Delhi: कांग्रेस की समस्याः भाजपा कम कांग्रेसी नेतृत्व ज्यादा

Delhi: बुद्धिजीवियों ने माना कि ‘जिस तरह राहुल गांधी भारत जोड़ों न्याय यात्रा में सामाजिक न्याय का मुद्दा उठा रहे हैं, उससे कांग्रेस और इंडिया के पक्ष में चौकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। पर, कांग्रेस संगठन पर हावी सवर्ण नेतृत्व राहुल गांधी के सामाजिक न्याय से जुड़े संदेश को जनता में पहुचाने का अपेक्षित प्रयास नहीं कर रहा है।

लेखकः एचएल दुसाध
(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन

Delhi: हाल ही में दिल्ली मे कांग्रेस की ओर से विभिन्न समुदायों के बुद्धिजीवियों को लेकर 2024 की रणनीति तय करने के लिए एक अनौपचारिक मगर अहम बैठक हुई। कांग्रेस 2024 में कैसे बेहतर परिणाम देकर भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकती है, इस पर बुद्धिजीवियों की ओर से कई मूल्यवान सुझाव आए। इस बैठक में दलित बुद्धिजीवियों की ओर से आए सुझाव ने अलग से दृष्टि आकर्षित किया। दलित बुद्धिजीवियों ने माना कि ‘जिस तरह राहुल गांधी भारत जोड़ों न्याय यात्रा में सामाजिक न्याय का मुद्दा उठा रहे हैं, उससे कांग्रेस और इंडिया के पक्ष में चौकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। पर, ऐसा होता दिख नहीं रहा है। कारण, कांग्रेस संगठन पर हावी सवर्ण नेतृत्व राहुल गांधी के सामाजिक न्याय से जुड़े संदेश को जनता में पहुचाने का अपेक्षित प्रयास नहीं कर रहा है। अगर कांग्रेस राहुल गांधी के प्रयासों को सफल होते देखना चाहती है तो उसे नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में दलित, आदिवासी, पिछड़ों और अकालियतों को लाने का उपक्रम चलाना होगा। संगठन में सामाजिक अन्याय के शिकार तबकों को प्रभावी प्रतिनिधित्व दिए बिना कांग्रेस राहुल गांधी के प्रयास से लहलहा रही सामाजिक न्याय की फसल को नहीं काट सकती!’ बहरहाल दिल्ली की बैठक में दलित बुद्धिजीवियों ने राहुल गांधी के सामाजिक न्याय संदेश को लक्षित वर्गों तक न पहुंच पाने के लिए जो चिंता जाहिर की है, वह कोई नई बात है नहीं है। आम से लेकर खास हर कोई महसूस कर रहा है कि राहुल गांधी भारत जोड़ों यात्रा मे सामाजिक न्याय का जो संदेश दे रहे हैं, वह सिर्फ सोशल मीडिया में ही गूंज रहा है। संदेश उनके बीच नहीं पहुंच रहा है, जिन्हें सामाजिक न्याय का मुद्दा खींचता और वोट देने के लिए प्रेरित करता है। अगर उनका संदेश सामाजिक अन्याय के शिकार वर्गों तक पहुंच जाए तो मोदी के सारे दावे धरे के धरे रह जाएंगे जो वह अब उछालना शुरू किए हैं!
भाजपा जितना भी दावा करे, वह कांग्रेस के लिए उतनी बड़ी समस्या नहीं
काबिलेगौर है कि प्रधानमंत्री मोदी ने गत एक सप्ताह से अबकी बार 400 पार का नारा देकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ दिया है। इसमें मीडिया भी हां में हां मिलाते हुए एक ऐसा माहौल पैदा कर दी है, मानों 2024 का चुनाव महज एक औपचारिकता है, जिसमें 2019 से भी जोरदार तरीके से मोदी की वापसी तय है। मोदी के दावे को पुख्ता करने के लिए अमित शाह से लेकर अनुराग ठाकुर तकः छोटे-बड़े सभी भाजपाई एक दूसरे से होड लगाते हुए दावा कर रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव मे भाजपा 370 और राजग को 400 से अधिक सीटें मिलेंगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा तीसरी बार सरकार बनाएगी। किन्तु भाजपा जितना भी दावा करे, वह कांग्रेस के लिए अब उतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितना कुछ माह पूर्व तक दिख रही थी। क्योंकि भाजपा सामाजिक न्याय के जिस पिच पर कभी पार नहीं पाती, राहुल गांधी आज अभूतपूर्व तरीके से वह पिच तैयार करते दिख रहे हैं। भारत की राजनीति जो तथ्य निर्विवाद रूप से प्रमाणित हैं, उनमें एक यह है कि चुनाव को सामाजिक न्याय की पिच पर केंद्रित करने से भाजपा कभी जीत ही नहीं सकती! 2015 में लालू प्रसाद यादव के बाद 2023 में कांग्रेस ने चुनाव को सामाजिक न्याय की पिच पर केन्द्रित करके यह सिद्ध कर दिया है।

