Pahalgam Terror News: पहलगाम बनाम हिन्दू-मुसलमान
Pahalgam Terror News: जो लोग यह कह रहे हैं कि धर्म पूछ पूछकर आतंकवादी मार रहे थे। कुछ नफरतबाजों ने तो हदें पार करते हुए यहां तक दुष्प्रचार फैलाया कि आतंकवादी पैंट खोलवाकर गुप्तांग चेक कर रहे थे। इसका मतलब है कि बड़े इत्मीनान से आतंकवादी घटना का अंजाम दे रहे थे।
लेखक : अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जो भी आतंकवादी घटना घटी। जिसमें करीब दो दर्जन से अधिक पर्यटक मारे गए। इसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम ही होगी। क्योंकि यह घटना इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली है। पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि यह घटना कई सवालों को भी छोड़ जाती है। क्योंकि घटना घटते ही गोदी मीडिया के एंकर और सरकार के लोग और समर्थक यह दुष्परचार फैलाने में लग गए थे कि आतंकवादी पर्यटकों के धर्म पूछ-पूछकर मार रहे थे। आखिर घर बैठे- बैठे उन्हें यह कैसे पता चल गया था?
आतंकवादी तो इंसानियत के दुश्मन होते हैं
जहां इस तरह की घटना की घोर निंदा की जानी चाहिए, वहां घटना घटते ही अपने को राष्ट्रवादी कहने वाले लोग यह दुष्प्रचार फैलाने में लग गए कि आतंकवादी एक धर्म विशेष के लोगों को पूछ पूछकर मार रहे थे। वैसे लोग इसको हवा में देने में लग गए थे कि आतंकवादी हिंदूओं को ही टारगेट कर रहे थे। आतंकवादी आतंकवादी होते हैं। आतंकवादियों को न हिंदू से मतलब होता है, न मुसलमान से मतलब होता है। वे तो इंसानियत के दुश्मन होते हैं। जबकि समाचार के अनुसार पर्यटक हर चीज का आनन्द उठाने में मशगूल थे। भीड़ इधर-उधर थी। उसी बीच कुछ आतंकवादी अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। जिसमें दो दर्जन के करीब मारे गए तो कई लोग घायल भी हुए। अस्पताल में घायलों के भी यही बयान हैं। जबकि हमारे केंद्र सरकार के लोग और उनके समर्थक घटना के समय से ही या दुष्प्रचार करने में लग गए कि आतंकवादी धर्म पूछ रहे थे। उनका आईडी चेक कर रहे थे और सिर्फ हिंदुओं को मार रहे थे। जबकि मरने वालों में कुछ ईसाई हैं, तो एक मुसलमान भी है। कुछ विदेशी भी हैं। ऐसा दुष्प्रचार एक साज़िश के तहत इसलिए किया जाने लगा कि आपदा में अवसर तलाशा जाए। दूसरे लोग यह सवाल नहीं उठाने लगें कि इतनी बड़ी आतंकवादी घटना घट गई, तो सरकार क्या कर रही थी? सरकार की पुलिस क्या कर रही थी? सरकार का खुफिया तंत्र क्या कर रहा था?
जिस जगह पर घटना घटी, हाई सिक्योरिटी वाला जोन
पहलगाम में जिस जगह पर घटना घटी, वह हाई सिक्योरिटी वाला जोन के अंतर्गत आता है। वैसे तो पूरा जम्मू-कश्मीर ही हाई सिक्योरिटी वाला जोन माना जाता है। जहां लाखों पुलिस बल को लगाया गया है। जहां इस मौसम में हजारों पर्यटक रोज आते हैं, वहां अगर पुलिस की व्यवस्था थी, तो पुलिस क्या कर रही थी और अगर नहीं थी, तो क्यों नहीं थी ? इसके लिए कौन जिम्मेवार है? वहां की सिक्योरिटी फोर्स तो भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है। यह तो सरकार की नाकामी ही कही जाएगी। क्या साजिश के तहत वहां की पुलिस को हटवा तो नहीं लिया गया था और पुलवामा की तरह इस घटना का अंजाम तो नहीं दिलवाया गया, ताकि घटना के बाद हिंदू मुसलमान की राजनीति फलने फूलने में सुविधा हो जाए।
वहां सुरक्षा व्यवस्था रहनी चाहिए थी या नहीं?
पहले तो सरकार ने यह कहकर लोगों को यह आश्वस्त कर दिया कि जम्मू-कश्मीर से 370 धारा हट गई है, इसलिए वहां शांति बहाल हो गया है।यह सभी लोग जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी कब अपना कहर बरपा देंगे, कहना मुश्किल है। फिर जहां हजारों सैलानी रोज दिन जा रहे हों, वहां सुरक्षा व्यवस्था रहनी चाहिए थी या नहीं?रहनी चाहिए थी, तो फिर सरकार का खुफिया तंत्र सोया क्यों था? जो गोदी मीडिया वाले घटना के बाद उचक उचककर यह बता रहे हैं कि आतंकवादी इस रास्ते से आए, उस रास्ते से गए। इतने दिन पहले से आकर रैंकिंग कर रहे थे। जब सब कुछ पता था, तो पहले क्यों नहीं बताया था कि आतंकवादी ऐसा करने जा रहे हैं? घटना के बाद ही ऐसी अनर्गल बातें क्यों कर रहे हैं? संभव है कि पहलगाम में पुलिस की व्यवस्था जरुर होगी। फिर जब आतंकवादी गोलियां बरसा रहे थे, उस समय हमारी पुलिस सिक्योरिटी क्या कर रही थी? क्या आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब में गोलियां चलाई? नहीं तो फिर क्यों? सैलानियों को भेड़-बकरियों की तरह मरने के लिए क्यों छोड़ दिया?
