Bokaro: 7.03 धन के लिए ज्ञानी होने की आवश्यकता है क्या ?
Bokaro: जीवन में सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा होने से धन नहीं आता है बल्कि धन की वर्षा होती है विशिष्ट ज्ञान से। सामान्य ज्ञान सब के पास होता है कम या ज्यादा पर किसी एक विषय में विशिष्ट ज्ञान धन बहुतायत में देती है।
लेखक : आरएन साहनी न्यूज इंप्रेशन
Bokaro : सच तो यह है कि धनवान होने के लिए बहुत ज्ञानी होने की आवश्यकता नहीं है। इस बात को मैं जोर देकर कहना चाहता हूँ कि जीवन में सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा होने से धन नहीं आता है बल्कि धन की वर्षा होती है विशिष्ट ज्ञान से। सामान्य ज्ञान सब के पास होता है कम या ज्यादा पर किसी एक विषय में विशिष्ट ज्ञान धन बहुतायत में देती है। आप किसी भी पेशे को ले लीजिए, आप यही देखेंगे कि जिनके पास विशिष्ट ज्ञान है, वही सब सफलता के नए-नए कीर्तिमान रचते हैं। यहाँ पर विशिष्ट ज्ञान से मतलब है एक खास कौशल। सचिन तेंदुलकर- बल्लेबाजी के कौशल में महारत है। मुकेश अंबानी- उत्पादन और विपणन में महारत है। माइकल फ़ेल्प- बस तैराकी में महारत है। अमिताभ बच्चन- अभिनय की कला में महारत है। मोहम्मद अली मुक्केबाजी के खेल में महारत।
सफलता के लिए कड़ी मेहनत की नहीं, सही मेहनत करने की जरूरत इस बात को अपने जेहन से निकल ही दें कि धन कमाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता होती है। सच तो यह है कि व्यवसाय हो या जीवन का कोई और क्षेत्र, बड़ी सफलता के लिए कड़ी मेहनत की नहीं बल्कि सही में मेहनत करने की आवश्यकता होती है। कड़ी मेहनत और सही में मेहनत दोनों के बीच फर्क को समझना जरूरी है, तभी आगे की बातें को सही तरीके से आत्मसात कर पाएंगे। मान लीजिए कि आप अपने गाड़ी से कहीं जा रहे हैं और आपकी टायर पंचर हो जाती है। यदि आपको गाड़ी को जैक लगाकर उठाकर चक्के के बोल्ट खोलकर चक्का बदलने की सही तकनीक मालूम है तो यह सारा काम 10-15 मिनट में आसानी से हो जाएगा। यदि आपको मालूम नहीं है कि बोल्ट को कब और कैसे ढीला करना है, कब चक्के को उठाना है कैसे नए चक्के को फिट करना है, तब इसी काम को करने में आपको घंटे भर का भी समय लग सकता है और पसीने से लथपथ हो जाएंगे, थक कर चूर हो जाएंगे और उस पर तुर्रा ये की चक्का सही ढंग से फिट ही नहीं होगा। आप सहज ही कहेंगे कि चक्का बदलना एक बहुत ही श्रम साध्य और बहुत कठिन काम है। सच तो यह है कि कड़ी मेहनत इसलिए लग रहा है क्योंकि आमतौर पर हमें सही तकनीक मालूम नहीं होता है। यह इंसान का स्वभाव होता है कि वह अपनी अज्ञानता को छिपा लेता है और व्यवस्था को दोषी करार देता है। इंसान का स्वभाव कुछ इस प्रकार का है कि वह अपनी अज्ञानता को स्वीकार ही नहीं करता है और प्रणाली के ऊपर दोष मढ़ देता है। अतः वह यह कभी नहीं कहेगा कि मुझे टायर बदलना नहीं आता है, उसकी जगह पर यह कहेगा कि टायर बदलना बहुत ही कठिन कार्य है। जब कोई भी इंसान अपने कमी को न पहचानता है और न ही उसे स्वीकार करता है। तब इंसान का इस प्रकर का व्यवहार इस बात को इंगित करता