Pahalgam Terror Attack: पहलगाम पर उठते सवाल
Pahalgam Terror Attack: जब पहलगाम में करीब ढाई हजार के करीब सैलानियों की भीड़ थी, तो घटना के दिन पुलिस क्यों नहीं थी? जबकि पहले वहां पुलिस जवानों की तैनाती रहती थी। गृह मंत्री का कहना है कि उस समय वह जगह सैलानियों को घूमने के लिए नहीं थी।
लेखक: अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar: पहलगाम में जो आतंकवादियों द्वारा जघन्य हत्याएं की गई। जिस तरह से यह घटना मानवता को शर्मसार कर दी। इसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है। पर इस घटना ने बहुत सारे सवाल तो छोड़ ही गए। जबकि इन सवालों से बचने के लिए हमारी सरकार के समर्थक इसे हिंदू-मुसलमान करने की हवा देने में लगे हुए हैं। सरकार के समर्थक घटना क्यों घटी ? किसकी चूक से घटी? इसके बजाय देश के मुसलमान को, कश्मीरियों को टारगेट करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाए हुए हैं।
सैलानियों को 35-35 रुपए की टिकट किसने काटी थी?
सवाल यह है कि सरकार ने तो घोषणा कर दी थी कि कश्मीर में 370 धारा हटने से शांति बहाल हो जाएगी। फिर पुलिस का पुख्ता इंतजाम के बाद आतंकवादी हमले कैसे हो गए? जब पहलगाम में करीब ढाई हजार के करीब सैलानियों की भीड़ थी, तो घटना के दिन पुलिस क्यों नहीं थी? जबकि पहले वहां पुलिस जवानों की तैनाती रहती थी। गृह मंत्री का कहना है कि उस समय वह जगह सैलानियों को घूमने के लिए नहीं थी। उसे जून में खोला जाता है। जब वहां घूमने के लिए जून में खोला जाता था तो वहां जाने के लिए सैलानियों को 35-35 रुपए की टिकट किसने काटी थी? सैलानी जबरन तो नहीं चले गए थे ? टिकट काटने वाले तो सरकारी आदमी ही होंगे। फिर सरकार कैसे कहती है कि वहां सैलानियों के लिए रास्ते बंद थे। अगर रास्ते बंद थे, तो फिर घोड़े वाले या अन्य वाहन वाले सैलानियों को वहां कैसे पहुंचा रहे थे और वहां से ला रहे थे?
पुलिस आतंकवादियों से मुठभेड़ क्यों नहीं कर सकी?
सवाल यह भी उठता है कि जब सैलानियों को आतंकवादी बड़े ही इत्मीनान से धर्म पूछकर गोलियों से भून रहे थे, उस समय पुलिस कहां थी? अगर पुलिस कुछ दूरी पर तैनात थी, तो फिर डेढ़ घंटे बाद क्यों पहुंची? पुलिस आतंकवादियों से मुठभेड़ क्यों नहीं कर सकी? यह जो सरकार के चिंटू मुसलमान का नाम ले लेकर हाय तौबा मचा रहे हैं, वैसे चिंटू घटना के समय कहां थे? क्या किसी ने एक भी सैलानी की जान बचाई? वहां तो घायलों को अस्पताल पहुंचाने या उनको बचाने के लिए कश्मीरी मुसलमान ही काम आ रहे थे। वे ही लोग सैलानियों को अपने घरों में शरण दे रहे थे, जिन्हें लोग कोसने में लगे हैं।
क्योंकि कश्मीरियों के आय का साधन सिर्फ सैलानी ही हैं
सवाल यह भी उठता है कि आतंकवादी घटना का अंजाम देकर चिड़ियों की तरह उड़ तो नहीं गए होंगे? फिर घटना के बाद कश्मीर में तैनात पुलिस कर्मियों ने उनकी घेराबंदी क्यों नहीं की? क्या यह सब कुछ किसी साज़िश की ओर संकेत तो नहीं कर रहा है? जब आतंकवादी मुसलमान थे, तो फिर क्यों नहीं सोचे कि धर्म पूछकर गोलियां मारने का दुष्परिणाम मुसलमानों को ही भुगतना होगा? घटना के बाद सैलानियों का आना बंद हो जाएगा, तो भुखमरी का शिकार मुसलमानों को ही होना पड़ेगा? क्योंकि कश्मीरियों को आय का साधन सिर्फ सैलानी ही हैं।
आखिर आतंकवादियों की तस्वीरें किसने खींची और कब खींची?
टीवी चैनल या यूट्यूब पर चार आतंकवादियों की तस्वीरें दिखाई जा रही है। आखिर आतंकवादियों की तस्वीरें किसने खींची और कब खींची?जब आतंकवादियों की तस्वीरें सामने आ गई, सबकुछ जानकारी है, तो फिर उसको गिरफ्तार करवाने में सरकार नाकामयाब क्यों है? अगर नाकामयाब है, तो सिर्फ तस्वीरें वायरल कर वाहवाही तो नहीं लूटी जा रही है कि हमारी सरकार उन आतंकवादियों तक पहुंच गई है? इतनी बड़ी घटना घट गई जिसमें करीब 26 लोग मारे गए, फिर भी अभी तक आतंकवादी गिरफ्त से बाहर हैं, इसके पीछे कोई बहुत बड़ा खेल तो नहीं है? अगर सरकार मान रही है कि इसमें पाकिस्तान का हाथ है या आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे, तो उनलोगों को भागने में समय तो जरूर लगा होगा? जिस जंगल के रास्ते से आतंकवादी भाग सकते हैं, फिर उस जंगल में पुलिस क्यों नहीं तलाश कर सकती है?
