Bihar: राम का राजनीतिकरण

Bihar: आज राम का राजनीतिकरण अपनी चरम सीमा पर है। क्या लगता है कि यह जनहित के लिए है  या एक खास पार्टी विशेष के हित के लिए। सच यह है कि एक राजनीतिक पार्टी उसे सत्ता में स्थायित्व प्रदान करने के लिए सिर्फ राम को राजनीति में घसीटना चाहती है और सत्ता सुख प्राप्त करना चाहती है।

लेखक: अलखदेव प्रसाद ‘अचल’ 

न्यूज़ इंप्रेशन

 Bihar: आज राम का राजनीतिकरण अपनी चरम सीमा पर है। क्या लगता है कि यह जनहित के लिए है  या एक खास पार्टी विशेष के हित के लिए है। सच यह है कि एक राजनीतिक पार्टी उसे सत्ता में स्थायित्व प्रदान करने के लिए सिर्फ राम को राजनीति में घसीटना चाहती है और सत्ता सुख प्राप्त करना चाहती है। सच पूछा जाए तो सच भी यही है। अन्यथा उस पार्टी के लोगों को राम के प्रति कोई खास श्रद्धा नहीं है। जो भी हैए वह सिर्फ दिखावा है। जबकि उस पार्टी के द्वारा राम का राजनीतिकरण सिर्फ आज ही नहीं किया जा रहा हैए बल्कि इसकी शुरुआत 1992 के पहले से हो चुकी थी। परंतु उस समय उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी थी। पर उसे यह उम्मीद जरूर थी कि राम एक दिन हमारी राजनीति के लिए काम जरूर आ सकता है।

राजनीतिक लाभ के लिया किया था बाबरी मस्जिद ध्वस्त
1992 में आर एस एसएभाजपा और उसके घटक दलों ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त सिर्फ इसलिए किया थाए ताकि इसका राजनीतिक लाभ हम लोगों को मिल सके। इससे इतना तो स्पष्ट है कि जो राजनीतिक पार्टी सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने के लिए या फिर सत्ता में स्थाई रूप से बने रहने के लिए किसी ईश्वर का इस्तेमाल कर रहा होए वह पार्टी जनहित के लिए हो ही नहीं सकती। क्योंकि अगर वह पार्टी जनहित के लिए सोचतीए पार्टी को जनता पर विश्वास रहता और सत्ता में पहुंचने के लिए जनता के लिए काम करतीए तो जीत के लिए जनता पर विश्वास रह भी सकता था। परंतु जो राजनीतिक पार्टी सरकार बनाने के लिए राम को भुनाना चाहती है। राम को राजनीति में इस्तेमाल करना चाहती है और जनता को ठगना चाहती है। उससे वोट लेकर सत्ता में आने के बाद यह भूल जाती है कि जनता की समस्याओं पर ध्यान भी देना है। उसके लिए तो बस छल.छद्म का ही सहारा बच जाता है। ऐसी स्थिति में लोगों को यह समझ भी लेना चाहिए कि वैसी पार्टी कभी जनहित के लिए हो ही नहीं सकती। जब भी होगीए तो आम जनता के लिए घातक ही होगी। इसीलिए उसकी चाल को समझना बहुत जरूरी हैए परंतु यहां तो सब कुछ उल्टा देखा जा रहा है।

