Congress Manifesto: सामाजिक न्याय पर अपना घोषणा पत्र केंद्रित करें : इंडिया गठबंधन!

Congress Manifesto: जिस तरह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 5 अप्रैल को जारी कांग्रेस का घोषणा पत्र का सृष्टि किया है, उससे नए सिरे से लोगों में इसे लेकर आकर्षण पनपा है।

लेखकः एचएल दुसाध

(बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष)

Delhi : चुनावी मौसम में पार्टियों की ओर से घोषणा पत्र जारी होना आम बात है पर, लोगों का इसके प्रति अब कोई आकर्षण नहीं रहा। किन्तु, जिस तरह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 5 अप्रैल को जारी कांग्रेस का घोषणा पत्र का सृष्टि किया है, उससे नए सिरे से लोगों में इसे लेकर आकर्षण पनपा है। पाँच न्याय, 25 गारंटियों और तीन शताधिक वादों से युक्त कांग्रेस के घोषणा पत्र को तमाम राजनीतिक विश्लेषको ने एक स्वर में क्रांतिकारी करार दिया है। कोई इसे ‘लोगों की तकदीर बदलने वाला घोषणा पत्र’ कह रहा तो कोई इसे ‘क्रांतिकारी दस्तावेज’ बता रहा है। कुछ ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि ऐसा घोषणा पत्र आजतक नहीं आया! कइयों का तो कहना है कि आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने की बात कर, कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र के जरिए भाजपा की ताबूत में आखिरी कील ठोक दिया है। बहरहाल आर्थिक- राजनीतिक मामलों के जानकार अगर कांग्रेस के घोषणा पत्र को क्रांतिकारी दस्तावेज करार दे रहे हैं तो गलत नहीं कर रहे हैं। कारण, 30 लाख सरकारी पदों पर तत्काल स्थायी नियुक्ति तथा हर ग्रेजुएट और डिप्लोमाधारी को प्रशिक्षुता कार्यक्रम के तहत एक लाख रुपये प्रतिवर्ष की गारंटी; न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले के तहत कानूनी दर्ज़ा देने तथा किसानों के ऋण माफ़ करने; न्यूनतम वेतन 400 रुपये प्रति दिन सुनिश्चित करने के साथ आधी आबादी को सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण और बीपीएल परिवार की महिला को साल में एक लाख अर्थात प्रति माह 8333 रुपये देने जैसी गारंटियों ने इसे सचमुच में क्रातिकारी स्वरूप प्रदान कर दिया है। विशेषकर भागीदारी न्याय के तहत आरक्षण की निर्दिष्ट 50 प्रतिशत की सीमा खत्म करने तथा जितनी आबादी-उतना हक की गारंटी ने सदियों के सामाजिक-आर्थिक अन्याय के शिकार तबकों में इसे लेकर अभूतपूर्व उन्माद पैदा कर दिया है। ऐसे में अब बहुसंख्य वंचित आबादी भारी कौतूहल के साथ भाजपा के संकल्प-पत्र की प्रतीक्षा करने लगी है कि वह क्या गारंटी देती है। बहरहाल इस बीच कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी होने के एक दिन आगे-पीछे वंचितों के प्रबल हिमायती के रूप में जाने जानेवाले वाम दलों का भी घोषणा पत्र जारी हो गया है, जिस पर उतनी चर्चा नहीं हो रही है, जितनी होनी चाहिए।

