BJP Cursed for Hating Left: वामपंथ से घृणा के लिए क्यों अभिशप्त है भाजपा

BJP Cursed for Hating Left: भाजपा की राजनीति पर नजर रखने वालों को पता है कि उसे वामपंथ की विचारधारा से बड़ी एलर्जी रही है। लेकिन उसने जिस तरह कांग्रेस के क्रांतिकारी घोषणापत्र को लेकर उस पर निशाना साधा है, वह अभूतपूर्व है।

लेखक : एचएल दुसाध
न्यूज इंप्रेशन
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)

Lucknow: भाजपा उस संघ का राजनीतिक संगठन है, जिस संघ की स्थापना 1925 में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने हिन्दू धर्म संस्कृति के गौरव पक्ष और मुस्लिम विद्वेष के प्रसार के आधार पर की थी। लेकिन हिन्दू धर्म संस्कृति का गौरव गान अगर संघ के बुनियाद विचार में शामिल रहा तो इसकी भी आड में उसका मकसद मुसलमानों के खिलाफ नफरत का प्रसार रहा। ऐसे मे कहां जा सकता है मुसलमानों के खिलाफ घृणा का प्रसार ही उसकी प्राण-शक्ति है। इसीलिए उसका राजनीतिक विंग भाजपा मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का कोई अवसर कभी छोड़ी ही नहीं। 1990 में मण्डलवादी आरक्षण की काट के लिए उसने जो राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन छेड़ा, उसके भी पृष्ठ में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत का प्रसार ही रहा। मण्डल उत्तरकाल में चुनाव दर चुनाव मंदिर आंदोलन की आड़ में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत का अभियान चला कर ही वह अप्रतिरोध्य बन गई। मण्डल उत्तरकाल में केंद्र से लेकर स्थानीय स्तर के हर चुनाव में उसकी गतिविधियां मुख्यतः मुस्लिम विद्वेष के प्रसार पर केंद्रित रहीं, जिसका अपवाद 2024 का लोकसभा चुनाव भी नहीं है। इस चुनाव में तो वह नफरती राजनीति की सारी हदें पार करती दिख रही है। लेकिन मुसलमानों के खिलाफ नफरत की नई-नई ऊंचाई हासिल करते रहने वाली भाजपा का वामपंथ के खिलाफ घृणा भी जगजाहिर है, जिसका वह इस चुनाव में सारी हदें पार करती दिख रही है।

भाजपा को वामपंथ की विचारधारा से बड़ी एलर्जी रही है
भाजपा की राजनीति पर नजर रखने वालों को पता है कि उसे वामपंथ की विचारधारा से बड़ी एलर्जी रही है। लेकिन उसने जिस तरह कांग्रेस के क्रांतिकारी घोषणापत्र को लेकर उस पर निशाना साधा है, वह अभूतपूर्व है। सबसे पहले तो 5 अप्रैल को कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी ने उस पर मुस्लिम लीग की छाप बताकर अपनी जगहँसाई करवा ली। मुस्लिम लीग वाली बात का असर न होते देख उन्होंने उस पर वामपंथ की छाप बताने का अभियान छेड़ा, जो कुछ हद तक कारगर रहा। उनकी देखादेखी भाजपा समर्थक बुद्धिजीवियों में कांग्रेस के घोषणापत्र पर वामपंथ की छाप बताने की होड मच गई। उसके बाद मोदी रह-रहकर उस पर वामपंथ और माओवाद की छाप बताते रहे। अब जबकि कांग्रेस का घोषणापत्र जारी हुए प्रायः डेढ़ माह होने को चले हैं, वामपंथ के खिलाफ उनका घृणा-प्रसार जारी है। 17 मई को फिर उन्होंने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के शिवाजी पार्क में उस पर वामपंथ की छाप होने की बात कर डाला और कहा कि ‘कांग्रेस के माओवादी घोषणपत्र का हिसाब लगाएं तो देश दिवालिया हो जाएगा। इंडी गठबंधन’ की माओवादी अर्थव्यवस्था मुंबई के विकास के पहिये को जाम कर देगी।‘ बहरहाल यह मानने मे कोई गुरेज नहीं कि चुनावों में मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं को आक्रोशित करना कुछ कारगर साबित हो सकता है, क्योंकि उन्होंने इस देश पर शासन किया एवं गुलामी के ढेरों प्रतीक खड़े किए। लेकिन भारत जैसे विषमतापूर्ण देश में कैसे कोई पार्टी वामपंथ के खिलाफ नफरत पैदा कर बहुसंख्य मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकती है! पर, यह जानते हुए भी कि वामपंथ के खिलाफ लोगों को भड़का कर वोट नहीं पाया जा सकता, आखिर क्यों भाजपा इस चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र को आधार बनाकर वामपंथ के खिलाफ सारी हदें पार की है? इसका सही उत्तर जानने के लिए सबसे जरूरी है वामपंथ की विचारधारा को जानना!

ऐसी विचारधारा है जो बदलाव में विश्वास करती है
अगर वामपंथ को थोड़े से शब्दों में समझना हो तो यही कहा जा सकता है यह एक ऐसी विचारधारा है जो बदलाव में विश्वास करती है। इस विचारधारा में उन लोगों की हिमायत की जाती है जो अन्य लोगों के मुकाबले पिछड़ गए हैं या शक्तिहीन कर दिए गए हैं। इस विचारधारा के समर्थक सामाजिक समानता, लैंगिक समानता, मानवता, धर्मनिरपेक्षता आदि की बात करते हैं। वामपंथी राजनीति में आम तौर पर समाज के उन लोगों के लिए चिन्ता की जाती है, जिन्हें इसके अनुसरणकारी दूसरों की तुलना मे वंचित मानते हैं।चूंकि वामपंथ दबे दृ कुचले, वंचित लोगों की न सिर्फ हिमायत करता है, बल्कि इनके जीवन में सुखद परिवर्तन का वैज्ञानिक सूत्र भी सुझाता है, इसीलिए समताकामियों की नजरों में भारत सहित पूरी दुनिया में ही वामपंथ की विचारधारा को बहुत ही सम्मान के साथ देखा जाता है। बहरहाल कांग्रेस का जो घोषणापत्र आया है, उसमें ऐसी काईं बातें हैं, जो वामपंथ की कसौटी पर खरी उतरती हैं। हालांकि इस लेखक के अनुसार कांग्रेस के घोषणापत्र पर अम्बेडकरवाद की पूरी छाप है लेकिन, प्रधानमंत्री इस पर वामपंथी छाप बताकर मतदाताओं को इसके खिलाफ भड़काना चाहते हैं। आइए जरा देखा जाए कि कांग्रेस का घोषणापत्र वामपंथ के कितना करीब है! कांग्रेस के घोषणापत्र की खासियत पर रोशनी डालने के पहले देख लिया जाए कि भारत की आर्थिक-सामाजिक तस्वीर कैसी है!

2022 में अरबपतियों की संख्या बढ़कर 166 हो गई

आज भारत असमानता के मामले में प्रायः विश्व चैम्पियन बन चुका है। ऑक्सफाम इंडिया की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक टॉप की 10 प्रतिशत आबादी का नेशनल वेल्थ पर 77.4 प्रतिशत कब्जा रहा, जबकि नीचे की 60 प्रतिशत आबादी का हिस्सा महज 4.8 प्रतिशत रहा। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के मुताबिक शीर्ष 10 प्रतिशत वयस्क सालाना 11,66,520 रुपये कमाते रहे जो नीचे की 50 प्रतिशत आबादी वालों से 20 गुना अधिक था। विश्व असमानता रिपोर्ट 2024 के मुताबिक 2022-23 में देश की सबसे अमीर एक प्रतिशत आबादी की आय में हिस्सेदारी बढ़कर 22.6 प्रतिशत, वहीं संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी 40. 1 प्रतिशत हो गई जो विश्व में सबसे ज्यादा है. भारत में जहां 2020 में अरबपतियों की संख्या 102 थी, वह 2022 में बढ़कर 166 हो गई। आज देश के 21 अरबपतियों के पास 70 करोड़ लोगों की संपत्ति से भी ज्यादा दौलत है। भयावह असमानता के चलते ही ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत की रैंकिंग 125 देशों में 111 रही, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से भी नीचे है। विश्व खुशहाली रिपोर्ट-2024 के अनुसार भारत 143 देशों में 126 वें स्थान पर रहा, जो पाकिस्तान सहित हमारे बाकी पड़ोसी मुल्कों से नीचे है। जहां तक आधी आबादी का प्रश्न है ग्लोबल जेंडर गैप की 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत लैंगिक समानता के मामले भारत नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, चीन इत्यादि से पिछड़ गया है और इसकी आधी आबादी को पुरुषों की बराबरी में आने में 257 साल से भी ज्यादा लग सकते हैं।

भीषणतम असमानता के वर्तमान दौर में पाँच न्याय

भीषणतम असमानता के वर्तमान दौर में पाँच न्याय, 25 गारंटियों और 300 वादों से युक्त कांग्रेस का घोषणापत्र एक नई उम्मीद बनकर सामने आया है। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा एक क्रांतिकारी दस्तावेज करार दिया गए उसके घोषणापत्र में समतामूलक भारत निर्माण के भरपूर तत्व हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई पार्टी नौकरियों मे आरक्षण से आगे बढ़कर धन- दौलत सहित शक्ति के समस्त स्रोतों के बंटवारे का संकल्प जाहिर की है। घोषणापत्र के पृष्ठ 6 पर हिस्सेदारी न्याय अध्याय में जोरदार शब्दों में कहा गया है, ’जाति आधारित भेदभाव आज भी हमारे समाज की हकीकत है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग देश की आबादी के लगभग 70 प्रतिशत हैं, लेकिन अच्छी नौकरियों, अच्छे व्यवसायों और ऊंचे पदों पर उनकी भागीदारी कम है। किसी भी आधुनिक समाज में जन्म के आधार पर इस तरह की असमानता, भेदभाव और अवसर की कमी बर्दाश्त नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक असमानता की खाई निम्न कार्यक्रमों के माध्यम से पाटेगी।‘ जन्म के आधार पर असमानता, भेदभाव और अवसरों की कमी झेलने वाली 70 प्रतिशत आबादी को ऐतिहासिक असमानताताओं के दल-दल से निकालने के लिए ही कांग्रेस ने आर्थिक-सामाजिक जाति जनगणना करवाने की घोषणा की है ताकि प्राप्त आंकड़ों के आधार पर शासन-प्रशासन में वाजिब हिस्सेदारी सुनिश्चित कराने के साथ ऐसा उपक्रम चलाया जा सके जिससे दलित, आदिवासी, पिछड़ों को कंपनियों, टीवी, अखबारों इत्यादि का मालिक और मैनेजर बनने का मार्ग प्रशस्त हो सके। 70 प्रतिशत आबादी को समानता दिलाने के लिए काग्रेस के घोषणापत्र में आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने, न्यायपालिका में हिस्सेदारी सुनिश्चित कराने की बात आई है। जन्म के आधार पर असमानता खत्म करने के लिए ही एससी, एसटी समुदायों से आने वाले ठेकेदारों को सार्वजनिक कार्यों के अनुबंध अधिक मिले, इसके लिए सार्वजनिक खरीद नीति का दायरा बढ़ाने की बात घोषणापत्र में प्रमुखता से जगह पाई है। कांग्रेस ने नारी न्याय के तहत 2025 से महिलाओं के लिए केंद्र सरकार की आधी (50 प्रतिशत) नौकारिया आरक्षित करने का वादा कर जेंडर डाइवर्सिटी लागू करने की दिशा में ऐतिहासिक घोषणा किया है। इसके अतिरिक्त इसमे ढेरों ऐसी बातें हैं, जो असमानता के खात्मे और वंचितों के सशक्तिकरण मे प्रभावी भूमिका अदा कर सकती है। ऐसे घोषणापत्र के खिलाफ लोगों को भड़काने का काम कोई दक्षिणपंथी विचारधारा की पार्टी ही कर सकती है! इसे समझने लिए जरा दक्षिणपंथ विचारधारा पर आलोकपात कर लेना जरूरी है।

भाजपा में दक्षिणपंथी चरित्र क्यों पनपा?

दक्षिणपंथ वामपंथ के विपरीत एक ऐसी विचारधारा है, जिसके पोषक क्रांतिकारी परिवर्तन के विरुद्ध होते हैं। वे धार्मिक होते हैं और यथास्थिति कायम रखने के लिए अपनी संस्कृति, परम्परा को हर हाल में बनाए रखने का प्रयास करते हैं। इस कसौटी पर भारतीय जनता पार्टी एक विशुद्ध दक्षिणपंथी पार्टी के चरित्र से लबरेज है। इसलिए वह कांग्रेस के घोषणापत्र पर वामपंथ की छाप बताकर मतदाताओं को इससे विमुख करने के साथ वाम दलों के खिलाफ लोगों को भड़काना चाहती है। अब सवाल पैदा होता है, भाजपा में दक्षिणपंथी चरित्र क्यों पनपा? इसकी जड़ें हिन्दू धर्म का प्राणाधार उस वर्ण दृव्यवस्था में निहित हैं, जिस हिन्दू धर्म का भाजपा आज ठेकेदार बने बैठी है। हिन्दू दृ धर्म का प्राणाधार वर्ण-व्यवस्था बुनियादी तौर पर शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक- के बंटवारे की व्यवस्था में रही। कथित ईश्वर सृष्ट वर्ण-व्यवस्था में अध्ययन-अध्यापन, पौरोहित्य, राज्य संचालन, सैन्य वृत्ति, कृषि एवं पशुपालन, व्यवसाय- वाणिज्यादि का कार्य सिर्फ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग (मुख- बाहु- जंघे ) से जन्में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों के लिए निर्दिष्ट रहे। विपरीत इनके दलित,आदिवासी,पिछड़ों से युक्त शुद्रातिशूद्रों के लिए इसमें वितरित हुई सिर्फ तीन उच्च वर्णों की सेवा, वह भी पारिश्रमिक रहित! शक्ति के स्रोतों का भोग शुद्रातिशूद्रों और महिलाओं के लिए अधर्म व निषिद्ध रहा। इसलिए हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए सदियों से देश का हिन्दू शासक वर्ग शुद्रातिशूद्रों और महिलाओं से युक्त प्रायः 93 प्रतिशत आबादी को लिखने-पढ़ने, अध्यात्मानुशीलन, राजनीति, सैन्य कार्य , भूस्वामित्व और व्यवसाय-वाणिज्य इत्यादि से बहिष्कृत व वंचित कर अशक्त व अधिकारविहीन किए रखा। इनको सशक्त बनने के लिए स्वाधीन भारत में, जब आरक्षण का प्रावधान बना, दक्षिणपंथी भाजपा संविधान और आरक्षण के खात्मे का चक्रांत करती रही। बाद में जब उसके हाथ में केंद्र की सत्ता आई, उसने राजसत्ता का अधिकतम उपयोग आरक्षण के खात्मे तथा शक्ति के समस्त हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे लोगों के हाथों में देने मे किया। इसी प्रक्रिया में भारत में विषमता का साम्राज्य कायम हुआ। इसी विषमता से निजात दिलाने का ऐतिहासिक नक्शा का कांग्रेस के घोषणापत्र में आया है, जिसे देखकर दक्षिणपंथी खेमे में मातम छा गया है। इस तरह साफ नजर आएगा कि हिन्दू धर्म-शास्त्र प्रसूत सोच के कारण ही भाजपा वामपंथ से घृणा करने के लिए अभिशप्त है!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *