Ranchi: डीलिस्टिंग/रीलिस्टिंग वनवासी कल्याण केन्द्र, राष्ट्रीय स्वयं संघ व भाजपा का है षडयंत्रकारी योजना

Ranchi: आदिवासी समुदाय के वक्ताओं ने कहा कि डीलिस्टिंग/रीलिस्टिंग वनवासी कल्याण केन्द्र, राष्ट्रीय स्वयं संघ व भाजपा का षडयंत्रकारी योजना है। यह आदिवासियों को आपस में लड़ाने की राजनीति है।

न्यूज इंप्रेशन, संवाददाता

Ranchi : आदिवासी समुदाय के वक्ताओं ने कहा कि डीलिस्टिंग/रीलिस्टिंग वनवासी कल्याण केन्द्र, राष्ट्रीय स्वयं संघ व भाजपा का षडयंत्रकारी योजना है। यह आदिवासियों को आपस में लड़ाने की राजनीति है। सबसे अहम् सवाल आखिर डीलिस्टिंग की मांग करने वाले कौन लोग हैं? जो खुद डीलिस्टिंग के दायरे में आना चाहिए। 
रविवार को रांची में आयोजित प्रेस वार्ता को आदिवासी समन्वय समिति, आदिवासी जन परिषद, केंद्रीय सरना समिति, कांके रोड सरना समिति, रांची, क्षेत्रिय पडहा समिति के नेताओं ने संयुक्त रूप से संबोधित किया। वक्ताओं ने कहा कि ये लोग जो प्रकृति पूजक आदिवासी समुदाय के लिए अलग धर्म कोड पर चुप रहते हैं।
आदिवासी समुदाय के संवैधानिक हक-अधिकारों की लड़ाई पर और देश में आदिवासियों के शोषण, उत्पीड़न, जुल्म और जमीन की लूट पर चुप रहते हैं। आदिवासी समुदाय के राजनीतिक हिस्सेदारी, प्रतिनिधित्व, आरक्षण, नौकरी, जमीन हड़पने की मंशा से कुरमी, कुड़मी, महतो जाति के द्वारा आदिवासी (शिड्यूल ट्राइब) बनने की मांग पर चुप रहते हैं। झारखंड में नगर निकाय चुनाव में पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आदिवासी सीटें छीने जाने पर खामोश रहते हैं। आदिवासी समुदाय के सभी विशिष्ट कानून जो संविधान प्रदत्त है, उसको खत्म करने के लिए समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) जैसे कानून भारत सरकार ला रही है इस पर कुछ नहीं बोलते रहते हैं। आदिवासी पुरुषों द्वारा गैर आदिवासी महिलाओं और आदिवासी महिलाओं द्वारा ग़ैर आदिवासी पुरुषों से विवाह करने, संबंध रखने, संतान उत्पत्ति करने पर चुप रहते हैं।

संसद में आदिवासियों पर करें बहस
यही लोग छत्तीसगढ़, मणिपुर, मध्यप्रदेश, झारखंड में आदिवासियों के उपर हमला किया जा रहा है। ये लोग ईसाई आदिवासियों पर टारगेट करेंगे, लेकिन हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, जैन धर्म में गए आदिवासियों को लेकर चुप रहते हैं। ये लोग वनवासी कल्याण केन्द्र, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदुवादी संगठनों और भाजपा की गोद में बैठकर डीलिस्टिंग-डीलिस्टिंग बोलेंगे। अगर ईमानदारी है तो आदिवासी समुदाय को आपस में लड़ाने के बजाय केंद्र में इनकी सरकार है, संसद है, वहां पर इस पर बहस किया जाए। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि इसको विवाद का विषय बनाकर आम आदिवासियों की ज्वलंत और संवैधानिक हक-अधिकारों, जमीन की लूट-खसौट, यूसीसी, वनाधिकार कानून, आदिवासियों पर दमन आदि मुद्दों से ध्यान भटकाया जाए।

ये थे मौजूद
इस संवाददाता सम्मेलन में आदिवासी समन्वय समिति, झारखंड के संयोजक लक्ष्मीनारायण मुंडा, आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेम शाही मुंडा, केंद्रीय सरना समिति, रांची के अध्यक्ष अजय तिर्की, आदिवासी अधिकार मंच के अध्यक्ष प्रफुल्ल लिंडा, क्षेत्रीय पड़हा समिति के अध्यक्ष अजीत उरांव, कांके रोड सरना समिति के अध्यक्ष डब्लू मुंडा मौजूद थे।

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