है कि इंसान अपने में सुधार करना ही नहीं चाहता है। व्यवसाय को कठिन ना समझें, सही तकनीक को जाने जीवन में जिस भी किसी चीज को जब हम यह घोषणा करते हैं कि अमुक काम बहुत ही कठिन है, तब सही मायने में हमें उस काम को करने के सही तकनीक की जानकारी नहीं होती है। सच बात तो यह है कि हम सभी कामों के तकनीक को जान भी नहीं सकते हैं पर हां, यह जरूरी है कि हम अपने कुछ चुनिंदा कामों को बहुत अच्छे तरीके से उसे करने के तकनीक को जाने और उसमें हमारी महारत होनी चाहिए। हमारा अपना व्यवसाय भी वैसी ही चीज है, जिसे हम बहुत कठिन ना समझें बल्कि उसके सही तकनीक को जाने और सुगमता से करें। जब भी कोई इंसान पूरे प्रणाली को दोषी ठहराता है, तब सीखने की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है। क्योंकि, पूरे प्रणाली को ही दोषी ठहराने की मानसिकता इस बात को बताता है कि वह अपने में कोई बदलाव नहीं करना चाहते हैं। पर जब इंसान यह कहता है कि मुझे इसके कार्य प्रणाली को सही तरीके से सीखना है, तब दृष्टि बदल जाती है, बात बदल जाती, क्योंकि तब हम अपने अंदर सुधार करने की मानसिकता से काम करते हैं। अपने अंदर में सुधार करने और सीखने की कोई सीमा नहीं होती है पर, महत्वपूर्ण है कि हमारे अंदर में सीखने की चाहत कितनी प्रबल है? ताकत से ज्यादा तकनीक की आवश्यकता आप थोड़ा सोचिए कि क्या एक पहलवान आदमी क्रिकेट में छक्का जड़ सकता है क्या? कोई भी इंसान जिसे क्रिकेट की थोड़ी भी जानकारी होगी वह आसानी से बता देगा कि पहलवान आदमी छक्का नहीं मार पाएगा, क्योंकि छक्का जड़ने के लिए ताकत से ज्यादा तकनीक की आवश्यकता होती है। यही बात किसी भी खेल या काम में लागू होता है। ताकत या कड़ी मेहनत के बजाये सही तकनीक हो तो वह काम आसानी से हो जाता है। एक बल्लेबाज ताकत कि दृष्टि से एक पहलवान की तुलना में बहुत कम शक्तिशाली होता है पर वर्षों के अभ्यास के वजह से गेंद को किस प्रकार से हिट करना है, इस तकनीक को साध लिया है और इसी तकनीक के वजह से वह छक्का मर लेता है। इन सब बातों से यह बिलकुल ही स्पष्ट हो जाता है कि चाहे कोई व्यवसाय हो या कोई खेल हो कहीं भी आपका तकनीक में महारत ही काम आती है। जिस प्रकार से कैरम बोर्ड के खेल में आपका गोटी को सही जगह पर हिट करने से ही पॉइंट बनता, आप कितने जोर से हिट करते हैं, इससे बात नहीं बनती है बल्कि जोर से हिट करने पर जहां पॉइंट बन सकता है वह भी बिगड़ जाता है। अतः हमेशा इस बात को जेहन में रखिए। राइट हिट एट राइट प्लेस
नकारात्मक में हमारी अधिक दिलचस्पी यह तो हो गयी समस्या की बात अब इसका समाधान क्या है? इसके लिए यह जानना जरूरी है कि धन के प्रति इतना नकारात्मक भाव हमारे दिमाग में आया ही क्यों। हम ज्यादातर भ्रष्ट लोगों को ही देख रहे हैं क्योंकि ये लोग ही ज्यादा मुखर होते हैं और मानव मन का स्वभाव है कि नकारात्मक समाचार में हमारी अधिक दिलचस्पी होती है। इन सब के अलावा एक सच्चाई यह भी है कि बहुत सारे ऐसे भी धनवान इंसान है जो नैतिक मूल्यों के साथ काम करते हैं और धन का अर्जन करते हैं और धनवान भी हैं। पर ऐसे