Dev Anand 100th Birth Anniversary : सौ साल के हो गए, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाने वाले देव साहब!

Dev Anand 100th Birth Anniversary : भारत के सर्वकाल के सर्वश्रेष्ठ सम्मोहनकारी व हैंडसम एक्टरों में एक देव साहब (Dev Anand) सौ साल के हो गए. उन्हें दुनिया छोड़े कई साल हो गए हैं, पर वह हमारी यादों में इस तरह रच-बसे हैं कि कभी अतीत का विषय बन ही नहीं सकते, जबतक हम जिंदा हैं, वह साथ रहेंगे.

लेखक : एचएल दुसाध
न्यूज इंप्रेशन

Delhi : आज भारत के सर्वकाल के सर्वश्रेष्ठ सम्मोहनकारी व हैंडसम एक्टरों में एक देव साहब सौ साल (Dev Anand 100th Birth Anniversary)  के हो गए. वैसे तो उन्हें दुनिया छोड़े कई साल हो गए हैं, पर वह हमारी यादों में इस तरह रच-बसे हैं कि कभी अतीत का विषय बन ही नहीं सकते, जबतक हम जिंदा हैं, वह साथ रहेंगे. ऐसे देव साहब की जब भी याद आती है, मुझे 1962 देखी ‘काला पानी’ की सबसे पहले याद आती है. लोग कहते हैं, फर्स्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशनः काला पानी ने वह साबित कर दिया! तब गांव से कोलकाता आए ग्यारह-बारह साल के दुसाध को जीवन में पहली बार जो फिल्म देखने को मिली, वह देव साहब की काला पानी रही. उन दिनों कोलकाता के पार्श्ववर्ती उद्योगिक इलाकों में मिल फैक्ट्रियों, खासतौर से जूट मिल मालिकों की ओर से सप्ताह, दो सप्ताह पर रविवार को खुले मैदान में मुफ्त में फिल्में दिखाई जाती थी और एक साथ जमीन पर बैठकर हजारों लोग एन्जॉय किया करते थे. गाँव छोड़कर कोलकाता आने पर पहली बार मुझे ऑकलैंड जूट मिल के ग्राउंड में फोकटिया बायस्कोप के रूप में ‘काला पानी’ मिली. इसे सुखद संयोग कहा जायेगा कि काला पानी के दो सप्ताह बाद जो दूसरी फोकटिया फिल्म देखने को मिली, वह दिलीप साहब की ‘देवदास’ रही. इन दोनों फिल्मां के जरिये दिलीप और देव साहब मेरे व्यक्तित्व पर चिरस्थायी असर पड़ा. पर, इन दोनों में सबसे पहला असर देव साहब का पड़ा. काला पानी देखने के महीने भर के अन्दर मेरे बालों का अंदाज देव साहब जैसा हो गया जिसे देखकर हम उम्र लड़के रश्क करने लगे. हमारे उम्र वालों में एक रामाधार भाई हुआ करते थे जो मुझसे दो-तीन साल सीनियर थे. उनसे जब भी झगडा होता वह सबसे पहले यही कहते,’ हम मार के तोहार देवानन्द स्टाइल वाला बाल तोड़ देयिब’!

काला पानी के ज़माने से देवानंद का व्यक्तित्व पर असर पड़ा
मित्रों, सिक्सटी- सेवेंटी के डिकेड में कोलकाता के औद्योगिक इलाकों में पले-बढे़ हम जैसों के रोल मॉडल लेखक-पत्रकार नहीं : फिल्म कलाकार होते. हो भी क्यों नहीं, लेखक-पत्रकार हम फिल्मों में ही देखा करते थे, करीब से उन्हें देखने-सुनने का कोई अवसर हमारे जीवन ?में नहीं था. खुद मुझे निकट से एसके विश्वास के रूप में पहला लेखक देखने का अवसर 44 साल की उम्र में मिला. बहरहाल फिल्म कलाकार ही हमारे रोल मॉडल होते इसलिए जब भी हम दो चार हिन्दी भाषी मित्र मिलते, हम एक्टरों की चर्चा में मशगूल हो जाते. हमारा एक्टरों के प्रति अतिशय लगाव देखकर रवि दृबंकिम-शरत के गुनानुरागी बंगाली मित्र हमारा यह कहकर मजाक उड़ाते कि जब भी देखों मेड़ो लोग (हिंदी भाष) सब समय एक्टरों की चर्चा में खोये रहते हैं. बहरहाल काला पानी के ज़माने से देवानंद का मेरे व्यक्तित्व पर असर पड़ा, उससे राजेश खन्ना के उदय के बाद ही मुक्त हो सका. लेकिन राजेश खन्ना के बाद अमिताभ और शाहरुख़ खान का दौर देखने के बाद देव साहब के लिए मेरे दिल में खास जगह बनी रही.

बुढ़ापे में भी चिरयुवा छवि बरकरार रखने में देव साहब आज भी हैं मशगूल
बाद में लेखन में प्रवेश के बाद छह पेज के किसी के लेटर जवाब में सन 2000 में जो मेरी पहली किताबः 674 पृष्ठीय ‘आदि-भारत मुक्तिः हिन्दू साम्राज्यवाद के खिलाफ मूलनिवासियों के संघर्ष की दास्तान’ आई, उसके बारहवें अध्याय‘ प्रचारतंत्र और बहुजन समाज’ में मैंने मनुवाद के विरुद्ध सूर-तुलसी-प्रेमचंद से लगाये अरुण शौरी; तथा महबूब खान-सत्यजित राय दृ गुरु दत्त जैसे महान निर्देशकों से लेकर दिलीप, राज से लगाये अमिताभ जैसो की भूमिका का आंकलन किया था. इस क्रम में आंबेडकरवाद के प्रभाव में आए आपके मित्र दुसाध ने उस किताब के पृष्ठ 454 पर देव साहब के विषय में निम्न पंक्तियाँ लिखा था-ः
‘हर फ़िक्र को धुएं उडाता चला गया’ के दर्शन के विश्वासी देव आनंद से बहुजन समाज के हित में कुछ गंभीर प्रयास की प्रत्याशा करना ही व्यर्थ है. बुढ़ापे में भी अपनी चिरयुवा छवि को बरकरार रखने में देव साहब आज भी मशगूल हैं. किन्तु इनमें भी कुछ खास रहा है, जिससे उनका नाम राज-दिलीप के साथ उच्चारित होता रहा है. अपने नवकेतन बैनर के अपनी युवा छवि के अनुरूप फिल्मे बनाने वाले देव साहब जब अविस्मरनीय ‘गाइड’ के रूप में सामने आए तो उनसे प्रत्याशा थी कि वे लोगों को मनुवाद के विपरीत दिशा में परिचालित करेंगे. किन्तु साधु बड़े गाइड में लोगों के आस्था की जय दिखाकर, उन्होंने एक परम्परागत मनुवादी मष्तिष्क का परिचय दिया है. इतना ही नहीं ‘हरे राम- हरे कृष्ण’ में इस गाइड ने राम और कृष्ण को समझने तथा गीता का उपदेश पढने का उपदेश देकर बहुजन दर्शकों की प्रत्याशा सदा के लिए ख़त्म कर दी है’. 

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