पहले चरण के चुनाव के पहले जो हालात दिख रहे हैं, उसमें सिर्फ ईवीएम या कोई चमत्कार ही भाजपा को हार से बचा सकता है। बहरहाल इस बीच कांग्रेस से पिछड़ती जा रही भाजपा एक और नैरेटिव से परेशान है. वह तीसरी बार सत्ता में आने के बाद वह संविधान बदल सकती है. पर, अगर यह धारणा बनी है तो उसके लिए जिम्मेवार खुद भाजपा के नेता भी हैं.
लेखकः एचएल दुसाध (बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)
न्यूज इंप्रेशन Lucknow: लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर हैं. इस बीच कांग्रेस के बाद एक-एक करके इंडिया ब्लॉक से जुड़े सीपीआई, सीपीएम, सपा, राजद का भी घोषणापत्र जारी हो चुका है। इन पंक्तियों के लिखे जाने के दौरान आंबेडकर जयंती के दिन भाजपा का भी घोषणापत्र जारी हो गया है. सात चरणों में सम्पन्न होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले चरण का वोट 19 अप्रैल को पड़ना है. चुनाव में पाँच न्याय और पच्चीस गारंटियों से युक्त क्रांतिकारी घोषणापत्र के चलते कांग्रेस भाजपा के मुकाबले में पहुंच चुकी थी, पर भाजपा का निहायत ही कमजोर घोषणापत्र देखने के बाद अब कांग्रेस बढ़त बनाती नजर आ रही है. पहले चरण के चुनाव के पहले जो हालात दिख रहे हैं, उसमें सिर्फ ईवीएम या कोई चमत्कार ही भाजपा को हार से बचा सकता है। बहरहाल इस बीच कांग्रेस से पिछड़ती जा रही भाजपा एक और नैरेटिव से परेशान है. वह यह कि वह तीसरी बार सत्ता में आने के बाद वह संविधान बदल सकती है. पर, अगर यह धारणा बनी है तो उसके लिए जिम्मेवार खुद भाजपा के नेता भी हैं. चुनाव की सरगर्मियां शुरू होते ही भाजपा के बड़े नेता अनंत हेगड़े ने मोदी के 400 पार के नारे को आधार बना कर संदेश दे दिया कि हमें संविधान बदलने के लिए 400 सीटें चाहिए. हेगड़े के बयान से होने वाले नुकसान को दृष्टिगत रखते हुए भाजपा नेतृत्व ने उन्हें चुनाव के टिकट से महरूम कर संदेश देने की कोशिश किया कि हम संविधान नहीं बदलने जा रहे हैं। किन्तु भाजपा नेतृत्व की इच्छा के विरुद्ध खुद कुछ और नेताओं ने संदेश दे दिया कि भाजपा सत्ता में आने पर संविधान बदल सकती है.
मोदी सरकार फिर सत्ता में आई तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा भाजपा तीसरी बार सत्ता में आने पर संविधान बदल और आरक्षण खत्म कर सकती है, ऐसी आशंका तो दलित बुद्धिजीवी बहुत पहले से जाहिर करते रहे, किन्तु हाल में जिस तरह छोटे-बड़े भाजपा नेताओं की ओर से संविधान बदलने का संकेत हुआ, उससे दलित बुद्धिजीवियों की चिन्ता इतनी बढ़ गई कि वे इसे लेकर सभा-सेमीनार तक आयोजित करना शुरू कर दिए. बहरहाल, तीसरी बार सत्ता मे आने पर भाजपा संविधान बदल सकती है, यह बात इंडिया गठबंधन से जुड़े दल भी उठाने लगेः खासतौर से राहुल गांधी अब इस बात पर और जोर देने लगे हैं कि मोदी सरकार फिर सत्ता में आई तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा और संविधान भी नहीं बचेगा. ऐसे में चुनावी फिजा में संविधान बदलने की बात उठने से चिंतित प्रधानमंत्री अंततः बचाव में उतरे और 12 अप्रैल को राजस्थान के एक चुनावी सभा में कह डाले, ’संविधान के नाम पर झूठ बोलना कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का फैशन बन गया गया है. जहां तक संविधान का सवाल है आज बाबा साहब आंबेडकर खुद आ जाएं तो भी संविधान खत्म नहीं कर सकते. हमारा संविधान सरकार के लिए गीता, रामायण, बाइबल और कुरान है. ’उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने जीते जी बाबा साहब को चुनाव में हराया. जिसनें बाबा साहब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, वो कांग्रेस जिसने देश में आपातकाल लगाकर संविधान को खत्म करने की कोशिश की, आज वो मोदी को गाली देने के लिए संविधान के नाम पर झूठ बोल रही है. ये मोदी है जिसने पहली बार संविधान दिवस मनाना शुरू कियाः जिसने बाबा साहब से जुड़े पंच तीर्थ का विकास किया, इसलिए इनकी गपबाजी से सावधान रहने की जरूरत है.मोदी द्वारा संविधान बदलने पर सफाई दिए जाने के अगले दिन केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरक्षण के खात्मे पर सफाई देते हुए कहा कि वर्षों तक सत्ता की चाशनी चाटने वाले कांग्रेस नेता भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. वे अफवाह फैला रहे हैं कि भाजपा सरकार आरक्षण को खत्म कर सकती है, जबकि भाजपा आरक्षण के समर्थन में है. भाजपा इसे न खत्म करेगी और न किसी को खत्म करने देगी. यह जनता भी जानती है कि पीएम मोदी आरक्षण के सबसे बड़े समर्थक हैं. आरक्षण चाहे दलित का हो या पिछड़े वर्ग का हो, भाजपा आरक्षण का समर्थन करती है. लेकिन मोदी और शाह के तर्कों का कोई असर होता दिख नहीं रहा है. ऐसा में भाजपा समर्थक मीडिया भी मोदी-शाह के सुर में सुर मिलाते संविधान और आरक्षण पर भाजपा के बचाव में उतर आई है. बहरहाल मोदी-शाह और गोदी मीडिया जितना भी बचाव करे, अप्रिय सच्चाई यही है केन्द्रीय सत्ता पर मोदी का उदय भारतीय संविधान के यम के रूप में हुआ है और इस भूमिका में अवतरित होने के लिए वह अभिशप्त रहे.
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का मतलब ऐसा राष्ट्र, जिसमें आंबेडकरी संविधान नहीं
मोदी संविधान के यम के रूप में अवतरित होने के लिए इसलिए अभिशप्त रहे, क्योंकि जिस संघ से प्रशिक्षित होकर वह प्रधानमन्त्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं, उस संघ का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र की स्थापना रहा है, यह राजनीति में रूचि रखने वाला एक बच्चा तक जानता है. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का मतलब एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें आंबेडकरी संविधान नहीं, उन हिन्दू धार्मिक कानूनों द्वारा देश चलेगा, जिसमें शुद्रातिशूद्र अधिकारविहीन नर-पशु एवं हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग (मुख, बाहु और जंघे) से जन्मे लोग शक्ति के समस्त स्रोतो के भोग के दैविक अधिकारी रहे. संग के हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य इसी दैविक अधिकारी वर्ग(सवर्णों) के हाथ में शक्ति के समस्त स्रोत सौंपना और शुद्रातिशूद्रों को उस स्थिति में पहुंचाना रहा है, जिस स्थिति में रहने का निर्देश हिन्दू धर्मशास्त्र देते हैं. संघ के एकनिष्ठ सेवक होने के नाते मोदी संघ के हिन्दू राष्ट्र से अपना ध्यान एक पल के लिए भी नहीं हटाये और 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही अपनी समस्त गतिविधियां इस के निर्माण पर केन्द्रित रखे. सत्ता में आने के बाद मोदी जिस हिन्दू राष्ट्र को आकार देने में निमंग्न हुए, उसके मार्ग में सबसे बड़ी बाधा रहा संविधान! संविधान इसलिए बाधा रहा, क्योंकि यह शुद्रातिशूद्रों को उन सभी पेशे/कर्मों में हिस्सेदारी सुनिश्चित कराता है, जो पेशे/कर्म हिन्दू धर्म-शास्त्रों द्वारा सिर्फ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से उत्पन्न लोगों के लिए आरक्षित रहे. संविधान के रहते सवर्णों का शक्ति के स्रोतों पर वैसा एकाधिकार कभी नहीं हो सकता, जो अधिकार हिन्दू धर्मशास्त्रों में उन्हें दिया गया था. किन्तु संविधान के रहते हुए भी उनका शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार हो सकता है, यदि आरक्षण प्रदान करने वाली समस्त संस्थाओं को निजी क्षेत्र में शिफ्ट करा दिया जाय. इस बात को ध्यान में रखते हुए ही मोदी जिस दिन से सत्ता में आए, उपरी तौर पर संविधान के प्रति अतिशय आदर प्रदर्शित करते हुए भी, लगातार इसे व्यर्थ करने में जुटे रहे.उनके प्रयास से संविधान की उद्देशिका में उल्लिखित तीन न्याय-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-वंचितों के लिए सपना बनकर रह गए. इस बात को ध्यान में रखते हुए वह लाभजनक सरकारी उपक्रमों तक को औने दृ पौने दामों में बेचते हुए निजी क्षेत्र में देने में इस कदर मुस्तैद हुए कि वाजपेयी भी इनके सामने बौने बन गए. सरकारी कम्पनियों को निजी क्षेत्र में देने के लिए हद तक मुस्तैद संविधान को व्यर्थ करने के लिए मोदी तमाम सरकारी कम्पनियां निजी क्षेत्र में देने के लिए जिस हद तक मुस्तैद हुए, उससे खुद भाजपा के आरक्षित वर्गों के सांसद तक खौफजदा होकर दबी जबान में में निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग उठाने लगे हैं. ऐसी हिमाकत 2021 में राजस्थान के सांसद फागन सिंह कुलस्ते ने की थी. बहरहाल खुद वित्त मंत्री सीता रमण ने संसद में उठाये गए एक सवाल के जवाब में दिसंबर, 2021 में बताया था कि ये 36 सरकारी कम्पनियां निजीकरण के लिए चुन ली गयी हैं-ः
1-प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड 2-इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट (इंडिया) लिमिटेड 3- ब्रिज और रूफ कंपनी इंडिया लिमिटेड 4-सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड 5-बीईएमएल लिमिटेड 6-फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड (सब्सिडियरी) 7-नगरनार स्टील प्लांट ऑफ एनएमडीसी लिमिटेड 8-स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया की यूनिट्स (एलॉय स्टील प्लांट, दुर्गापुर स्टील प्लांट, सालेम स्टील प्लांट, भद्रावती स्टील प्लांट) 9-पवन हंस लिमिटेड 10-एयर इंडिया और इसकी 5 सब्सिडियरी कंपनियां 11-एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड 12-इंडियन मेडिसिन्स फार्मास्युटिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड 13-भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड 14-द शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड 15-कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड 16-नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड 17-राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड 18-आईडीबीआई बैंक एडमिनिस्ट्रेटिव मंत्रालयों ने इन कंपनियों के लिए निजीकरण के ट्रांजेक्शन को कर दिया प्रोसेस 19-इंडिया टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपरेशन लिमिटेड की तमाम यूनिट 20-हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड 21-बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड याचिकाओं के चलते रुका हुआ है इन कंपनियों के निजीकरण का ट्रांजेक्शन 22-हिंदुस्तान न्यूज प्रिंट लिमिटेड (सब्सिडियरी) 23-कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड 24-हिंदुस्तान फ्लोरोकार्बन्स लिमिटेड (सब्सिडियरी) 25-स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड 27-हिंदुस्तान प्रीफैब लिमिटेड 28-सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की यूनिट्स इन कंपनियों के निजीकरण का ट्रांजेक्शन हो गया है पूरा 29-हिंदुस्तान पेट्रोलियन कॉरपोरेशन लिमिटेड 30-रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड 31-एचएससीसी (इंडिया) लिमिटेड 32-नेशनल प्रोजेक्ट्स कंसट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड 33-ड्रेजिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड 34-टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड 35-नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड 36-कमरजार पोर्ट लिमिटेड-(स्रोत :नवभारत टाइम्स, 21 दिसंबर, 2021).
मोदी सरकार निजीकरण का सैलाब बहाने पर अमादा
बहरहाल मोदी सरकार निजीकरण का सैलाब बहाने पर इस तरह आमादा है कि 1969 में जिन बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके इंदिरा गांधी ने राष्ट्र की अर्थव्यवस्था सुरक्षित करने के साथ लाखों लोगों को रोजगार का सम्मानजनक अवसर सुलभ कराया, उनका भी निजीकरण करने का मन बना लिया है. इसका संकेत वित्तमंत्री सीता रमण ने 2021 का बजट पेश करने के दौरान दो बैंकों के निजीकरण के एलान के जरिये दे दिया था.वित्त मंत्री की घोषणा के बाद इसके लिए मोदी सरकर को बाकायदे नीति आयोग के तरफ से 15 जुलाई, 2022 को सुझाव भी दे दिया गया, जिसमें कहा गया था कि सरकार स्टेट बैंक को छोड़कर बाकी बैंक बेच दे. ये तथ्य बतलातें हैं कि मोदी सरकार संविधान को पूरी तरह ध्वस्त करने का मन बना चुकी और अगर वह तीसरी बार सत्ता में आती है तो संविधान घोषित तौर पर तो खत्म नहीं होगा, पर उसकी प्रभावकारिता पूरी तरह कर दी जाएगी.इसी तरह आरक्षण भी घोषित तौर पर खत्म न होकर सिर्फ कागजों की शोभा बनाकर रख दिया जाएगा. ऐसे में संविधान तथा आरक्षण बचाने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में आरक्षित वर्गों को मोदी सरकार को रोकने सर्वशक्ति लगानी होगी. भारी राहत की बात है मोदी सरकार को रोकने लिए वजूद में आया इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) जाति जनगणना कराकर ‘जितनी आबादी-उतना हक़’ का नारा बुलंद कर दिया है. इंडिया को नेतृत्व प्रदान कर रही कांग्रेस ने तो अपने घोषणापत्र मे एलान कर दी है कि सत्ता में आने पर आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने के साथ आधी आबादी को 50 प्रतिशत आरक्षण देगी. अगर बहुसंख्य वंचित वर्ग मोदी सरकार को हटाकर इंडिया को सत्ता में लाने कामयाब हो जाता है तब तो उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय संविधान भारत के लोगों को नए सिरे से इसकी उद्देश्यिका में उल्लिखित तीन न्याय-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-सुलभ कराने में समर्थ हो उठेगा! विपरीत इसके अगर हिन्दुत्ववादी मोदी सरकार फिर सत्ता में आती है तो संविधान का जनाजा निकलना तथा आरक्षण का कागजों की शोभा बनना तय सा हो जायेगा.