लोगों की बातें आम लोगों के बीच कम ही आती है। जब हम ऐसे कुछ लोगों को देखेंगे तब हमारी धारणा टूटेगी और महसूस होगा कि नैतिक मूल्यों के साथ भी इंसान धन का अर्जन कर सकता है। हमें अपना फोकस को थोड़ा बदलना होगा। जैसे ही हम अपनी धारणा से अलग हटकर समाज में धनवान लोगों को देखेंगे तब बहुत सारी नई और हैरान करने वाली चीजें दिखनी शुरू होगी। तब पता चलेगा कि धनवान लोग समाज और देश में बहुत सारी कल्याणकारी कामों को कर रहे हैं। इन सब बातों से आपके मन में धन और धनवानों के प्रति जो वैमनस्यता का भाव है, वह धीरे धीरे मिटेगा। तब जाकर आपके दिमाग में बना गतिरोध खत्म होगा। तब आपके अन्दर एक बोध पैदा होगा कि बुराई धन में नहीं है बल्कि धन तो बस एक माध्यम है बस। यह इंसान के अन्दर के गुणों को अभिव्यक्त करने की क्षमता देता है। एक बुरा इंसान के पास धन बहुत अधिक हो जाता है, तब वह इसका इस्तेमाल गरीब और कमजोर लोगों को परेशान और शोषण करने के लिए ही करता है। जब एक अच्छे इंसान के पास धन बहुतायत में आ जाता है, तब वह समाज में कमजोर और शोषित लोगों के कल्याण के लिए बहुत सारे कल्याणकारी काम करता है। सबसे पहली जरूरत यह है कि हमारे मन के अंदर में धन और धनवानों के लिए जो भी नकारात्मक भावनाएँ हैं उस भावनाओं को दूर करना होगा। यह तब संभव है जब आप अच्छे धनवान लोगों को देखेंगे और इस बात को महसूस करेंगे कि अच्छे धनवान लोग समाज और देश के विकास में कितना सहयोग करते हैं। बड़े-बड़े व्यावसायिक प्रतिस्थान और उद्योग धंधे यही धनवान लोग ही स्थापित करते हैं जिसके वजह से हजारों लोगों को नौकरियाँ मिलती है और उनके जीवन में खुशियाँ आती है। धन तो बस एक उत्प्रेरक का ही काम करता है और इंसान की जो भी फितरत होती है उसे बढ़ा देता है। लोग कहते है धन ही बुराई की जड़ है, अमुक इंसान धन कमाने के बाद कितना घमंडी हो गया है? सच तो यह है कि धन उसके अंदर में घमंड को पैदा नहीं किया है बल्कि उसके अंदर जो पहले से अहंकार का जो भाव वह अब स्पष्टता से दिखने लगा है जो पहले दिखाई नहीं पड़ रहा था।
जीवन में सकारात्मक बदलाव सकारात्मक विश्वास से गरीब इंसान के मन में अमीर इंसान के प्रति हमेशा से एक नफरत या नाराजगी का भाव रहता है जो कि उस इंसान के जीवन में सबसे बड़ी बाधा है। कुल मिलकर हमारे जीवन में हमारे हालत जैसे भी हैं वह सब हमने स्वयं ही निर्मित किया है जाने अनजाने में। जीवन में तब तरक्की शुरू होती है, जब आप अपने जीवन के हालातों के लिए अपनी ज़िम्मेवारी मानते हैं, क्योंकि तब आपके अंदर से एक प्रबल विश्वास पैदा होता है कि जब मैंने ही इसका निर्माण किया है तब मैं ही इसे ठीक भी करूंगा। यह प्रबल विश्वास बहुत बड़ी बात है। जीवन में सकारात्मक बदलाव आपके अपने सकारात्मक विश्वास से ही शुरू होता है।
7.04 करेंसी शब्द करेंट शब्द से बना है “करेंसी“ शब्द करेंट अर्थात प्रवाह से बना है। प्रवाह मुद्रा का स्वभाव है जिस प्रकार से प्रवाह नदी का स्वभाव होता है। जब भी नदी के जल का प्रवाह रुक जाता है तब उसमें सड़न पैदा होने लगती है। उस नदी के पानी का खराब होने लगता है। जिस प्रकार से खून शरीर में जरूरी है और सिर्फ रक्त का होना ही काफी नहीं है बल्कि रक्त का प्रवाह भी उतना ही आवश्यक है एक स्वस्थ शरीर में। वही स्थान मुद्रा का भी समाज में जरूरत है और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि रक्त की तरह मुद्रा का भी समाज में जीवन में प्रवाहित होते रहना जरूरी है। मुद्रा जैसे ही रुक जाता है कहीं एक जगह पर जम जाती है तब बीमारियाँ पैदा होने लगती है। एक जवान और स्वास्थ्य इंसान के शरीर में रक्त का प्रवाह तेज होता है और उम्र बढ़ने के साथ रक्त के इस प्रवाह में कमी आती है और शरीर रुग्ण होने लगता है। कोई भी समाज या इंसान का जीवन तभी स्वस्थ होता है जब मुद्रा का भी प्रवाह समाज के हर क्षेत्र में बना रहता है। जैसे ही इसका समस्त क्षेत्रों में प्रवाह को रोकते हैं तरह-तरह की समस्याएं पैदा होने लगती है। एक बहुत ही मशहूर कथन है “जहाज बंदरगाह में सबसे सुरक्षित होता है पर इसे बंदरगाह में रखने के लिए नहीं बनाया जाता है“ हमारा धन बैंक में सबसे सुरक्षित होता है पर धन को बैंक में जमा रखने के लिए नहीं बनाया गया है। इसका आशय यह है कि मुद्रा का उपयोग वस्तुओं के विनिमय के लिए बनाया गया है। मुद्रा का उपयोग निवेश के लिए होना चाहिए जिससे मुद्रा और बढ़े और मजबूत हो। लोगों को इस गलतफहमी से निकलना चाहिए कि बैंक में पैसा जमा रखने से पैसा बढ़ता है। सच तो यह है कि 5-7 साल जमा रखने से हमारा जमा पूंजी में इजाफा होगा। पर यह सब एक वहम ही है, क्योंकि 5-7 साल में आपका पैसों में जितना भी इजाफा होता है उसमें से कुछ पैसा सरकार टीडीएस के रूप में काट लेती है और दूसरे जितना ब्याज में इजाफा होता है उस से ज्यादा मुद्रा का अवमूल्यन हो चुका होता है। कुल मिलाकर आपको अपने धन से कम वास्तविक मूल्य का मुद्रा प्राप्त होता है। इन सब बातों के बावजूद कर्मचारियों और गरीब लोगों के लिए बैंक में पैसे नियमित जमा करना ही सबसे लोकप्रिय चुनाव है। इसका भी एक खास कारण है क्योंकि मध्यम और गरीब इंसान हमेशा निवेश से भयभीत होता है अतः इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता होती है, मेरे पैसों का सुरक्षित जमा रखना। इसलिए उनके लिए बैंक में ही पैसा रखना सबसे सुरक्षित और उनके लिए विश्वासी तरीक़ा है।
बैंक में पैसे जमा करना प्रचलित भ्रम जाल सच मानिए कि बैंक में पैसे जमा करना एक बहुत ही प्रचलित भ्रम जाल है, जिसमें जिसे लोगों को ज्यादा सुकून देने वाला उपाय लगता है। लोग जीवन भर अपने आमदनी में से अपना पेट काट कर सारी उम्र जमा करते रहते हैं और अच्छी खासी उम्र बीत जाने के बाद भी इस बचत के चक्रव्यूह से वो निकल ही नहीं पाते हैं, क्योंकि इतने लम्बे समय से बचत करते रहने के वजह से उनके अन्दर में ख़र्च करने की वृत्ति ही खत्म हो जाती है। इस प्रकार के बचत का सबसे अंधकारमय पहलू यह है कि इन पैसों का जब भी खर्च होता है अनुत्पादक कामों में ही होता है। जैसे बेटियों की शादी में विलासितापूर्ण खर्च क्योंकि उनके दिमाग में शादी विवाह का खर्च एक सबसे जरूरी खर्चों में से एक है। इसके