CJI Attack: सुप्रीम कोर्ट का जूता कांड
CJI Attack: सुप्रीम कोर्ट का जूता कांड
CJI Attack: राकेश दलाल ने चीफ जस्टिस पर जूता फेंककर यह संदेश दिया है कि दलित चाहे कितना भी बड़ा पद पर क्यों नहीं रहे, सनातन धर्म के अनुसार वह नीच ही है। वह समाज में सम्मान पाने लायक नहीं है।
अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar: सुप्रीम कोर्ट में जिस तरह से एक सिरफिरे वकील राकेश दलाल ने चीफ जस्टिस बीआर गवई साहब पर जूता फेंकने की कोशिश की और भरी भीड़ के बीच नारा लगाया कि सनातन धर्म का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान, इसे मामूली रूप में नहीं देखना चाहिए। राकेश कोई बच्चा नहीं था कि उसे समझ में नहीं आया होगा, वह युवा भी नहीं था कि उसके अंदर का लहू उफ़ान मार रहा था। वह सतर पार उम्र का वृद्ध था। पन्द्रह वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहा था। उसे सबकुछ जानकारी थी। बाद में दिए गए एक इंटरव्यू में राकेश ने बताया कि हमने कुछ भी नहीं किया, जो भी किया उसमें दैवीय शक्ति का हाथ है। उसने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस बयान से मैं काफी आहत था कि देश कानून से चलता, बुल्डोजर से नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि यूपी में जिस प्रकार से सरकार घरों पर बुल्डोजर चलवा दे रही है, गवई साहब अगर उसकी तारीफ़ कर देते, तो अच्छे रहते? पर राकेश जैसे सिरफिरों से यह पूछा जाना चाहिए कि तुम्हारे बाबा के बुल्डोजर कुछ खास जाति और समुदायों के घरों पर ही क्यों चलते हैं। बाबा के स्वजाति पर क्यों नहीं चलते? दलितों को खुलयाम पीट पीटकर जान मार देनेवालों पर क्यों नहीं चलते? यहां के दलित जाति के लोगों चुनाव के पहले तक ही हिन्दू क्यों माना जाता है। क्या तुम्हारा यही सनातन धर्म है? किस सनातन धर्म के अपमान की बातें करते हो? जिसमें हिन्दू हिन्दू में ही गैर बराबरी है?
पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया, पर कुछ ही घंटे बाद छोड़ भी दिया
कहा जाता है कि राकेश दलाल खजुराहो में एक विष्णु की खंडित मूर्ति के पुनर्निर्माण करवाने को लेकर एक याचिका दायर किया था, जिसपर चीफ जस्टिस ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि उसको देखरेख की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की है। और जब आपके विष्णु खुद सर्वशक्तिमान हैं तो क्यों नहीं बना लेते हैं। इसपर भी भाजपा सहित हिन्दू संगठन के लोगों ने चीफ जस्टिस को टोल करते हुए भद्दी भद्दी टिप्पणियां की थी। वैसे सिरफिरे लोगों को आस्था पर ठेस जैसी लगी थी। दूसरा मामला यह हुआ कि आरएसएस के सौ साल पूरे होने पर आरएसएस वालों ने बिना सहमति के ही या फिर अंधकार में रखकर चीफ जस्टिस की मां को मुख्य अतिथि बना दिया था। और सोशल मीडिया से लेकर सभी टीवी चैनलों पर प्रचारित किया था कि चीफ जस्टिस की मां कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगी। जबकि गवई साहब का पूरा परिवार प्रारंभ से ही अंबेडकरवादी रहा है।यह भी एक साज़िश के तहत ही ऐसा किया गया था।जब चीफ जस्टिस की मां नहीं गयी थी, तो वैसे सिरफिरे लोगों के मुंह में कालिख लग गया था। इस अपमान को लोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। राकेश दलाल ने चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने जैसा कुकृत्य इसी साज़िश के तहत किया था। वकील यह समझता था कि सरकार हमारी है। इसलिए मुझे कुछ नहीं होगा। हुआ भी वही। पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया। पर कुछ ही घंटे बाद छोड़ भी दिया। चीफ जस्टिस के समर्थक यह कहते हैं कि चीफ जस्टिस को राकेश दलाल पर एफआईआर करवाना चाहिए था। एफआईआर तो करवाते, तो क्या उस धारा पर उसको फांसी या उम्रकैद की सजा हो जाती? वह जेल जाता भी, तो बेल पर छूट ही जाता।
संविधान की धज्जियां ऐसे लोग ही उड़ाते रहे हैं
समझने वाली बात यह है कि राकेश दलाल ने चीफ जस्टिस पर जूता फेंककर यह संदेश दिया है कि दलित चाहे कितना भी बड़ा पद पर क्यों नहीं रहे, सनातन धर्म के अनुसार वह नीच ही है। वह समाज में सम्मान पाने लायक नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति होने के बावजूद पुरी के जगन्नाथ मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए मूर्ति के पास नहीं जाने दिया गया था। इसलिए कि वे दलित थे। क्या हो गया था? वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को कितना अपमानित किया फिर भी अपमान सहती हुई राष्ट्रपति बनी हुई है। यही है यहां की मनुवादी व्यवस्था, जिसे मनुवादी बरकरार रखना चाहते हैं। वैसे लोगों को संविधान और लोकतंत्र से कोई मतलब नहीं है। सबसे अधिक संविधान की धज्जियां ऐसे लोग ही उड़ाते रहे हैं। इस कटु सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि बड़े पदों पर जब सवर्ण बैठे होते हैं। उनके क्रिया कलापों की दलित पिछड़े आलोचना भले कर देंगे, परन्तु असंवैधानिक कार्रवाई नहीं करेंगे, वहीं यहां के मनुवाद के पोषक जूते फेंकने, खुलयाम गालियां देने, टोल करने, ईंट पत्थर बरसाने, हत्या करने तक से बाज नहीं आते। क्योंकि उन्हें पता है कि हमारे लोग नीचे से ऊपर तक हर जगह भरे हुए हैं, इसलिए हमें कुछ नहीं होगा। बिहार के मुजफ्फरपुर में में एक कुख्यात सवर्ण अपराधी छोटन शुक्ला की हत्या हो गई थी। उस सड़क से दलित जिलाधिकारी जी कृष्णैया अपनी कार से जा रहे थे, जो दूसरे जिला के जिलाधिकारी थे, फिर भी उनको पीट पीटकर हत्या कर दी थी। इसलिए वे दलित थे।जिसमें जिसको सज़ा हुई थी,वह आज जेल से बेल पर है।यही है मनुवादी मानसिकता। इसलिए चीफ जस्टिस पर जूता फेंकने वाला हो या अनाप-शनाप बकने वाले, सभी जानते हैं कि इस सरकार में हमलोगों को कुछ भी बाल बांका होने वाला नहीं है।बाल बांका होगा भी तो कैसे? जहां सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर जूता फेंका गया और देश के प्रधानमंत्री,गृह मंत्री और कानून मंत्री की खामोशी यह दर्शाता है यह तो आम बात है। जो भी हुआ,पर इस घटना ने इतना तो संकेत छोड़ ही दिया है कि जब इस सरकार में देश के सबसे बड़े न्यायालय के चीफ जस्टिस सुरक्षित नहीं हैं, तो आम जनता क्या ख़ाक सुरक्षित रहेगी?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)