BJP Politics: जब 2024 के लोकसभा के सीट बंटवारे में 17 सीटों में सम्राट चौधरी एक भी सीट अपनी जाति को दिलाने में सफल नहीं हो सके, तो देखते ही देखते सब कुछ पलट गया। जो कल तक अपनी जाति का दवंग नेता करार दे रहा था, वे ही गालियां देने लगे हैं कि BJP में उसकी हैसियत का अंदाजा लग गया।
अलखदेव प्रसाद ’अचल’ न्यूज इंप्रेशन Bihar: भाजपा नेता सम्राट चौधरी जिस तरह से भाजपा में आए और देखते ही देखते फायर ब्रांड नेता के रूप में उभरे। परिणामस्वरूप उन्हें भाजपा ने उन्हें तरजीह देना शुरू किया और भाजपा बिहार के अध्यक्ष का कमान दे दिया। फिर उन्हें उपमुख्यमंत्री जैसे ओहदे पर भी बैठा दिया। भाजपा ने ऐसा सब्जबाग दिखाना शुरू किया कि 2025 के विधानसभा चुनाव के बाद सम्राट चौधरी को ही मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। भाजपा के नेताओं ने भी सम्राट चौधरी को बिहार के भावी मुख्यमंत्री के रुप में प्रस्तुत करना शुरू किया। कुछ भाजपाइयों ने तो सम्राट चौधरी को बिहार का योगी ही मानने लगे थे। कहना भी शुरू किया था कि आया आया शेर आया, बिहार का जोगी आया। लोगों को यह भी लगने लगा था कि अगर बिहार 2025 विधानसभा चुनाव में अगर बिहार में भाजपा की सरकार बनी तो निश्चित रूप से सम्राट चौधरी बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो जाएंगे। परंतु देखते-देखते सब कुछ तास की पती की तरह बिखरता नजर आ रहा है। जबकि कुछ प्रबुद्ध लोगों का यह भी अनुमान है कि भाजपा जिस तरह इससे पहले केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाया था और उनके नेतृत्व में चुनाव में बहुमत प्राप्त की थी, परन्तु जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आयी थी, तो आदित्यनाथ योगी को बना दी थी,वही हाल सम्राट चौधरी के साथ भी होगा।
भाजपा इस्तेमाल करो व फेंक दो की नीति पर चलती जबकि इसमें कोई अजूबा भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि जानने वाले राजनीतिक और बुद्धिजीवी यह भली भांति जानते हैं कि भाजपा इस्तेमाल करो और फेंक दो की नीति पर चलती है। ऐसे कई उदाहरण पहले भी देखे जा चुके हैं। देश की तो बात ही अलग है, बिहार में ही भाजपा के दबंग नेता सुशील कुमार मोदी और तारकेश्वर प्रसाद जिन्होंने कभी उप मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित किया था, आज हासिये पर ढकेल दिए गए। अश्वनी चौबे जैसा दबंग केन्द्रीय मंत्री भी हासिये पर चले गए। बिहार बीजेपी को अपने पक्ष में वोट के लिए एक दबंग कुशवाहा नेता की तलाश थी। जिसकी भरपाई सम्राट चौधरी में कर दी थी। क्योंकि सिद्धांतहीन सम्राट चौधरी अपनी करनी से राजनीति में हासिये पर चले गए थे। वैसे अगर माना जाए, तो सम्राट चौधरी को बिहार की कुशवाहा जाति पर कभी पकड़ नहीं रही थी। बिहार के कुशवाहा जाति के लोग न उनसे प्रभावित हैं, न उनकी बातों में आने वाले हैं। फिर भी जब कुशवाहा जाति के लोगों ने देखा कि भाजपा में सम्राट चौधरी को आते ही काफी दरजीह दी जा रही है। जिस तरह से उन्हें प्रमोट किया जा रहा है, तो निश्चित रूप से मुख्यमंत्री बनने की संभावना प्रबल है। इसको लेकर कुशवाहा जाति के लोगों का आकर्षण भाजपा की ओर बढ़ने लगा था। वैसे उनके पिता शकुनि चौधरी भी जाति के नेता के नाम पर अवसरवाद की ही राजनीति करते रहे थे।