लिए चाहे कर्ज लेने की भी जरूरत पड़ती है तो कर्ज भी लिया जाता है। अधिकांश लोग इसी मान्यता में ताउम्र जीते हैं कि यह बचत सब तो बच्चों के शादी विवाह के लिए ही तो है। बाकी अपने जीवन में सुख सुविधा पर की जाने वाली खर्चे उसे हमेशा से पैसे की बर्बादी ही लगती है। ये सारी सोच और विचार उस समाज की ही देन है जहां पर वह बचपन से पला है बचपन से देखा है। मूल रूप से ये सब एक खास सोच का फ़्रेम है जिस से अलग हट कर बहुत कम लोग ही सोच पाते हैं या निकल पाते हैं। कुल मिलाकर उनका सोच हमेशा कटौती करके बचत करने का ही होता है। इसमें एक और बहुत ही दिलचस्प बात यह है कि ऐसा करने में उन्हें बहुत ही गर्व और सुकून महसूस होता है। हमारे एक रिश्तेदार बताते थे कि उन्हें सबसे अधिक खुशी और सुकून तब मिलती है जब वो अपने बचत खाते में जमा धन राशि को देखते हैं। वो बहुत गर्व से बताते हैं कि उन्हें इसके अलावा उन्हें और किसी चीज में उन्हें कोई खास खुशी नहीं मिलती है। एक गरीब और पैसे को लेकर हमेशा भयभीत रहने वाला इंसान हमेशा पैसे को किसी भी प्रकार से काट कर बचत करने का संदेश ही अपने बच्चों को देते हैं। इस बात को मैंने अपने जीवन में बहुत ही गहराई से अनुभव किया है क्योंकि मेरे पिता मुझे हमेशा बचत करने की सीख देते रहें हैं और स्वयं भी आज 80 साल के उम्र मे भी आवर्ती जमा और इसी प्रकार के बचत योजनाओं में अपना बचत करते रहते हैं। पर मैंने उनके इस बचत के सीख को कभी स्वीकार नहीं कर पाया और जितने भी मेरे पास संसाधन थे, उनका मैं निवेश ही करता रहा जिसका अच्छा रिटर्न मुझे मिलता रहा है और अच्छी समृद्धि का जीवन जी पाया हूँ।
मुद्रा का विस्तार होता है रोटेशन से
इन सब बातों का निष्कर्ष बस इतना ही है कि बचत करने वाले कभी अमीर नहीं बनते हैं क्योंकि बचत मूल रूप से मुद्रा से स्वभाव के विपरीत काम करता है मुद्रा के प्रवाह को रोक देता है। समृद्धि आती है निवेश से जो मुद्रा के प्रवाह को और बढ़ाता है। हम जानकारी के अभाव में मुद्रा का जो सहज प्रवाह का जो स्वभाव है उसके विपरीत काम करते हैं और आजीवन गरीब बने रहते हैं। मुद्रा का विस्तार होता है इसके विनिमय से और रोटेशन से। मुद्रा जीतने अधिक गतिमान होगी उतनी तेजी से बढ़ेगी। एक गाँव का दुकानदार है जो 10 रुपए के समान पर 2 रुपया मुनाफा लेता है और दिनभर में वह समान मात्र 5 ही बेच पता है क्योंकि गाँव में ग्राहकों का प्रवाह बहुत कम होता है अतः उस समान से वह 10 रुपये कमाता है। वहीं पर शहर के दुकान में उसकी सामान पर दुकानदार मात्र 1 रुपया मुनाफा लेता है पर वहाँ ग्राहकों प्रवाह बहुत अधिक है। अतः 25 इकाई बेच कर 25 रुपया मुनाफा कमाता है। इस उदाहरण से एक गाँव का दुकानदार एक समान में दूना मुनाफा लेने के बावजूद 10 रुपया कमाता है। वहीं एक शहर का दुकानदार ग्राहकों के अधिक प्रवाह के वजह से आधी मुनाफा रखने के बावजूद भी 25 रुपया कमाता है। अतः एक कुशल दुकानदार के दिमाग में हमेशा यह एक बात चलती है कि किस प्रकार से ग्राहकों के प्रवाह को बढ़ाए जबकि एक अकुशल दुकानदार हर समान पर अपनी मुनाफा अधिक रख कर अच्छी कमाई करने की मानसिकता से काम करते हैं। ऐसे दुकानदार का फोकस हमेशा तत्काल अधिक फायदा कमाने की होती है और इसके वजह से धीरे-धीरे अपने ग्राहकों को खोते जाते हैं और उनका व्यापार भी कमजोर होकर अंततः घाटे का सौदा बन जाता है। एक दुकानदार अधिक मुनाफा कमाने की मानसिकता से दुकानदारी करता है जबकि दूसरा दुकानदार अपने दुकान पर ग्राहकों के प्रवाह को अधिक बढाने की मानसिकता से काम करता है, अब आप ही विचार कीजिये किसका व्यापार अधिक फलेगा फूलेगा। बुद्धिमान दुकानदार का फोकस हमेशा अपने ग्राहकों के संख्या को बढ़ाने पर होता है। उनका प्राथमिकता हमेशा ग्राहकों को खुश रखने की होती है। उनका दिमाग में यह बात एकदम से स्पष्ट होता है उसके ग्राहक संतुष्ट जब तक रहेंगे तब तक उनका व्यवसाय बढ़ता रहेगा। अधिकांश दुकानदार के दिमाग में मुनाफा कमाने की चाह इतनी हावी रहती है कि उनके लिए ग्राहकों का हित अहित एक दम गौण हो जाता है और यही मानसिकता उनके दुकानदारी के लिए आत्मघाती बन जाता है। ऐसे मुनाफा की मानसिकता वाले इस बात का ध्यान ही नहीं रखते कि एक संतुष्ट ग्राहक कैसे और नए ग्राहकों को आपके दुकान से जोड़ता है? यह अज्ञानता आगे चलकर बहुत बड़ी आत्मघाती सभी होती है।
उनके नजर में पैसे का सबसे बढ़िया निवेश बैंक में जमा करना बचत की मानसिकता वालों में बचत की बातें इतनी अधिक हावी कि उनके अंदर में खुल कर जीवन जीने का भाव या चाह ही खत्म हो जाता है। यह बचत करने की वृत्ति इतनी सघन हो जाती है कि जीवन कि उन सालों में जब चंद साल ही बचे हों तब भी जमा पर जमा ही करते जाते हैं। इसमें उनका भी कोई दोष भी नहीं है क्योंकि पूरी जिंदगी उन्होंने बस यही सीखा है बचत और बस बचत। कोई भी इंसान जिस प्रकार के कामों को पूरी ज़िंदगी करता आया है उनका दिमाग एक प्रकार से सम्मोहन में चले जाता है और उनका दिमाग उन चीजों से कुछ अलग तरीके से सोचने की क्षमता को खो देता है। मैंने अपने बैंकिंग के सेवा काल में हजारों लोगों को देखा है जब कि उम्र उनकी 75-80 के आसपास होती है और उनको देखने पर स्पष्ट दिखता है कि अब मुश्किल से 1-2 वर्ष से अधिक नहीं जी पाएंगे पर बावजूद इसके वो अपने पैसे को बैंक में और इजाफा करने के मकसद से अलग-अलग स्कीमों में जमा करने के लिए घंटों माथा खपाते हैं अलग-अलग स्कीमों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं और तब जो स्कीम जँचता है उसमें अपना पैसा जमा करते हैं। पूरे जीवन उन्होंने अपने जरूरतों में से कटौती करके बैंक में जमा करते आए हैं। उनके नजर में पैसे का सबसे बढ़िया निवेश बैंक में जमा करना ही है। ऐसे लोगों के मन में पैसों के डूब जाने का डर एकदम से हावी होता है अतः बैंक में पैसे जमा करना उनके लिए सबसे सर्वोत्तम उपाय है। यही सर्वोत्तम निवेश है उनकी नजर में जो अपने बच्चों को भी सिखाते और अधिकांश बच्चे भी इसी मानसिकता को अपना भी लेते हैं। कुछ चुनिन्दा बच्चे अपने अभिभावकों के इस सीख को स्वीकार नहीं करते हैं और जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश करते हैं और ढेर सारा धन कमाते हैं।