Delhi: सावधान! भाजपा फिर शुरू कर सकती है, गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति का अभियान !

Delhi: राम के प्रति श्रद्धा से कहीं ज्यादा, गुलामी के एक प्रतीक के मुक्ति की खुशी का इजहार है। खुशी में नाच-गया रहे राम भक्त बहुजनों को अपनी ऊर्जा बचा कर रखनी चाहिए, क्योंकि राम मंदिर के अतिरिक्त गुलामी के प्रतीक और भी हैं, जिन्हें मुक्त कराकर भाजपा भविष्य में आपको जश्न मनाने का अवसर देने वाली है।

लेखकः एचएल दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष

न्यूज इंप्रेशन
Delhi: 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा थी, जिसका साक्षी बनने को लिए 21 जनवरी को ही भारी संख्या में राम भक्त अयोध्या पहुंच गए थे। वे नाच-गाने के साथ नारे उछाल कर अपनी भावना का इजहार कर रहे थे, जो कुछ हद तक डरावना भी था। यह सब देखते हुए मैंने फ़ेसबुक पर कुछ पोस्ट डालकर बताया कि यह राम के प्रति श्रद्धा से कहीं ज्यादा, गुलामी के एक प्रतीक के मुक्ति की खुशी का इजहार है। खुशी मे नाच-गया रहे राम भक्त बहुजनों को अपनी ऊर्जा बचा कर रखनी चाहिए, क्योंकि राम मंदिर के अतिरिक्त गुलामी के प्रतीक और भी हैं, जिन्हें मुक्त कराकर भाजपा भविष्य में आपको जश्न मनाने का अवसर देने वाली है। इसलिए गुलामी के दूसरे प्रतीकों के लिए भी ऊर्जा बचा कर रखो! बहरहाल रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के एक दिन पूर्व तो मैंने संकेत कर दिया था कि भाजपा भविष्य में गुलामी के प्रतीकों की मुक्ति का अभियान छेड़ सकती है, पर यह अनुमान नहीं था कि वह इतनी जल्दी इस दिशा में आगे बढ़ने का लक्षण दिखा सकती है! यह विचित्र संयोग कहा जाएगा कि 22 जनवरी को अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के तीन दिन बाद : 25 जनवरी को ही काशी के ज्ञानवापी परिसर की वह सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक हो गई, जिसके लिए वाराणसी के जिला जज ने 23 जुलाई, 2023 को आदेश दिया था। सर्वे रिपोर्ट मे यह बात सामने आई कि मस्जिद के पहले वहाँ मंदिर था। ज्ञानवापी परिसर की सर्वे रिपोर्ट में हिन्दू मंदिर होने पर वादी पक्ष ने खुशी जताई और साथ ही उसने वहाँ हिंदुओं को पूजा-पाठ करने की अनुमति देने की मांग उठाई। और जिला अदालत ने 31 जनवरी को सात दिन के अंदर ज्ञानवापी के परिसर मे स्थित व्यासजी के तहखाने में पूजा की व्यवस्था करने का आदेश भी जारी कर दिया। ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंध करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी की अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय मे अपील दायर कर दी।

धर्मस्थलों के वापसी का अभियान छेड़ने लायक माहौल बनाने की होड
उधर ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट आने और जिला अदालत द्वारा वहाँ पूजा-पाठ की अनुमति मिलने के बाद मंदिर समर्थकों में खुशी की जो लहर दौड़ी वह सात समंदर पर तक पहुंच गई। ‘हिन्दू अमेरिकी समूह’ ने अदालत के उस आदेश का स्वागत किया है, जिसमें ज्ञानवापी में तलगृह में हिंदुओं को पूजा की अनुमति दी गई है। समूहों के साथ ही विश्व हिन्दू परिषद ऑफ अमेरिका ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया है। इस फैसले से हिंदुओं में जो प्रतिक्रिया हुई, उसे देखते हुए भाजपा समर्थक बुद्धिजीवी और मीडिया धर्मस्थलों की वापसी का अभियान छेड़ने लायक माहौल बनाने में जुटते प्रतीत हो रहे हैं! इस पर भाजपा के मुखपत्र के रूप में जाने जाने वाले देश के सबसे बड़े हिन्दी अखबार ने अपनी संपादकीय मे लिखा-‘यह देखना दुखद है कि मस्जिद पक्ष और कई मजहबी एवं सियासी मुस्लिम नेता एएसआई की सर्वे रिपोर्ट को खारिज करने मे जुटे हैं। यह दीवार पर लिखी इबारत को देखने-पढ़ने से जानबूझकर इंकार करने के अलावा और कुछ नहीं। मस्जिद पक्ष वैसी ही हठधर्मिता दिखा रहा है, जैसी उसने अयोध्या मामले में दिखाई थी। जब यह सर्वमान्य और अकाट्य साक्ष्यों से प्रमाणित है कि मुगल शासकों समेत अन्य मुस्लिम शासकों ने मंदिरों को ध्वस्त कर वहाँ मस्जिद खड़ी कीं, तब न्याय और नैतिकता का तकाजा यही कहता है कि कम से कम उन पर तो दावा छोड़ दें, जो हिंदुओं के लिए बहुत अधिक मायने रखते हैं। ‘कहना न होगा काशी के ज्ञानवापी मस्जिद में हिन्दू मंदिर होने तथा वहां पूजा-पाठ की अनुमति मिलने के बाद भाजपा-संघ समर्थक बुद्धिजीवियों में धर्मस्थलों के वापसी का अभियान छेड़ने लायक माहौल बनाने की होड़ मचती दिख रही है।

ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण का रास्ता निकालने के लिए आयोग का गठन किया जाना चाहिए
29 जनवरी को भाजपा के एक वरिष्ठ बुद्धिजीवी ने, जिन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा का अध्यक्ष बनने का गौरव भी प्राप्त रहा है, अपने आलेख में लिखा, ’बीती 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा हुई। प्रधानमंत्री ने अपना कर्तव्य निभाया। काशी के ज्ञानवापी के संबंध में भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एजेंसी की रिपोर्ट आई है। यहाँ भी प्राचीन मंदिर के साक्ष्य मिले हैं। मथुरा की भी यही स्थिति है। देश की निगाहें बेशक मथुरा और काशी पर टिकी हैं, लेकिन मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनाने की संख्या हजारों में है। मंदिर धवस्तिकरण का मकसद राष्ट्र को अपमानित करना और राष्ट्रीय स्वाभिमान को कुचलना था…क्या कोई कौम राष्ट्रीय स्वाभिमान को रौदने की घटना प्रत्यक्ष देखकर भी भूल सकती है? क्या कोई राष्ट्र सोच-समझ कर किए गए राष्ट्रीय अपमान को भूल सकता है? राष्ट्रीय अपमान ही ऐतिहासिक सत्य है। इस सत्य को भुलाकर राष्ट्रीय स्वाभिमान की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे मामलों को टालने के लिए 1991 धर्म स्थल कानून बनाया गया। इस कानून का भाव गले नहीं उतरता। इसमें 1947 के पहले के मंदिरों की स्थिति को ज्यों का त्यों स्वीकार करने की बात है। इस अधिनियम की उपयोगिता पर सम्यक पुनर्विचार की आवश्यकता है। मंदिर ध्वंस राष्ट्र के लिए पीड़ादायक है। मंदिर ध्वंस के मामले को सामान्य अपराध की तरह देखकर भूल जाना अनुचित होगा। मंदिर ध्वंस के तथ्य, सय और मन्तव्य सुस्पष्ट है। देश के सभी ध्वस्त मंदिरों को सूचीबद्ध किए जाने की आवश्यकता है। ऐसे उपासना स्थलों की पूर्व स्थिति के रूप में पुनर प्रतिष्ठा और प्राण प्रतिष्ठा की जानी चाहिए। जरूरत हो तो सभी ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण का रास्ता निकालने के लिए आयोग का गठन किया जाना चाहिए।‘

ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण को बड़ा मुद्दा बनाने में जुटते दिख रहे हैं
भाजपा के वरिष्ठ बुद्धिजीवी के साथ अब तमाम राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी ही 1991 के धर्मस्थल कानून को खारिज करने तथा ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण को सबसे बड़ा मुद्दा बनाने में जुटते दिख रहे हैं। उनके हिसाब से राष्ट्रीय स्वाभिमान सबसे बड़ा मुद्दा है और इसे ध्वस्त मंदिरों के पुनर्निर्माण के जरिए ही प्राप्त किया जा सकता है। इस विषय में एक अन्य राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी ने धर्मस्थलों की वापसी का अभियान छेड़ने का आह्वान करते हुए लिखा है,’ आज कृष्ण जन्मभूमि और ज्ञानवापी मंदिर भी कानूनी सुरंगों से बाहर आ रहे हैं। इन दोनों मंदिरों के बारे में तो ऐसे किसी प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं कि उन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई। ध्वंस किए गए अन्य धर्मस्थलों की वापसी के लिए कितनी याचिकाएं दायर होंगी, इसका आंकलन भी संभव नहीं है। धर्मस्थलों की वापसी का यह अभियान किसी भी रूप मे सांप्रदायिक नहीं है। अब स्वतंत्रता और चेतना आई है तो हिन्दू समाज उन धार्मिक-सांस्कृतिक स्थलों को बिना किसी दुर्भावना के अपनी उसी पूर्व की स्थिति मे लाना चाह रहा है, जैसे वे सैकड़ों वर्ष पूर्व थे। हिन्दू समाज किसी अन्य पंथ के उपासना स्थल कदापि नहीं चाहता। उसका लक्ष्य तो केवल धर्म-संस्कृति के अपने स्थलों की पुनर्स्थापना का है। राम मंदिर की पुनर्स्थापना इस सांस्कृतिक लक्ष्य की स्पष्ट उद्घोषणा ही तो है।‘ तो उपरोक्त तथ्य क्या यह प्रमाणित नहीं करते कि भाजपाई बुद्धिजीवी धर्मस्थलों की वापसी का अभियान चलाने मे अपनी लेखनी को सक्रिय करते दिख रहे हैं! उनकी सक्रियता देख प्रधानमंत्री मोदी भी नए सिरे से धर्मस्थलों की महत्ता बताने में जुट गए हैं। उन्होंने 4 फरवरी को गुवाहाटी मे दावा किया कि आजादी के बाद सत्ता में रह रहे लोग धर्मस्थलों के महत्व को नहीं समझ सके और उनकी उपेक्षा की। कोई भी देश अपने इतिहास को भुलाकर तथा मिटाकर और अपनी जड़ों को काटकर विकसित नहीं हो सकता। उन्होंने राजनीतिक वजहों से अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदा होने की प्रवृति स्थापित की। हालांकि पिछले दस सालों से स्थिति बदली है। भारतीय जनता पार्टी नीत ‘डबल- इंजन’ सरकार की नीति विरासत स्थलों के विकास और संरक्षण की है। भाजपा विकास व विरासत की राजनीति कर रही है। एक तरफ हम तीर्थों के उस गौरव को वापस लाए हैं जिसे पहले के शासनकाल मे भुला दिया गया था, वहीं वर्तमान सरकार ने विकास को भी काफी महत्व दिया है। ‘जाहिर हैं प्रधानमंत्री मोदी भी राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों के सुर में सुर मिलाते हुए धर्मस्थलों के वापसी के अभियान को हवा देना शुरू कर दिए हैं! जब भाजपाई बुद्धिजीवियों से लेकर प्रधानमंत्री तक धर्मस्थलों की वापसी अभियान छेड़ने लायक माहौल बनाने मे जुटते नजर आ रहे हैं, तब भाजपा का पितृ संगठन आरएसएस और साधु-संत ही कैसे चुप रहते है, जिनका प्राण ही हिन्दू धर्म-संस्कृति के अपने स्थलों की पुनर्स्थापना में बसता है। लिहाजा इन पंक्तियों के लिखे जाने तक संघ और साधु समाज की राय भी सामने आ गई है। वैसे तो आरएसएस की ओर से धर्मस्थलों के वापसी का अभियान छेड़ने का सीधे तौर पर कोई बयान नहीं आया है, पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राम मंदिर के बहाने हिन्दू भावना कोउद्वेलित करने का काम शुरू कर दिया है। उन्होंने 5 फरवरी को पुणे मे कहा है,’22 जनवरी को अयोध्या के भव्य मंदिर मे रामलला की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा एक साहसिक कार्य था जो काफी संघर्ष के बाद पूरा हुआ । वर्तमान पीढ़ी सौभाग्यशाली है कि रामलला को अपने स्थान पर खड़ा हुआ देख पा रही है। वास्तव मे यह इसलिए हुआ , क्योंकि इसके लिए हम सभी ने काम किया, बल्कि हम सभी ने कुछ अच्छे कर्म किए हैं। भारत को अपना कर्तव्य निभाने के लिए उठा खड़ा होना होगा।‘ भागवत ने यह भी कहा कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंददेव गिरि जी के साथ उपस्थित उनका सौभाग्य है। पुणे मे जिस गोविंददेव गिरि महाराज की उपस्थिति संघ प्रमुख ने भारत को अपना कर्तव्य निभाने के लिए उठ खड़ा होने का आह्वान किया, उस गिरी महाराज ने कहा कि अगर ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि मथुरा के मंदिरों को शांतिपूर्वक मुक्त कर दिया गया तो हिन्दू समुदाय अन्य सभी मुद्दों को भूल जाएगा।हमे दूसरे मंदिरों की ओर देखने की भी इच्छा नहीं है, क्योंकि हमें अतीत मे नहीं, भविष्य मे रहना है। उन्होंने मुस्लिम पक्ष से इन मंदिरों के मामले मे शांतिपूर्ण समाधान की अपील करते हुए कहा ,’ मैं हाथ जोड़कर अपील करता हूँ कि इन मंदिरों(ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि) को मुक्त कर दें , क्योंकि ये आक्रमणकारियों द्वारा किए गए हमलों के सबसे बड़े निशान हैं!’

बुद्धिजीवी धर्मस्थलों की वापसी का अभियान चलाने में जुटते नजर आ रहे हैं!
बहरहाल आज जबकि संघ से जुड़े बुद्धिजीवियों और साधु-संतों की ओर से सुपरिकल्पित रूप से धर्मस्थलों की वापसी का अभियान छेड़ने की पटकथा तैयार होती दिख रही है, यह याद कर लेने की जरूरत है कि संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा की मुख्य राजनीतिक स्ट्रेटजि हिन्दू धर्म-संस्कृति के उज्जवल पक्ष का गौरवगान तथा अल्पसंख्यक, विशेषकर मुस्लिम विद्वेष का प्रसार रहा है,जिसके लिए वह गुलामी के प्रतीकों(धर्मस्थलों) के उद्धार का अभियान चलाती रही है। ऐसा करने के क्रम में उसे हिन्दू धर्म-संस्कृति को गौरवान्वित करने व आक्रांता के रूप में मुसलमानों के खिलाफ विद्वेष प्रसार का अवसर मिल जाता है। अयोध्या अवस्थित बाबरी मस्जिद उसके लिए गुलामी क सबसे बड़ी प्रतीक रही हैं, जिसकी चार दशकों तक अनवरत संघर्ष के बाद मुक्ति का अध्याय रचा जा चुका है। ऐसे मे उसे अपनी राजनीतिक सफलता जारी रखने के लिए ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि जैसे गुलामी के अन्य प्रतीकों की मुक्ति का अभियान चलाना उसकी मजबूरी है। यही कारण है उसके बुद्धिजीवी धर्मस्थलों की वापसी का अभियान चलाने लायक माहौल बनाने मे जुटते नजर आ रहे हैं!

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