सम्राट जिसने राजनीति का क ख ग राजद में था सीखा कहा जाता है कि भाजपा में जो नेता विपक्ष पर जितना ही अधिक आग उगलता है, उसे उतना ही भाजपा में हथेली पर ले लिया जाता है। सम्राट चौधरी, जिसने राजनीति का क ख ग राजद में सीखा था। बिना चुनाव लड़े लालू प्रसाद ने उनके पिता शकुनि चौधरी के कहने पर मंत्री बना दिया था। वहीं, सम्राट चौधरी भाजपा में जाने के बाद लालू प्रसाद पर आपत्ति जनक बातें बोलने लगे थे। नीतीश कुमार पर भी अंट संट बकने लगे थे। फलस्वरूप भाजपा में सम्राट चौधरी का रुतबा बढ़ता चला गया। भाजपा में जो सम्राट चौधरी का रुतबा बढ़ रहा था, उसके अनुसार लोगों को लग रहा था, खासकर उनकी जाति के लोगों को लगने लगा था कि अगर हमलोग भाजपा के पक्ष में वोट करेंगे, तो आने वाले दिनों में हमारी जाति का मुख्यमंत्री होगा। लोग गोलबंद भी होने लगे थे। परंतु जब 2024 के लोकसभा के सीट बंटवारे में 17 सीटों में सम्राट चौधरी एक भी सीट अपनी जाति को दिलाने में सफल नहीं हो सके, तो देखते ही देखते सब कुछ पलट गया। अब तो जो कल तक अपनी जाति का दवंग नेता करार दे रहा था, वे ही गालियां देने लगे हैं कि जो व्यक्ति 17 सीटों में से एक भी सीट अपनी जाति को नहीं दिला सका, भाजपा पार्टी में उसकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
किस मुंह से जाति के लोगों को भाजपा को वोट करने को कहेंगे ? अब सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री और बिहार के भाजपा अध्यक्ष के रूप में अगर सम्राट चौधरी बिहार के जिलों में चुनावी सभा को संबोधित करेंगे, तो क्या कहेंगे? किस मुंह से अपनी जाति के लोगों को भाजपा के पक्ष में वोट करने के लिए कहेंगे? और फिर उनकी जाति के लोग उनकी बातों पर विश्वास करके भाजपा को वोट दे सकेंगे? यह सोचने वाली बात है। सोचने वाली बात यह भी है कि जिस राजद से पांच और जदयू से तीन सीटें कुशवाहा जाति को मिली है, तो कुशवाहा जाति के लोग सब कुछ नजरअंदाज कर भाजपा के पक्ष में वोट करने जायेंगे? आखिर भाजपा की कौन सी उपलब्धि पर वोट करेंगे? अगर कुशवाहा जाति के लोग भाजपा को वोट नहीं करेंगे, भाजपा उम्मीदवार को कुछ वोटों से हार का मुंह देखना पड़ेगा, भाजपा आलाकमान को यह महसूस हो जाएगा कि सम्राट चौधरी के रहते कुशवाहा जाति का वोट बीजेपी को नहीं मिल सका, ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में भाजपा उनके साथ क्या इसी तरह ऊंचे ओहदों पर बैठाकर रखेगी? इस पर लोगों का मानना है कि अगर बिहार के इस लोकसभा चुनाव में चुनाव में कुशवाहा जाति के लोग भाजपा को वोट नहीं करेंगे, तो चुनाव के बाद निश्चित रूप से भाजपा सम्राट चौधरी को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकेगी। ऐसी स्थिति में सम्राट चौधरी का राजनीतिक वजूद क्या रह जाएगा, इसका स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कहां के रह जायेंगे?