यह सरकार कैसे कहती है कि हम हिंदुओं के रहनुमा हैं?
सवाल यह भी है कि सरकार की ओर से दिखाने के लिए जिस तरह से पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, वह प्रतिबंध लगा देने से पाकिस्तान को सबक मिल जाएगी या फिर यह सबकुछ दिखावा तो नहीं है? घटना के बाद हमारी सरकार ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए पाकिस्तान से भारत में आने वाले लोगों का वीजा रद्द कर दी है। इसलिए जो भी पाकिस्तान भारत आए थे, वे आनन-फानन में पाकिस्तान लौट रहे हैं। जिसमें यह भी कहा जा रहा है कि सैकड़ों की संख्या में पाकिस्तान के हिंदू भारत चारों धाम की यात्रा करने आए थे। पर पाकिस्तानी होने की वजह से उनका भी वीजा रद्द कर दिया गया। जो हमारी सरकार हिंदुओं का रहनुमा मानती है। तो पाकिस्तान से आने वाले हिंदू हिंदू हैं या नहीं? उनके बारे में हमारी सरकार ने क्यों नहीं सोचा? फिर यह सरकार कैसे कहती है कि हम हिंदुओं के रहनुमा हैं?
पीएम बिहार से आतंकवादियों को सबक सिखाने का हांक रहे थे डींग
इतनी बड़ी घटना के बाद हमारे प्रधानमंत्री जी विदेश की यात्रा रद्द कर भारत लौट आए। क्या प्रधानमंत्री के नाते उन्हें कश्मीर नहीं जाना चाहिए था? जिस 24 अप्रैल को सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी थी। जिसमें प्रधानमंत्री को रहना अति आवश्यक था। उस बैठक को अहमियत न देकर प्रधानमंत्री बिहार में रैली को संबोधित करने चले गए थे और वहीं से आतंकवादियों की सबक सिखाने का डींग हांक रहे थे। आखिर क्यों? इस पर सवाल नहीं उठेगा? क्या नहीं लगता है कि प्रधानमंत्री को सैलानियों की मौत से कोई लेना देना नहीं था? उन्हें तो बिहार का चुनाव दिख रहा था?
यह दोहरी नीति कब तक चलती रहेगी?
पहलगाम की घटना के बाद देश भर में उसकी निंदा हो रही है। जगह जगह विरोध मार्च निकाले जा रहे हैं। वहीं सरकार समर्थक लोग विरोध प्रदर्शन करते हुए सरकार की नाकामियों के बजाए, सीधे कश्मीरी मुसलमानों सहित देश के मुसलमानों के खिलाफ आग उगल रहे हैं और हिन्दुओं को उकसा रहे हैं। क्या यह सिर्फ राजनीतिक साज़िश नहीं लगता है? भाजपा सरकार में तो आए दिन जाति के नाम पर जुल्म ढाए जा रहे हैं। मौत की घाट उतारे जा रहे हैं। उन्हें आतंकवादी क्यों नहीं कहा जा रहा है? पुलिस चेतन सिंह ने रेलगाड़ी में तीन मुसलमानों को मौत की घाट उतार दिया था। क्या वह आतंकवादी की श्रेणी में आया? प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित सात लोगों पर मालेगांव बम ब्लास्ट का आरोप लगाते हुए एन आई ए ने कोर्ट से फांसी देने की मांग की है। फिर उन्हें आतंकवादी क्यों नहीं कहा जा रहा है? यह दोहरी नीति कब तक चलती रहेगी?
सवाल करने वालों पर ही देशद्रोही होने का आरोप लगने लगते हैं
इस तरह के कई ऐसे सवाल उठते हैं, जिसका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। और तो और, इस तरह के सवाल करने वालों पर ही सरकार और सरकार के समर्थक देशद्रोही होने का आरोप लगने लगते हैं। जैसा कि नेहा सिंह राठौर पर सवाल उठाने पर ही मुकदमा कर दिया गया है। हाल ही में सपा सांसद द्वारा संसद में राणा सांगा पर बोले जाने पर करणी सेना ने सांसद सहित सपा प्रमुख अखिलेश यादव को सर से धड़ को अलग करने की घोषणा की। सांसद के घर पर हमले कर दिए। क्या यह देश के लिए घातक नहीं है कि आतंकवाद का विरोध करने के बजाय सरकार के समर्थक पूरे देश में मुसलमान को टारगेट करते हुए बयान बाजी कर रहे हैं? हां, आतंकवादियों का पक्ष लेने वाला भले दोषी हो सकता है, पर सारे मुसलमान कैसे दोषी हो सकते हैं? सरकार इस पर संज्ञान क्यों नहीं लेती है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)