Political News: संघ क्यों लागू करना चाहता है वर्ण-व्यवस्था
Political News: संघ क्यों लागू करना चाहता है वर्ण-व्यवस्था
Political News: जिस वर्ण-व्यवस्था को संघ हिन्दू राष्ट्र में लागू करना चाहता है, वह वर्ण-व्यवस्था मूलतः शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक के बंटवारे की व्यवस्था रही.
एचएल दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
न्यूज इंप्रेशन
Delhi : वैसे तो वर्षों से आम से लेकर खास लोग यह घोषणा करते रहे हैं कि संघ हिन्दू राष्ट्र में वर्ण-व्यवस्था द्वारा अपनी सामाजिक-आर्थिक सोच को जमीन पर उतारना चाहता है पर, महाकुम्भ में हिन्दू राष्ट्र के संविधान का प्रारूप सामने आने के बाद किसी को भी संदेश नहीं रह जाना चाहिए कि वह वह कर्म आधारित वर्ण- व्यवस्था लागू करना चाहता है. आखिर क्यों वह वर्ण-व्यवस्था लागू करना चाहता है, इसे जानने के लिए कर्म आधारित वर्ण-व्यवस्था की विशेषता जान लेना जरुरी है. दैवीय-सृष्ट वर्ण-व्यवस्था उस हिन्दू धर्म का प्राणाधार है, जिसका संघ अघोषित रूप से ठेकेदार बने बैठा है. जिसे हिन्दू धर्म धर्म कहा जाता उसका अनुपालन कर्म आधारित वर्ण-व्यवस्था के जरिये होता. जिस वर्ण-व्यवस्था को संघ हिन्दू राष्ट्र में लागू करना चाहता है, वह वर्ण-व्यवस्था मूलतः शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक के बंटवारे की व्यवस्था रही. शक्ति के स्रोतों का बंटवारा चार वर्णों-ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्रातिशूद्रों के लिए निर्दिष्ट पेशे/कर्मों के जरिये किया गया. विभिन्न वर्णों के लिए निदिष्ट कर्म ही उनके धर्म रहे. वर्ण-व्यवस्था में ब्राह्मण का धर्म(कर्म ) अध्ययन-अध्यापन, राज्य संचालन में मंत्रणा-दान और पौरोहित्य रहा. क्षत्रिय का धर्म भूस्वामित्व, सैन्य-वृत्ति एवं राज्य दृसंचालन रहा, जबकि वैश्य का कर्म (धर्म) पशुपालन एवं व्यवसाय-वाणिज्य रहा. शुद्रातिशूद्रों का धर्म(कर्म) रहा तीन उच्चतर वर्णों(ब्राह्मण- क्षत्रिय और वैश्यों) की निष्काम सेवा. वर्ण-धर्म में पेशों की विचलनशीलता निषिद्ध रही, क्योंकि इससे कर्म-संकरता की सृष्टि होती और कर्म-संकरता धर्मशास्त्रों द्वारा पूरी तरह निषिद्ध रही. कर्म-संकरता की सृष्टि होने पर इहलोक में राजदंड तो परलोक में नरक का सामना करना पड़ता. धर्मशास्त्रों द्वारा पेशे/कर्मों के विचलनशीलता की निषेधाज्ञा के फलस्वरूप वर्ण- व्यवस्था ने एक आरक्षण दृव्यवस्थाः हिन्दू आरक्षण व्यवस्था का रूप ले लिया, जिसमें भिन्न-भिन्न वर्णों के निर्दिष्ट पेशे/कर्म, उनके लिए अपरिवर्तित रूप से चिरकाल के लिए आरक्षित होकर रह गए. इस क्रम में हिन्दू आरक्षण में ब्राह्मणों के लिए पौरोहित्य व बौद्धिक पेशे तो क्षत्रियों के लिए भूस्वामित्व, राज्य संचालन और सैन्य-कार्य तो वैश्यों के लिए पशु-पालन व व्यवसाय-वाणिज्य के कार्य चिरकाल के लिए आरक्षित होकर रह गये.हिन्दू आरक्षण में शुद्रातिशूद्रों के हिस्से में शक्ति के स्रोतों-आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक दृ एक कतरा भी नहीं आयाःवे चिरकाल के लिए दुनिया के सबसे अशक्त मानव समुदायों में तब्दील होने के लिए अभिशप्त हुए !
वर्ण व्यवस्था को अमरत्व प्रदान करने वाले उपाय
सामाजिक-आर्थिक नजरिये से वर्ण-व्यवस्था के अध्ययन से साफ़ नजर आता है कि विदेशी मूल के आर्यों द्वारा इसका प्रवर्तन सिर्फ चिरकाल काल के लिए सुपरिकल्पित रूप से शक्ति के समस्त स्रोत हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग (मुख-बाहु-जंघे) से जन्मे लोगों को आरक्षित करने के मकसद से किया गया था. यहां यह भी गौर करना जरुरी है कि इसमें आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक अधिकार सिर्फ उच्च वर्णों के पुरषों के लिए आरक्षित हुए : उनकी आधी आबादी शुद्रातिशूद्रों की भांति ही शक्ति के स्रोतों से प्रायः पूरी तरह बहिष्कृत रही.इससे साफ़ नजर आयेगा की वर्ण-व्यवस्थाधारित हिन्दू धर्म का पूरा ताना-बाना उच्च वर्णों के रूप में हिन्दुओं की अत्यंत अल्पसंख्यक आबादी को , जिनकी संख्या आज की तारीख में बमुश्किल 7.5 प्रतिशत हो सकती है, स्थाई तौर पर शक्ति के समस्त स्रोतों से लैस करने को ध्यान में रखकर बुना गया था. इस व्यवस्था को ईश्वर-सृष्ट प्रचारित कर उच्च वर्णों को शक्ति के स्रोतों का दैवीय-अधिकारी वर्ग बना दिया था. इस दैवीय अधिकारी वर्ग के हित में प्रवर्तित वर्ण-व्यवस्था को प्रत्येक आक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए आर्य मनीषियों ने कर्म कर्म-शुद्धता की अनिवार्यता और कर्म- संकरता की भांति वर्ण-शुद्धता की अनिवार्यता और वर्ण-संकरता की निषेधाज्ञा का सिद्धांत रचा. वर्ण- संकरता से समाज को बचाए रखने के लिए ही उन्होंने सती-विधवा और बालिका विवाह-प्रथा के साथ अछूत प्रथा को जन्म दिया. इसके फलस्वरूप पंडित राहुल सांकृत्यायन के मुताबिक सती- प्रथा के तहत भारत के समग्र इतिहास में सवा करोड़ नारियों को अग्नि-दग्ध कर मार डाला गया. इसी तरह विधवा-प्रथा के तहत जहाँ कई करोड़ नारियों की यौन-कामना को बर्फ की सिल्ली में तब्दील कर दिया गया, वहीं बालिका विवाह-प्रथा के तहत अरबों बच्चियों को बाल्यावस्था से सीधे यौनावस्था में उछाल दिया गया. इसी तरह अछूत-प्रथा के तहत दलितों के रूप में एक विशाल आबादी शक्ति के स्रोतों से चिरकाल के लिए पूरी तरह बहिष्कृत होने के साथ कुष्ठ रोगियों की भांति घृणित होने के लिए अभिशप्त हुई.
वर्ण-व्यवस्था में पेशों की विचलनशीलता निषिद्ध होने के कारण आर्थिक, सामरिक, शैक्षिक : किसी भी क्षेत्र में योग्य प्रतिभाओं का उदय न हो सका. इस कारण ही मुट्ठी दृमुट्ठी भर विदेशी समर-वीरों को भारत को गुलाम बनाने में दिक्कत नहीं हुई; इसी कारण महज पोथी-पत्रा बांचने में सक्षम लोग पंडित कहलाने के पात्र हो गए;इसी कारण भारत के वैश्यों में हेनरी फोर्ड-रॉक फेलर जैसे लोग ढूंढे नहीं मिलते.इसी कारण वर्ण-व्यवस्था के तहत दलित-आदिवासी-पिछड़ों और महिलाओं से युक्त 90 प्रतिशत से अधिक आबादी के मानव संसाधन संसाधन के दुरूपयोग का जैसा भयावह इतिहास भारत में रचित हुआ, वह विश्व इतिहास की बेनजीर घटना है.
क्योंकि नेहरु-गांधी परिवार ने वर्ण व्यवस्थाधारित सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के खिलाफ काम किया
अब सवाल पैदा होता है जो वर्ण-व्यवस्था सती- विधवा और बालिका विवाह-प्रथा के जरिए खुद उच्च वर्ण नारियों का जीवन नारकीय बनाने का कलंकित अध्याय रची; जिस वर्ण-व्यवस्था के कारण देश को सहस्राधिक् वर्षों तक विदेशियों का गुलाम बनाने के लिए जिम्मेवार रही ; जिस वर्ण- व्यवस्था के कारण दलित-आदिवासी, पिछड़ों एवं महिलाओं से युक्त 90 प्रतिशत आबादी को शक्ति के स्रोतों से पूरी तरह बहिष्कृत रही, संघ क्यों अपने जन्मकाल से ही उस वर्ण-व्यवस्था की पुनर्स्थापना के लिए क्यों एड़ी-चोटी का जोर लगाता रहा है? इसका जवाब यह है कि वह वर्ण-व्यवस्था के जरिए एक ऐसी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को जमीन पर उतारना चाहता है, जिसमें हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे(सवर्णों) का शक्ति के स्रोतों पर शतप्रतिशत एकाधिकार हो जाय और मूलनिवासी दलित, आदिवासी, पिछड़े और आधी आबादी पुनः उस स्थिति में आ जाएँ जिस स्थिति में बने रहने का निर्देश हिन्दू धर्म-शास्त्र देते हैं! नेहरु-गांधी परिवार के संघ परिवार के अपार घृणा का कारण यही है कि कुछ कमियों और सवालों के बावजूद पंडित नेहरु से लगाए इंदिरा- राजीव- सोनिया गांधी ने अपनी नीतियों से वर्ण – व्यवस्था आधारित सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के ध्वंस में सर्वाधिक प्रभावशाली भूमिका अदा किया. उनकी नीतियों से वर्ण-व्यवस्था के गुलामोंः दलित, आदिवासी,पिछड़ों और आधी आबादी को शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी का मार्ग सबसे प्रभावी रूप में प्रशस्त हुआ, जिसे स्थानाभाव के कारण इस लेख में विस्तार से बताना संभव नहीं है.
हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा के खिलाफ नेहरु का क्रांतिकारी उद्घोष
बहुतों का पता नहीं कि सावरकर-हेडगेवार- गोलवलकर सहित अन्य असंख्य हिंदुत्ववादी नायकों ने आधुनिक भारत में शुक्र, कौटिल्य, मनु जैसे विचारकों का विधान लागू करने का जो सपना देखा था, उस पर सबसे बड़ा प्रहार करने में भारतीय संविधान के निर्माण के पृष्ठ में नेहरु की विराट भूमिका रही. उन्होंने 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव‘ नाम से जो प्रस्ताव पेश किया वह भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों को निर्धारित करने वाला रहा और बाद में भारत संविधान की प्रस्तावना का आधार बना, जो संविधान के उद्देश्यों और मूल्यों को दर्शाता है. उनका उद्देश्य प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से अपनाया गया और 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत और अधिनियमित किया गया. उसी प्रस्ताव में कहा गया था,’ सभी भारतीयों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निष्पक्षता; पद और अवसर की समानता, कानून के समक्ष समानता और अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, उपासना, व्यवसाय, संघ और कार्य की बुनियादी स्वतंत्रता-कानून और सार्वजानिक नैतिकता के अधीन की गारंटी दी जानी चाहिए.’ नेहरु का यह उद्घोष संघ की मनुवादी सोच के खिलाफ एक क्रन्तिकारी उद्घोष था, जिसे हिंदुत्ववादी आज तक भूल नहीं पाए है और अपना आक्रोश समय-समय पर जाहिर करते रहते हैं. मोदी ने इस मानसून सत्र में नेहरु को जबरदस्त निशाने पर लिया तो उसके पृष्ठ में नेहरु के ये उद्घोष हैं, जिसकी भारत के सतही राजनीतिक विश्लेषक लम्बे समय से अनदेखी करने के अभ्यस्त रहे हैं! जवाहरलाल नेहरु ने आधुनिक भारत के निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने योजना आयोग की स्थापना करनेके साथ, विज्ञानऔर प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा दिया. बावजूद भारत के विकास में असाधारण योगदान देने वाली तीन पंच वर्षीय योजनाओं की शुरुआत करने वाले पंडित नेहरु की नीतियों से देश में कृषि और उद्योग के नए युग की शुरुआत हुई,जो वर्ण-व्यवस्था द्वारा सदियों से शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत तबकों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने में बुनियादी काम कीं.