इंडिया ब्लॉक में काफी एकरूपता
कांग्रेस के साथ ही इंडिया गठबंधन में शामिल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का घोषणापत्र क्रमशः 4 और 6 अप्रैल को जारी हुआ। इनके घोषणा पत्रों में जो उद्घोष हुआ है, उससे एक बात स्पष्ट हो गई कि चुनावी मुद्दे उठाने में इंडिया ब्लॉक में काफी एकरूपता है। इंडिया गठबंधन के सभी दल भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य और संवैधानिक ताने-बाने को अक्षत रखने का अबतक जो उद्घोष करते रहे हैं, उसका प्रतिबिंबन कांग्रेस के बाद दोनों वामदलों के घोषणा पत्रों में हुआ है। लोकसभा चुनाव 2024 भारतीय गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक चरित्र को अत्यधिक असहिष्णु, घृणा और हिंसा आधारित सत्तावादी और फासीवादी हिंदुत्व राष्ट्र में बदलने के भाजपा के प्रयास के खिलाफ, भारत को बचाने के बारे में है, यह बात दोनों के घोषणा पत्र उभरी है। दोनों वाम दलों ने लोगों की गंभीर रूप में बिगड़ती जीवन स्थितियों को देखते हुए क्रोनी पूंजीवाद और सांप्रदायिक-कारपोरेट गठजोड़ की वर्तमान नीति और दिशा को उलटने की प्रतिबद्धता अपने घोषणापत्रों में जाहिर की है। चुनाव देश और उसके भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और (प्रधानमंत्री नरेन्द्र) मोदी का शासन देश के लिए विनाशकारी रहा है; संविधान पर हमला हो रहा है; आरएसएस की राजनीतिक सेना होने के नाते भाजपा संविधान को बदलने की कोशिश कर रही हैः ऐसा दोनों वाम दलों ने माना है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों को संसद के दायरे में लाने की बात दोनों ने कही है। दोनों ने ही सीएए को हटाने का वादा किया है। दोनों ने ही अमीरों पर अधिक कर लगाने की बात शिद्दत से अपने घोषणा पत्रों में उठाया है। दोनों ने ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार कानूनी गारंटी के माध्यम से किसानों के हितों को सुनिश्चित करने की बात अपने घोषणा पत्र में डाली है। दोनों ने ही मनरेगा और शिक्षा के बजटीय आवंटन में प्रायः दो गुणा वृद्धि करने की बात कही है। किन्तु दोनों ही वाम दलों के घोषणा पत्रों में जो बात सबसे सुखद आश्चर्य में डालती है, वह है सामाजिक न्याय के प्रति इनकी प्रतिबद्धता! इस मामले में भी दोनों दलों में कांग्रेस से भारी साम्यता नजर आती है।

देश के में कांग्रेस का कम से कम 90 प्रतिशत योगदान
इसमें कोई शक नहीं कि देश के नव निर्माण में कांग्रेस का कम से कम 90 प्रतिशत योगदान रहा है। कांग्रेस ने ही देश मे असंख्य सरकारी उपक्रम, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, अनुसंधान केंद्र खड़े किए। कांग्रेस के ही राज में परमाणु परीक्षण सहित देश ने सामरिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की। कांग्रेस के शासन में ही रियासतों के भारत में विलय के साथ, उनके प्रीवी पर्स का खात्मा होने के सहित बैंकां, खदानों, बीमा इत्यादि का राष्ट्रीयकरण हुआ। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि बाबा साहब डॉ. अंबेडकर के प्रयासों से मिले जिस आरक्षण से दलित-आदिवासी जैसे अधिकारविहीन तबके राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने लगे, उस आरक्षण को लागू करने मे प्रायः सम्पूर्ण योगदान कांग्रेस का रहा। इस आरक्षण के फलस्वरूप दलित-आदिवासियों में से भूरि-भूरि लोग डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, सांसद-विधायक बनकर दुनिया को विस्मित करने लगे। किन्तु जिस कांग्रेस ने आरक्षण के मोर्चे पर स्वर्णिम अध्याय रचा, वह कांग्रेस जब 7 अगस्त, 1990 को मण्डल रिपोर्ट के जरिए आरक्षण को विस्तार मिलाः उस पर सम्यक निर्णय लेने में चूक गई। इसके बाद जिस तरह काका कालेलकर आयोग की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डालने वाली कांग्रेस के राजीव गांधी संसद में पानी पी-पी कर मण्डल आयोग की संस्तुतियों के खिलाफ बोले, उससे कांग्रेस की छवि आरक्षित वर्गों के लिए सामाजिक न्याय विरोधी दल की हो गई। हालांकि सोनिया एरा मे डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व में सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक काम हुआ, बावजूद इसके उसकी सामाजिक न्याय विरोधी छवि में कोई खास फर्क नहीं आया। लंबे समय तक आरक्षित वर्गों की उपेक्षा झेलने के बाद कांग्रेस ने देर से ही सही, सामाजिक न्याय के खुली हिमायत की जरूरत महसूस किया और 24-26 फरवरी, 2023 तक रायपुर में अनुष्ठित अपने 85 वें अधिवेशन में सामाजिक न्याय का पिटारा खोल दिया। रायपुर अधिवेशन के बाद कर्नाटक और तेलंगाना की विजय ने उसे सामाजिक न्याय की अहमियत का नए सिरे से एहसास कराया। उसी का बड़े पैमाने पर प्रतिबिंबन अब न्याय पत्र के नाम से उसके घोषणा पत्र में हुआ है। आज सामाजिक न्याय केंद्रित उस घोषणा पत्र के चलते ही कांग्रेस 2024 के चुनावी रेस में दुनिया की सबसे विशाल व शक्तिशाली पार्टी भाजपा को पीछे छोड़ती नजर आ रही है।

2024 का चुनाव सामाजिक न्याय पर केंद्रित हो सकता है
जिस तरह आरक्षण के मोर्चे पर ऐतिहासिक काम करने के बावजूद मण्डल के बाद सम्यक निर्णय न ले पाने के कारण कांग्रेस की छवि सामाजिक न्याय विरोधी दल की बनी, कुछ वैसा ही दुर्योग वाम दलों के साथ हुआ। शोषित-वंचितों की लड़ाई में सबसे अग्रिम पंक्ति में रहने और दलित वंचितों के लिए सबसे अधिक प्राण हानि का सामना करने वाम दल भी आरक्षण के विस्तार का खुलकर समर्थन न कर पाने के कारण धीरे-धीरे हाशिये पर पहुंच गए, खासकर हिन्दी पट्टी में, जहां मण्डल के बाद दलित-पिछड़ों के हकों की बात करने वाले दल ताकतवर बनकर उभरे। यही नहीं वें आरक्षण की लड़ाई को जातिवाद बताकर आरक्षित वर्गों आहत करते रहे। वे समझ नहीं पाए कि आरक्षित वर्गों की आकांक्षा अब सिर्फ नौकरियों तक सीमित न रहकर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी इत्यादि अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में संख्यानुपात में आरक्षण तक प्रसारित हो गई है। लगता है कांग्रेस की तरह वाम दलों ने अब जाकर इसकी उपलब्धि की है, जिसका प्रतिबिंबन इस बार के उनके घोषणा पत्रों में दिख रहा है। बहरहाल सामाजिक न्याय से दूरी बनाने के लिए बदनाम कांग्रेस और वाम दल जिस तरह निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने सहित अपने घोषणा पत्रों में आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने के साथ जितनी आबादी उतना हक की पॉलिसी लागू करने की मंशा जाहिर किए हैं, उससे 2024 का चुनाव उस सामाजिक न्याय पर केंद्रित हो सकता है, जिस पर हार वरण करने के लिए भाजपा बराबर अभिशप्त रही है। ऐसे में यदि इंडिया गठबंधन से जुड़े दल भाजपा को शिकस्त देना चाहते हैं तो वे अपने घोषणा पत्रों को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करें। इस मामले मे सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत राजद और सपा जैसी सामाजिक न्यायवादी दलों को है।

तेजस्वी का सारा जोर नौकरी पर केंद्रित

बिहार में तेजस्वी यादव चुनावों में भारी भीड़ खींच रहे हैं, पर, उनका सारा जोर नौकरी पर केंद्रित है। वह राहुल गांधी की तरह जोर गले से आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा खत्म करने या जितनी आबादी- उतना हक लागू करने की बात नहीं करते। इसी कारण बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में उनकी नैया किनारे जाकर डूब गई थी। ऐसा लगता है तेजस्वी आरक्षण विरोधी जातियों का वोट पाने के लिए जितनी आबादी उतना हक की बात नहीं करते। इससे अलग स्थिति सपा के अखिलेश यादव की भी नहीं है। वह पीडीए पीडीए जरूर रटते हैं पर, पीडीए की आकांक्षा क्या है, उसे कहां-कहां हिस्सेदारी मिलनी चाहिए, वह जाहिर नहीं करते। ऐसा लगता है तेजस्वी की तरह वह भी सुरक्षित खेल खेलते हुए आरक्षण विरोधी जातियों का वोट पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। बहरहाल इंडिया गठबंधन में शामिल तेजस्वी-अखिलेश यादव इत्यादि जैसे नेता अगर आरक्षण विरोधी जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के वोटों पर नजर गड़ाए हुए हैं तो इस बात को गांठ बाधकर रख लें कि इसी वर्ग के हित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विनिवेश नीति को हथियार बनाकर सरकारी उपक्रमों और परिसंपतियों को निजी हाथों में बेचा है; इसी वर्ग के हित में संविधान को व्यर्थ करने के साथ आरक्षण को कागजों की शोभा बनाया है; इसी वर्ग के हित में संविधान का मखौल उड़ाते हुए आनन-फानन में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करने के साथ जिस तरह लैटरल इंट्री के जरिए इस वर्ग के अपात्रों को आईएएस जैसे उच्च पदों पर बिठाया, उससे तय है कि आगामी 25 वर्षों तक यह वर्ग भाजपा को छोड़कर किसी भी अन्य दल को वोट नहीं देने जा रहा है। ऐसे में इंडिया मे शामिल दल भाजपा से राष्ट्र को निजात दिलाना चाहते हैं तो चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करने मे कांग्रेस और वाम दलों से होड़ लगाएं!

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