Bihar News: पवन सिंह का चरण चुंबन 

Bihar News: आखिर क्या जरूरत पड़ गयी कि सुपर स्टार पवन सिंह को उपेंद्र कुशवाहा का चरण चुंबन करना पड़ा। उपेन्द्र कुशवाहा कोई भाजपा या कांग्रेस के सुप्रीमो तो थे नहीं।

 

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

Bihar: पवन सिंह ने जिस तरह से राष्ट्रीय लोक मोर्चा के सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा का चरण चुंबन किया, वह प्रकरण सबको चौंका कर रख दिया कि जिस पवन सिंह को पिछले लोकसभा चुनाव में इतना अहंकार था कि मैं तो अकेला ही सभी पर भारी पड़ने के लिए काफी हूं। फिर आखिर क्या जरूरत पड़ गयी कि सुपर स्टार पवन सिंह को उपेंद्र कुशवाहा का चरण चुंबन करना पड़ा। उपेन्द्र कुशवाहा कोई भाजपा या कांग्रेस के सुप्रीमो तो थे नहीं। उनके तो विधानसभा में एक विधायक तक नहीं हैं। खुद भी राज्यसभा में गए हैं, तो भाजपा की कृपा से पहुंचे हैं। संभव है पवन सिंह ने भाजपा में शामिल होने के लिए अर्जी लगाई होगी, तो भाजपा के शीर्ष नेताओं ने यह संकेत किया होगा कि अगर चुनाव जीतना है, तो बगैर उपेंद्र कुशवाहा का चरण चुंबन किये काम चलने वाला नहीं है। चाहे जो भी हो, पर पवन सिंह के चरण चुंबन के पीछे कोई चाल तो जरूर है।

2024 के लोस चुनाव में काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा था

यह सुपर स्टार वही पवन सिंह है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़ा हुआ था। जहां भाजपा के कोर वोटर रहे राजपूत, भूमिहार ब्राह्मण, यहां तक कि वैश्य समुदाय के बहुमत लोगों ने पवन सिंह को ही वोट किया था। ऐसा लग रहा था कि सब कुछ योजनाबद्ध है। जिसमें राजपूत जाति के लोगों ने तो शत-प्रतिशत वोट किया था। आखिर नहीं, तो फिर एनडीए के उम्मीदवार तो उपेन्द्र कुशवाहा थे। फिर उनलोगों ने पवन सिंह को किस आधार पर वोट किया था? इधर उन्हीं जातियों के नेता उपेन्द्र कुशवाहा को यह आश्वस्त करते रहे थे कि कुछ लोग खाने पीने के लिए उधर उछल रहे हैं, उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। बहुमत वोट तो आपको ही मिलेगा। फलस्वरूप जीत की पूरी संभावना पाले रालोमो सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा था। जब कुशवाहा जाति के लोगों ने उनलोगों के तिकड़म को भांप लिया था, तो आरा, बक्सर, औरंगाबाद, जहानाबाद और पटना जैसी कई लोकसभा सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों को धूल चटाकर यह दिखा दिया था कि राजनीति सिर्फ तुम्हीं लोग नहीं जानते हो, इधर लोगों को भी राजनीति आती है। जबकि इसमें कहीं न कहीं भाजपा का भी खेल था कि सीट भी दे दें और उपेन्द्र कुशवाहा को लोकसभा में जाने से रोक भी दें। वैसे भाजपा को यह लगा होगा कि अगर पवन सिंह जीत भी जाएगा, तो उसे फिर पार्टी में ले लेंगे।पर दोनों को हार का मुंह देखना पड़ा था, तब शायद भाजपा को लगा होगा कि कुशवाहा जाति को नजरंदाज करना कभी भी भारी पड़ सकता है। भाजपा यह भी समझती रही कि कुशवाहा जाति के सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री तो बनाए हुए हैं, पर अपनी जाति का वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता उनमें नहीं दिख रही है।

उपेन्द्र कुशवाहा की हार को लोग आज भी नहीं भूल पा रहे

जब बिहार विधानसभा का चुनाव सिर पर है, तो भाजपा फिर से एक साथ कई शिकार खेलने के फेरे में लग गयी है, जो वह हमेशा से करती आयी है।एक तो यह कि पवन सिंह अगर चुनाव लड़ता है, तो कुशवाहा वोटों की सख्त जरूरत पड़ेगी। उसके बिना नैया पार लगना संभव नहीं है। फिर चरण चुंबन कर लेने में क्या जाता है? जबकि उपेन्द्र कुशवाहा की हार को कुशवाहा जाति के लोग आज भी नहीं भूल पा रहे हैं। पवन सिंह को चुनाव मैदान में उतरने के बाद कुशवाहा जाति के लोग उपेन्द्र कुशवाहा के कहने पर कितना वोट देंगे या दगा दे देंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। क्योंकि जब राजपूतों को उपेन्द्र कुशवाहा नहीं पच पाए थे, तो कुशवाहा जाति को पवन सिंह कैसे पच पाएगा? यह सवाल ताजे घाव की तरह आज भी लग रहा है।

कमेंट करने वालों में वे लोग हैं, जो लोस चुनाव में पवन को खुलकर साथ दिया था

दूसरे, उपेन्द्र कुशवाहा का चरण चुंबन करना राजपूत जाति के लोगों को ही काफी नागवार गुजरा है। क्योंकि जैसे ही चरण चुंबन का फोटो वायरल हुआ था, वैसे ही कई राजपूत जाति के लोगों का कमेंट आया था, जिसका लब्बोलुआब यही था कि पवन सिंह ने उपेन्द्र कुशवाहा का चरण चुंबन कर राजपूत जाति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाया है। चरण चुंबन करवाना तो हमलोगों का संस्कार रहा है। कुछ राजपूत जाति के लोगों ने तो यहां तक कमेंट किया कि गिरना ही था तो और नीचे तक गिर जाते। मजे की बात तो यह है कि कमेंट करने वालों में अधिकांश लोग वे ही हैं, जो लोकसभा चुनाव में पवन सिंह को खुलकर साथ दिया था। अब राजपूत जाति का यह आक्रोश पवन सिंह को लाभ पहुंचाएगा या हानि, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

पवन के सहारे भाजपा कितना कामयाबी हासिल कर सकती

कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इधर राजीव प्रताप रूढ़ी ने जिस तरह से अपने आप को बिहार का राजपूत नेता के रूप में स्थापित करने का राजनीतिक खेल खेलना चाहते हैं, उसे भाजपा के शीर्ष नेता भी भांप चुके हैं। जो भाजपा के शीर्ष नेताओं को तनिक भी बर्दाश्त नहीं है। इसलिए भाजपा के शीर्ष नेता पवन सिंह को आगे कर वैसे राजपूत नेताओं को हाशिए पर धकेल देना चाहते हैं। इसीलिए संभव है कि पवन सिंह को आने के बाद भाजपा उन्हें अपनी पार्टी की ओर से स्टार प्रचारक के रूप में भी रख सकती है। शायद पवन सिंह को भी लगेगा कि यहां भाजपा में दबंग दबंग राजपूत नेताओं के रहने के बावजूद मुझे अधिक तवज्जो दिया जा रहा है। परंतु पहले से जो राजपूत नेता हैं, उन्हें अगर हाशिए पर ढकेल दिया जाएगा, तो वे चुपचाप हाथ पर हाथ रखकर तो बैठेंगे नहीं। फिर कहीं न कहीं भीतरघात ही करेंगे। ऐसी स्थिति में पवन सिंह के सहारे भाजपा कितना कुछ कामयाबी हासिल कर सकती है, यह भी आने वाला समय ही बताएगा।

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