National Education Policy 4th Anniversary: देश में वर्ष 1986 में बनी शिक्षा नीति के 34 वर्षों बाद तैयार की गई यह नई नीति न केवल शिक्षा के मायने बदल देगी, बल्कि स्वावलंबन से नए भारत-निर्माण की नई गाथा रचेगी।
डॉ एएस गंगवार प्राचार्य, डीपीएस, बोकारो सह नगर समन्वयक, राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी
न्यूज इंप्रेशन Bokaro: शिक्षा समृद्धि का आधार है। बिना इसके आज मानव सभ्यता के विकास की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। परंतु, परिवर्तन सृष्टि का नियम है। जिस प्रकार आज समय बदल चुका है, हमारा देश भी उसके अनुसार बदल रहा है और यह बदलाव शिक्षा में भी आवश्यक है। गुरु-शिष्य हमारी सनातन परंपरा रही है, जिसे मैकाले की शिक्षा पद्धति ने बदलकर रख दिया और आज तक यही चली आ रही है। लेकिन, अब इसमें बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। किताबों और विद्यालय की कक्षाओं तक सीमित शिक्षा की अवधारणा को बदलने का आरंभ हो चुका है। पारंपरिक शिक्षा की परिपाटी से परे ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नींव के रूप में देश को पुनः विश्वगुरु बनाने की शुरुआत हुई है। हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से। देश में वर्ष 1986 में बनी शिक्षा नीति के 34 वर्षों बाद तैयार की गई यह नई नीति न केवल शिक्षा के मायने बदल देगी, बल्कि स्वावलंबन से नए भारत-निर्माण की नई गाथा रचेगी। साथ ही, वर्ष 2047 तक जिस विकसित भारत का सपना हमने देखा है, उस दिशा में भी एक सार्थक कदम साबित होगी।
देश को ज्ञान का सुपर पॉवर बनाने के उद्देश्य वर्ष 2030 तक प्राथमिक से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा को सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाने, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, नवोन्मेष और शोध को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पॉवर बनाने के उद्देश्य से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई, 2020 को एनईपी 2020 लागू की थी। वस्तुतः, इस नीति के जरिए सरकार ने अब ऐसी व्यवस्था की है कि हमारी युवा पीढ़ी सिर्फ शिक्षित ही नहीं, अपितु हुनरमंद बन आत्मनिर्भर भी बन सकेगी। यानी इससे स्वरोजगार के नए द्वार खुलेंगे। जिस दर से जनसंख्या बढ़ती जा रही है, उसके अनुपात में रोजगार मिलना चुनौतीपूर्ण है। लेकिन, जब विद्यालय से 12वीं के बाद एक हुनरमंद युवा तैयार होकर निकलेगा तो वह न केवल खुद स्वरोजगार कर सकेगा, बल्कि दूसरों को भी नौकरी दे पाने में समर्थ हो पाएगा। इसके लिए शैक्षणिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया जा रहा है। इस नीति के तहत ई. सी. सी. ई. (अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन) द्वारा खेल-खेल में प्राथमिक शिक्षा, देशज खिलौनों से पढ़ने-लिखने की क्षमता का विकास, अमीरी-गरीबी का शैक्षणिक भेदभाव-उन्मूलन, अनुभव-आधारित शिक्षण, शिक्षक-प्रशिक्षण, गांवों में शैक्षणिक सशक्तिकरण, 5 $ 3 $ 3 $ 4 का फार्मूला, मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई की व्यवस्था, बस्ते के बोझ से छुटकारा, विषयों को व्यावसायिक शिक्षण को जोड़ना, विद्यार्थियों को बहुकौशल बनाकर ‘ग्लोबल सिटीजन’ के रूप में तैयार करने का प्रयास आदि इस नीति के मुख्य घटक हैं।
इस नीति से ड्रॉप-आउट रेट हो जाएगी शून्य
इस नीति के तहत विषयों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), डिजाइनिंग, क्रिटिकल थिंकिंग, कला-शिल्प, नृत्य, संगीत, खेल, चित्रांकन, यांत्रिकी, कारीगरी जैसी कौशल-आधारित चीजों से जोड़ दिया गया है। इससे साइंस, आर्ट्स, कॉमर्स संकायों तक ही सीमित रहने की बाध्यता खत्म हो जाएगी। किसी भी संकाय के विद्यार्थी अन्य किसी भी संकाय का विषय चुन-पढ़ सकेंगे। जाहिर है, इससे वे न केवल मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में, बल्कि अपनी रुचि के अनुसार संबंधित क्षेत्र में भी अपना सुनहरा भविष्य तैयार कर सकते हैं। पहले पढ़ाई के बीच में ही स्कूल छोड़ देने की दर (ड्रॉप-आउट रेट) अधिक थी, जो इस नीति से लगभग शून्य हो जाएगी। अब प्रश्न है कि क्या हमारे विद्यालय या हमारे शिक्षक इस नीति पर चलने के लिए तैयार हैं? उत्तर है- हां, पूरी तरह तो नहीं, परंतु हम उस रास्ते पर काफी आगे बढ़ चले हैं। इस महत्वाकांक्षी नीति को लागू करने में केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) की केंद्रीय भूमिका है। इसकी सहायता से शिक्षकों को नई नीति के अनुरूप तैयार करने के लिए देशभर में विभिन्न विषयों पर लगातार गहन प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्हें सिखाने की यह प्रक्रिया तब तक अनवरत जारी रहेगी जब तक कि वे पूरी तरह तैयार न हो जाएं। हर बच्चा प्रतिभावान है। उन सभी की प्रतिभा के अनुरूप शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था विद्यालयों में वोकेशनल कोर्स शुरू कराने, विषयों के साथ उन्हें जोड़ने आदि में सीबीएसई का अहम योगदान है। इस नीति को मूर्त रूप देने में शिक्षकों की भूमिका सबसे अहम है। जिस बच्चे की जिस क्षेत्र में रुचि है, उसे उसी तरफ प्रोत्साहित करें, वह बच्चा निश्चय ही उस क्षेत्र में एक सफल व्यक्ति बनेगा। बच्चों को सभी कौशल में पारंगत बनाना ही नई शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य है और यही हमारी परंपरा भी थी। 1700 वर्ष पहले भारत विश्व में सबसे अमीर देश था। हम 64 कलाओं के मालिक थे। दुनिया हमारा लोहा मानती थी। एक बार फिर भारत को अपनी सनातन गुरु-परंपरा से युक्त शिक्षा-प्रणाली देकर विश्वगुरु और सोने की चिड़िया बनाने की सोच के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से पहली बार देश में अब 1947 से पहले वाली सोच पर काम किया जा रहा है। विद्यालय सभी कलाओं का केंद्र होंगे, जहां बच्चे अपनी आंतरिक इच्छा के अनुकूल शिक्षा पाकर उसी क्षेत्र में अपना करियर व पेशा चुन सकेंगे। आइए, इस नीति को समृद्ध भारत की नियति बनाने में हम सभी अपनी महती भूमिका निभाएं।