भाजपा 10 वर्षों में रही बहुत फेल्यूवर

अगर हम राम के राजनीतिकरण करने के संदर्भ में वर्तमान परिदृश्य में देखेंए तो भाजपा सरकार अपने शासनकाल के 10 वर्षों में बहुत ही फेल्यूवर रही है। देश की जनता भी समझ रही है कि इस सरकार ने आंखों में धूल झोंकने के सिवा कुछ नहीं किया है । इसी सरकार ने 2019 का चुनाव पुलवामा जैसी घटना को भूनाकर जीत लिया था। फिर 5 साल के बाद जब 2024 का चुनाव सिर पर हैए जब देख लिया कि जनता के पास जाकर गिनाने के लिए कोई भी उपलब्धि नहीं हैए तो वह राम मंदिर को भूनाने की जुगत में लग गयी है।भाजपा यह भली.भांति समझती है कि हमारा राष्ट्र हिन्दू बहुल राष्ट्र है और धर्म की वजह से लोग अंधविश्वासी अधिक हैं। इनलोग अपनी समस्याओं को भूल सकते हैंए पर जिन्हें राम में आस्था है वे राम को नहीं भूल सकते हैं। राम के नाम पर निश्चित रूप से हमें वोट करेंगे ही। जनता की इस नब्ज को भाजपा ने पूरी तरह से पकड़ ली है। इसी चाल के तहत राम मंदिर जैसे मुद्दों को तूल देने में लगी हुई है। उसको सहयोग करने वाले उनके अंधभक्त अनुयाई तो हैं ही साथ ही साथ यहां की जितनी भी प्रमुख मीडिया वाले हैंए वे भी हैं। क्योंकि उनमें अधिकांश भाजपा के ही समर्थक बैठे हुए हैं। इसलिए उनलोग भी सीधे भाजपा के पक्ष में खड़े होकर तूल देने में लगे हुए हैं। आम जनता इसी बात को नहीं समझ पा रही है। जो विपक्षी पार्टी के लोग हैंए जो बुद्धिजीवी लोग हैंए वे लोगों को जागरूक करने का प्रयास तो कर रहे हैंए परंतु एक तो उनलोगों का प्रचार तंत्र उनकी अपेक्षा बहुत ही कमजोर है और दूसरे अन्य माध्यमों का भी घोर अभाव है।

राममय करने का मतलब देश को मनुवाद की ओर ले जाना

भाजपा द्वारा पूरे देश को राममय करने का मतलब ही हैए देश को मनुवाद की ओर ले जाना। जबकि यहां बहुसंख्यक ऐसे लोग हैंए जिनके लिए मनुवाद पूरी तरह से घातक तो हैए पर बहुजन समाज अंधभक्ति से ऊबर नहीं पा रहा है। अंधभक्ति में यह भी नहीं सोच रहा है कि इसका दुष्परिणाम क्या होगा घ् जो हमारी ही आने वाली पीढ़ियों को भुगतना होगा। बहुजन समाज के लोग अगर यह समझ पाने में सफल हो जाते कि अगर राम सभी के आराध्य हैंए तो फिर राम मंदिर का शिलान्यास देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति माननीया द्रौपदी मुर्मू से क्यों नहीं करवाया गया था घ् अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिलान्यास किया थाए फिर उस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को क्यों नहीं बुलाया गया था घ्सिर्फ इसीलिए न कि वे आदिवासी हैंघ् पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उस कार्यक्रम में इसलिए नहीं बुलाया गया था कि वे अनुसूची जाति से आते हैं। क्योंकि मनु के विधान के अनुसार इनलोगों को मंदिर में प्रवेश वर्जित है। उस कार्यक्रम में बहुत से सिनेमा के अभिनेताओंए अभिनेत्रियों को भी आमंत्रित किया गया है। खिलाड़ियों को भी आमंत्रित किया गया है। लेकिन सभी अभिनेताओं और खिलाड़ियों को आमंत्रित नहीं किया गया है। सिर्फ वैसे ही अभिनेताओं और खिलाड़ियों को आमंत्रित किया गया हैए जो भाजपा की विचारधारा से ताल्लुकात रखते हैं। जो भाजपा के पक्ष में बोला करते हैं और जो शूद्र जाति से नहीं आते।

मोदी द्वारा राम की प्राण प्रतिष्ठा कराना शास्त्र सम्मत नहीं

मनुवादी यह भली भांति जानते हैं कि नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं और वर्ण के हिसाब से शूद्र भी हैंए लेकिन उनलोग उनका प्रतिरोध नहीं करेंगे। उनका प्रतिरोध इसलिए नहीं करेंगे कि यह जानते हैं कि राम मंदिर का शिलान्यास हुआए राममंदिर का निर्माण हुआए राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा हो रहा हैए तो उनकी वजह से ही हो रहा है। अगर वे न होतेए तो कुछ भी संभव नहीं था। इसलिए आज भले ही यह देखने के लिए मिल रहा है कि बड़े.बड़े शंकराचार्यए जी बड़े.बड़े महात्मा यह बयान दे रहे हैं कि हमलोगों के रहतेए अति पिछड़ी अर्थात् शूद्र जाति से आने वाला नरेंद्र मोदी द्वारा राम की प्राण प्रतिष्ठा कराना शास्त्र सम्मत नहीं है।पर अंततः वे लोग भी शांत हो जाएंगे। क्योंकि वे लोग जानते हैं कि अगर अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हो सका हैए तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही हो सका है। अगर नरेंद्र मोदी ने बहुत बढ़िया दुकान खोल दी हैए तो आगे चलकर उसका लाभ तो हमलोगों को ही मिलने वाला है। अयोध्या में राम मंदिर बनने से महात्माओं को भी वाह वाह हो जाएगा और नरेंद्र मोदी को भी वाह वाह हो जाएगा। क्योंकि भक्ति में तो स्वाभाविक रूप से लोग अंधभक्त बन ही जाते हैं। ऐसी स्थिति में जो कट्टर हिन्दू हैं और वैसे कट्टर हिंदुओं की यहां संख्या भी काफी है। उनका झुकाव तो स्वाभाविक रूप से भाजपा की तरफ रहेगा ही। जिसका सीधा लाभ भाजपा उठाएगी ही।

भाजपा राम मंदिर की आड़ में खेल रही है राजनीतिक

सीधा सवाल लिया है कि आज क्या देश के लिए सबसे बड़ी जरूरत राम मंदिर निर्माण ही हैघ् हमारा देश गरीबी और फटेहाली से जूझ रहा है। महंगाई से लोग त्रस्त हैं। देश की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गई है। हमारे देश में मणिपुर जैसी शर्मनाक घटनाएं दुनिया को हिला कर रख दे रही है। क्या उस पर सरकार को खामोश रहना चाहिए घ् और राम मंदिर पर ध्यान दिया जाना चाहिए घ् तो क्या यह नहीं कहा जा सकता है कि भाजपा सरकार जो ट्रस्ट उसकी मुट्ठी में हैए उसको आगे कर सिर्फ राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को राजनीति रंग देने में लगी हुई है। इसके पीछे कितनी बहुत बड़ी राजनीति खेल रही है कि विपक्षियों को आमंत्रण दे रही है कि अगर विपक्षी आ जाते हैंए तो उनसे मुसलमान लोग खफा हो जाएंगे और अगर नहीं आते हैंए तो उनसे बहुसंख्यक हिंदू लोग खफा हो जाएंगे कि विपक्ष राम विरोधी है। भाजपा राम मंदिर की आड़ में बहुत बड़ा राजनीतिक खेल खेल रही है। आखिर उसकी इस चल को कौन समझने जाएगा घ् बहुसंख्यकों में बहुत ऐसे लोग हैंए जिनके दिमाग में यह बैठा दिया गया है कि आपकी खुशहाली के लिए प्रभु राम की कृपा जरूरी है। वैसे लोग तो उसके पैरोकार हो ही गए हैंए कुछ ऐसे लोग हैंए मुगल साम्राज्य का इतिहास भूगोल तक मालूम नहीं है। जिन्हें अपना इतिहास तक जानने से कोई मतलब नहीं रहा है। जो आज तक उनपर जुल्म ढाते रहे हैं।जो मानसिक रूप से गुलाम बनाये हुए हैंए जिन्हें उनकी ही बातें आज भी अकाट्य लगती हैं। वैसे लोग भी उन्हीं के पैरोकार हैं। हास्यास्पद तो यह है कि आज बहुसंख्यकों में ही बाबा साहब के संविधान की वजह से खुशहाल हैंए वे भी मनुवादियों के ही गुलाम बने हुए हैं। उन्हीं के राग में राग मिलाने पर लगे हुए हैं। फलस्वरूप प्रभु राम से मोह भंग नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के बड़े.बड़े नेता उनकी इसी नब्ज को पकड़े हुए हैं। परिणाम यह हो रहा है कि भाजपा सरकार में आज भी बहुसंख्यक समाज हासिये पर हैं और हासिये पर रहेंगे।

2 thoughts on “ Bihar: राम का राजनीतिकरण

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