Writer Frank huzoor Birthday : विचारधारा और न्याय की अथक खोज का संगम: फ्रैंक हुजूर
Writer Frank huzoor Birthday : 1977 में आज ही के दिन शब्दों, विचारधारा और न्याय की अथक खोज का संगम फ्रैंक हुजूर ने अपने जन्म से बिहार के बक्सर जिले को धन्य किया था. 6 मार्च, 2025 को अपने बेशुमार चाहने वालों को रोता- बिलखता छोड़कर दुनिया को अलविदा कहने वाले फ्रैंक जब सिर्फ छः माह के थे, उनकी मां उन्हें छोड़कर दुनिया से चली गईं.
एच. एल. दुसाध
(लेखक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस( ओबीसी विभाग) के आइडियोलॉजिकल एडवाईजरी कमेटी के सदस्य )
न्यूज इंप्रेशन
Delhi: आज 21 सितम्बर है! 1977 में आज ही के दिन शब्दों, विचारधारा और न्याय की अथक खोज का संगम फ्रैंक हुजूर ने अपने जन्म से बिहार के बक्सर जिले को धन्य किया था. 6 मार्च, 2025 को अपने बेशुमार चाहने वालों को रोता- बिलखता छोड़कर दुनिया को अलविदा कहने वाले फ्रैंक जब सिर्फ छः माह के थे, उनकी मां उन्हें छोड़कर दुनिया से चली गईं. इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके डीएसपी पिता बब्बन सिंह ने किया. 1990 के दशक में अपनी स्कूली शिक्षा रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से पूरी करने के बाद फ्रैंक उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए, जहाँ उन्होंने भारत के प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया. हिन्दू कॉलेज, नार्थ कैंपस, दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही अंग्रेजी पोएट्री और ड्रामा के जरिये उनके रचनात्मक लेखन की यात्रा शुरू हो गई. इस क्रम में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ‘हिटलर इन लव विथ मैडोना’ नामक एक नाटक लिखा, जो जल्द ही भारत में एक विवादास्पद विषय बन गया. इस नाटक में कट्टर हिंदुत्व की आलोचना और भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर प्रश्न उठाए गए थे, जिसके कारण गृह मंत्रालय ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया! यही उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. इस नाटक के कारण उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा और उन्हें गुमनामी में जाना पड़ा.भविष्य में फ्रैंक धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के विरल प्रहरी बनेंगे, इसका संकेत उन्होंने ‘हिटलर इन लव विथ मैडोना में दे दिया था. मात्र बीस वर्ष की उम्र में ही वह अंग्रेजी पत्रिका ‘यूटोपिया’ के संपादक बने, जो 13 अंकों के बाद ही बंद हो गई. इस विवाद के बाद, मई 2002 में उन्होंने ‘ब्लड इज़ बर्निंग’ नामक एक और प्रगतिशील नाटक लिखा, जो 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित था, लेकिन इसे प्रकाशित नहीं किया गया. इसके बाद तीसरा नाटक ‘स्टाइल है लालू की जिदगी’ लिखा.
कम उम्र में अंतर्राष्ट्रीय लेखक का दर्जा हासिल करने में सफल हो गए
इसके बाद वह वह पकिस्तान की और रुख किये और वहां पहुँच कर मशहूर क्रिकेटर और पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी की बहुचर्चित राजनीतिक बायोग्राफी ‘ इमरान वर्सेज इमरान : दी अनटोल्ड स्टोरी’ लिखी. जब उन्होंने यह बायोग्राफी लिखी, तब इमरान राजनीति में पूरी तरह स्थापित नहीं हुए थे, वैसे समय में उनकी क्रिकेटर की छवि से आगे बढ़कर, उनमें राजनीतिक सम्भावना तलाशना भारी चुनौती का काम था, जो फ्रैंक हुजूर ने सफलता के साथ अंजाम दिया. इस किताब के बाद वह बहुत कम उम्र में एक अंतर्राष्ट्रीय लेखक का दर्जा हासिल करने में सफल हो गए. इमरान वर्सेज इमरान : दी अनटोल्ड स्टोरी के जरिये अंतर्राष्ट्रीय लेखन जगत में अपनी सबल उपस्थिति दर्ज कराने के बाद उन्होंने सेन्ट्रल लंदन के मशहूर सेक्स और एडल्ट एंटरटेनमेंट केंद्र पर आधारित संस्मरण ‘सोहो’ नामक एक विस्मयकर रचना उपहार दिया. लंदन का सोहो क्षेत्र, 1778 से वहां का सेक्स उद्योग केंद्र रहा. यह सदियों से ब्रिटेन के आभिजात्य वर्ग के रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट के रूप में जाना जाता रहा है. ब्रिटेन में स्ट्रीट अपराध अधिनियम 1959 के बनने से पहले तक, सोहो एक जाना माना रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट बन गया था, जहाँ वेश्यायों का बोलबाला था. वहां की सडकों पर वेश्याएं खुले तौर पर अपना काम करती थीं. ऐसी जगह पर बिहार के पिछड़ी जाति के यादव परिवार में जन्मे एक युवा का पहुंचकर वहां का इतिहास और अपना अनुभव लिखना एक विस्मय की बात थी और यह काम उन्होंने शानदार अंदाज में अंजाम दिया. फिक्शन और नॉन- फिक्शन: दोनों में हाथ आजमा रहे फ्रैंक हुजुर का लंदन, लाहौर, दिल्ली और लखनऊ के बीच आवा जाही जारी रही.
किताब उनके दिल के बहुत करीब रही
इसी दौरान उनकी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से मुलाकात हुई , जो परवर्तीकाल में मित्रता में तब्दील हो गई. अखिलेश यादव ने उनकी राजनीतिक लेखकीय क्षमता और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी तीव्र ललक को पहचानते हुए उन्हें भारत वापस बुलाया. भारत लौटने के बाद अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें लखनऊ में एक बंगला आवंटित किया गया, फिर तो वह लखनऊ के होकर रह गए. इस बंगले को उन्होंने उस ‘सोशलिस्ट फैक्टर’ पत्रिका का कार्यालय बना दिया, जिस पत्रिका की शुरुआत उन्होंने समाजवादी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए 2015 में की थी. यहीं रहकर उन्होंने मुलायम सिंह यादव की जीवनी ‘सोशलिस्ट: मुलायम सिंह यादव’ और अखिलेश यादव की जीवनी ‘टीपू स्टोरी’ लिखी. इनमें ‘ सोशलिस्ट: मुलायम सिंह यादव (नेताजी की राजनीतिक यात्रा) ’किताब उनके दिल के बहुत करीब रही. साढ़े चार सौ से अधिक पृष्ठों की इस किताब के लिखने के पृष्ठ में मिले प्रेरणा का जिक्र करते हुए फ्रैंक हुज़ूर ने इसकी भूमिका में लिखा है,’ जब ‘इमरान वर्सेज इमरान : दी अनटोल्ड स्टोरी’ लिखने के बाद दिल की बस्ती में तूफान उठा, तो ऐसे में अक्सर यही होता है कि आगे क्या लिखा जाय! लंदन और लाहौर की गलियों में आवारागर्दी करते- करते एक से बढ़कर एक शख्सियतों के दिलचस्प अफसाने लिखने के मौके सामने थे: डेविड कैमरुन, उनसे भी राब्ता किया. डेविड मिलिबैंड से भी बात की : निक क्लेग से भी संपर्क हुआ. ये सब उस वक्त जवान खिलाड़ी थे और ब्रिटेन की सियासत को नई दिशा देने में मशगूल थे. मगर दिल था कि बार-बार हिलोरे मारता रहता था कि कहानी अपनी जमीन की कहनी होगी, जहाँ एक से एक मदमस्त और तारीखी किरदारों का बीते तीन दशकों में शीर्ष पर पहुंचना एक नई कहानी बयान करता है. बक्सर में पैदा होने से लेकर और बलिया से लेकर दिल्ली की गलियों का मन- मस्तिष्क में खाका जमा करके बिहार और उत्तर प्रदेश की सियासत अक्सर सवाल करती, मुझे उन लम्हों में ले जाती जहां मैकियावेली के प्रिंस से लेकर चाणक्य के अर्थशास्त्र की राजनीतिक पाठशाला खेत और खिलहानों में लगाईं जाती. यूँ ही एक दिन इमरान खान से( तब वह राजनीति में संघर्षरत थे जो आगे चलकर साल 2018 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने) हिन्दुस्तान के हिंदी हार्टलैंड में करवट लेती सियासत की चर्चा हो रही थी . लाहौर के जमान पार्क की उनकी दोमंजिला कोठी में शाम का वो वक्त, सन 2009 की वो ठंडी होती शाम ; इमरान कहते हैं कि आपके यहाँ मुलायम सिंह यादव ने जो हौसला बाबरी मस्जिद की हिफाजत में दिखलाया, संविधान की हिफाजत के लिए संवैधानिक दायरे में रहकर जो कार्रवाई की , वह काबिल- ए – तारीफ़ है. इस तरह उन्होंने अपने को सही मायने में हिन्दुस्तान के रफीक –उल – मुल्क पेश किया. मैं उस आदमी का कायल हूँ- उतना ही जितना विश्वनाथ प्रताप सिंह का , जिन्होंने भारत के पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए सत्ता से तौबा का ली . यही वो लम्हा था जब मुलायम की जिन्दगी की दास्तान कहने की जिद मेरे जेहन में पत्थर की लकीर बनी. वो इमरान खान ही थे , पकिस्तान की सियासत के दलदल में, जो बीपी सिंह , मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद और मायावती के मायने जानते थे !’ तो इमरान खान के सुझाव पर फ्रैंक नेताजी की जीवनी लिखने का मन बनाये और 2010 से लगकर इसे 2023 में सोशलिस्ट: मुलायम सिंह यादव (नेताजी की राजनीतिक यात्रा) ’ नामक किताब की शक्ल देने में कामयाब हुए. इतने समर्पण और धैर्य के साथ बहुत कम राजनीतिक जीवनियाँ लिखी गई होंगी. इस किताब को नेताजी को करीब से जानने-सुनने वाले लगभग 100 के करीब व्यक्तियों के अनुभव से समृद्ध करने का विरल प्रयास फ्रैंक हुजुर ने इस किताब में किया है, जिससे यह एक नायाब बायोग्राफी की शक्ल अख्तियार कर सकी. लम्बे समय तक अपनी हर सांस समाजवादी परिवार को देने वाले फ्रैंक हुजुर को 2023 से सामाजिक न्याय के नए आइकॉन के रूप में उभरे राहुल गांधी आकर्षित करने लगे और वह 2024 के उत्तरार्द्ध से डॉ. अनिल जयहिंद के संयोजकत्व में आयोजित होने वाले ‘संविधान बचाओं सम्मेलनों’ में शिरकत करते – करते इसके अभिन्न अंग बन गए. बाद में 28 जनवरी, 2025 को वह डॉ जगदीश प्रसाद, अली अनवर , भगीरथ मांझी इत्यादि के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. उक्त अवसर पर उनका 5,6 मिनट का संबोधन ऐतिहासिक रहा. जिस किसी ने उनका वह संबोधन देखा, वह उनके बात रखने के अंदाज़ और कंटेंट से विस्मित हुए बिना रह सका. उन्होंने अपने छोटे, मगर यादगार संबोधन में कहा था,’ हम यहाँ भारत की सबसे पुरानी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की छत्रछाया में आशा की एक किरण प्रदान करने के लिए हैं. पार्टी का लगभग 140 वर्षों का समृद्ध इतिहास है. यह मेरे साथ–साथ संविधान और सामाजिक न्याय, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों में विश्वास करने वाले सभी लोगों के लिए एक बड़ा सम्मान है. मैं न्याय योद्धा राहुल गांधी जी के कारण आज यहाँ कांग्रेस पार्टी के साथ हूँ. बीजेपी आरएसएस ने उन्हें नीचे गिराने के लिए अरबों रूपये इन्वेस्ट किया है. पर, राहुल गांधी ने हिम्मत नहीं हारी : एक स्थापित मशीनरी के खिलाफ लड़ाई की है और उसे हरा दिया है. मोदी जी और उनकी टीम बुरी तरह असफल रहे और राहुल गांधी जी से हार गए हैं. न्याय योद्धा राहुल गांधी आज नब्बे फ़ीसदी इंडियंस की असली आवाज और उम्मीद बन गए हैं! ‘प्रायः सवा महीने के अन्तराल बाद अस्वस्थ्य शरीर लिए फ्रैंक 4 मार्च की शाम राहुल गांधी से मिलने फिर दिल्ली गए. उस मुलाकात के 34 -35 घंटों बाद 6 मार्च को हृदयाघात से उनका निधन हो गया!
फ्रैंक का जीवन सोशल जस्टिस और सेकुलरिज्म के लिए समर्पित था
नई सदी में हाशिये के समाज में जन्मे किसी लेखक के आकस्मिक तौर पर निधन से बहुसंख्य वंचित वर्गों के बुद्धिजीवी और एक्टिविस्टों को 6 मार्च, 2025 जैसा आघात कब लगा था, मुझे याद नहीं! उस दिन अपार प्रतिभा और अतुलनीय मेधा के स्वामी फ्रैंक हुजूर के निधन की अविश्वसनीय व हतप्रभ कर देने वाली खबर सुनकर लोगों में जो शोक की लहर दौड़ी, वह शायद इससे पहले नहीं देखी गई, कम से कम हिंदी पट्टी में तो नहीं ही ! 6 मार्च की सुबह 9 बजे से सोशल मीडिया पर फ्रैंक हुजूर की हृदयाघात से निधन की खबर वायरल होने के साथ उनके लिए फेसबुक और ट्विटर पर श्रद्धांजलि का सैलाब उमड़ पड़ा. सामाजिक न्याय और समाजवादी विचारधारा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले फ्रैंक हुजुर के निधन से भारत में विविधता और समावेशन मिशन के लिए अपूरणीय क्षति हुई है, ऐसा अधिकांश लोगों ने लिखा. ब्रिटिश शैली का सूट: बाएं हाथ में सिगार और दाहिने हाथ में कलम लिए उनकी जो एक युगांतकारी विचारक की छवि निर्मित हुई थी, लोग उसे याद कर रहे थे. उनके चाहने वाले याद कर रहे थे उनकी अद्वितीय लाइफ स्टाइल, मैनरिज्म, सलीके से उठने- बैठने, चलने और मेहमाननवाजी के लखनवी अंदाज के साथ सोशलिस्ट फैक्टर मैगजीन के जरिये बेशुमार युवाओं को समाजवादी पार्टी से जोड़ने और आगे बढ़ाने के उनके अवदानों को ! हर कोई यह बताने में होड़ लगा रहा था कि जोश, गतिशीलता और जिन्दादिली से लबरेज अद्वितीय पत्रकार, लेखक , नाटककार और पॉलिटिकल एक्टिविस्ट फ्रैंक का जीवन सोशल जस्टिस और सेकुलरिज्म के लिए समर्पित था. ह्रदय की अतल गहराइयों से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके चाहने वाले उनकी अभिनेत्री पत्नी फर्मिना मुक्ता सिंह और बेटे मार्कोस के भविष्य को लेकर भी चिंता जाहिर कर रहे थे! उनमें हेमिंग्वे,रुश्दी, नायपॉल बनने की संभावना देखने वाले इस बात से नाराज दिखे कि क्यों वह लंदन छोड़कर इंडिया आ गए : उन्हें लंदन या न्यूयार्क में ही बैठकर लेखन करते रहना चाहिए था!