इंदिरा- राजीव और सोनिया गांधी बने : हिन्दू समाज अर्थ व्यवस्था की राह के रोड़े
नेहरु के हिन्दू राष्ट्र विरोधी विचार का अनुसरण नेहरु गांधी परिवार के बाद के लोग भी करते रहे. कुछ कमियों और सवालों के बावजूद इंदिरा गांधी ने वर्ण-व्यवस्था के वंचितों के जीवन में बदलाव लाने के लिए गरीबी उन्मूलन, सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता वाली नीतियाँ बनाया. उनकी नीतियों में भूमि सुधार, राजाओं के प्रिवी पर्स का खात्मा, बैंकों, एलआईसी, खदानों इत्यादि के राष्ट्रीयकरण और 20 सूत्रीय कार्यक्रम से वंचितों के जीवन में बड़े बदलाव आए.उनके सौजन्य से दलितों को मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज के एडमिशन में आरक्षण मिला और उनमें एक ऐसा मध्य वर्ग उभरा जो साहित्य सृजन के साथ सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के निर्माण में भारी अर्थदान कर सका. अनिच्छा पूर्वक राजनीति में आए इंदिरा गांधी के योग्य पुत्र राजीव गांधी भी अल्पआयु में निधन के पूर्व ऐसे कुछ काम कर गए ,जो वर्ण-व्यवस्था आधारित सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की राह में बड़ा अवरोध साबित हुआ. 18 साल की उम्र में वोट का अधिकार दिलाने और पंचायती राज अधिनियम के जरिये गावों की आबादी को अपना फैसला खुद करने की आजादी देने वाले राजीव गांधी ने दो ऐसे काम किये जो संघी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती साबित हुए. पहला, कम्प्यूटर क्रांति! राजीव गांधी की कम्प्यूटर क्रांति संभवतः भारत की सबसे बड़ी क्रांति है, जिसकी जद में दो वर्ष के बच्चे तक आ गए है. उनकी इस क्रांति का विरोध संघ परिवार सहित अधिकांश दलों ने किया था. उन्होंने जब दिल्ली में एटीएम मशीन लगाई आरएसएस ने भारत बंद का आह्वान कर दिया था. उनकी इस क्रांति ने वर्ण-व्यवस्था से अंधकारमय हुए भारत में सूचना और ज्ञान का आलोक फैला दिया था. अगर उन्होंने यह क्रांति नहीं की होती तो आज भारत के युवा किस स्थिति में होते, उसकी कल्पना कर रोंगटे खड़े हो जायेंगे. कम्प्यूटर क्रांति के साथ 1986 की अपनी शिक्षानीति के जरिये अज्ञानता के अंधकार में घिरे गावों की प्रतिभाओं को सर्वोच्च स्तर की शिक्षा मुहैया कराने के लिए देश भर में जवाहर नवोदय विद्यालयों की जो श्रृंखला खड़ी उससे गुरुकुल शिक्षा के हिमायतियों के होश उड़ गए और वे आज भी उन्हें माफ़ नहीं कर पाए हैं. प्रधानमंत्री का पद ठुकराने वाली नेहरु-गांधी परिवार की बहू सोनिया-गांधी कभी अपनी सास और पति की भांति सत्ता की बागडोर तो नहीं थामीं, किन्तु उनके योग्य मार्गदर्शन में ढेरों ऐसे काम हुए जो हिन्दू राष्ट्रवादियों के लिए भारी पीड़ादायक रहे. सबसे पहले तो उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के डॉ. मनमोहन सिंह को पीएम बनाकर उन्हें निराश किया. बाद में उसी मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में भारतीय अर्थव्यवस्था को उंचाई देने का ऐतिहासिक काम किया. उनकी नीतियों से भारत एक विश्व आर्थिक महाशक्ति बना और देश में विशाल मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसमें वर्ण दृ व्यवस्था के जन्मजात वंचितोंः दलित, आदिवासी, पिछड़ों की भी हिस्सेदारी रही. मनमोहन सिंह की उसी अर्थनीति की फसल आज मोदी भी काट रहे हैं. मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं इत्यादि के जरिये वर्ण दृ व्यवस्था के वंचितों के जीवन में सुधार लाने वाले कार्य सोनिया गांधी की ही देखरेख में हुए. उन्हीं की देखरेख में 2006 में उच्च शिक्षा में और 2012 में पिछड़ों को पेट्रोलियम प्रोडक्ट के वितरण में आरक्षण मिला; उन्हीं के दौर में मध्य प्रदेश से डाइवर्सिटी की आइडिया निकली, जिसके फलस्वरूप आज दलित, आदिवासी, पिछड़ों में नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, मीडिया इत्यादि में हिस्सेदारी की चाह पैदा हुई, जिसका ऐतिहासिक असर सामने आने लगा है. सोनिया गांधी की देखरेख में ही फरवरी, 2023 में कांग्रेस की ओर से पहली बार सामाजिक न्याय का पिटारा खुला, जिसे आगे बढ़ाते हुए उनके पुत्र राहुल गांधी हिन्दू राष्ट्र की राह में सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं !