Poem: देखो ! मैं ही झारखण्ड हूँ।
Poem: देखो ! मैं ही झारखण्ड हूँ।
खनिजों से सम्पन्न हूँ,
जंगलों से परिपूर्ण हूँ,
फिर भी विपन्न हूँ,
देखो ! मैं ही झारखण्ड हूँ।
मैं सोच से पिछड़ा नहीं हूँ,
क्योंकि..
मैं फूलो हूँ,मैं झानो हूँ,
1855 का सिधो-कानो हूँ,
मैं भगवान बिरसा हूँ,
वीर-सा हूँ,
मैं ताना भगतों की अहिंसा भी हूँ,
मैं बुद्धू भगत, मैं जतरा भगत,
मैं तिलका माँझी, मैं रघुनाथ हूँ,
मैं शेख भिखारी 1857 का शंखनाद हूँ,
मैं देवघर का बाबा बैद्यनाथ हूँ,
15 नवम्बर 2000 में जन्मा,
बिहार का खण्ड हूँ।
देखो ! मैं ही झारखण्ड हूँ।
मुझमें पतरातू, मुझमें स्वर्णरेखा,
मुझसे गुजरती है कर्क रेखा,
मुझमें राजमहल, मुझमें नेतरहाट,
मुझसे श्रावण, मुझमें बूढा घाघ,
मुझमें बरगद, मुझमें पलास,
झूमर-झुमटा का उल्लास,
मुझमें पाइका, मुझमें धुस्का,
मुझमें नागपुरी, मुझमें खोरठा,
मुझमें झरिया, मुझमें बोकारो,
अपना साथी चाँद और भैरो,
मैं भारत का मेरुदण्ड हूँ।
देखो! मैं ही झारखण्ड हूँ।
मैं सरल हूँ, मैं भोला हूँ,
मैं अनल हूँ, दंश झेला हूँ,
मेरी धमनियों में दौड़ता,
हूल, उलगुलान मार्तण्ड हूँ।
देखो ! मैं ही झारखण्ड हूँ।
अबुआ दिसोम अबुआ राज,
हमारा झारखण्ड,हमारी नाज,
मैं आदिवासी-वनवासी यहाँ का जनगण हूँ।
देखो ! मैं ही झारखण्ड हूँ।
रचनाकार-आशुतोष कुमार, सहायक शिक्षक, मध्य विद्यालय मुरहुलसुदी, कसमार (बोकारो), झारखंड