Patna: पटना में आजादी के 75 साल ‘देश किधर’ विषय पर परिचर्चा आयोजित, महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा 2024 के चुनाव को एक आंदोलन की तरह होगा लड़ना
-Patna में आजादी के 75 साल ‘देश किधर’ विषय पर परिचर्चा का किया गया आयोजन।
-कांग्रेस विधायक दल के नेता डा. शकील ने कहा जो भी दल संविधान व लोकतंत्र के पक्ष में हैं, वे इंडिया के हैं साथ।
विशद कुमार (पटना, बिहार)
न्यूज़ इंप्रेशन, संवाददाता
Patna(Bihar): पटना में एआईपीएफ के बैनर 13 अगस्त यानी रविवार को जगजीवन राम शोध संस्थान में ‘आजादी के 75 साल : देश किधर’ विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई। इस मौके पर माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि आज जो डिजास्टर हमारे सामने है, उसके प्रति पहले रेस्क्यू और फिर पुनर्निर्माण की लड़ाई लड़नी होगी। फासिस्ट ताकतें केवल पांच या पचास साल नहीं बल्कि अगले सौ साल तक की सोच रही है। ऐसे में लोकतंत्र के हिमायती ताकतें महज चुनाव के नजरिए से चीजों को नहीं देख सकती, बल्कि हमें भी इसे एक युद्ध व एक आंदोलन के बतौर देखना होगा। आजादी की परिभाषा हमारे लिए भी अब बदलनी चाहिए। संविधान में जो हमारे लक्ष्य हैं, ठीक उस तरह का देश बनाने की लड़ाई लड़नी होगी। पुराने को केवल रिस्टोर करने की बात से काम नहीं चलेगा। था, वह केवल रिस्टोर नहीं होने वाला है। फासीवाद का जो विध्वंस है, उसका कहीं कोई अंत नहीं है। जितना ज्यादा वे कर सकते हैं, कर चुके हैं। अब इससे हमें सीधे तौर पर टकराना होगा।
ये बातें माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ‘आजादी के 75 साल : देश किधर’ विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में कही।
बिहार आंदोलनों की धरती
कांग्रेस विधायक दल के नेता डा. शकील अहमद ने कहा कि “बिहार से एक उम्मीद की रौशनी फेल है। बिहार आंदोलनों की धरती है और विपक्षी दलों की पहली बैठक यहीं हुई। दूसरी बैठक में ‘इंडिया बना। जो भी दल संविधान व लोकतंत्र के पक्ष में हैं, वे इंडिया के साथ हैं। आईआईटी बॉम्बे के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. रामपुनियानी ने कहा कि “फासिस्ट ताकतें इतिहास तो बहुत ही पीछे धकेल सकती हैं। यदि हिटलर 25 वर्ष पीछे ढकेल सकता है, तो यहां की ताकतें तो और ज्यादा खतरनाक हैं। हजारों प्रचारक व स्वसंसेवक इसी काम में लगे हुए हैं। यदि ये आगे का चुनाव जीत गए तो इस प्रकार की बैठक करना भी आसान नहीं होगा। सामाजिक आंदोलनों ने समाज का विकास किया।”
ब्राह्मणवादी ताकतों से गंभीर खतरा
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा कि “ब्राह्मणवादी ताकतों से गंभीर खतरा है। वे 2015 में आरक्षण को खत्म करना चाहते थे। हमने उनको चुनौती दी थी। लेकिन आज धीरे-धीरे करके आरक्षण को लगभग समाप्त कर दिया गया। अब आरक्षण नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। आज के नौजवानों, कमजोर वर्ग व दलित समुदाय के लोगों को बताना होगा कि भाजपा-आरएसएस दरअसल करना क्या चाहते हैं।”
कट्टरपंथी धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र के लिए खतरनाक
दिल्ली के प्रो. शमसुल इसलाम ने मनुस्मृति के कई उद्धरणों को उद्धृत करते हुए कहा कि “हिंदुवाद से सबसे ज्यादा खतरा हिंदू महिलाओं और दलितों को है।”
उन्होंने अपने वक्तव्य में आजादी के आंदोलनों के दौरान आरएसएस की नकारात्मक भूमिका पर फोकस किया और कहा कि “कट्टरपंथी किसी भी समुदाय का हो, वह धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। मुसलमानों के लिए कई झूठ फैलाए जाते हैं। 1940 में मुसलमानों की सबसे बड़ी सभा हुई थी, जो पाकिस्तान बनाए जाने के खिलाफ था।” एपवा की महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि “मणिपुर में औरतों के शरीर को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बीजेपी की राजनीति है। आज का पूरा दौर है, उसमें विभिन्न तरीकों से व तमाम क्षेत्रों में आरएसएस औरतों की गुलामी को बढ़ावा दे रही है। केवल तीन तलाक के खिलाफ कानून नहीं बनाए जा रहे बल्कि ये दंडिसंहिता को जो आज न्याय संहिता कह रहे हैं, यह पूरी तरह से अन्याय को ही स्थापित करने की कोशिशें है। इस न्याय संहिता में औरतों की तमाम आजादी को कुचल देने की साजिश है।” कार्यक्रम को सफल बनाने में एआईपीएफ के संतोष आर्या, गालिब, अभय पांडेय, आसमा खान, रजनीश उपाध्याय, संजय कुमार, पुनीत कुमार ने अहम भूमिका निभाई। धन्यवाद ज्ञापन पंकज श्वेताभ ने किया। परिचर्चा की अध्यक्षता एआईपीएफ के गालिब ने की। संचालन संगठन के संयोजक कमलेश शर्मा ने किया। विषय प्रवेश संगठन के कुमार परवेज ने किया।