Rahul Gandhi’s years: शानदार रहा है नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी का एक साल 

Rahul Gandhi’s years: बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के जरिये चुनाव आयोग द्वारा करोड़ों जेनुइन किन्तु गरीब, अशिक्षित मतदाताओं को वोटर लिस्ट से बाहर करने की साजिश के मध्य राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष के रूप में एक साल पूरे करना राजनीतिक चर्चा का सर्वाधिक अहम विषय बना हुआ है।                                                 

लेखक: एचएल दुसाध

न्यूज इंप्रेशन

Delhi: बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के जरिये चुनाव आयोग द्वारा करोड़ों जेनुइन किन्तु गरीब, अपेक्षाकृत कम पढ़े या अशिक्षित मतदाताओं को वोटर लिस्ट से बाहर करने की साजिश के मध्य राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) के रूप में एक साल पूरे करना राजनीतिक चर्चा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है. लोकसभा में एलओपी के रूप में एक साल पूरा करने पर हाल ही में(2 जुलाई)को कांग्रेस पार्टी ने जश्न मनाते हुए उनके कार्यकाल को ऐतिहासिक व अभूतपूर्व बताया है. पार्टी ने इस बात को बहुत गर्व से याद किया है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम करते हुए राहुल गांधी ने पिछले एक साल में 16 राज्यों के दौरे, 18 प्रेस कांफ्रेंस, 60 जनसभाएं, 35 आधिकारिक कार्यक्रम, 16 संसदीय भाषण और 115 जनसंवाद किये. उनके एक साल के कार्यों पर राजनीतिक विश्लेषकों की राय रही है कि पिछले एक साल में उन्होंने संविधान की रक्षा और जनता के मुद्दों पर खुद को खुद को समर्पित किया. उनकी कोशिशों में जाति जनगणना की वकालत करने से लेकर मणिपुर में हिंसा को उजागर करना और हाशिये पर पड़े समुदाय की आवाज को बुलंद करना तक शामिल रहा है. उनके द्वारा लगातार बनाये गए दबाव ने सरकार को देश भर में जाति जनगणना कराने , केंद्र सरकार की लैटरल एंट्री नोटिफ़िकेशन को वापस लेने और मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए मजुबूर किया. अपने कार्यकाल के आने वाले वर्षों में भी राहुल गांधी भारत के संविधान कायम रखने वाली मोहब्बत और सत्य की राजनीति को आगे बढ़ाते रहेंगे, एक साल के उनके कार्यों को देखते हुए अवाम में यह विश्वास पैदा हुआ है. इस अवसर पर खुद राहुल गांधी की ओर से एक न्यूजलेटर निकाल कर एलओपी के रूप में रिपोर्ट कार्ड जनता के बीच रखा गया है. उनके इस न्यूजलेटर में जाति जनगणना, मणिपुर हिंसा, आंगनवाड़ी मानदेय, ‘जन संसद’ जैसे जनहित मुद्दों पर उनके प्रयासों की झलक मिलती है. इस विषय में उन्होंने लिखा है, ’प्यारे साथियों, लोकसभा में नेता विपक्ष के रूप में एक साल पूरा करने पर मैं इस पूरे साल की यादों, अनुभवों और संविधान की रक्षा के लिए अपनी लड़ाई को आपके साथ साझा कर रहा हूँ.

नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी भूमिका असरदार रही

मेरे संसदीय भाषणों में, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मेरे विजन और 2024 लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की जीत के पीछे के कारकों के बारे में पढ़ें. मणिपुर के वासियों से लेकर किसानों तक, अंगनवाडी कार्यकर्ताओं से दलित युवाओं तक – देशभर के लोगों के साथ मेरी मुलाकातों को देखें. समय निकाल जरुर पढ़ें और अन्य साथियों को शेयर करें!’ उनका यही न्यूजलेटर आज चर्चा का विषय बना हुआ है. यह न्यूज़लेटर उनकी राजनीतिक जवाबदेही और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, जिसमें उन्होंने खासकर संविधान, सामाजिक न्याय और जनहित से जुड़े मुद्दों को उठाने पर ज़ोर दिया. विपक्ष के नेता के तौर पर अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में राहुल गांधी ने कहा था कि विपक्ष का नेता होने का मतलब लोगों की आवाज़ होना है. इस न्यूजलेटर को पढ़ने के बाद लगता है राहुल गांधी नेता विपक्ष के रूप में जनता की आवाज बनने में प्रत्याशा से भी आगे निकल गए! बहरहाल नेता प्रतिपक्ष के रूप में रूप में राहुल गांधी की भूमिका कैसी रही, इसकी गवाही तो उनका न्यूजलेटर देता रहेगा, लेकिन टीवी के जरिये जनता ने उनकी उनकी भूमिका को जिस रूप में प्रत्यक्ष किया है, उसके आधार पर दावे से कहा जा सकता है कि उन्होंने संसद में जंगल के शेर की भांति विचरण किया है, जिनके समक्ष और तो और पिछले एक दशक से संसद में सब पर हावी रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक बुरी तरह निस्तेज हो गए. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 25 जून, 2024 नेता विपक्ष के रूप शपथ लेने वाले राहुल गांधी मोदी जैसी शख्सियत तक को म्लान कर देंगे पर, नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी भूमिका इतनी असरदार रही कि वर्ष भर मोदी संसद में अपनी उस्पथिति दर्ज कराने तथा राहुल गांधी से नजरें मिलाने से कतराते रहे! इस अवसर पर साल भर पहले की कुछ बातें स्मरण कर लेना ठीक रहेगा.

चुनाव 2024 में कांग्रेस की स्थिति हुई मजबूत

साल भर पहले 25 जून को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया ब्लाक की हुई बैठक में निर्णय लिया गया था कि रायबरेली से कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी लोकसभा में नेता विपक्ष होंगे. इस निर्णय को लेकर प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि मेहताब को पत्र लिखकर जानकारी दी गई थी. उसके बाद राहुल गांधी ने 25 जून को नेता विपक्ष के रूप में शपथ ग्रहण किया. ऐसा करने वाले वह नेहरु-गांधी परिवार के तीसरे सदस्य बन गए. सबसे पहले उनके पिता राजीव गांधी और बाद में माता सोनिया गांधी ने नेता विपक्ष का पद संभाला था. राजीव गांधी 18 दिसंबर , 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक सोनिया गांधी 13 अक्तूबर, 1999 से 6 फरवरी,2004 तक इस जिम्मेवारी का निर्वहन की थीं. उसके बाद मोदी राज में 2014 से अगले दस सालों तक किसी कांग्रेसी को नेता विपक्ष बनने का अवसर नहीं मिला. कारण, 2014 और 2019 में कांग्रेस की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसे नेता प्रतिपक्ष का पद मिल सके. फिर भी अनौपचारिक रूप से 2014 में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खरगे और 2019 में अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन चुनाव 2024 में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई. इस बार राहुल गांधी की मेहनत रंग लाई और इंडिया गठबंधन 234 सीटें जीतने में सफल रहा. जबकि 136,759,064 वोट पाकर कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिली है. ऐसे में नई सरकार के गठन होने के बाद से ही राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने चर्चा शुरू हो गई और वे बने भी! गौरतलब है कि सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट राहुल गांधी को इस बार सौंपी थी. राहुल गांधी ने मां की विरासत को आगे बढ़ाते हुए इस सीट से जीत दर्ज करते हुए 25 साल बाद नेता प्रतिपक्ष बने.नेता विपक्ष बनने के बाद बहुतों के मन में उनके सफल होने को लेकर लोगों के मन में संदेह था. कारण, उनके सामने सांसदों की विपुल संख्या से लैस प्रधानमंत्री मोदी थे, जिन्होंने अपने असाधारण भाषण कला और व्यक्तित्व के जोर से विपक्ष को पूरी तरह अप्रासंगिक बना रखा था.

भारतीय संसद को एक से एक काबिल लोगों ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में धन्य किया

लेकिन 18 वीं लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिया गया राहुल गांधी का भाषण खुली घोषणा कर गया कि अब प्रधानमंत्री मोदी के दिन लद गए : संसद में राहुल गांधी का ही राज चलेगा. उनका वह भाषण इतना ताकतवर था कि पूरी दुनिया के राजनीतिक विश्लेषक तक हक्के-बक्के रह गए थे. बहुत सी संस्थाओं ने भावी पीढी को प्रेरित करने के लिए उनके उस भाषण को प्रकाशित किया. ऐसा ही एक प्रयास सिद्धार्थ नगर के मौलाना कयूम रहमानी फाउंडेशन की ओर से हुआ, जिसने राहुल गांधी का वह भाषण ‘जननायक राहुल गांधी का संसद में ऐतिहासिक भाषण’ शीर्षक से प्रकाशित किया. इस पुस्तिका की प्रस्तावना में बदरे आलम ने लिखा है,’ 18 वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल राहुल गांधी जी के प्रथम भाषण ने पूरे देश को यह संदेश दे दिया है कि अब सदन में आम भारतीय की भी आवाज बुलंद होगी. प्रधानमंत्री, गृहमंत्री , रक्षामंत्री एवं कई मंत्रियों सहित भाजपा के तमाम सांसदों ने उनके भाषण में व्यवधान डालने की की असफल कोशिश की , लेकिन राहुल गांधी न डरे, न झुके!उन्होंने अपने ऐतिहासिक भाषण में नीट , एमएसपी, अग्निवीर , बेरोजगारी, मंहगाई , अल्पसंख्यकों , दलितों और आदिवासियों के उत्पीड़न , भ्रष्टाचार , संविधान और आर्थिक विषमता जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय और जनहित के मुद्दों पर अपने विचार सशक्त ढंग से रखे.वह इस लड़ाई को संसद के बाहर भी लड़ रहे हैं. हम सब भारतीय स्वतंत्रता संग्रामी सेनानी परिवार की तरफ से उनके उस ऐतिहासिक भाषण को पुस्तक के रूप में देश को समर्पित करते हैं और उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करते हैं.’ बहरहाल भारतीय संसद को एक से एक काबिल लोगों ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में धन्य किया, जिनमें राम सुभग सिंह (1 दिसंबर, 1969-27 दिसंबर, 1970), यशवंतराव चव्हाण ( 1 जुलाई, 1977- 11 अप्रैल , 1978 और 10 जुलाई , 1979-28 जुलाई , 1979 ), सीएम स्टीफन ( 12 अप्रैल, 1978 – 9 जुलाई, 1979 ), जगजीवन राम ( 29 जुलाई ,1979 – 22 अगस्त, 1979), राजीव गांधी (18 दिसम्बर,1989- 23 दिसंबर, 1990), लालकृष्ण अडवाणी( 24 दिसंबर, 1990-20 जुलाई , 1993 21 मई, 2004-20 दिसम्बर, 2009), अटल बिहारी वाजपेयी ( 21 जुलाई, 1993 – 15 मई, 1996 और 1 जून , 1996 – 4 दिसंबर 1997), पीवी नरसिंह राव (16 मई, 1996 – 31 मई, 1996), शरद पवार (5 दिसंबर, 1997- 30 अक्तूबर, 1999 ), सोनिया गांधी ( 31 अक्तूबर, 1999 – 6 फरवरी, 2004 ), सुषमा स्वराज ( 21 दिसंबर , 2009 – 19 मई, 2014) जैसे महान नेताओं का नाम शामिल है.किन्तु जिन प्रतिकूल हालातों में लोकतांत्रिक चरित्र से काफी हद शून्य सत्ता के खिलाफ राहुल गांधी पिछले एक साल से नेता प्रतिपक्ष के रूप में संग्राम चला रहे हैं, इतिहास उन्हें सर्वश्रेष्ठ नेता प्रतिपक्ष के रूप में वरण कर सकता है, ऐसा उनके न्यूजलेटर को पढ़कर लगता है!

 

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