Kanshi Ram ki Punytithi: उठ रहा है कांशीराम के भागीदारी दर्शन का बवंडर
कांशीराम के पुण्यतिथि पर विशेष :
Kanshi Ram ki Punytithi: आज 9 अक्तूबर है. बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम का परिनिर्वाण दिवस! 2006 में आज ही के दिन बाबा साहेब के निधन के बाद बहुजन आन्दोलन की शून्यता को भरने वाले साहेब कांशीराम का लम्बी बीमारी के बाद निधन हुआ था. किन्तु वे समाज परिवर्तनकामी बहुजनों के जेहन से कभी विस्मृत नहीं हुए.
लेखक : एचएल दुसाध
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन
Delhi: आज 9 अक्तूबर है. बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम का (Kanshi Ram ki Punytithi) परिनिर्वाण दिवस! 2006 में आज ही के दिन बाबा साहेब के निधन के बाद बहुजन आन्दोलन की शून्यता को भरने वाले साहेब कांशीराम का लम्बी बीमारी के बाद निधन हुआ था. किन्तु दुनिया छोड़ने के बावजूद भी वह समाज परिवर्तनकामी बहुजनों के जेहन से कभी विस्मृत नहीं हुए. साहेब कांशीराम का उदय एक ऐसे समय में हुआ था, जब बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के प्रयासों से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण काम होने के बावजूद समाज का चित्र मूल रूप से विषमतापूर्ण था. हजारो वर्ष पूर्व से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त जिस सवर्ण समाज का शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक-पर एकाधिकार कायम था, वह आंबेडकर उत्तरकाल में भी लगभग पूर्ववत था. ब्राह्मणों की ‘भूदेवता’, क्षत्रियों के जनअरण्य के ‘सिंह’ और वैश्यों की ‘सेठजी’ के रूप में सामाजिक मर्यादा अम्लान थी. 15 प्रतिशत से अधिक लोग कोर्ट-कचहरी, ऑफिस, शहर और शिल्प-व्यवसाय, बाजार और चिकित्सा, फिल्म-मीडिया, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का लाभ उठाने की स्थिति में नहीं थे. 15 प्रतिशत वालों को छोड़कर शेष 85 प्रतिशत जनता में 16-18 प्रतिशत लोग विधर्मी और म्लेच्छ रूप में उपेक्षित, 52 प्रतिशत पिछड़े- अति पिछड़े अयोग्य के रूप में विघोषित, साढ़े सात प्रतिशत लोग आदिवासी-जंगली रूप में धिक्कृत व निन्दित तो संयुक्त राज्य अमेरिका के समपरिमाण संख्यक लोग अछूत के रूप में तिरस्कृत और बहिष्कृत रहे. वर्ण-व्यवस्था के अर्थशास्त्र के तहत इनमें शासक, व्यापारी बनने तथा सवर्णों की भांति सम्मानजनक जीवन जीने की आकांक्षा इनके मन से कपूर की भांति उड़ चुकी थी. इन 85 प्रतिशत वालों की दशा में बदलाव लाने के लिए ही ‘गरीबी हटाओ’ और ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नारा देकर सत्ता परिवर्तन तक किया गया, पर इनके जीवन में अपेक्षित बदलाव नहीं आया. इस काम में गांधीवादी, मार्क्सवादी,लोहियावादी, आंबेडकरवादी, राष्ट्रवादी विचारधारा से जुडी बड़ी-बड़ी हस्तियों ने हाथ लगाया, लेकिन 85 प्रतिशत वालों के जीवन में कोई खास बदलाव नहीं आया. इस दिशा में बसपा संस्थापक मा.कांशीराम एक भिन्न परिकल्पना लेकर आए और देखते ही देखते जड़ भारतीय समाज में हलचल मचा दिए.
जीवन बदलाव लाने के लिए किए कई काम
85 प्रतिशत आकांक्षाहीन लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए उन्होंने कई काम कियेः पर खास रहे तीन ! पहला, उन्होंने वर्ण-व्यवस्था के वंचितों में शासक बनने की महत्वाकांक्षा पैदा किया, जिसके फलस्वरूप मंडल उत्तर काल में सत्ता का स्वरुप ही बदल गयाः ग्राम सभा से लेकर संसद और विधानसभाओं में 85 प्रतिशत वालों की संख्या में लम्बवत विकास हुआ. दूसरा, उन्होंने पढ़े-लिखे नौकरीशुदा बहुजनों को ‘पे बैक टू द सोसाइटी’ के मन्त्र से दीक्षित किया, जिसके फलस्वरूप लाखों लोग आर्थिक और बौद्धिक रूप से 85 वालों की दशा में बदलाव लाने के लिए स्वेच्छा से योगदान करने लगे.लेकिन 85 वालों के जीवन में परिवर्तन घटित करने का उनका सबसे बड़ा योगदान रहा, वह उनका ‘भागीदारी दर्शन’ था, जिसके लिए उन्होंने ‘जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागीदारी’ का नारा दिया. उनके मरणोपरांत इसी भागीदारी दर्शन को आधार बनाकर ढेरों लोग सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में जुटे रहे.
