Khalsa Sajna Diwas: गुरू जी ने बैसाखी के दिन की थी खालसा पंथ की स्थापना, इतिहास गौरवशाली
Khalsa Sajna Diwas: गुरू जी ने बैसाखी के दिन की थी खालसा पंथ की स्थापना, इतिहास गौरवशाली
Khalsa Sajna Diwas: बैसाखी के दिन गुरू जी ने पूरी दुनिया में जात को इंसानियत बताते हुए खालसा पथ की नींव रखी। गुरू जी ने पाँच ककारी (थ्पअम ज्ञ’े) की कृपा कर केश, कंधा, कड़ा, कृपाण और कच्छहरा को हमेशा सजाए रखने का आदेश दिया
सुरेन्द्र पाल सिंह
(गुरु गोबिन्द सिंह एजुकेशनल सोसाईटी, बोकारो के सचिव)
न्यूज इंप्रेशन
Bokaro: सन् 1699 ई. में वैसाखी के अवसर पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के विशेष निमंत्रण पर सिख संगत दूर-दूर से श्रीआनन्दपुर साहिब पहुँचने लगी। बैशाखी के दिन गुरु जी ने अमने कृपाण हाथ में लेकर सिखों से शीश मेट मांगी। इतिहासकारों का कहना है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी के निमंत्रण पर पहुंची श्रद्धालुओं की संख्या 80 हजार के करीब थी। एक-एक करके गुरु जी के पाँच सिख उस एकत्रता से खड़े हो गए, जिसमें लाहौर के अत्रिय दया राम, दिल्ली के जाट धर्मदास, जगन्नाथपूरी को रसोईया हिम्मत राय, द्वारका के धोबी मोहकम घन्द और विदर आंध्रा के साहेब चन्द, ये पाँच सिख गुरु के सम्मुख उपस्थित होकर आज्ञा का पालन करते हुए अपने शीश गुरु के चरणों में अर्पित करने के लिए निवेदन किये। गुरु जी इन्हें एक तरफ ले गये। इसी दिन गुरु जी ने अमृत तैयार किया और इन पाँच प्यारों को एक ही बर्तन में अमृत ग्रहण करवाया। इस तरह गुरु जी ने जात-पात के भेदभाव को सदा के लिए मिटा दिया और इनके सिघ सजाकर इनके नाम-लाहौर के अत्रिय दया सिंह दिल्ली के जाट धर्म सिंह, जगन्नाथपूरी के स्सोईया हिम्मत राय को सिंह, द्वारका के धोबी मोहकम सिंह और बिदर आंधा के साहेब सिंह रख दिया। तत्पश्चात् गुरु जी ने इन पाँच प्यारों से स्वयं भी अमृतपान किया और पाँच प्यारी को गुरु के रूप में अंगीकार किया। इसीलिए गुरु गाबिन्द सिंह जी को ’वाह वाह गोबिन्द सिंह आपे गुरु घेला’ कह कर भी विभूषित किया जाता है। गुरु जी के बुलावे पर लाहौर से लेकर पूरे भारतवर्ष से इतनी संख्या में संगत का पहुँचना, इस बात की प्रभावित कर रहा था कि मुगल बादशाह औरंगजेब का एकक्षत्र राज होने के बावजूद भी गुरु घर की ख्याति पूरे अखण्ड भारत तक फैली हुई है।