Motivational: कैसे तीन पोल्गर बहने शतरंज की विश्व विजेता बनी?
Motivational: लाजालो पोल्गर शतरंज के शिक्षक और महान शिक्षाविद थे। वो हमेशा कहा करते थे कि “Geniuses are made, not born”। उनका मानना था कि “जिसे हम महान प्रतिभा कहते हैं वह पैदा नहीं होते बल्कि बनाये जाते। हैं।”
आर एन साहनी
न्यूज़ इंप्रेशन
Bokaro : लाजालो पोल्गर का जन्म 11-05-1946 में हंगरी में हुआ था जो एक शतरंज के शिक्षक और महान शिक्षाविद थे। वो हमेशा कहा करते थे कि “geniuses are made, not born”। उनका मानना था कि “जिसे हम महान प्रतिभा कहते हैं वह पैदा नहीं होते बल्कि बनाये जाते। हैं।” उन्होंने अपनी इस धारणा को सिद्ध करने के लिए अपने बच्चों पर ही प्रयोग करने का निश्चय किया। उनका यह अद्भुत प्रयोग मानव शिक्षा के इतिहास में अपने तरह का एक बहुत ही अनोखा और जीवन को एक नई दृष्टि देने वाला प्रयोग साबित हुआ। उनका मानना था कि किसी भी बच्चे को तीन साल की उम्र होने के पहले से ही किसी भी क्षेत्र उसकी प्रशिक्षित किया जाये तो वह उस क्षेत्र में छह साल के होते-होते उस काम में या उस खेल में गजब की प्रवीणता हासिल कर लेता है।
लजाओ पोलर मानते थे कि “जन्मजात प्रतिभा जैसी कोई चीज़ नहीं होती है बल्कि किसी भी बच्चे को एक चुने हुए क्षेत्र में निरन्तर अभ्यास से महान बनाया जा सकता है।” अपनी इस अवधारणा को सिद्ध करने के लिए उन्होंने कई लड़कियों को पत्र लिखा जिसमें उनके साथ शादी करके उनके इस प्रयोग में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। अंततः कार्ला नाम की एक लड़की ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार किया और उनके साथ शादी करने को राजी हो गयी।
उन्होंने अपना यह प्रयोग 1960 में शुरू किया, उनकी तीन बेटियां हुई जसुसा, जसोफिया और जुड़ित। उनकी दो बेटियां जसोफिया और जूडित शतरंज के खेल में महिला विश्व विजेता बनी।
जासूजा मात्र बारह साल की उम्र में अंडर 16 का खिताब जीती
1969 में लाजालो पोल्गर दंपति को एक बेटी हुई जिसका नाम उन्होंने जासूजा रखा। जासूजा मात्र बारह साल के उम्र में अंडर 16 का खिताब जीती। इसके अलावा अंडर 16 महिला वर्ल्ड चैंपियन में पहली महिला ग्रैंडमास्टर बनी। इसके अलावा वह पहली महिला बनी जिसने ट्रिपल क्राउन से भी नवाजा गया। 1974 में सोफिया का जन्म हुआ।
1976 में जूडिथ का जन्म हुआ और उसने मात्र 15 वर्ष की उम्र में सबसे कम उम्र की ग्रांड मास्टर का खिताब मिला। इसके साथ ही एक दशक से अधिक समय तक नंबर वन खिलाड़ी रहीं। उनकी उपलब्धि इतनी ही नहीं रही बल्कि उसे “Universal greatest female players of all the time” खिताब से भी नवाजा गया। जुदित ने बताया कि जब शुशान एक खास माहौल में उसका परवरिश हुआ था। शुरू में उनके पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय अपने घर पर ही रख कर शतरंज के खेल का प्रशिक्षण देते थे। इस बात को लेकर लोगों के बीच बहुत चर्चा हुआ करता था कि पोल्गर अपने बच्चियों के जीवन को बर्बाद कर रहा है। इसके अलावा लाजालो पोलगर को हंगरी के अधिकारियों के साथ भी बहुत ही अधिक संघर्ष करना पड़ा, अपने बच्चों को अपने घर पर रख का ही प्रशिक्ष्ण देने की अनुमति पाने के लिए। लोगों को यह शिकायत थी कि पोल्गर अपनी बेटियों का सहज बचपन को छीन रहा है। इन सब बातों से बेपरवाह वह अपने बेटियों के शतरंज के प्रशिक्षण में लगा रहता था।
पोल्गर बहनें कभी स्कूल गयी ही नहीं
पोल्गर बहनें बताती थी कि वो सब स्कूल गयी ही नहीं जो हंगरी के लिए बहुत ही असामान्य बात थी। उन्होंने अपने इस अनूठे प्रयोग से यह सिद्ध किया कि “हर बच्चे के अंदर महान संभावना छिपी होती जैसे एक बीज के अंदर में विशाल वृक्ष छिपा होता है और उस महान संभावना को पहचानना और उसका विकास करना उसके माता पिता और उनके गुरु का दायित्व होता है”। इस सत्य से सभी वाकिफ होते है कि सभी बीज एक विशाल वृक्ष में नहीं बदलता है जबकि सभी बीज के अंदर में एक विशाल वृक्ष की संभावना विद्यमान रहती ही है। जिस बीज से निकलने वाले अंकुरण को शुरू से ध्यान दिया जाता है और उसकी सही देखरेख की जाती है, वह एक विशाल वृक्ष के रूप में विकसित हो पाता है और बाकी बीजों की संभावनाएं समय के साथ कुंठित हो जाती है और मर जाती है। यही बात हर एक बच्चे के साथ भी लागू होता है। आगे जूडिथ ने बताया कि शुरू में शतरंज मेरे लिए एक खेल था पर, बाद में यह मेरे लिए कला, विज्ञान सब कुछ बन गया था। इस बात में एक बहुत दिलचस्प तथ्य छिपा हुआ है कि किसी भी काम में जब कोई इंसान प्रवीण हो जाता है तब वह काम उसके लिए एक काम नहीं रह जाता है बल्कि खुशी देने वाला एक आनंददायक खेल बन जाता है। तब उस काम में इंसान एक से एक नया प्रयोग करने लगता है वह खेल उसके लिए एक कला बन जाता है। जब तक आप अपने काम में अनाड़ी होते हैं तब तक वह काम आपके लिए बहुत ही बोझिल और तनावपूर्ण होता है। और, जैसे-जैसे उस काम में सिद्धहस्त होते जाते हैं वह काम आपके लिए आनंददायक खेल बनता जाता है। जिस प्रकार से जिस विद्यार्थी का गणित के ऊपर अच्छी पकड़ नहीं होती है उसके लिए यह विषय बेहद बोझिल लगता है जब उस विद्यार्थी का पकड़ गणित में अच्छी बन जाती है तब उसे यही विषय उसके लिए आनंददायक बन जाता है।
इन बातों का निष्कर्ष यह है कि किसी एक बच्चे को उसे शुरुआत से ही प्रशिक्षण दे कर उसे किसी भी क्षेत्र में असामान्य रूप से विकसित किया जा सकता है और इस बात से यह साबित होती है कि “ आमतौर पर जन्मजात प्रतिभा जैसी कोई चीज नहीं होती है”। सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर करता है कि किसी भी इंसान को कितना शुरुआत से किसी एक खास चुने हुए क्षेत्र में कितना गहन प्रशिक्षण दिया जाता है?