15 मार्च को बहुजन डाइवर्सिटी मिशन वजूद में आया
इसी भागीदारी दर्शन को आधार बनाकर 2007 में उनके जन्मदिन 15 मार्च को बहुजन लेखकों का संगठन ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ वजूद में आया, जिसके प्रयासों के फलस्वरूप कई राज्य सरकारे ठेकों,सप्लाई, डीलरशिप, आउट सोर्सिंग जॉब , मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति इत्यादि में कुछ-कुछ में डाइवर्सिटी अर्थात जिसकी जितनी संख्या भारी- उसकी उतनी उसकी भागीदारी लागू कर चुकी हैं. उनके धरा छोड़ने के बाद जब-जब अवसरों के बंटवारे में भेदभाव हुआ,बहुजन नेता और बुद्धिजीवियों‘ जिसकी जितनी संख्या भारी.. का नारा उछाल कर अपनी हकमारी के खिलाफ प्रतिवाद जताया. किसे नहीं याद है कि जब जनवरी 2019 में मोदी सरकार संविधान की उपेक्षा कर कथित गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दियाः संसद से लेकर सडकों तक पर जिसकी जितनी संख्या.. का नारा गूंजा था. बहरहाल 2023 में हम भागीदार दर्शन के महानायक की पुण्य-तिथि ऐसे समय में मनाने जा रहे हैं, जब बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जिसकी जितनी संख्या भारी ..का नारा बवंडर का रूप अख्तियार कर लिया है. चैनलों से लेकर प्रिंट मीडिया, आमजन से लेकर छोटे-बड़े नेताः हर किसी किसी के जुबान पर हैः जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी भागीदारी! अब बिहार के जाति जनगणना से कांशीराम दो कारणों से नए सिरे से जी उठे हैं. एक तो उन्होंने चार दशक पूर्व जातियों की संख्या का आंकलन करते हुए 15 और 85 की जो बात किया था, वह सही हो गयी. जनगणना की रिपोर्ट सामने आने के बाद पता चला है कि वंचित बहुजन 84.5 अर्थात 85 प्रतिशत के आसपास है, जबकि सवर्ण 15 प्रतिशत जानकारों को मानना है कि दूसरे राज्यों में भी गणना होने पर लगभग 15- 85 का ही अनुपात आएगा. दूसरा, कांशीराम ने जिसकी जितनी संख्या. के जरिये में बहुजनों में भागीदारी की महत्वाकांक्षा पैदा करने की जो परिकल्पना की थी, वह चरम पर पहुंचत दिख रहा है.
राहुल गाँधी ने प्रतिज्ञा ली है ‘जितनी आबादी, उतना हक़
वैसे तो हर किसी की जुबान पर जिसकी जितनी संख्या .. का नारा है, पर राहुल गाँधी ने बिहार की जाति जनगणना प्रकाशित होने के बाद ‘जितनी आबादीः उतना हक़‘ की जो प्रतिज्ञा लिया है, उससे 15 प्रतिशत वालों की हित पोषक भाजपा में जलजला पैदा हो गया है और हिंदुत्व की राजनीति का महल हिल उठा है. भारतीय राजनीति में भूचाल पैदा करने वाला राहुल गांधी का ‘जितनी आबादी उतना हक़’ जिसकी जितनी भागीदारी का ही नया नाम है. कांग्रेस की ओर से रायपुर में सामाजिक न्याय का पिटारा खुलने के बाद राहुल गांधी ने कर्नाटक के कोलार में पहली बार कांशीराम के भागीदारी दर्शन को जोर गले से राजनीतिक फिजा में गुँजित किया. तब उन्होंने नारा दिया था, ’जिसकी जितनी आबादी-उसकी उतनी हिस्सेदारी’. तब कांग्रेस जैसी सवर्णवादी पार्टी के भविष्य राहुल गाँधी की ओर से उछाला गया यह नारा दुनिया को चौका दिया था. किन्तु इस नारे और सामाजिक न्यायवादी एजेंडे के जोर से जिस तरह कर्नाटक में कांग्रेस को भाजपा पर ऐतिहासिक विजय मिली, उसके बाद तो जैसे यह नारा उनकी जुबान से चिपक कर रह गया और वह मौका माहौल देखकर समय-समय पर उछालते रहे. लेकिन बिहार की जाति जनगणना के बाद उन्होंने जिस तरह कांशीराम के नारे को नए अंदाज़ः जितनी आबादी-उतना कह के रूप में उछाला है, भाजपाइयों की बौखलाहट चरम पर पहुंच गयी है और वे उन को ‘नए युग के रावण’ के रूप में चित्रित व प्रचारित करने लगे हैं.
2024 में इंडिया ब्लाक का चुनावी नारा होगा
वैसे तो राहुल गांधी जिस तरह पिछले कुछ महीनों से जिसकी जितनी भागीदारी की बात दोहरा रहे थे, उससे लग रहा था ‘इंडिया’ ब्लाक सामाजिक न्याय के मुद्दे तथा जिसकी जितनी संख्या-उसकी उतनी भागीदारी के नारे के साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में उतरेगा. लेकिन बिहार की जाति जनगणना प्रकाश में आने के बाद जिस तरह लोगो में भागीदारी की चाह का बवंडर उठा है, उससे अब तय सा दिख रहा है कि 2024 में इंडिया ब्लाक का चुनावी नारा होगा,’ जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागीदारी!’ और इस नारे के साथ चुनाव में उतरते ही यह विजेता की स्थिति में आ जायेगा, कारण इसके जैसा प्रभावी चुनावी नारा स्वाधीन भारत में आजतक आया ही नहीं. इसे जानने के लिए स्वधीनोत्तर कल के चुनावी नारों का सिंहावलोकन कर लिया जाय!