Lok sabha elections in Bihar 2024: बिहार चुनाव में अगड़ा-पिछड़ा की हवा 

Lok sabha elections in Bihar 2024: बिहार 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रथम चरण के मतदान के पहले से ही अगड़ा बनाम पिछड़ा का मामला जोरों पर रहा, जो आज भी चल रहा है। जबकि अगड़ा-पिछड़ा के मामले को कोई और नहीं, बल्कि सवर्ण मीडिया वाले ही अधिक हवा दे रहे हैं।

 

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

Bihar: बिहार 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रथम चरण के मतदान के पहले से ही अगड़ा बनाम पिछड़ा का मामला जोरों पर रहा, जो आज भी चल रहा है। जबकि अगड़ा-पिछड़ा के मामले को कोई और नहीं, बल्कि सवर्ण मीडिया वाले ही अधिक हवा दे रहे हैं और वैसे क्षेत्रों के बारे में यह बता रहे हैं कि अमुक लोकसभा क्षेत्र में अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई देखी जा रही है। आखिर ऐसा कहने की उनके सामने क्या मजबूरी आ पड़ी ? उनकी इन बातों में कितनी सच्चाई है और अगर सच्चाई है, तो उसके पीछे की वजह क्या है? यह विषय निश्चित रूप से विचारणीय लगता है। क्योंकि अगर अगड़ों के विरोध में दलित और पिछड़ी जाति के लोग गोलबंद हुए या हो रहे हैं, तो सवर्ण मीडिया वाले ऐसी हवा दे रहे हैं, मानों उनलोग बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं, जो नहीं करना चाहिए था। उस समय उन्हें योग्य -अयोग्य उम्मीदवार की याद आने लगती है। ऐसा दिखाने लगते हैं,मानो सारी योग्यताएं सवर्ण उम्मीदवारों में ही होती हैं।

संख्या अधिक है, फिर भी संसद में प्रतिनिधित्व कम

इन सवर्ण पत्रकारों को लगता है कि जैसे पहले सवर्णों की संख्या भले ही 10% के आसपास थी। फिर भी संसद में उनके ही प्रतिनिधि अधिकाधिक संख्या में चुनकर जाते थे, तो बहुत अच्छा लगता था और उन्हें लगता था कि जनता जनप्रतिनिधि के साथ न्याय कर रही है। परंतु जैसे-जैसे पिछड़ी और दलित जातियों में जागरूकता आने लगी। वे सचेत होने लगी। उन्हें लगने लगा है कि हमारी संख्या अधिक है, फिर भी संसद में हमारा प्रतिनिधित्व कम रह रहा है। क्यों न हमलोग भी अपने वर्ग के जनप्रतिनिधि को चुनकर भेजें।जब ऐसी सोच पैदा होने लगी, तो सवर्ण पत्रकार इसे अगड़ा- पिछड़ा की लड़ाई की हवा दे रहे हैं। जब सवर्ण जाति के लोग सवर्ण जाति के उम्मीदवार के पक्ष में गोलबंद हो सकते हैं, तो दलित और पिछड़ी जाति के लोगों को गोलबंद होने में क्या दोष है? जहां सवर्ण जाति के उम्मीदवार होते हैं, वहां सवर्ण जाति के लोग कहां पिछड़ी जाति के उम्मीदवार को वोट देते हैं ? उन्हें तो सारी योग्यताएं अपने वर्ग या अपनी जाति के ही उम्मीदवार में दिखाई देती हैं।

जीत दिलाने में पिछड़ों व दलितों का भी अहम् योगदान रहा

बिहार के प्रथम चरण के चार लोकसभा चुनाव में औरंगाबाद की सीट पर चार बार से सांसद रह रहे सुशील कुमार सिंह (राजपूत ) भाजपा की टिकट पर फिर से चुनाव मैदान में थे। यह कहा जाए कि औरंगाबाद लोकसभा सीट पर आजादी के बाद राजपूत जाति का ही वर्चस्व रहा है।उसे उनलोग चितौड़गढ़ मानते रहे हैं।इसके लिए राजपूत जाति के लोगों को अहंकार भी रहता है कि इस सीट से जीतना हमलोगों का जन्मसिद्ध अधिकार है। जबकि उनलोगों की जीत दिलाने में पिछड़ों और दलितों का भी अहम् योगदान रहा है। उस समय उन्हें अच्छा लगता था। उन्हें लगता था कि जनप्रतिनिधि के साथ न्याय होता आ रहा है। पर जैसे ही इस बार दलित और पिछड़े वर्ग के लोग राजद प्रत्याशी अभय कुशवाहा के पक्ष में गोलबंद हुए, तो सवर्ण मीडिया के लोगों ने हवा देनी शुरू कर दी कि यहां की लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा की हो गई है। नवादा लोकसभा सीट से कई बार से भूमिहार जाति के लोग ही सांसद चुने जा रहे थे, जिसमें पिछड़ी और दलित जाति के लोगों का भी भरपूर योगदान रहा था। उस समय उन्हें अच्छा लग रहा था। और जब पिछड़ी और दलित जाति के लोग इस बार राजद प्रत्याशी श्रवण कुशवाहा के पक्ष में गोलबंद हुए, तो सवर्ण मीडिया वाले यह हवा देने लगे कि यहां अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई हो गई है। भागलपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी अजीत शर्मा भूमिहार जाति से थे, जिन्हें दलित और पिछड़े मतदाताओं के काफी मत मिले, वहां उनके मुंह बंद हो गए। बक्सर लोकसभा सीट पर यही पिछड़ी जाति के लोग राजद के राजपूत उम्मीदवार सुधाकर सिंह को मतदान करेंगे, वहां इन्हें अगड़ा -पिछड़ा दिखाई नहीं देगा। वहीं बेगूसराय में भाजपा उम्मीदवार गिरिराज सिंह (भूमिहार) के विरुद्ध भाकपा उम्मीदवार अवधेश कुमार सिंह (यादव) के पक्ष में, मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में जदयू उम्मीदवार ललन सिंह (भूमिहार ) के विरुद्ध राजद उम्मीदवार अनीता देवी (कुर्मी धानुक) के पक्ष में, दरभंगा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार गोपाल जी ठाकुर (ब्राह्मण) के विरुद्ध राजद उम्मीदवार ललित यादव (यादव) के पक्ष में, शिवहर लोकसभा क्षेत्र में जदयू उम्मीदवार लवली आनंद (राजपूत) के विरुद्ध राजद उम्मीदवार रितु जायसवाल (वैश्य)के पक्ष में, सारण लोकसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार राजीव प्रताप रूड़ी (राजपूत)के विरुद्ध रोहिणी आचार्या (यादव),आरा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार आर के सिंह (राजपूत) के विरुद्ध भाकपा माले उम्मीदवार सुदामा प्रसाद (वैश्य)के पक्ष में पिछड़ी जाति के लोग गोलबंद दिख रहे हैं, तो सवर्ण मीडिया द्वारा यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि वहां लड़ाई अगड़ा बनाम पिछड़ा के बीच है।

17 सीटों में 11 सीटें सिर्फ 10% वाले सवर्ण जातियों को दे दी

सवाल यह है कि सवर्ण मीडिया वाले ऐसा दिखाकर क्या दिखाना चाहते हैं ? तो क्या जिस तरह से पहले सवर्ण लोग पिछड़े और दलित जातियों को मूर्ख बना-बनाकर आंखों में धूल झोंक-झोंककर जीतते रहे थे। संसद और विधानसभाओं की शोभा बढ़ाते रहे थे। उसी तरह आज भी बढ़ाते रहते, तो न्याय करते और अपने लोगों को जनप्रतिनिधि चुनना चाह रहे हैं, तो अन्याय कर रहे हैं? उसे ही बताकर सवर्ण मीडिया वाले इन्हें बदनाम करने में लगे हुए हैं। यह ठीक उसी तरह का लगता है जैसे नब्बे दशक के पहले बिहार में अधिकांश मुख्यमंत्री ब्राह्मण ही होते थे, उस समय सवर्णों को जातिवाद नहीं लगता था, पर जैसे ही लालू प्रसाद यादव की सरकार आयी, तो सवर्णों को जातिवाद नज़र आने लगा। इन सवर्ण मीडिया वालों का मुंह उस समय क्यों बंद हो जाता है, जब भाजपा जैसी पार्टी जिन्हें पहले से अधिक-अधिक संख्या में पिछड़ी और दलित जाति के लोग वोट करते आ रहे हैं। फिर भी इस बार बिहार में अपने कोटे की 17 सीटों में 11 सीटें सिर्फ 10% वाले सवर्ण जातियों को दे दी ।इस पर सवर्ण मीडिया वाले सवाल क्यों नहीं उठाते ? वे लोग कभी नहीं बोले कि भाजपा ने पिछड़ी जातियों के साथ अन्याय किया है।फिर आखिर, दलित और पिछड़ी जाति के लोग उन्हीं को वोट क्यों करने जाएंगे ?

 

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