़े सम्मान के योग्य थे, उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज ही किया जाता रहा था। वही सिलसिला आज तक जारी है।

मेजर ध्यानचंद को नहीं मिला आज तक भारत रत्न जैसा सम्मान
इसका अंदाजा सिर्फ इससे लगाया जा सकता है की ’हॉकी के जादूगर’ कहे जाने वाले, जिन्होंने कई गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम ऊंचा किया था। उस मेजर ध्यानचंद को, जो इसके असली हकदार थे, आज तक भारत रत्न जैसा सम्मान नहीं दिया गया। क्योंकि मेजर ध्यानचंद पिछड़ी जाति से आने वाले जो थे। वहीं क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न जैसे सम्मान से सम्मानित किया जा चुका। क्योंकि सचिन तेंदुलकर ब्राह्मण जाति से हैं। यह सबकुछ भेदभाव को दर्शाने के लिए काफी है। कांग्रेसी हुकूमत ने संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को भी अपने शासनकाल में कभी भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया। क्योंकि वे भी दलित जाति से आने वाले थे। जबकि आज तक उतना बड़ा विद्वान् सवर्णों में आज तक पैदा नहीं हो सका। कांग्रेसी हुकूमत ने एक प्रोफेसर रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया था। उन्हें उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति के पद पर भी बैठाया था। जबकि उन्होंने जो नौकरी की थी, अपने और अपने परिवार के लिए की थी। सार्वजनिक क्षेत्र में लोगों के हित में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। फिर भी उन्हें सिर्फ इसलिए भारत रत्न जैसा सम्मान दिया गया था कि वे ब्राह्मण जाति से थे। ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं। अर्थात् भारत रत्न जैसा सम्मान देने में शुरू से ही राजनीति होती रही है। अगर किसी पिछड़े या दलित जाति को भारत रत्न जैसा सम्मान दिया भी गया, तो सिर्फ उस जाति का वोट साधने के लिए दिया गया। अन्यथा सरकार को वैसे महापुरुषों के प्रति कोई श्रद्धा नहीं रही।

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिला, तो सिर्फ अति पिछड़ों के वोटो को साधने के लिए
आज अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने गुदड़ी के लाल, गरीबों के मसीहा जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न जैसा सम्मान देने की घोषणा की है, तो ऐसा नहीं है कि भाजपा सरकार को जननायक कर्पूरी ठाकुर से बहुत श्रद्धा है या फिर उनके विचार को इनलोग आत्मसात करना चाहते हैं। नहीं, बिल्कुल नहीं। कर्पूरी ठाकुर को अगर भारत रत्न मिला, तो सिर्फ इसलिए ताकि अति पिछड़ों के वोटो को आसानी से साधा जा सके। अन्यथा जब कर्पूरी ठाकुर ने जब मुख्यमंत्री रहते बिहार में पिछड़ी जातियों को आरक्षण लागू किया था, तो इन्हीं लोगों ने उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां दी थी। सबसे हास्यास्पद तो यह है कि जहां एक तरफ जननायक कर्पूरी ठाकुर जैसे महान हस्ती को भारत रत्न जैसा सम्मान देने की घोषणा भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने की, तो दूसरी तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न जैसा सम्मान देने की घोषणा कर दी। इसके माध्यम से भारतीय जनता पार्टी की सरकार यह दर्शान चाहती है कि लालकृष्ण आडवाणी का वजूद कर्पूरी ठाकुर, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की तरह रहा है। जबकि सच यह है कि सामाजिक, सांस्कृतिक या राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाए, तो लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका कभी भी जनहित के लिए नहीं रही है। आडवाणी ने कभी भी यहां के बहुसंख्यकों के हित की लड़ाई कभी नहीं लड़ी। अगर उन्होंने लड़ाई लड़ी, तो हिंदुत्व को स्थापित करने की लड़ाई लड़ी। हिंदुत्व और राम मंदिर के बहाने सत्ता में पहुंचने की लड़ाई लड़ी। भले अपने जीवन में उसका राजनीतिक लाभ उन्हें न मिला हो। परंतु भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें भारत रत्न जैसा सम्मान देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि देश के विकास में लाल कृष्ण आडवाणी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जो लोगों को बेवकूफ बनाने जैसा लगता है। क्योंकि लालकृष्ण आडवाणी के क्रिया-कलापों को देश लोग भली भांति जानते हैं कि उन्होंने हिन्दू मुस्लिम के बीच नफ़रत फैलाने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी थी। जैसा कि आज के कट्टर हिन्दुत्ववादी और भाजपाई कर रहे हैं।

भारत रत्न देकर भाजपा ने सिर्फ आडवाणी को खुश किया है

यह वही लालकृष्ण आडवाणी हैं, जब यहां विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने मंडल कमीशन को लागू करते हुए पिछड़ों को आरक्षण दिया था। जो इनलोगों को नागवार गुजरा था। क्योंकि इन्हें कभी भी दलितों और पिछड़ों का विकास पसंद नहीं है। उसके विरुद्ध लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर का मुद्दा उछालते हुए राम रथ यात्रा शुरू की थी। जब 1990 में इन्होंने राम रथ यात्रा शुरू की थी। उनका मिशन सोमनाथ से प्रारंभ कर अयोध्या में समाप्त करना था। उनकी राम रथ यात्रा जहां-जहां भी गई थी। जिन-जिन शहरों में गई थी, वहां वहां हिन्दूओं और मुसलमानों के बीच छोटे-बड़े दंगे हुए थे। जिसमें न जाने कितने हिन्दू और मुसलमान हताहत हुए थे। जबकि अधिकांश जगहों पर मुसलमान ही अधिक हताहत हुए थे। लालकृष्ण आडवाणी अपने मिशन में अपने को सफल पा रहे थे। वह राम रथ यात्रा जब लालकृष्ण आडवाणी बिहार लेकर आए थे। उस समय बिहार में (उस समय बिहार और झारखंड एक था) राष्ट्रीय जनता दल की सरकार थी और मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। लालू प्रसाद यादव ने धर्मनिरपेक्षता का परिचय देते हुए इनके रथ को समस्तीपुर में रुकवा दिया था। और तो और, तो उन्हें गिरफ्तार भी करवा लिया था। ऐसे थे लाल कृष्ण आडवाणी। जिन्हें भारतीय जनता पार्टी महान हस्ती के रूप में लोगों के मानस पटल पर भारत रत्न का सम्मान देकर लाना चाहती है। परंतु उस समय के लोग लालकृष्ण आडवाणी के चरित्र से भली-भांति अवगत हैं। जो जानते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी क्या थे? समाज और देश हित के लिए क्या किया था। जिन्हें भारतीय जनता पार्टी इतनी बड़ी हस्ती मान रही थी, तो फिर प्रधानमंत्री बनने की हसरत क्यों नहीं पूरी होने दी? उनमें कौन सी कमी थी? अगर लालकृष्ण आडवाणी इतनी बड़ी हस्ती थे। देश के लिए उनका योगदान था, तो फिर भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी की जगह, उन्हें प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया ? क्यों उन्हें अपनी ही पार्टी में सलाहकार मंडल के कोने में ढकेल दिया गया था ? अगर वे इतने ही महान थे, तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते ही उन्हें क्यों विकलांग बना दिया गया ? उनकी क्यों नहीं पूछ रही ? उन्हें क्यों कूढ़ते रहना पड़ा? उनमें प्रधानमंत्री बनने की योग्यता नहीं थी? क्या सच यह नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें भारत रत्न सम्मान देकर सिर्फ उन्हें खुश करना चाहती है कि प्रधानमंत्री का सपना तो चकनाचूर हो ही गया । चलो हमारी पार्टी की सरकार बन गई ,तो कम से कम मरने के पहले भारत रत्न तो मिल गया। क्या इसमें राजनीति नहीं है?

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