Congress News: सवर्णवादी से बहुजनवादी पार्टी की शक्ल अख्तियार करती कांग्रेस, भाजपा की भांति ही सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में जिस तरह सामाजिक अन्याय की शिकार जातियों के नेताओं को फिट किया जा रहा है।
एचएल दुसाध न्यूज इंप्रेशन Delhi: प्रयागराज के महाकुंभ यात्रा में हो रहे हृदय विदारक हादसों, प्रधानमंत्री मोदी की शर्मसार करने वाली अमेरिका यात्रा तथा हथकड़िया और बेड़ियां पहने अवैध भारतीयों का अमेरिका से निर्वासन जैसी खबरों के मध्य कांग्रेस से संगठन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव भी इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है. भाजपा की भांति ही सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में जिस तरह सामाजिक अन्याय की शिकार जातियों के नेताओं को फिट किया जा रहा है, उससे राजनीतिक विश्लेषक हैरान व परेशान हैं! कुछ दिन पूर्वः 14 फरवरी को संगठन में जो बदलाव किया गया है, उसमें पार्टी की सीनियर लीडरशिप का 70-75 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी, दलित, आदिवासी और अल्प संख्यक समुदायों को दिया गया है. 14 फरवरी को जिन 11 लोगों की नियुक्ति हुई है उसमें चार ओबीसी, दो दलित, एक आदिवासी और एक अल्प संख्यक समुदाय से है : तीन अपर कास्ट के लोग हैं, जिनमें रजनी पाटिल, मीनाक्षी नटराजन और कृष्ण अल्लावरु का नाम है. वंचितों में भूपेश बघेल, गिरिश चोड़नकर, हरीश चौधरी और अजय कुमार लल्लू ओबीसी समाज से जबकि, बीके हरि प्रसाद और के. राजू दलित और सप्तगिरि आदिवासी समाज से हैंः अल्पसंख्यक समुदाय से हैं सैयद नसीर हुसैन. इन ग्यारह में 2 राज्यों के महासचिव, जबकि 9 विभिन्न राज्यों के प्रभारी बने हैं. इस बद्लाव की गाज जिन पर गिरी है वे हैं दीपक बाबरिया, मोहन प्रकाश, भरत सिंह सोलंकी, राजीव शुक्ला, अजय कुमार और देवेन्द्र यादवः इनके अतिरिक्त अन्य कई वरिष्ठ नेताओं की संगठन से छुट्टी हो गई है. इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित समुदाय से आने वाले भक्त चरन दास को ओडिशा का और ओबीसी समुदाय के कम चर्चित चेहरे हर्षवर्द्धन सकपाल को महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष नियुक्त कर चौकाया था!
कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति बहरहाल विस्मयकर होने के बावजूद यह बद्लाव प्रत्याशित था. राहुल गांधी जिस शिद्दत से पिछले साल-डेढ़ साल से संविधान, सामाजिक न्याय, जाति जनगणना, आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने, जितनी आबादी-उतना हक की बात उठा रहे थे, उससे लोगों को लगता रहा कि देर-सवेर पार्टी के सांगठनिक ढाँचे में भी इसका प्रतिबिम्बन हो सकता है, जो देर से ही सही पर, होता दिख रहा है. अब इस बहुचर्चित बदलाव को तमाम रजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के सांगठनिक ढाँचे में सामाजिक न्याय की अभिव्यक्ति के रुप में देख रख रहे हैं. दरअसल जो बदलाव दिख रहा है, उसकी जड़ें फरवरी 2023 में रायपुर में आयोजित कांग्रेस के 85 वें अधिवेशन में निहित हैं. उसी अधिवेशन में कांग्रेस ने अपना सवर्णवादी चेहरा बदलने का उपक्रम चलाया था. लोकसभा चुनाव 2024 की पृष्ठभूमि में 24 से 26 फरवरी तक आयोजित रायपुर अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस ने सामाजिक न्याय का पिटारा खोलकर दुनियां को चौकाया था. उसमें सामाजिक न्याय से जुड़े हुए ऐसे कई क्रांतिकारी प्रस्ताव पास हुए थे, जिनकी प्रत्याशा सामाजिक न्यायवादी दलों तक से नहीं की जा सकती. आज राहुल गांधी अगर सामाजिक न्याय का मुद्दा उठाने में सबको पीछे छोड़ दिए हैं, तो उसकी जमीन रायपुर अधिवेशन में ही तैयार हुई थी. वहाँ सामाजिक न्याय से जुड़े प्रस्तावों का ही विस्तार राहुल गांधी के आज के संबोधनों में दिख रहा है. बहरहाल रायपुर में सामाजिक न्याय से जुड़े जो विविध प्रस्ताव पास हुए थे, उनमें से एक यह था कि कांग्रेस पार्टी ब्लॉक , जिला, राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर वर्किंग कमेटी में 50 प्रतिशत स्थान दलित, आदिवासी , पिछड़े , अल्पसंख्यक समुदाय और महिलाओं के लिये सुनिश्चित करेगी. लोग तभी से उम्मीद करने लगे थे कि कांग्रेस संगठन में जल्द ही दलित बहुजन चेहरों की पर्यप्त झलक दिखनी शुरु हो जायेगी . इस बीच रायपुर से निकले सामाजिक न्याय के प्रस्ताव को राहुल गांधी नई-नई ऊँचाई दिए जा रहे थे, पर संगठन की शक्ल ज्यों की त्यों रही , जिससे लोगों में बेचैनी व निराशा बढ़ती जा रही थी.इस बात का इल्म राहुल गांधी को भी हो चला था. ऐसे में मौका माहौल देखकर उन्होंने संगठन में छोटे – मोटे बद्लाव नहीं, एक क्रांतिकारी परिवर्तन की घोषणा कर दिया, जिसके लिये दिन चुना 30 जनवरीः महात्मा गांधी का शहादत दिवस!
गांधी के शहादत दिवस पर राहुल गांधी ने किया : आंतरिक क्रांति की घोषणा गांधी के शहादत दिवस पर दिल्ली में दलित इंफ्लूएंसरों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि हमने दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों का विश्वास बरकरार रखा होता तो आरएसएस कभी सत्ता में नहीं आ पाता.. इंदिरा जी के समय पूरा भरोसा बरकरार था. दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक सब जानते थे कि इंदिरा जी उनके लिए लड़ेंगी. लेकिन 1990 के बाद विश्वास में कमी आई है. इस वास्तविकता को कांग्रेस को स्वीकार करना पड़ेगा. पिछले 10-15 सालों कांग्रेस ने जिस प्रकार आपके हितों की रक्षा करनी थी, नहीं कर पाई. उन्होंने अपने संबोधन में यह भी याद दिलाया कि मौजूदा ढाँचे में दलित और पिछड़ों की समस्याएं हल नहीं होने वाली हैं. क्योंकि बीजेपी और आरएसएस ने पूरे सिस्टम को नियंत्रण में ले लिया है. दलित और पिछड़े वर्गों के लिए दूसरी आजादी आने वाली है, जिसमें सिर्फ राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए नही लड़ना है, बल्कि संस्थाओं और कार्पोरेट जगत में हिस्सेदारी लेनी होगी. अंत में उन्होंने कहा था कि हम अपनी पार्टी में आंतरिक क्रांति लाएंगे जिससे संगठन में दलित, पिछड़ों और वंचितों को शामिल किया जा सके. राहुल गांधी ने पार्टी में आंतरिक क्रांति लाने की जो घोषणा की थी उसी के परिणामस्वरुप पार्टी संगठन में यह बद्लाव दिखा है. राहुल गांधी की आंतरिक क्रांति की योजना के तहत सिर्फ पार्टी में पहले से शामिल वर्ग के नेताओं को ही संगठन में उचित स्थान नहीं दिया जा रहा है, बल्कि दलित ,आदिवासी , पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय की प्रतिभाओं को पार्टी में शामिल भी किया जा रहा है, जिसका बड़ा दृष्टांत 28 जनवरी को स्थापित हुआ. उस दिन कांग्रेस के साथ जुड़ीं थीं डॉ जगदीश प्रसाद, फ्रैंक हुजूर, अली अनवर, निशांत आनंद, भगीरथ मांझी जैसी विशिष्ट प्रतिभाएं! इनके कांग्रेस से जुड़ने से देश के वंचितों के बीच बड़ा सन्देश गया, जो जाना ही था.
कांग्रेस से जुड़ती विरल बहुजन प्रतिभाएं अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर न्याययोद्धा राहुल गांधी के साथ जाने का निर्णय लेने वाले पद्मश्री डॉक्टर जगदीश प्रसाद को आजाद भारत में पहला दलित स्वास्थ्य महानिदेशक बनने का गौरव प्राप्त है. डॉक्टर प्रसाद की छवि गरीब-वंचितों के मसीहा की रही है. व्यक्तिगत तौर बिहार के जितने लोग चिकित्सा के जरिए डॉक्टर साहेब से उपकृत हुए हैं, वह एक रिकॉर्ड है. लेकिन डॉक्टरी पेशे में रहने के बावजूद उन में सामाजिक अन्याय के खिलाफ जबरदस्त आग रही है. शायद इसलिए ही वह वर्तमान भारत में सामाजिक न्याय की सबसे बुलंद आवाज राहुल गांधी के साथ जुड़ने का मन बना लिए. कांग्रेस को गर्व होना चाहिए कि उसे डॉ. प्रसाद के रूप में देश के एक विरल रत्न का साथ मिला है. उनके कांग्रेस ज्वाइन करने से बिहार के दलित-वंचितों में भारी उत्साह का संचार हुआ है. डॉ. प्रसाद की भांति ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक फ्रैंक हुजूर का जुड़ना कांग्रेस के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. इमरान खान की जीवनी लिखकर दुनिया भर में चर्चित होने वाले फ्रैंक हुज़ूर की जगह कोई और लेखक होता तो वह न्यूयार्क या लन्दन में बैठकर करियर बनाने की राह चुनता. उनमें इतना दम है कि विदेशों में रह कर वह कलम की जोर से करोड़ों कमा सकते थे. लेकिन विदेशों में रहकर करोड़ों में खेलने का लोभ विसर्जित फ्रैंक ने भारत को इसलिए चुना क्योंकि उन्हें पता है दुनिया के सर्वाधिक वंचितों की लड़ाई भारत में ही रहकर लड़ी जा सकती है. समाजवाद और सामाजिक न्याय को ओढ़ने और विछौना बनाने तथा लम्बे समय से सोशलिस्ट फैक्टर जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का संपादन करने वाले फ्रैंक हुज़ूर न सिर्फ आला दर्जे के लेखक-पत्रकार हैं, बल्कि उतने ही अच्छे ओरेटर भी हैं, जिसका कांग्रेस को बड़ा मिलना तय हैं! 