Why do New Year’s resolutions fail : नए साल के संकल्प क्यों हो जाते हैं विफल? 

Why do New Year’s resolutions fail: बदलाव के लिए संकल्पों को अपने अचेतन मन में स्थापित करना होगा। कोई भी विचार या संकल्प एक बार सोच लेने या विचार कर लेने से यह नहीं होगा, बल्कि इसके लिए बार बार अभ्यास करना होगा।

आर एन साहनी “सिद्धार्थ ”

न्यूज़ इंप्रेशन

Bokaro: अक्सर यह देखा जाता है कि लोग नए साल के अवसर पर नए नए संकल्प लेते है। नए वर्ष के आरंभ से मैं कुछ काम जो हमारे जीवन और हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाएगा उसे रोज-रोज करूंगा और उन कामों को नहीं करूंगा जो नुकसानदायक है । यह एक प्रकार से प्रतिज्ञा होती है जो लोग अपने से लेते हैं, या फिर कहें कि अपने से कुछ प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं नए साल से अमुक चीज करूंगा और अमुक काम नहीं करूंगा। इन सब संकल्पों के पीछे की मंशा यही होती है कि मैं अपने जीवन को आज से और अच्छा और बेहतर बनाऊँगा। यह वही आम सोच है जो अमूमन सब लोगों में पाया जाता है। मैं अपने जीवन में कुछ अच्छा बनू या अच्छा कुछ करूं।

संकल्प सही तरीके से 2-4 दिन भी नहीं चल पाता हैं

ऐसा देखा गया है कि उनका संकल्प सही तरीके से 2-4 दिन भी नहीं चल पाता हैं और सारा संकल्प का बुखार मात्र 2-4 दिन में हीं उतर जाता है और इंसान अपने पुराने ढर्रे में लौट जाता है। एक अंदाजा के मुताबिक 96% लोगों का संकल्प टूट जाता है और वो फिर उसी पुराने तरीके से जीने लगते हैं। इन सब के पीछे के माओवैज्ञानिक कारणों को समझना जरूरी है, तभी समझ में आएगा कि ऐसा होता क्यों है? जब किसी भी समस्या को सही तरीके से समझ लेते हैं, तब उसका समाधान भी आसान हो जाता है। एक मुहावरा बहुत प्रचलित है Habit is the second nature of human. आदतें ही हमारे जीवन को चलाती है। अक्सर लोग कहते हैं कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होना बहुत कठिन है, पर मैं ऐसा नहीं मानता हूँ। सच तो यह है कि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए इंसान के अंदर में Skill और Will इन दोनों गुणों का होना जरूरी है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी इंसान इन दोनों गुणों को अपने अभ्यास और लगन के द्वारा सीख सकता है। आपका Skill और Will का होना ही किसी भी काम को आसान बनाता है। इन दोनों गुणों का अभाव ही किसी भी काम को कठिन बना देता है। दूसरी बात कि जब कोई भी इंसान अपने दिमाग में इस बात का संकल्प लेता है कि मैं अमुक अमुक चीजें रोज करूंगा और कुछ चीजों से हमेशा बचूँगा, तब ऐसा क्या होता है कि वह इन बातों को सही प्रकार से नहीं कर पाता है? इसके कारणों को समझना होगा। पहले इस बात को साफ तरीके से मन में बिठा लेना होगा कि हमारी आदतें हमारे जीवन को चलाती है। इंसान के मन के दो भाग होते हैं चेतन मन और अचेतन मन। चेतन मन 10% रोजमर्रा के विचार और चिंतन चलते हैं। अचेतन मन 90% हमारी आदतें और स्वचालित व्यवहार सब चीजों का स्टोर्हाउस होता है।

अचेतन मन के सामने चेतन मन बहुत कमजोर होता

ऊपर कि तथ्यों के आधार पर इस बात को समझना बहुत आसान होगा कि इंसान का अचेतन मन कितना ताकतवर है और चेतन मन उसके सामने बहुत कमजोर होता है। कोई भी इंसान कोई भी विचार करता है या संकल्प करता है तब वह इसका निर्णय चेतन मन में लेता है उसका अचेतन मन उसके इस निर्णय में शामिल नहीं होता है। इसके बाद जब भी उस निर्णय को लागू करने की बात आती है तब उस विचार पर अचेतन मन में स्थित आदतें हावी होती है और उस काम को करने नहीं देती है। वह उस इंसान को उसी पुरानी आदतों के हिसाब से व्यवहार करने को बाध्य करती है और इंसान का संकल्प टूट जाता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी जो भी आदतें होती है वो सब एक लंबे समय के बार-बार के दुहराव के द्वारा बनी है और हमारी अचेतन मन में बैठ गई है। अचेतन मन computer के Ram Memory के समान काम करता है। जब भी कंप्यूटर को चालू किया जाता है तब वह प्रोग्राम अपने आप चलने लगता है वैसे ही अचेतन मस्तिष्क में जो भी आदतें संचित है वो भी अपने आप चालू हो जाती है और हमारा व्यवहार उसी अनुसार काम करने लगता है।इन सब बातों से एक बात तय होती कि आदतें बार-बार के व्यवहार के द्वारा बनती है जो बहुत मजबूत हो जाती है। हमारा विचार, चिंतन और संकल्प मन के ऊपरी सतह पर ही चलती है और वह बहुत कमजोर भी होती है। अब इसका समाधान क्या है? इसका समाधान बस यही है कि हमें अपने संकल्पों को अपने अचेतन मन में स्थापित करना होगा। कोई भी विचार या संकल्प एक बार सोच लेने या विचार कर लेने से यह नहीं होगा, बल्कि इसके लिए बार बार अभ्यास करना होगा।

संकल्प को 100% एक बार में ही लागू कर लेना चाहते

एक गलती लोगों से अक्सर होती है और वो गलती यह है कि लोग अपने अपने संकल्प को 100% एक बार में ही लागू कर लेना चाहते हैं। अर्थात पूर्णता (perfection) की चाहत असफलता का सबसे बड़ा कारण बनता है, पूर्णता किसी भी काम में धीरे धीरे आती है यह एक Gradual Process है। जब भी कोई काम को अपने संकल्पों के अनुसार शुरू करेंगे तब आप बार बार चूकेंगे बार बार असफल भी होंगे। बावजूद तमाम असफलताओं के आपको अपने अभ्यास को जारी रखना होगा। इस अभ्यास से धीरे धीरे आपकी गलतियाँ कम होंगी और आपका संकल्प आपके अचेतन मन में स्थापित होने लगेगा। अभी भी बहुत जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है बल्कि उसी धैर्य और लगन के साथ अपने अभ्यास को करते ही जाना होगा। एक समय आएगा जब आपका संकल्प आपकी आदत बन जाएगी और तब जाकर वही संकल्प आपका सहज व्यवहार बन जाएगा। आपके संकल्प का आपके सहज व्यवहार बनने में समय लगेगा और वह तभी होगा जब आप इसका सतत अभ्यास करते हैं। इस अभ्यास के साथ साथ इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आपके संकल्प और आपकी जो आदतें हैं उनके बीच में बार बार संघर्ष होगा और आपका संकल्प बार बार हार भी जाएगा पर आपको इस अभ्यास को करते ही जाना होगा तब जाकर आपको सफलता मिलेगी। दूसरी बात कि अपने संकल्प को लेकर बहुत महत्वाकान्छा पालने की जरूरत नहीं है क्योंकि अति महत्वकान्छा ही असफलता का कारण भी बनता है। आपको ध्यान इस बात का रखना है कि आपका अभ्यास चलता रहना चाहिए। Consistent practice gives perfection but the desire for perfection disrupts the process of consistency. महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने विचारों और अपने कामों को consistency के साथ करते हैं, तब उसमें Perfection आती जाती है पर शुरुआत से ही perfection की चाहत इस पूरे प्रक्रिया को ज्यादा दिनों तक चलने ही नहीं देगा। पूरी प्रक्रिया को सहज तरीके से करते जाएं और धीरे धीरे यह विचार या आपका संकल्प आपके अचेतन मन में सेट होता जाएगा।

कितने संकल्प लिए और संकल्प टूटे?

जब कोई भी माली अपने बगीचे में कोई फलदार पौधा लगता है तब वर्षों तक उसकी सिंचाई और देखभाल करनी पड़ती तब जाकर वह पौधा एक बड़ा वृक्ष बनता है और तब जाकर उसमें फल लगता है। यही बात हमारे संकल्पों के साथ भी लागू होता है। आपका संकल्प भी शुरुआत में बहुत देखभाल करके उसे बचाना पड़ता है तब जाकर वह संकल्प हमारे अचेतन मन में जब पूरी तरह से स्थापित होता है, तब जाकर वह हमारा सहज व्यवहार बनता है और हमारे व्यतित्व का अंग बनता है। जब कोई संकल्प हमारा व्यक्तिव का अंग बनता है, तब उसके अनुसार हमारी नियति बनती है, हमारी तकदीर बनती है। इस प्रकार से हमारा संकल्प ही हमारी तकदीर बन जाती है पर इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है। अपने जीवन में अपने अतीत को देखिए कि आपके जीवन मे कितने नए साल आए और गए आपने भी कितने संकल्प लिए और संकल्प टूटे? इन सब के पीछे एक बहुत महत्वपूर्ण कारण यह है कि हम कभी भी अभ्यास को लंबे समय तक धैर्य और लगन के साथ करते रहने की ना कोई समझ होती है और ना ही कोई तैयारी। बस कुछ कामों को अपनी डायरी या नोट बुक में सूची बना लेते हैं कि ये काम करना है और ये काम नहीं करना है और लगता है कि काम हो जाएगा। सच बात तो यह है कि अपने आपको बदलना इतना आसान नहीं है और इतना कठिन भी नहीं है। सही तरीका या तकनीक का इस्तेमाल करके अभ्यास करते हैं तब इतना कठिन भी नहीं है। जीवन में कुछ भी आसान नहीं है और ना ही बहुत कठिन है। जिस चीज का अभ्यास हो जाए वह आसान बन जाता है और जिस चीज का अभ्यास ना हो तो वह कठिन बन जाता है। सब आदत की बात है। Everything is the matter of habit.

छोटे-छोटे बदलाव आगे चलकर बड़ा बदलाव बन जाता

जीवन में छोटे छोटे बदलाव आगे चलकर बहुत बड़ा बदलाव बन जाता है ठीक वैसे ही छोटी छोटी उपलब्धि बहुत बड़ी उपलब्धि बन जाती है और छोटी छोटी चूक बहुत बड़ी असफलता बन जाती है। अतः हमेशा अपने छोटे छोटे बदलावों के ऊपर काम कीजिए। बड़ी बड़ी मंजिलें एक एक कदम चलकर ही तय की जाती है। अंत में एक महत्वपूर्ण बात को हमेशा ध्यान में रख कर काम करेंगे तब किसी भी काम में सफलता बढ़ती जाएगी। कोई भी काम को Result oriented mindset के हिसाब से ना करें बल्कि उस काम को Process oriented mindset के हिसाब से करें। उस काम को Enjoy करने की मानसिकता से करें। आप देखेंगे कि काम में मजा आने लगेगा और आप बदलने लगेंगे और उसके साथ आपकी नियति भी बदलती जाएगी।

नव वर्ष के नए-नए संकल्पों के साथब हुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

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