यह घटना कहीं सोची समझी साजिश का परिणाम तो नहीं है?
जो लोग यह कह रहे हैं कि धर्म पूछ पूछकर आतंकवादी मार रहे थे। कुछ नफरतबाजों ने तो हदें पार करते हुए यहां तक दुष्प्रचार फैलाया कि आतंकवादी पैंट खोलवाकर गुप्तांग चेक कर रहे थे। इसका मतलब है कि बड़े इत्मीनान से आतंकवादी घटना का अंजाम दे रहे थे। जब इतना इत्मीनान से आतंकवादी मार रहे थे, तो हमारे पुलिस के जवान क्या ओल छोल रहे थे? गोदी मीडिया वाले बताते हैं कि करीब आतंकवादी 40 से 50 मिनट तक इस तरह की घटना का अंजाम देते रहे। अगर यहां की पुलिस कुछ किलोमीटर की दूरी पर भी होगी, फिर भी तो 40-50 मिनट के अंदर वहां पहुंच सकती थी। फिर आतंकवादी इतना बेखौफ होकर हत्या क्यों कर रहे थे? इन सब के बाद अगर पुलिस नहीं पहुंची, तो यह साबित करता है कि जानबूझकर इस घटना का अंजाम दिलवाया गया? ताकि घटना के बाद देश में हिंदू- मुसलमान के बीच नफरत की भावना भड़काई जा सके। जो साबित करता है कि यह घटना कहीं सोची समझी साजिश का परिणाम तो नहीं है? जहां तक अधिकांश हिंदुओं को मारे जाने की बात है, तो स्वाभाविक रूप से वहां सबसे अधिक हिंदुओं की ही संख्या थी, तो फिर भीड़ पर जब आतंकवादियों ने गोलियां बरसाई, तो हिन्दू के बजाए अधिकांश मुसलमान कैसे मारे जाते?
नाकेबंदी कर उन्हें पकड़ने की दिशा में क्यों नहीं पहल की गयी?
अगर हमारे यहां के मुसलमान आतंकवादियों के पक्षधर होते, तो पहलगाम की घटना के बाद वहां के मुसलमान सहायता करने में हाथ नहीं बंटाते। हमले के विरोध में वहां की दुकानें बंद नहीं हो जाती। वहां के मुसलमान सड़कों पर विरोध प्रदर्शन नहीं करते? वहां के मुसलमान आतंकवादियों के खिलाफ बातें नहीं बोलते। वहां के मुसलमान अन्य घायलों की मदद नहीं करते। उन्हें सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराते? जहां फ्लाइट का किराया तीन गुना बढ़ा दिया गया, वहां के मुसलमान सैलानियों को एयरपोर्ट पहुंचाने के लिए ऑटो पर फ्री सेवा नहीं देते।पर नफरत फैलाने वाले नफरतबाजों को यह सब नहीं सूझेगा। किसने देखा कि जिन आतंकवादियों ने गोलियां बरसाई थी, वे कौन थे ? हिंदू थे या मुसलमान थे? अगर थे, तो सरकार उन पर कार्रवाई करने की सख्ती क्यों नहीं बरती ? जिन आतंकवादियों ने पहलगाम की घटना का अंजाम दिया, वे चिड़िया की तरह उड़कर पाकिस्तान या दूसरे देशों में तो चले नहीं गए होंगे? कहीं न कहीं आसपास ही शरण लियें होंगे, फिर नाकेबंदी कर उन्हें पकड़ने की दिशा में क्यों नहीं पहल की गयी? क्या यह सब संदेह के घेरे में नहीं है? जब आप इन सारी बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करेंगे, तो यही लगेगा कि जिस प्रकार से कभी पुलवामा में सोची समझी साजिश के तहत घटना का अंजाम दिलवाया गया था और हिंदू- मुसलमान कर राजनीतिक रोटी सेंकी गयी थी।जिसे बाद में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था,इस घटना को भी वही रंग देने का प्रयास किया गया है। जिसको गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इससे भले ही हमारे तथाकथित राष्ट्रवादी केंद्र सरकार को लाभ होगा, परंतु जन सामान्य को सिर्फ नुकसान ही नुकसान होगा। ऐसी चाल से सावधान और सतर्क रहने की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
शत प्रतिशत सही है कि यह घटना किसी आतंकवादी संगठन ने नहीं बल्कि संघीयों ने जिस तरह जेएनयू और अलीगढ़ विश्वविद्यालय फर्जी पुलिस वर्दी में घटनाओं को अंजाम दिया था, ठीक उसी तरह इस घटना को सत्ता के लाभ के लिए अंजाम दिया है।