28 जनवरी को डॉ. जगदीश प्रसाद और फ्रैंक हुजूर के साथ कांग्रेस में शामिल होने वाले अली अनवर के विषय में कुछ कहना समय और शब्दों की बर्बादी है. पत्रकार से एकाधिक बार राज्य सभा का सफर तय करने वाले अली अनवर ने पसमांदा की राजनीति को जिस तरह परिभाषित किया है, उससे राजनेताओं की भीड़ में उनकी अलग पहचान बन चुकी है, जिससे रजनीति में न्यूनतम रुचि रखने वाला भी वाकिफ है. अली अनवर और डॉक्टर जगदीश प्रसाद की भांति ही बिहार से आने वाले भगीरथ मांझी के कांग्रेस से जुड़ने से राहुल गांधी की सामाजिक न्यायवादी के रुप में स्थापित होती छवि को बड़ा सहारा मिलेगा. भगीरथ मांझी मुसहर समाज में जन्मे उस पर्वत पुरुष दशरथ मंझी की संतान हैं, जिन पर पूरे बिहार के गर्व का अंत नहीं है! लेकिन राहुल गांधी की ‘आंतरिक क्रांति’ की योजना के तहत दलित दृ पिछड़े समाज के जिन लोगों को कांग्रेस से जोड़ा गया है, उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम है डॉक्टर अनिल जयहिंद यादव का!
राहुल गांधी के मिशन मैन : डॉ. अनिल जयहिंद
राहुल गांधी के मिशन मैन के रुप में राजनीतिक विश्लेषकों और एक्टिविस्टों के मध्य पहचान बनाने वाले डॉ. अनिल जयहिंद यादव नेताजी के करीबी रहे एक फौजी ऑफिसर की ऐसी काबिल संतान हैं, जो वर्षों पहले डॉक्टरी पेशे को छोड़कर सामाजिक न्याय की लड़ाई में कूद गए और मंडल मसीहा बीपी मंडल और शरद यदव जैसे लोगों की निकटता जय करने में सफल रहे. शरद यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानने वाले डॉ. जयहिंद कई ऐतिहासिक महत्व की किताबों का लेखन- अनुवाद करने के साथ सामाजिक न्याय की लड़ाई में लगातार सक्रिय रहे और जब मोदी दृ राज में संविधान पर संकट आया, वह ‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले संविधान की रक्षा में मुस्तैद हो गए. बाद में जब उन्होंने राहुल गांधी में सामाजिक न्याय के प्रति अभूतपूर्व समर्पण और संविधान बचाने का संकल्प देखा, वह उनके साथ हो लिए. सांसद-विधायक बनने की महत्वाकांक्षा से पूरी तरह निर्लिप्त रहने वाले डॉ. जयहिंद ने परदे के पीछे रहकर कांग्रेस के लिए काम करने का मन बनाया. राहुल गांधी ने अगर भारत जोड़ों यात्रा और भारत जोड़ों न्याय यात्रा के जरिए लाखों लोगों से संवाद बनाया तो उनके सामाजिक अन्याय के शिकार तबकों के लेखक-पत्रकार और एक्टिविस्टों से निकटता बनाने का जरिया बने संविधान सम्मेलनों के शिल्पकार डॉ. अनिल जयहिंद. उनके संयोजकत्व में पंचकुला, लखनऊ, इलाहाबाद, नागपुर, रांची, कोल्हापुर,पटना, दिल्ली इत्यादि में आयोजित संविधान केंद्रित सम्मेलनों ने वंचित वर्गों के इनफ्लुएंसरों को कांग्रेस से जुड़ने में चमत्कार ही घटित कर दिया. सूत्रों के मुताबिक राजेन्द्र पाल गौतम, अशोक भारती, डॉ. जगदीश प्रसाद, फ्रैंक हुजूर, अली अनवर, प्रो. रतनलाल इत्यादि जैसे भारत विख्यात प्रतिभाओं को कांग्रेस से जोड़ने में अहम रोल डॉ. जयहिंद का ही है. उम्मीद की जा सकती है कि कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद वह राहुल गांधी की आंतरिक क्रांति को अंजाम तक पहुँचाने में और बडी़ भूमिका ग्रहण करेंगे! (लेखक बहुजन डायवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं )