Delhi : 17वें डाइवर्सिटी डे के आयोजन पर बहुजन बुद्धिजीवियों ने जारी किया, लोकसभा चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने की अपील 

 Delhi में 27 अगस्त को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में पारम्परिक भव्यता व गरिमा के साथ एक और ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन हो गया। 17वें डाइवर्सिटी डे का आयोजन लोकसभा चुनाव 2024 को दृष्टिगत रखकर किया गया।

 रिपोर्ट : एचएल दुसाध 

न्यूज इंप्रेशन                                        

Delhi : 27 अगस्त को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में पारम्परिक भव्यता व गरिमा के साथ एक और ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन हो गया। इस क्रम में पिछले कई सालों के बाद डाइवर्सिटी डे फिर एक बार अपनी नियत तिथि 27 अगस्त को आयोजित हुआ। पिछले कुछ सालों से कोरोना सहित एकाधिक अत्याज्य कारणों से इसका आयोजन नियत तिथि के बजाय अन्य तिथियों पर हो रहा था। बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ और ‘संविधान बचाओं संघर्ष समिति’ द्वारा आयोजित 17वें डाइवर्सिटी डे में विगत वर्षों की तुलना में एक बड़ा व्यतिक्रम यह हुआ कि इसमें बुद्धिजीवियों के मुकाबले नेताओं को ज्यादा तरजीह दी गयी। इसके पहले सामान्यतया लेखक-पत्रकार ही आयोजन के अध्यक्ष, मुख्य व विशिष्ट अतिथि होते रहे। पर, इस बार ऐसा नहीं हुआ तो इसलिए कि 17वें डाइवर्सिटी डे का आयोजन लोकसभा चुनाव 2024 को दृष्टिगत रखकर किया गया, इसलिए नेताओं को तरजीह दी गयी। मुख्य अतिथि के रूप में जदयू के पूर्व सांसद सह मुख्य प्रवक्ता व सलाहकार केसी त्यागी, उद्घाटनकर्ता रहे कैप्टेन अजय सिंह यादव (राष्ट्रीय अध्यक्ष, एआईसीसी, ओबीसी डिपार्टमेंट)। अध्यक्षता आम आदमी पार्टी के पूर्व मंत्री व वर्तमान विधायक राजेन्द्र पाल गौतम ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में एआईसीसी के एससी डिपार्टमेंट के चेयरमैन राजेश लिलोठिया मौजूद थे। 

लोकसभा चुनाव 2024 को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना क्यों है जरुरी ! 

आगामी लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए 17 वें डाइवर्सिटी डे का आयोजन हुआ था, इसलिए परिचर्चा का विषय रखा गया था लोकसभा चुनाव 2024 को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करना क्यों है जरुरी! प्रायः सभी ने इसी पर अपने संबोधन को केन्द्रित रखा. मुख्य अतिथि केसी त्यागी ने कहा कि क्यों आज तक सामाजिक न्याय राजनीति के केंद्र में नहीं आ पाया? क्यों आज भी हम सामाजिक न्याय की बातें सिर्फ कर रहे हैं और आज भी सरकार का डाटा कहता है कि एक तिहाई ऐसी जगह हैं, जहां पर आज भी दलित समाज के लोग हाथ से अस्वच्छता का करने के लिए विवश हैं। आजादी के 76 सालों बाद भी यह शर्मनाक है कि देश की इतनी बड़ी आबादी यह काम कर रही है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि हम जानते ही नहीं हैं कि इस देश में किस समाज के कितने लोग रहते हैं और उनकी क्या स्थिति है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी विपक्ष के इंडिया एलियांज का हिस्सा है तो इस बार इंडिया एलायंस के मेनिफेस्टो में जातीय जनगणना का मुद्दा प्रमुख होगा। जब तक सामाजिक न्याय की बात नहीं होगी, तब तक न्याय मिलना संभव होगा। बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व केवल सरकारी नौकरियों में सुनिश्चित किया गया है जो ठीक से मिले भी नहीं है, लेकिन एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है, जहां आज भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। उन्होंने अपने संबोधन में निजी क्षेत्र में आरक्षण पर जोर दिया। 

सामाजिक न्याय पर केन्द्रित हो सकता है लोकसभा चुनाव

 कैप्टन अजय सिंह यादव ने अपने संबोधन को कांग्रेस के सामाजिक न्याय एजेंडे पर केन्द्रित करते हुए जो कुछ कहा उससे लगा 2024 के लोकसभा चुनाव सामाजिक न्याय पर केन्द्रित हो सकता है। सामाजिक न्याय की दिशा में कांग्रेस ने रायपुर अधिवेशन से लेकर कर्नाटक चुनाव में जो कदम उठाये गए सामाजिक न्याय के एजंडे पर प्रकाश डाला। कांग्रेस किस तरह जाति जनगणना के समर्थन में है और राहुल गाँधी ने किस तरह कर्नाटक में जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी के जरिये सामाजिक न्याय का बड़ा सन्देश दिया है। 

केवल हुक्मरान बनने का सपना मत देखिए

प्रो. रतनलाल ने अपने संबोधन में इस बात के लिए अफसोस जताया कि दलित समाज के जागरूक लोगों का अधिकतम ध्यान अपने समाज की आर्थिक मुक्ति के बजाय अधिकतम जोर हुक्मरान बनाने पर है। उन्होंने कहा कि केवल हुक्मरान बनने का सपना मत देखिए, हुक्मरान बनने के लिए; नेता बनने के लिए बहुत सी चीजों की जरूरत पड़ती है जो कि हमारे पास नहीं है। हर तरीके के पावर सेंटर में पहुंचना जरूरी है। लेकिन हमसे सबसे बड़ी गलती यह हुई कि हमने केवल नेता बनने पर ध्यान लगाया ना की और पावर सेंटर में पहुंचने की कोशिश की। 

सामाजिक न्याय के मुद्दे पर करना पड़ेगा काम 

राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि हमारी पार्टी आम आदमी पार्टी भी विपक्ष के इंडिया एलियांज का हिस्सा है। उनको फर्क नहीं पड़ता कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, लेकिन जो भी बने उसे सामाजिक न्याय के मुद्दे पर काम करना पड़ेगा। चाहे सरकार बदले या ना बदले हमारा काम सामाजिक न्याय के लिए लड़ना था है और रहेगा। बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के संविधान को बदलने की जो बात कर रहे हैं, हम उसके खिलाफ हमेशा खड़ा रहेंगे।

काफी आगे बढ़ चुका है भोपाल सम्मलेन से निकला डाइवर्सिटी का विचार  

बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के संस्थापक एचएल दुसाध ने कहा कि नई सदी की शुरुआत में जब नवउदारीकरण की नीतियों से भयाक्रांत होकर तमाम दलित संगठन निंजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग को लेकर आन्दोलन चला रहे थे, वैसे समय में चर्चित दलित चिन्तक चंद्रभान प्रसाद ने अमेरिका के डाइवर्सिटी सिद्धांत से प्रेरणा ले कर दलितों के लिए नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग व्यापार में हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया। इसी विषय पर 2002 के जनवरी में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सौजन्य से ऐतिहासिक भोपाल सम्मलेन आयोजित हुआ, जहां से डाइवर्सिटी केन्द्रित 21 सूत्रीय दलित एजेंडा जारी हुआ, जिसे ऐतिहासिक भोपाल घोषणापत्र भी कहते हैं। भोपाल घोषणापत्र में दलितों को नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि समस्त क्षेत्रों हिस्सेदार बनाने का निर्भूल नक्शा पेश किया गया था, जो देश के समस्त बुद्धिजीवियों के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम केआर नारायण की भी दृष्टि आकर्षित किया और उन्होंने इसे लागू करने के के लिए सरकारों के समक्ष अपनी मंशा जाहिर की। बाद में ज़ब भोपाल सम्मलेन में किये गए वादे के मुताबिक़ दिग्विजय सिंह 27 अगस्त, 2002 को समाज कल्याण विभाग की खरीददारी में कुछ दलित उद्यमियों को सप्लाई का आर्डर जारी किया। डाइवर्सिटी का मुद्दा दलितों में चर्चा का बहुत बड़ा विषय बन गया। यदि सरकारें चाह दें तो अमेरिकी दलितों(कालों) की भांति भारत में भी दलितों को नौकरियों के साथ सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि में आरक्षण मिल सकता है। .इसके बाद तो ढेरों दलित अपने-अपने राज्य में डाइवर्सिटी लागू करवाने की लड़ाई में जुट गए, पर कुछ वर्षों के प्रयास के बाद वे थक कर बैठ गए। वैसे में भोपाल सम्मलेन से निकले डाइवर्सिटी के विचार को आगे बढ़ाने के लिए 15 मार्च, 2007 को बहुजन लेखकों का संगठन ’बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ (बीडीएम) वजूद में आया और मध्य प्रदेश में लागू सप्लायर डाइवर्सिटी से प्रेरणा लेने के लिए हर वर्ष 27 अगस्त को “डाइवर्सिटी डे” मनाना शुरू किया।

मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में डाइवर्सिटी किया है लागू 

आज भोपाल सम्मलेन से निकला डाइवर्सिटी का विचार काफी आगे बढ़ चुका है। इसका प्रमाण यह है कि अबतक कई सरकारें बहुजनों को ठेकों में आरक्षण दे चुकी हैं। इस सिलसिले में सबसे बड़ा मिसाल झारखण्ड में कायम हुआ है, जहां 25 करोड़ तक के ठेकों में आरक्षण है। कई राज्य सरकारों ने धार्मिक न्यासों और मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में डाइवर्सिटी लागू किया है, जिसका सबसे बड़ा दृष्टान्त तमिलनाडु में स्थापित हुआ है, जहां 36,000 मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति में एससी, एसटी, ओबीसी, और महिलाओं के आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। हालाकि राजस्थान की गहलोत सरकार ने इस दिशा में साहसिक कदम उठाया है। सबसे बड़ी बात यह हुई कि देश के अधिकांश चिन्तक एक्टिविस्ट आज अपने-अपने तरीके से नौकरियों से आगे बढ़कर सभी क्षेत्रों में जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात उठा रहे हैं। 

 भ्रष्टाचार के मुद्दे से सरकार को नहीं किया जा सकता आउट

केंद्र सरकार की नीतियों के कारण देश में सामाजिक अन्याय का सैलाब आ गया है। ऐसे में मौजूदा सरकार सत्ता से आउट करना इतिहास की सबसे बड़ी जरुरत बन गयी है। पर, ध्यान रहे इस सरकार को मंहगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता, आवारा पशु, कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार इत्यादि जैसे रूटीन मुद्दे से सत्ता से आउट नहीं किया जा सकता। आउट किया जा सकता है सिर्फ और सिर्फ सामाजिक न्याय के मुद्दे के जोर से। 

उल्लेखनीय योगदान के लिए किए गये सम्मानित

हर साल डाइवर्सिटी डे के अवसर पर बीडीएम की ओर से कुछ किताबें रिलीज करने साथ कुछ व्यक्तियों को डाइवर्सिटी के क्षत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए डाइवर्सिटी मैन/ वुमन ऑफ़ द इयर से सम्मानित किया जाता रहा है। इस परम्परा का निर्वहन करते हुए 17वें डाइवर्सिटी डे के अवसर पर चर्चित अधिवक्ता और पॉलिटिकल-सोशल थिंकर आरआर बाग़ को न्यायपालिका में डाइवर्सिटी लागू करवाने के प्रयास तथा स्त्री-काल चैनल व पत्रिका के जरिये शक्ति के स्रोतों में जेंडर डाइवर्सिटी लागू करवाने के सराहनीय प्रयास के लिए संजीव चन्दन को जहां ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ द इयर’ से सम्मानित किया गया, वहीँ ‘द मूकनायक’ की संस्थापक और एडिटर इन चीफ सुश्री मीना कोटवाल को ‘डाइवर्सिटी वुमन ऑफ़ द इयर’ के खि़ताब से नवाजा गया। डाइवर्सिटी डे की परम्परा का पालन करते हुए हर बार की तरह इस बार भी कुछ किताबें रिलीज हुई। 

सात किताबें की गयी रिलीज

एचएल दुसाध की लिखी/ सम्पादित ये सात किताबे रिलीज हुईं। ‘आजादी के अमृत महोत्सव पर : बहुजन डाइवर्सिटी मिशन की अभिनव परिकल्पना, मिशन डाइवर्सिटी 2021, मिशन डाइवर्सिटी-2022, यूपी विधानसभा चुनाव 2022, सामाजिक न्याय की राजनीति का टेस्ट होना बाकी है, ‘डाइवर्सिटी पैम्फलेट’ ‘राहुल गांधीः कल, आज और कल’ तथा ‘सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉनः राहुल गाधी’ किन्तु इन सात किताबों से भी बढ़कर जो चीज रिलीज हुई वह रही बह्जन डाइवर्सिटी मिशन और संविधान बचाओं संघर्ष समिति की ओर से जारी-‘इंडिया के समक्ष हमारी अपील’, जिसे रिलीज किया मुख्य अतिथि ने। प्रायः 2000 शब्दों के इस अपील का फोल्डर सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं को भी दिया गया। इस विषय में दुसाध ने कहा कि जब-जब लोकसभा का चुनाव आता है बीडीएम की ओर से राजनीतिक दलों के समक्ष इस किस्म की अपील जारी की जाती रही है। 

इंडिया’ के समक्ष हमारी अपील व प्रस्ताव 

एक ऐसे समय में जबकि भाजपा नीत सरकार जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में हिन्दू राष्ट्र के नाम पर हजारों वर्ष पूर्व की भांति हिन्दू धर्म का प्राणाधार वर्ण-व्यवस्था के तहत देश को परिचालित करने व बाबा साहेब का संविधान बदलने की परिकल्पना कर रही हैं। हजारों वर्ष से सामाजिक अन्याय का शिकार रहे तबकों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए हमारे महान राष्ट्र निर्माताओं ने आरक्षण का जो प्रावधान किया उस आरक्षण के खात्मे के लिए सरकारी संस्थानों को अंधाधुन बेच एवं संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ रही है। संघ के लक्ष्यों को पूरा करने लिए जुनून के साथ नफरत का सैलाब बहाकर देश की एकता और अखंडता को छिन्न-भिन्न कर रही है। स्वाधीन भारत के ऐसे भयावह दौर में इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) का वजूद में आना हम नई सदी की सबसे सुखद घटनाओं में एक मानते हैं और विश्वास करते हैं इससे हमारा लोकतंत्र सबकी भागीदारी वाला लोकतंत्र बनेगा। आज सामाजिक अन्याय तथा साप्रदायिक नफरत का सैलाब बहाने वाली भाजपा को सत्ता से हटाना इतिहास की सबसे बड़ी मांग है।  

इंडिया के समक्ष रखा प्रस्ताव   1-हम सबसे पहले इंडिया में शामिल उन दलों के प्रति विशेष आभार प्रकट किया गया, जिन्होंने कभी संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी नहीं किया व विपरीत हालातों में भी उसकी देश और बहुजन विरोधी नीतियों के खिलाफ अविराम संघर्ष चलाते रहे।

2-भाजपा को हराने के लिए सबसे जरुरी है कि इंडिया उसे सामाजिक न्याय की पिच पर खेलने के लिए बाध्य करे। इसका उज्जवल दृष्टान्त 2015 के बिहार तथा 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में स्थापित हो चुका है। 

3- भाजपा दलित, आदिवासी,पिछड़ों को अपने नफरती राजनीति के नशे में इस कदर मतवाला बना दी है कि वे आरक्षण सहित अपने अपने ढेरों अधिकार खोने तथा गुलामों की स्थिति में पहुचने से भी निर्लिप्त हो गए हैं। कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी तथा ग़दर 2 जैसी साधारण प्रोपागंडा फिल्मों की असाधारण सफलता मोदी राज में विकसित हुई, नफरती मानसिकता का ही परिणाम है, जिसे बहुत ही सुनियोजित तरीके से विकसित किया गया है। बहुजन इसलिए नफरती राजनीति के नशे मतवाला हो गए, क्योंकि जिस सामाजिक न्याय की राजनीति के जरिये अप्रतिरोध्य भाजपा को लाचार और कमजोर किया जा सकता है, उस सामाजिक न्याय की राजनीति को हवा देने का काम पिछले एक दशक से नहीं के बराबर हुआ।

4-हम जून 2023 में अमेरिकी दौरे पर राहुल गांधी की कही इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि ‘भाजपा को हराने के लिए सिर्फ विपक्षी एकजुटता ही काफी नहीं है। जरुरत वैकल्पिक विजन की है। चूँकि भाजपा का विजन विशुद्ध सामाजिक न्याय विरोधी विजन है, इसलिए इंडिया भाजपा की हार सुनिश्चित करने के लिए उसके वैकल्पिक विजनः‘सामाजिक न्यायवादी विजन’ के साथ 2024 के चुनाव में उतरे। 

5-महंगाई, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता, आवारा पशु, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था जैसे रूटीन मुद्दे तथा किसान और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर भाजपा का कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता। 2019 के लोकसभा चुनाव में किसानों का आन्दोलन तथा रफायल जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे खूब उछाले गए, पर विपक्ष भाजपा को रिकॉर्ड सीटें जीतने से नहीं रोक पाया। 

6-मंडल के खिलाफ उभरे मंदिर आन्दोलन के जरिये नफरत की राजनीति को तुंग पर पहुंचा कर अप्रतिरोध्य बनी भाजपा के नरेंद्र मोदी ने जिस तरह वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए राजसत्ता का इस्तेमाल हजारों साल के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में किया है, वह नई सदी में वर्ग संघर्ष के इतिहास की अनोखी घटना है। इसी सुविधाभोगी वर्ग के हित में उन्होंने जिस तरह विनिवेश नीति को हथियार बनाकर सरकारी संस्थाओं एवं परिसंपत्तियों निजी हाथों में बेचा, इसी वर्ग के हित में जिस तरह संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ करने के साथ बहुजनों के आरक्षण को कागजों की शोभा बनाया, इसी वर्ग के हित में जिस तरह संविधान की अनदेखी करते हुए आनन-फानन में इडब्ल्यूएस के नाम पर सुविधाभोगी वर्ग के कथित गरीबों को आरक्षण सुलभ कराने के साथ जिस तरह लैटरल इंट्री के जरिये इस वर्ग के अपात्र लोगों को आईएएस जैसे उच्च पदों पर बिठाने का असंवैधानिक प्रावधान रचा है, उससे यह मानकर चलना चाहिए कि भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के लोग आगामी 25 वर्षों तक अपना वोट भाजपा को छोड़कर अन्य किसी भी दल को किसी भी सूरत में नहीं देने जा रहे हैं। ऐसे में इंडिया जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के वोटों से मोहमुक्त होने की मानसिकता विकसित करते हुए सारा जोर उन दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों पर लगाये जिनका मोदी-राज में सर्वनाश हुआ है!

7- जिस सामाजिक न्याय के जोर से शर्तिया तौर पर भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है उस सामाजिक न्याय की परिभाषा पर इंडिया एक बार विचार कर ले। वैसे तो सामाजिक न्याय की कोई निर्दिष्ट परिभाषा नहीं है किन्तु विभिन्न समाज विज्ञानियों के अध्ययन के आधार पर कहा जाय तो शासक वर्ग द्वारा समाज में विद्यमान विभिन्न समूहों में कुछेक का जाति/नस्ल, धर्म, लिंग इत्यादि कारणों से शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक व धार्मिक ) से जबरन बहिष्कार ही सामाजिक अन्याय कहलाता है और शक्ति के स्रोतों से दूर धकेले गए लोगों को कानूनन शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाना ही सामाजिक न्याय है। भारत में सामाजिक अन्याय का विशाल अध्याय उस हिन्दू धर्म, जिसका सबसे बड़ा उत्तोलक वर्तमान में भाजपा और उसका पितृ संगठन संघ है, के प्रावधानों द्वारा रचा गया जो प्रधानतः शक्ति के स्रोतों के बंटवारे की व्यवस्था वाला धर्म रहा है। हिन्दू धर्म के प्रावधानों द्वारा ही दलित, आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं को पूरी तरह शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत करके सामाजिक अन्याय के दलदल में फंसाया गया। इन्हीं लोगों को न्याय दिलाने के लिए सदियों से तथागत गौतम बुद्ध, रैदास, कबीर, गुरुनानक इत्यादि ढेरों संत फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार बाबा साहेब आंबेडकर, सर छोटू राम तथा नए दौर में कांशीराम जैसे महामानवों ने अविराम संघर्ष चलाया। 