मंडल ही बनेगा कमंडल की काट!
लोग भूले नहीं होंगे कि 2015 में लालू प्रसाद यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव को मंडल बनाम कमंडल का रूप देकर अप्रतिरोध्य से दिख रहे मोदी को गहरी शिकस्त दे दिया था। लालू प्रसाद यादव ने लोकसभा चुनाव-2014 की हार से सबक लेते हुए अपने चिर प्रतिद्वंदी नीतीश कुमार से हाथ मिलाने के बाद एलान कर दिया था, ‘मंडल ही बनेगा कमंडल की काट!’ कमंडल की काट के लिए उन्होंने मंडल का जो नारा दिया, उसके लिए आरक्षण के दायरे को बढ़ाने का प्लान किया। इसी के तहत अगस्त 2014 में 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में अपने कार्यकर्ताओं को तैयार करने हेतु जुलाई 2014 में वैशाली में आयोजित राजद कार्यकर्त्ता शिविर में एक खास सन्देश दिया था। उस कार्यकर्त्ता शिविर में उन्होंने खुली घोषणा किया था कि सरकार निजी क्षेत्र और सरकारी ठेकों सहित विकास की तमाम योजनाओं में एससी, एसटी, ओबीसी और अकलियतों को 60 प्रतिशत आरक्षण दे। नौकरियों से आगे बढ़कर सरकारी ठेकों तथा आरक्षण का दायरा बढ़ाने का सन्देश दूर तक गया और जब 25 अगस्त को उपचुनाव का परिणाम आया, देखा गया कि गठबंधन 10 में से 6 सीटें जीतने में कामयाब रहा। यह एक अविश्वसनीय परिणाम था, जिसकी मोदी की ताज़ी-ताजी लोकप्रियता के दौर में कल्पना करना मुश्किल था। इस परिणाम से उत्साहित होकर उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव को मंडल बनाम कमंडल पर केन्द्रित करने का मन बना लिया। 2015 मे जब विधानसभा चुनाव प्रचार धीरे-धीरे गति पकड़ने लगा, संघ प्रमुख मोहन भागवत पहले चरण का वोट पड़ने के पहले आरक्षण के समीक्षा की बात उठा दिए। उसके बाद तो लालू फुल फॉर्म में आ गए और साल भर पहले कही बात को सत्य साबित करते हुए चुनाव को मंडल बनाम कमंडल बना दिए। वह रैली दर रैली यह दोहराते गए, ’तुम आरक्षण ख़त्म करने की बात करते हो, हम सत्ता में आयेंगे इसे आबादी के अनुपात में बढ़ाएंगे’। इससे चुनाव सामाजिक न्याय पर केन्द्रित हो गया जिस की काट मोदी नहीं कर पाए और मंडलवादी लालू-नीतीश दो तिहाई सीटें जीतने में कामयाब रहे!

सामाजिक न्याय के सामने नफरत की राजनीति मात खा जाएगी
लालू प्रसाद यादव ने जिस प्रकार 2015 में सामाजिक न्याय की राजनीति को विस्तार दे कर मोदी को शिकस्त दिया, वह काम अज्ञात कारणों से यूपी विधानसभा चुनाव-2017, लोकसभा चुनावः 2019; बिहार विधानसभा चुनाव- 2020 और यूपी विधानसभा चुनाव-2022 में यूपी-बिहार का बहुजन नेतृत्व न कर सकाः फलतः भाजपा अप्रतिरोध्य बन गयी! लेकिन सामाजिक न्याय के सामने नफरत की राजनीति शर्तिया तौर पर मात खा जाएगी, इस बात की उपलब्धि 2023 में कांग्रेस नेतृत्व ने किया और फ़रवरी 2023 में रायपुर के अपने 85वें अधिवेशन में सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करने के बाद उसने कर्णाटक विधानसभा चुनाव में एससी/एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक/लिंगायत और वोक्कालिगा के आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का जो वादा किया, उससे भाजपा मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत अभूतपूर्व माहौल पैदा करके भी बुरी तरह मात खा गयी. अवश्य ही आरक्षण की सीमा 50 से 75 प्रतिशत करने की घोषणा के साथ उसके मैनिफेस्टो की अन्य बातें भी भाजपा की नफरती राजनीति को ध्वस्त करने में कारगर रही। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने जिन मुद्दों को उठाकर भाजपा की नफरती राजनीति को शिकस्त दिया था, आज राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस उससे मीलों आगे निकाल गई है।

हिंदुस्तान का भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो आर्थिक व सामाजिक न्याय देना होगा
1990 मे मण्डल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद यूं तो सामाजिक न्याय राजनीतिक और बौद्धिक गलियारों मे विमर्श का बड़ा विषय बना। पर, अधिकांश नेता और बुद्धिजीवी सामाजिक न्याय को सरकारी नौकरी, शिक्षा और प्रमोशन में आरक्षण तक सीमित रखें। किन्तु यह राहुल गांधी है जो सामाजिक न्याय के दायरे को लगातार विस्तार देते हुए नौकरियों से आगे बढ़कर धन और संपदा में बंटवारे की बात किए जा रहे हैं। वंचितों को सामाजिक न्याय दिलाने का उनका विजन क्या है, इसकी बानगी कुछ दिन पूर्व गांधी जी के बलिदान दिवस पर पूर्णिया रैली में देखने को मिली। भारत जोड़ों सामाजिक न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने पूर्णिया रैली में जोर देकर कहा था कि देश मे 500 बड़ी कंपनियों का लिस्ट निकाल लीजिए और ढूंढिए कि उनमें कितनों के मालिक और मैनेजर दलित, आदिवासी, पिछड़े हैं? कितने हास्पिटल दलित, आदिवासी ,पिछड़ों के हैं? इसी तरह अखबारों और टीवी के कितने मालिक दलित, आदिवासी, पिछड़े हैं? हमारा उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह से न्याय सुनिश्चित करना है। सामाजिक न्याय के लिए हम जाति जनगणना का आह्वान करते हैं जो समाज के एक्सरे की तरह है। एक बार ऐसा हो जाए। हो गया तो हम एमआरआई के लिए जा सकते हैं। ‘उन्होंने अपने सम्बोधन का समापन इन शब्दों में किया, ’आर्थिक और सामाजिक न्याय सबसे बड़ा मुद्दा है। यदि आप हिंदुस्तान का भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो देश की जनता को आर्थिक और सामाजिक न्याय देना ही होगा !’

राजनीतिक कह रहे हैं कि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व तन से कांग्रेसी, पर मन से भाजपाई
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज राहुल गांधी भारत जोड़ों यात्रा न्याय यात्रा मे सामाजिक न्याय का जो घोषणापत्र अवाम के समक्ष रख रहे हैं, वह सामाजिक न्याय के लिहाज से 2015 के बिहार और 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव से बहुत-बहुत आगे की चीज है। इससे जो चुनावी पिच तैयार होती दिख रही है, उस पर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन दुनिया की सबसे तेज पर्थ के पिच पर दुःस्वप्न साबित होने वाले लिली और थॉमसन की भूमिका मे अवतरित हो सकते हैं, जिनके समक्ष विपक्ष के बड़े से बड़े बल्लेबाज शोचनीय स्कोर करने के लिए अभिशप्त रहे। लेकिन सामाजिक न्याय के पिच पर भाजपा के हार की शतप्रतिशत संभावना दिखने के बावजूद विभिन्न प्रांतों के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामाजिक न्यायवादी संदेश को जनता के बीच पहुँचाने में न्यूनतम रुचि लेते भी नहीं दिख रहे हैं। यही कारण है ढेरों राजनीतिक विश्लेषक मजा लेते हुए कह रहे हैं कि कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व तन से कांग्रेसी, पर मन से भाजपाई है।इसलिए कांग्रेस के लिए भाजपा के बजाय खुद कांग्रेस ही बड़ी समस्या बन गई है। क्या राहुल गांधी इससे पार पाने का कोई उपक्रम चलाएंगे!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *