Rahul Gandhi’s Five Justice: नारी शक्ति को पूजा नहींः कांग्रेस के पाँच न्याय की जरूरत है

Rahul Gandhi’s Five Justice: भाजपा अबतक राम मंदिर को मुद्दा बनाकर बड़े आराम से चुनावी नैया पार करती रही है, वह मुद्दा राम मंदिर निर्माण के बाद फ्यूज हो चुका है। ऐसा कोई मुद्दा नहीं दिख रहा है, जिससे ध्रुवीकरण की राजनीति को परवान चढ़ाया जा सके, जबकि इसके बिना भाजपा चुनाव में अपेक्षित परिणाम दे ही नहीं सकती।
लेखक :एचएल दुसाध

(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन
Lucknow: चुनाव की घोषणा हो चुकी है और राहुल गांधी के पाँच न्याय (Rahul Gandhi’s Five Justice) की आंधी में समूचा विपक्ष उड़ता दिख रहा है। वह उद्भ्रांत होकर मुद्दे की तलाश कर हैं पर, कोई ऐसा मुद्दा नजर नहीं आ रहा है, जो राहुल की आंधी के समक्ष टिक सके! इनमें सबसे चिन्ताजनक स्थिति भाजपा की है। जो भाजपा अबतक राम मंदिर को मुद्दा बनाकर बड़े आराम से चुनावी नैया पार करती रही है, वह मुद्दा राम मंदिर निर्माण के बाद फ्यूज हो चुका है। इससे ऐसा कोई मुद्दा नहीं दिख रहा है, जिससे ध्रुवीकरण की राजनीति को परवान चढ़ाया जा सके, जबकि इसके बिना भाजपा चुनाव मे अपेक्षित परिणाम दे ही नहीं सकती। ध्रुवीकरण के लिए पार्टी ने सीएए का मुद्दा उठाया पर, मुस्लिम समुदाय की ओर से प्रत्याशित प्रतिक्रिया न होने से यह भी व्यर्थ हो गया। ऐसे में भाजपा अब मुद्दे के लिए पूरी तरह से राहुल गांधी पर निर्भर हो गई है कि वह कोई अवसर दें और उसे चुनावी मुद्दा बना कर पार्टी में प्राण फूंका जा सके। ऐसा एक अवसर 17 मार्च को शिवाजी पार्क में हुई इंडिया की विशाल रैली से मिला, जिसमें राहुल गांधी ने हिन्दू धर्म की शक्ति का उल्लेख किया था। फिर क्या था कालविलंब किए बिना अगले दिन से ही मोदी इसे मुद्दा बनाने में जुट गए। 18 मार्च को उन्होनें तेलंगाना के जगतियाल में महिलाओं से भरी विशाल सभा में राहुल गांधी के शक्ति वाले बयान को आधार बनाते हुए कहा, ’रविवार को शिवाजी पार्क में इंडिया ने अपना घोषणा पत्र शक्ति को खत्म करने के लिए जारी किया है। मैं इस चुनौती को स्वीकार करता हूँ और मैं शक्ति स्वरूपा माताओं-बहनों की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा दूंगा, जीवन खपा दूंगा। ‘खुद को भारत माता का सच्चा भक्त बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि शक्ति की उपासना करने वाले देश में कोई व्यक्ति शक्ति के विनाश की बात कैसे कर सकता है। देश ने तो चंद्रमा पर चंद्रयान उतरने के स्थान का नाम भी शिव-शक्ति रखा है। शक्ति के विनाश को इंडिया गठबंधन का घोषणा पत्र करार देते हुए उन्होंने साफ कर दिया कि लोकसभा चुनाव में भाजपा इसे प्रमुख मुद्दा बनाएगी। तेलंगाना में उनका सम्बोधन सुनकर तमाम राजनीतिक विश्लेषक हक्का-बक्का रह गए, क्योंकि राहुल गांधी ने शिवाजी पार्क में नारी-शक्ति के विरुद्ध कोई बात न कर ईवीएम, सीबीआई, आयकर विभाग सहित किसी और शक्ति के विरुद्ध लड़ाई की बात की थी। बहरहाल ‘शक्ति’ शब्द को मोदी द्वारा धार्मिक रंग देने के इरादे को भाँपते हुए राहुल गांधी सामने आए और एक्स पर लिखे, ’मोदी जी को मेरी बातें अच्छी नहीं लगतीं, किसी न किसी तरह उन्हें घुमाकर वह हमेशा उनका अर्थ बदलने की कोशिश करते हैं, क्योंकि वह जानते हैं मैंने एक गहरी सच्चाई बोली है। जिस शक्ति का मैंने उल्लेख किया, उसने ईडी, सीबीआई, आईटी, चुनाव आयोग, मीडिया, उद्योग जगत को चंगुल में दबोच लिया है। उसी शक्ति का इस्तेमाल करके मोदी जी भारत के बैंकों से हजारों करोड़ के कर्ज माफ कराते हैं, जबकि किसान कुछ हजार का कर्ज न चुका पाने पर आत्महत्या कर लेता है। उसी शक्ति को भारत के बंदरगाह, भारत के हवाई अड्डे दिए जाते हैं। जबकि भारत के युवा को अग्निवीर का तोहफा दिया जाता है, जिससे उसकी हिम्मत टूट जाती है। उसी शक्ति को दिन-रात सलामी ठोंकते हुए देश का मीडिया सच्चाई दबा देता है। उसी शक्ति के गुलाम नरेंद्र मोदी जी देश के गरीब पर जीएसटी थोपते हैं, मंहगाई पर लगाम नहीं लगाते हुए उसी शक्ति को बढ़ाने के लिए देश की संपत्ति नीलाम करते हैं।‘
ग्लोबल जेंडेर गैप रिपोर्ट’ के पन्ने उलट लें
राहुल गांधी ने मोदी के इरादे को भाँपते हुए नए सिरे से शक्ति की व्याख्या ही किया, बल्कि इच्छाकृत रूप से उनकी बात को धार्मिक मुद्दा बनाने की शिकायत भी चुनाव आयोग में दर्ज कर दिया। बहरहाल राहुल गांधी का बयान सामने आने के बाद लोग उम्मीद कर रहे थे कि उन की बात को गलत मोड देने के लिए मोदी को विवेक-दंश होगा और वह आगे से ऐसी बात नहीं कहेंगे। किन्तु चुनाव को शक्ति के विनाशक और शक्ति के उपासक रूप में बताने वाले प्रधानमंत्री की सेहत पर बिल्कुल असर नहीं पड़ा और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होनें 19 मार्च को तमिलनाडु के सेलम में कहा,’ उदयनिधि, ए. राजा से लेकर राहुल तक विपक्षी नेता सिर्फ हिन्दू आस्था के प्रतीकों के विरुद्ध बोलते रहते हैं। अन्य धर्म से जुड़े प्रतीकों के विरुद्ध वे एक शब्द भी नहीं बोलते। हिन्दू धर्म में शक्ति का मतलब है नारी शक्ति, कांग्रेस व द्रमुक वाला इंडिया कहता है कि वे इसका विनाश कर देंगे। हमारे महाकाव्य कहते हैं कि जो लोग शक्ति को समाप्त करना चाहते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। शक्ति का विनाश करने वालों को तमिलनाडु दंडित करेगा और यह राज्य के करोड़ों लोगों की गारंटी है।‘ ऐसे में तमिलनाडु के सलेम में प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया कि वह नारी-शक्ति रक्षा को चुनाव में प्रमुख मुद्दा बनाएंगे ही बनाएंगे ! बहरहाल मोदी अगर नारी शक्ति स्वरूपा माताओं-बहनों की रक्षा को ही प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं तो यह मत भूलें कि उनके दस सालों के कार्यकाल में हुए हाथरस कांड, उज्जैन काण्ड, महिला पहलवानों के साथ हुआ यौन शोषण, मणिपुर में महिलाओं को नग्न घुमाने सहित उनके साथ हुई यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं, उनके इस दावे का मखौल उड़ाती हैं कि वह नारी शक्ति की पूजा करते हैं और इनके लिए जान की बाजी भी लगा सकते हैं। फिर भी अगर वह नारी-शक्ति की रक्षा को प्रमुख मुद्दा बनाना चाहते हैं तो एक बार 2006 से वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित की जा रही ‘ग्लोबल जेंडेर गैप रिपोर्ट’ के पन्ने उलट लें।
इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग कभी सम्मानजनक नहीं रही
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में चार आयामों-आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा का अवसर, स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता और राजनीतिक सशक्तीकरण के आधार पर में महिलाओं और पुरुषों के मध्य सापेक्ष अंतराल में हुई प्रगति का आकलन किया जाता है ताकि इस वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर प्रत्येक देश स्त्री और पुरुषों के मध्य बढ़ती असमानता की खाई को पाटने का सम्यक कदम उठा सके। वैसे तो शुरुआत से ही इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग कभी सम्मानजनक नहीं रही, फिर भी मोदी के सत्ता में आने के पूर्व 2013 में भारत की रैंकिंग 136 देशों में 101 रही। लेकिन मोदी राज में स्थिति बद से बदतर होती गई। 2020 से 2023 तक जितनी भी रिपोर्टें आई हैं, उनमें भारत की रैंकिंग बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार इत्यादी अपने दुर्बल प्रतिवेशी देशों से भी बदतर रही है। और लगातार पिछड़ते-पिछड़ते भारतीय महिलाओं की स्थिति कितनी कारुणिक हो गयी है, इसका सही प्रतिबिंबन ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट-2021 में हुआ, जिसे देखकर दुनिया दांतों तले अंगुली दबा ली। 2021 में जो रिपोर्ट आई थी उसमे दक्षिण एशियाई देशों में भारत का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। भारत रैंकिंग में 156 देशों में 140वें स्थान पर रहा, जबकि बांग्लादेश 65वें, नेपाल 106वें, पाकिस्तान 153वें, अफगानिस्तान 156वें, भूटान 130वें और श्रीलंका 116वें स्थान पर । रिपोर्ट में नंबर एक पर आइसलैंड, दो पर फ़िनलैंड, तीसरे पर नार्वे, चौथे पर न्यूजीलैंड और 5 वें पर स्वीडेन रहा।

इस साल भारत का जेंडर गैप 3 प्रतिशत है बढ़ा
भारत के लगातार पिछड़ते जाने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए ग्लोबल जेंडर गैप-2021 की रिपोर्ट में कहा गया था, ’इस साल भारत का जेंडर गैप 3 प्रतिशत बढ़ा है। अधिकांश कमी राजनीतिक सशक्तीकरण उप-सूचकांक पर देखी गई है, जहां भारत को 5 प्रतिशत अंक का नुकसान हुआ हैं। 2019 में महिला मंत्रियों की संख्या 23.1 प्रतिशत से घटकर 9.1 प्रतिशत हो गई है। महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर में भी कमी आई है, जो 8 प्रतिशत से घटकर 22.3 प्रतिशत हो गई है।पेशेवर और तकनीकी भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी घटकर 2 प्रशित रह गई। वरिष्ठ और प्रबंधकीय पदों पर भी महिलाओं की हिस्सेदारी कम है। इनमें से केवल 6 प्रतिशत पद महिलाओं के पास हैं और केवल 8.9 प्रतिशत फर्म महिला शीर्ष प्रबंधकों के पास हैं। भारत में महिलाओं द्वारा अर्जित आय पुरुषों द्वारा अर्जित की गई केवल 1/5वीं है। इसने भारत को वैश्विक स्तर पर बॉटम 10 में रखा है। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत को निचले पांच देशों में स्थान दिया गया है।‘ लेकिन ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट-2021 में जो सबसे चौकाने वाली बात सामने आई, वह यह थी कि पूरे विश्व में लैंगिक समानता का लक्ष्य पाने में जहां औसतन 135 वर्ष लग जायेंगे, वहीं भारत की आधी आबादी को पुरुषों की बराबरी में आने में 257 साल लगेंगे। यह ऐसा तथ्य था जिसे देखकर मोदी सरकार की नींद उड़ जानी चाहिए थी और लैंगिक असमानता का खात्मा सरकार के शीर्ष प्रोग्राम में आ जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ! मोदी सरकार नारी-शक्ति के पूजन-वंदन में लगी रही और लैंगिक असमानता ज्यों की त्यों बनी रही, इसका अनुमान ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 और 2023 से लगाया जा सकता है। 2022 में 146 देशों में 135, जबकि 2023 में भारत की रैंकिंग 146 देशों में 127 रही। यह रैंकिंग बताती है कि किसी भी सूरत में भारत की आधी आबादी को पुरुषों की बराबरी में आने मे 250 साल से कम नहीं लगने हैं। ऐसे में मोदी नारी-शक्ति पूजा का जितना भी ढोल पीटें, भारत की आधी आबादी अब पूजा नहींः आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा का अवसर, स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता और राजनीतिक हिस्सेदारी की आकांक्षी हो चुकी है! उसकी इस आकांक्षा तथा ग्लोबल जेंडेर गैप रिपोर्ट में भारत की शर्मनाक रैंकिंग को देखते हुए ही कांग्रेस इस बार अपने घोषणा पत्रों में पाँच नारी न्याय को स्थान देने जा रही है।

कांग्रेस के पाँच सूत्रीय नारी न्याय के समक्ष मोदी का नारी-शक्ति पूजन कितना प्रभावी

महिलाओं को पुरुषों की बराबरी पर लाने के लिए राहुल गांधी भारत जोड़ों न्याय यात्रा के दौरान महालक्ष्मी योजना, आधी आबादीदृपूरा हक, शक्ति सम्मान, अधिकार मैत्रीय और सावित्री बाई फूले हॉस्टल जैसी पाँच नारी न्याय की जो बात उठाई जाती रही, अब वह पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल होने जा रही है। महालक्ष्मी योजना के तहत देश के गरीब और बीपीएल परिवार की महिला को साल में एक लाख अर्थात प्रति माह 8333 रुपये देने की गारंटी है। आधी आबादी-पूरा हक के तहत देश में 30 लाख सरकारी रिक्त पदों पर गारंटी के तहत महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। अब सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा जो भविष्य में नौकरियों से आगे बढ़कर तमाम क्षेत्रों तक में प्रसारित हो सकता है। शक्ति-सम्मान के तहत आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी और मिड डे बनाने वाली महिलाओं के वेतन में केंद्र का जो हिस्सा होता है, उसे दोगुना किया जाएगा। अधिकार मैत्रीय के तहत हर पंचायत में एक महिला अधिकारी की नियुक्ति होगी, जो महिलाओं को उनके अधिकारों की जानकारी देगी। और सावित्रीबाई फुले हॉस्टल योजना के तहत देश के 780 जिला मुख्यालयों में कम से कम एक हॉस्टल कामकाजी महिलाओं के लिए बनाये जाएंगे। इससे निश्चय ही महिलाओं के जीवन मे क्रांतिकारी बदलाव आएगा और ग्लोबल जेंडेर गैप में रिपोर्ट भारत की स्थिति सम्मानजनक हो सकती है। ऐसे में कांग्रेस के पाँच सूत्रीय नारी न्याय के समक्ष मोदी का नारी-शक्ति पूजन एजेंडा कितना प्रभावी होगा, इस पर मोदी को एक बार विचार कर लेना चाहिए!

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