8-भारत में सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार देश की आधी आबादी है, जिसे आर्थिक-सामाजिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने के कयास लगाये जा रहे हैं। आधी आबादी को शक्ति के स्रोतों में उसका हिस्सेदारी दिलाए बिना सामाजिक न्याय और समतामूलक भारत का सपना, सपना ही बना रहेगा। विभिन्न समुदायों के आरक्षण में पहले 50 प्रतिशत हिस्सा उसके महिलाओं को और शेष 50 उस समुदाय के पुरुषों को मिले। 

9-नई सदी में कांग्रेस सबसे बड़ी सामाजिक न्यायवादी दल के रूप में उभरी है, जिसने रायपुर के अपने 85वें अधिवेशन से लेकर 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव तक सामाजिक न्याय की राजनीति का अभूतपूर्व दृष्टांत स्थापित किया तथा इस क्रम में राहुल गाँधी सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन के रूप में उभरे। भाजपा हम वंचित बहुजनों की वर्ग-शत्रु है तो कांग्रेस वर्ग-मित्र! भाजपा ने जहां राजसत्ता का इस्तेमाल बहुजनों को बर्बाद करने में किया है तो कांग्रेस ने उसका इस्तेमाल इनकी समृद्धि और उन्नति के लिए किया है। 

 10-केवल कार्यपालिका में भागीदारी अर्थात नौकरियों में आरक्षण से ही हमारे राष्ट्र निर्माताओं का समतामूलक भारत निर्माण का सपना पूरा नहीं हो सकता। ऐसे तो एक हजार वर्ष तक भी बहुजन ( अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और इनसे धर्मान्तरित) समता का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाऐंगे। हमारी आने वाली 50 पीढ़ियां यूं ही विषैले आर्थिक और सामाजिक का दंश झेलती और शोषण, अन्याय का शिकार होती रहेंगी और हम विधवा विलाप करते रहेंगे। बहुजनों की जनसंख्या भारत की कुल 142 करोड़ आबादी में 123 करोड़ है। 123 में से 4 करोड़ का कल्याण हो गया तो क्या हम बाकी 119 करोड़ बहुजन को लावारिस छोड़ दें? आज हमारे राजनीतिक, सामाजिक नेताओं ने इन 119 करोड़ बहुजनों को वास्तव में लावारिस छोड़ रखा है और बहुजन आंदोलन को बहुजन समाज के अभिजात वर्ग का आंदोलन बना दिया है, जिसमें केवल अभिजात बहुजन के मुद्दों के लिए ही सारे संघर्ष होते हैं। सवर्ण समाज के सदस्यों को हजारों करोड़ का बैंक कर्ज और बहुजन के लिए च॔द लाख का बैंक कर्ज वो भी किसी-किसी को! आज के इस पूंजीवाद के दौर में अगर अदानी-अंबानी बिना बैंक कर्ज के कारोबार नहीं कर सकते तो गरीब बहुजन कैसे व्यापार कर लेगा? गरीब बहुजनों को तो इन धन्नासेठों से कई गुना बैंक कर्ज मिलना चाहिए। हमारी मांग है कि भारत के तमाम बैंकों से दिए जाने वाले कुल बैंक कर्ज का 85 प्रतिशत बहुजन समाज के सदस्यों को मिले या फिर प्रत्येक बहुजन जब 18 वर्ष की आयु का हो तो उसे अपना व्यापार शुरू करने के लिए कम ब्याज दर पर न्यूनतम एक करोड़ रुपए का बैंक कर्ज मिले। इसके साथ-साथ संविधान को जड़ से उखाड़ फेंकने की जो साजिश प्रधानमंत्री के आर्थिक मामलों के परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय को ढाल बनाकर की जा रही है, उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए।  

आयोजन में ये हुए शामिल 

इस बार प्रो रतनलाल, चंद्रभान प्रसाद, प्रो. अवधेश कुमार, प्रो. सूरज मंडल, हीरालाल राजस्थानी, शीलबोधि, आइके गंगानिया, डॉ. अनिरुद्ध कुमार सुधांशु, निर्देश सिंह, शम्भूनाथ सिंह, डॉ. सोनू कुमार भारद्वाज, सुभाष गौतम, दिलीप पासवान, नन्दलाल मांझी, मुम्बई के सुनील खोब्रागडे जैसे चर्चित लेखक, पत्रकार और एक्टिविस्ट मौजूद रहें। मंच संचालन डॉ अनिल जयहिंद यादव ने किया।

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