NDA Graph in Lok Sabha 2024: क्यों गिर रहा है एन डी ए का ग्राफ?
NDA Graph in Lok Sabha 2024: लगातार एनडीए का ग्राफ गिरता ही चला जा रहा है। इस चुनाव में न मोदी मैजिक काम आ रहा है, और न ही अमित शाह का चाणक्य नीति काम आ रही है।
अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar: अगर देश के स्तर पर बातें की जाए, तो लोकसभा 2024 का जो चुनाव हो रहा है, उसमें चार चरणों का मतदान समाप्त हो गया। जिसके अनुसार जो रुझान आ रहे हैं, उसके अनुसार लगातार एनडीए का ग्राफ गिरता ही चला जा रहा है। इस चुनाव में न मोदी मैजिक काम आ रहा है, और न ही अमित शाह का चाणक्य नीति काम आ रही है। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों? इस पर जब हम विश्लेषण करने बैठते हैं, तो ऐसा लगता है कि अगर एनडीए का ग्राफ गिरता जा रहा है, तो इसका भी खुद एनडीए ही है। अब सवाल उठता है कि आखिर वह कौन कारण है, जिसकी वजह से इंडिया का ग्राफ गिरता चला जा रहा है ? जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। मोदी और शाह जो मंचों से डींग हांक रहे हैं, उसमें तनिक भी हकीकत नहीं है। इस बात को मन ही मन मोदी और शाह भी अच्छी तरह समझ रहे हैं, पर करें तो क्या करें? इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि जब एनडीए की सरकार 2014 में बनी थी, वह यूं ही नहीं बनी थी। बल्कि 2014 के पहले मोदी ने देश में घूम-घूम कर यह ऐलान किया था कि अगर भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी से निजात पाना चाहते हैं। अगर आप चाहते हैं कि देश का काला धन जो स्विस बैंक में जमा है, वह वापस आए और सभी के खाते में 15-15 लाख रुपया चला जाए। अगर आप चाहते हैं कि पाकिस्तान द्वारा एक सिर के बदले हमारी सरकार 10 सिर ले आए, तो इसके लिए हमारे हाथों को मजबूत करना होगा।
पांच सालों के अंदर कुछ भी देखने को नहीं मिला
जनता भी लगातार कांग्रेसी हुकूमत से ऊब चुकी थी। आम जनता को यह लगने लगा था कि शायद मोदी पहली बार ऐसा कह रहे हैं। अगर उनकी पार्टी या गठबंधन की सरकार बनती है, तो निश्चित रूप से नया कुछ देखने के लिए मिलेगा। भले ही उनकी बातों में जुमले थे, पर भोली भाली जनता नहीं समझ सकी थी। उनकी बातों पर विश्वास जताते हुए जनता ने उन्हें बहुमत में ला दिया था। परंतु पांच सालों के अंदर कुछ भी देखने के लिए नहीं मिला था। उसके बजाय नोटबंदी जैसी घोर समस्याओं का सामना करना पड़ा था। शाह ने तो यह भी स्पष्ट कर दिया था कि हमलोगों ने जो चुनाव के पहले कहा था, वह जुमला था। न महंगाई कम हुई थी, न बेरोजगारों को रोजगार मिल सके थे। न काला धन आ सका था और न भ्रष्टाचार मिट सका था। और तो और मोदी कहां तक पाकिस्तान से एक के बदले सिर लाते, उसकी जगह पर वे पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से अच्छे रिश्ते तक कायम कर लिए थे।
मोदी सरकार से लोगों का होने लगा मोहभंग
जब सिर पर 2019 के लोकसभा का चुनाव आया। मोदी सरकार को यह लगने लगा था कि अब जनता के बीच क्या मुंह लेकर जाएंगे ? हमने अपने वादों पर तो ध्यान दिया नहीं। तब एक साजिश के तहत पुलवामा की घटना का अंजाम दिलवाया था और पाकिस्तान में फर्जी एयरस्ट्राइक करवाया और 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे काफी प्रचारित ही नहीं किया, बल्कि उसके नाम पर वोट भी मांगा। उस समय तो लोगों को समझ में नहीं आया था, परंतु बाद में सभी को समझ में आ गया था कि वह सारी घटनाएं फर्जी थी और 2019 के लोकसभा का चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार ने यह सब कुछ किया करवाया था। बाद में यह भी लगने लगा था कि यह सरकार चुनाव जीतने के लिए सेना की भी शहादत दिलवा सकती है। खैर, जो भी हुआ लेकिन उस चालबाजी में मोदी को सफलता मिल गई थी। पूरे देश की जनता देशभक्ति के रंग में इस तरह से रंग गई थी कि मोदी सरकार को फिर से बहुमत में ला दी थी। आम लोगों को यही लगने लगा था कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए मोदी सरकार को रहना बहुत जरूरी है। फलस्वरूप मोदी ने फिर से प्रधानमंत्री की शपथ ली थी। दूसरे टर्म में मोदी सरकार ने कोरोना काल में जिस तरह नाकाम रही थी, उसे भी सभी ने देखा था। मोदी सरकार में किस तरह महंगाई बढ़ती गयी। आम जनता जूझती रही और किस तरह अडानी, अंबानी की सम्पत्ति बढ़ती चली गयी, उसे भी लोग समझने लगे। जिस तरह से मोदी सरकार विपक्षी नेताओं के घर पर ईडी और सीबीआई छापेमारी करवाती रही। विपक्षी नेताओं को जेल भेजवाती रही। इसे भी लोग समझने लगे। उस मोदी सरकार के पक्ष में भला कैसे दिखते? फलस्वरूप मोदी सरकार से लोगों का मोहभंग होने लगा।
एनडीए सरकार ने जनता से मुद्दों पर बात करना नहीं चाही
उसके बाद फिर जब 2024 का चुनाव सिर पर आने लगा, मोदी सरकार को लगने लगा कि उस बार तो पुलवामा की घटना का अंजाम दिलवा कर हम चुनाव जीत गए थे। पर इस बार कौन सा हथकंडा अपनाया जाए? तो आधे- अधूरे अयोध्या में बने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम रखवाया। मोदी सरकार यह जानती है कि जनता अंधभक्त होती है। हिन्दू बहुल देश में राम मंदिर के नाम पर यहां की जनता अपनी सारी समस्याएं भूल जाएगी और हमारे पक्ष में मतदान निश्चित रूप से करेगी। परंतु जब राम मंदिर की लहर काम नहीं आ सकी, तो वैसे पार्टी के नेताओं से फिर से गठबंधन करना शुरू किया, जो उससे अलग हो चुके थे। पर कहा जाता है कि काठ की हांडी दूबारे नहीं चढ़ती। एनडीए सरकार की सबसे बड़ी नाकामी यही रही कि उसने कभी भी जनता से मुद्दों पर बात करना नहीं चाही। सरकार के प्रधानमंत्री से लेकर अन्य मंत्री तक जनता के बीच यह कभी नहीं कहते देखे गए कि हमने पिछले 5 वर्ष पहले जो वादा किया था, उन वादों में किन-किन वादों पर मैं खरा उतरा। आपके लिए कितना कुछ किया। इसीलिए आपसे वोट मांगना हमारा अधिकार बनता है। इसके बजाय उन नेताओं ने कभी हिंदू- मुस्लिम, मंदिर- मस्जिद यानी नफरत की बात करते रहे। ताकि हिन्दू और मुसलमान में अलगाव पैदा होता रहे और फिर हिन्दू गोलबंद होकर हमारे पक्ष में वोट कर दें। ताकि हमारी जीत हासिल हो जाए।
जनता भोली भाली है, परंतु मूर्ख नहीं
जनता आम जनता भोली भाली जरूर होती है, परंतु इतनी भी मूर्ख नहीं होती है कि उसे कुछ भी समझ में नहीं आता है। यहां की आम जनता को भी यह समझ में आने लगा कि 10 वर्षों में एनडीए की सरकार सिर्फ बातें ही करती रही। इसकी करनी कुछ भी नहीं है। दूसरी तरफ कमर तोड़ महंगाई से जनता त्रस्त रही। भ्रष्टाचार चरम सीमा पर देखती रही ।बेरोजगारी बढ़ती चली जा रही है बेरोजगार युवकों में आक्रोश बढ़ता चला जा रहा है ।ऐसी स्थिति में एनडीए के प्रति नफरत तो होना स्वाभाविक है। अब जनता यही गुस्सा एनडीए पर उतरने लगी है और इंडिया गठबंधन के प्रति धीरे-धीरे लोगों की आस जगने लगी है ।ऐसी स्थिति में एनडीए का ग्राफ गिरना स्वाभाविक- सा हो जाता है। अब देखना यह है कि एनडीए का यह ग्राफ कहां तक गिरता है या फिर एनडीए गठबंधन इसे साम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाकर सरकार बनाने में कामयाब हो पाते हैं।यह तो चार जून के बाद ही पता चल पाएगा।