Lucknow News: और कितना सहोगे ?

Lucknow News: मनुवादियों ने अनुसूचित जातियों को चेतावनी दी है, तुम चाहे भारत के मुख्य न्यायाधीश हो, पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी, वरिष्ठ IAS officer हो, हम जब चाहेंगे तुम्हें ठोंक देंगे।

 

गौतम राणे सागर

न्यूज इंप्रेशन 

 Lucknow: मनुवादियों ने अनुसूचित जातियों को चेतावनी दी है, तुम चाहे भारत के मुख्य न्यायाधीश हो, पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी, वरिष्ठ IAS officer हो, हम जब चाहेंगे तुम्हें ठोंक देंगे। बी आर गवई जैसे उच्चतम न्यायालय में बैठे मुख्य न्यायाधीश हो, तुम्हें चाहे लोग “मी लॉर्ड” कहते हो बावजूद इसके तुम आज भी मेरी दृष्टि में अछूत ही हो, चूहड़े हो। मेरी दृष्टि में तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ अपमान के ही पात्र हो। सनातन हमें यही शिक्षा देता है। मनु स्मृति: हमें यही सिखाती है कि वाई पूरन कुमार होगे तुम वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, फ़ोर्स तुम्हारे कहने पर किसी भी दुर्दांत अपराधी को मुठभेड़ में मार गिराती हो। तब भी हम सिस्टम के जरिए तुम्हारी हत्या कर देंगे,तुम हमारा कुछ भी नही बिगाड़ सकते। पब्लिक यही समझेगी कि तुमने आत्महत्या की है। अबोध पब्लिक यह भांप ही नही पायेगी कि सनातन धर्म और हिंदू राष्ट्र में किस तरह से इन चूहड़ो को ठिकाने लगाने की तरकीबें मौजूद हैं। चाहे जितना दम लगा लो, संविधान की रात दिन दुहाई देते रहे जब तक लोकतंत्र के चारों स्तंभों पर हमारा वर्चस्व है हमें कोई छू भी नही सकता। मेरे द्वारा किए गए अपराधों की सज़ा देना नामुमकिन है।

ग़लतफहमी में जीने लगते हैं कि हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता

यह तभी संभव हो पा रहा है जब हम ऊंचे ओहदे पर पहुंच कर समाज का हिस्सा होने से इन्कार कर देते हैं। एक ग़लतफहमी में जीने लगते हैं कि हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता। समाज के सामान्य लोगों को तुच्छ समझकर उनसे सम्बन्ध तोड़ देते हैं। यह भूल जाते हैं कि पेड़ से टूट कर गिरे पत्ते का अपना कोई वजूद नही होता। अंगूर जब गुच्छे से टूटकर अलग हो जाते है तब उनकी क़ीमत गिर जाती है। ग्राहक उन अंगूरों को खरीदना भी नहीं पसन्द करते हैं। जिस देश की पहचान ही जातियां हैं वहां जातियों की अनदेखी करना विपत्ति को आमंत्रण देना है। बहुजन समाज को उनके अधिकारों से परिचित कराने की जो मुहिम चल रही थी किन्ही कारणों से उस पर ब्रेक लग गया है। यही ब्रेक हमारे उत्पीड़न की आधारशिला बन गई है। सामाजिक न्याय की माँग उठाने वाले उदारवादी समाजवादी मनुवादियों से भी अधिक खतरनाक हैं, सावधान रहने की जरूरत है। हमारी मुहिम सड़ी हुई प्रचलित सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन करना है। सड़ी हुई प्रचलित सामाजिक व्यवस्था से न्याय मांगने का अभिप्राय तो यही है कि उसमें निर्धारित सामाजिक मापदंडों को ही लागू किया जाए। थोड़ी सी उदारता के बाद ऊंच नीच की भावना बरक़रार रहे।

सनातन और सामाजिक न्याय की माँग एक सिक्के के दो पहलू 

सनातन और सामाजिक न्याय की माँग एक सिक्के के दो पहलू हैं। सामाजिक परिवर्तन मार्ग में यह दोनों बड़े रोड़े हैं। हम अंबेडकरवादी सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति के मंतव्य से आगे बढ़ रहे हैं। जिस काम को ज्योतिबा फूले, छत्रपति साहूजी महाराज, बाबा साहब डॉक्टर अम्बेडकर और कांशी राम साहब ने आगे बढ़ाया था, अब ब्रेक लग चुका है। फ़िर से सामाजिक परिवर्तन एक्सप्रेस को पटरी पर लाकर लक्ष्य तक पहुंचना है। मुहिम की शुरुआत हो चुकी है।

(राष्ट्रीय संयोजक, संविधान संरक्षण मंच)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *