Justice Yashwant Varma: न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर अगर 15 करोड़ के आसपास मिलने का आरोप है, तो फिर उन पर क्यों कार्रवाई नहीं की जा रही है? सरकार भी न्यायाधीश वर्मा को बचाने में लगी हुई है। क्योंकि आज तक न इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री का न गृहमंत्री का कोई बयान आया।
अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज इंप्रेशन Bihar/Aurangabad: जिस प्रकार से हाई कोर्ट दिल्ली के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास में आग लगी और कई बोरियों में अधजली नोट्स मिलने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जो कई सवाल पैदा करते हैं कि आखिर इतने नोट्स मिली, तो किस खून पसीने की कमाई थी? न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी बंगला के स्टोर रूम में आग तो लगी थी, क्योंकि यशवंत वर्मा ने खुद स्वीकारा है कि उस कमरे से हमारे परिवार को कोई मतलब नहीं था। स्टाफ लोगों के लिए खुला रहता था। उसमें कबाड़ के सामान रखे जाते थे। फिर आग जब 14 मार्च को लगी तो न्यायाधीश साहब के जेनरल सेक्रेटरी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर सूचित किया था, तो किसी पत्रकार ने उसे कवरेज क्यों नहीं बनाया? यह खबर आग की तरह तब फैली, जब टाइम्स आफ इंडिया जैसे अंग्रेजी अखबार ने 21 मार्च को इस पर खबर छापी। उसके बाद ही आग लगने की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे। वायरल तस्वीरें यह बयां कर रही थी कि फायर ब्रिगेड के लोग आग बुझा रहे हैं, जिनमें 500 के नोटों से भरी बोरियां भी जल रही हैं। नोट्स भी जल रहे हैं, जिन्हें बुझाया जा रहा है। फिर फायर ब्रिगेड वाले अपने अधिकारियों को सूचित करते हैं। फिर पुलिस भी पहुंचती है। जबकि पुलिस जवान तो वहां तैनात भी रहते होंगे।वायरल वीडियो में सबकुछ साफ दिख रहा है कि नोट्स जल रही हैं,पर फायर ब्रिगेड वालों ने आखिर नोटों का जिक्र क्यों नहीं किया? यही रहस्यमय है।
एसोसिएशन इलाहाबाद के अनुसार करीब 15 करोड़ से कम नोट्स नहीं दिल्ली से बाहर जब न्यायाधीश यशवंत वर्मा को इसकी सूचना मिलती है, तो ऐसी खबरें सुनकर उनके होश उड़ जाते हैं। वे फ्लाइट से दिल्ली पहुंचते हैं। तब तक उनके घर में लगी आग और अधजली नोट्स की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं। वैसे जब सारे नोट्स आग की चपेट में आ गई थी, तो गिनना मुश्किल था कि आखिर कितनी नोट्स थीं, परंतु अनुमानतः कहा जाता है कि तीन चार बोरियों में वह नोट्स थीं। बार एसोसिएशन इलाहाबाद के अनुसार करीब 15 करोड़ से कम नोट्स नहीं होंगी। जब इस बाबत की सूचना सुप्रीम कोर्ट को मिलती है, तो आनन-फानन में कॉलेजियम की बैठक बुलाई जाती है। जिसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया जाता है कि न्यायाधीश यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया जाए और वही किया जाता है। परंतु सवाल यह उठता है कि जिनके आवास में इतने रुपए मिलने का आरोप हो, उसकी सजा सिर्फ ट्रांसफर कैसे हो सकती है?
पल्ला झाड़ते हुए कहा कि हमारे यहां नोट्स थे ही नहीं
जबकि नोट्स के मिलने पर न्यायाधीश यशवंत वर्मा ने पूरी तरह से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि हमारे यहां नोट्स थे ही नहीं। निश्चित रूप से साजिश के तहत उन नोटों को रखा गया होगा। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि यह बेबुनियाद खबर है। बल्कि उन्होंने यह भी बताया कि जिस कमरे से अधजली नोट्स मिलने की खबरें आ रही है, उस कमरा से मुझे कोई लेना देना नहीं था। उसमें तो स्टाफ या अन्य लोग ही आते जाते थे। अगर यशवंत वर्मा की बातों को सच मान भी मान लिया जाए कि नोट्स मिले ही नहीं, फिर कालेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर का फैसला क्यों लिया? सुप्रीम कोर्ट ने अपने बेवसाइट पर आग की घटना को अपलोड क्यों किया?
आवास में लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज से जांच क्यों नहीं की जा रही
दूसरे, जिस क्षेत्र में न्यायाधीश यशवंत वर्मा का सरकारी आवास था, वह हाई सिक्योरिटी वाला क्षेत्र है। जहां परिंदे भी पर नहीं मार सकते हैं। चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं। अगर यशवंत वर्मा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश थे, तो निश्चित रूप से उनके आवास में भी सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे। फिर सीसीटीवी कैमरे के फुटेज से इसकी जांच क्यों नहीं की जा रही है कि आखिर चार-चार बोरियों के नोट्स लेकर कौन आया था? वह कब आया था? सीसीटीवी कैमरे से यह खंगाला तो जा सकता है। फिर ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? अब उन सारी घटनाओं की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई है। जिसमें तीन राज्यों के वरिष्ठ जजों को रखा गया है। ऐसी स्थिति में कैसे विश्वास कर लिया जाए कि वे जो जज इस मामले की जांच करेंगे, तो उनलोग पक्षपात नहीं करेंगे ?क्योंकि यह विभागीय मामला है। इससे न्याय व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। अगर उनलोग जांच के दौरान जसवंत वर्मा को आरोपी भी बनाते हैं, तो फिर भी न्यायपालिका पर सवाल उठाते रहेंगे। इसीलिए कई बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि जांच टीम के जज निश्चित रूप से लीपा पोती ही करने का प्रयास करेंगे। क्योंकि न्यायपालिका को सवालों के घेरे में आने की बात है। यह कैसे मान लिया जाए कि न्यायपालिका के न्यायाधीश दूध के धुले होते हैं? क्योंकि इन्हीं जजों में कुछ ऐसे जज होते हैं, जो बड़े-बड़े उद्योगपतियों एवं बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी नेताओं एवं अधिकारियों को क्लीन चिट देते रहे हैं। वही सामान्य मुवक्किलों के केसों में सजा सुनाते रहे हैं। फिर ऐसे न्यायाधीशों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि ये लोग दूध के धुले होंगे?
सरकार मामले की जांच के लिए सीबीआई या ईडी को क्यों नहीं कर रही सुपुर्द है?
आखिर न्यायपालिका में निष्पक्षता होती, तो सरकार से संबंधित लोगों को क्यों तुरंत सुनवाई कर दी जाती है। उन्हें क्लीनचिट भी दे दी जाती है, लेकिन जो विपक्षी नेता या अर्बन नक्सल के नाम पर जो वर्षों से जेल में बंद हैं, जिन्हें साजिशन जेलों में रखा गया है, उन्हें यही न्यायाधीश जमानत देने से क्यों कतराते रहे हैं? जिससे साफ जाहिर होता है कि ऐसे जज सरकार के इशारे पर काम करते हैं। फिर ऐसे न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर सवाल उठना तो लाजमी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब इधर पदाधिकारी या नेताओं के घर में एक दो करोड़ रुपए भी पकड़ाते हैं, तो उन पर कार्रवाई की जाती है। फिर न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर अगर 15 करोड़ के आसपास मिलने का आरोप है, तो फिर उन पर क्यों कार्रवाई नहीं की जा रही है? सरकार इस मामले की जांच के लिए सीबीआई या ईडी को क्यों नहीं सुपुर्द कर रही है? जो जाहिर करता है कि निश्चित रूप से सरकार भी न्यायाधीश यसवंत वर्मा को बचाने में लगी हुई है। क्योंकि आज तक न इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री का न गृहमंत्री का कोई बयान आया।