Bihar News: बिहार चुनाव फिक्स तो नहीं है ?

News: जब किसी सरकार में जनता की नहीं सुनी जा रही हो। सरकार मनमाने ढंग से काम करने लगे। उसके सारे तंत्र मनमाना रवैया अपनाने लगे। जनता की समस्याओं को नजर अंदाज कर दे, तो समझ लेना चाहिए की सरकार कुछ खेल अवश्य करना चाहती है।

 

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

Bihar: जब किसी सरकार में जनता की नहीं सुनी जा रही हो। सरकार मनमाने ढंग से काम करने लगे। उसके सारे तंत्र मनमाना रवैया अपनाने लगे। जनता की समस्याओं को नजर अंदाज कर दे, तो समझ लेना चाहिए की सरकार कुछ खेल अवश्य करना चाहती है। संभावना यही है कि बिहार विधानसभा का जो चुनाव परिणाम आएगा, उसमें सब कुछ देखने के लिए मिल जाएगा। अगर इस संदर्भ में फिलहाल आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को देखा जाए, सरकार का कुछ इसी तरह का रवैया लग रहा है। जो चुनाव आयोग को मोहरा बनाकर किसी भी कीमत पर बिहार को जीत लेना चाहती है। आज का चुनाव आयोग स्वतंत्र नहीं है। आज का चुनाव आयोग सरकार का पिछलग्गू बन गया है। सरकार के इशारे पर ही हर काम कर रहा है क्योंकि जिस प्रकार से सर्वे रिपोर्ट यह बता रहा है कि महागठबंधन बढ़त की ओर है और एनडीए सरकार बनाने से बाहर हो सकता है। वैसी स्थिति में केंद्र सरकार का मंशा साफ है कि बिहार में एनडीए जीते और भाजपा का मुख्यमंत्री हो। जबकि बिहार की जनता एनडीए के पक्ष में नहीं है।

चुनाव आयोग की नींद एकाएक क्यों टूटी?

अगर नहीं, तो फिर जिस मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य में दो-दो वर्ष की अवधि लगती रही है। आखिर चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव के दो ढाई महीने पहले एकाएक क्यों फरमान जारी कर दिया कि बिहार मतदाता सूची का पुनरीक्षण का कार्य होगा? चुनाव आयोग पहले से कहां था? चुनाव आयोग की नींद एकाएक क्यों टूटी? क्या दो ढाई महीने में यह संभव है? अगर सब कुछ पहले से फिक्स नहीं है, तो चुनाव आयोग एकाएक ऐसा फरमान क्यों जारी किया? बिहार चुनाव आयोग के 22 जून की बैठक में किसी को पता नहीं रहता है और 24 जून को दिल्ली चुनाव आयोग से फरमान आता है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य प्रारंभ होगा और 26 तारीख से इसकी शुरुआत हो भी जाती है। प्रत्येक प्रखंड और पंचायत स्तर पर बीएलओ को भी लगा दिया जाता है। बीएलओ मतदाताओं को फार्म भी उपलब्ध कराने लगते हैं आखिर एकाएक आठ करोड़ फॉर्म कैसे आ गए हैं ! यही सब साबित करता है कि सब कुछ पहले से फिक्स है। जो यह संदेश पैदा करता है कि हो सकता है कि सरकार के इशारे पर महागठबंधन के वोटरों को जिसमें अल्पसंख्यकों के साथ-साथ पिछड़े , दलितों और आदिवासियों का नाम हटाकर मतदाता सूची से पहले ही बाहर कर दिया गया हो और मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम सिर्फ नाटक हो। ताकि आम मतदाता इस पर आरोप न सके कि आखिर हमारा नाम मतदाता सूची से कैसे कट गया?यह समझ सकें कि चुनाव आयोग ने पुनरीक्षण का कार्य करवाया था। जिसने प्रमाण पत्र नहीं दिया होगा,उसका नाम काट दिया गया होगा। चुनाव आयोग का भी तर्क मजबूत हो जाएगा। क्योंकि, इसके विरुद्ध जब महागठबंधन की ओर से दिल्ली चुनाव आयोग से दिल्ली में डेलीगेट मिलने गया था, तो उसमें चुनाव आयोग प्रमुख ज्ञानेश्वर ने बताया था कि संभव है कि इस बार लगभग 20 प्रतिशत फर्जी वोटरों के नाम काटे जाएंगे। जहां हर बार पुनरीक्षण में वोटर बढ़ते रहे। वहां आखिर ज्ञानेश्वर ने वोटर काटने की बात क्यों की ? इसका मतलब कि वोटरों को वोट से बेदखल करने की साज़िश पूर्व नियोजित है।

2024 से ही इस कार्य को क्यों नहीं प्रारंभ कर दिया था?

चुनाव आयोग के अनुसार पहले से मतदाता सूची में लगभग 20% फर्जी वोटर रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ है कि जब चुनाव आयोग ने 2003 में मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य करवाया था, उस समय भी फर्जी वोटर विद्यमान थे। फर्जी वोटरों से अब तक विधानसभा और लोकसभा के चुनाव होते रहे ? नरेन्द्र मोदी भी फर्जी वोटों से ही जीत कर प्रधानमंत्री बने। अगर ऐसा हुआ, तो 2003 से पिछले लोकसभा और विधानसभा के सभी जनप्रतिनिधि फर्जी हुए या नहीं? इस पर चुनाव आयोग ने कौन सा कदम उठाया? अगर चुनाव आयोग को मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य करवाना ही था, तो 2024 से ही इस कार्य को क्यों नहीं प्रारंभ कर दिया था? चुनाव के ठीक दो तीन महीने पहले याद क्यों आई? आनन-फानन में एकाएक यह कदम क्यों उठाया ? कैसे विश्वास किया जाए कि इस बार मतदाता सूची में फर्जी वोटर नहीं रहेंगे? जो साबित करता है कि यह सब कुछ चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारे पर सिर्फ भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए कर रहा है। चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची पुनरीक्षण में वह आधार कार्ड ,राशन कार्ड और वोटर आईडी को अनवैलेट करार दे दिया गया, जिसे केन्द्र सरकार पहले से पुख्ता प्रमाण पत्र मानती रही है। यही सारे प्रमाण पत्र सरकारी दस्तावेजों में भी है। आखिर इन प्रमाण पत्रों को किसने बनाया था? कि सरकार द्वारा बनाए गए वैध प्रमाण पत्र को फर्जी घोषित किया जा रहा है ? इसके पीछे निश्चित रूप से कोई खेल तो अवश्य है। क्योंकि चुनाव आयोग भी जानता है कू गरीब, बेसहारा बहुत ऐसे लोग हैं, जो ये सब प्रमाण पत्र नहीं देंगे जो हमारी ओर से मांगा जा रहा है। क्योंकि उनके पास हैं ही नहीं।ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को कहने के लिए भी हो जाएगा कि जब मांगे गए प्रमाण पत्र ही नहीं दे सके, तो उन्हें मतदाता सूची से नाम हटा दिया गया।

सरकार के इस खेल को समझना पड़ेगा?

जहां तक मुस्लिम विरोधी केन्द्र सरकार की ओर से यह आरोप लगाया जाता है कि दूसरे देश से मुसलमान यहां आकर रहने लगे हैं, जिन्हें वोट देने का अधिकार नहीं होना चाहिए। सही भी है, पर सवाल उठता है कि वे लोग कैसे भारत में आ गए? कैसे स्थाई रूप में आकर बस गए? इसके लिए सरकार क्या कर रही थी? अगर आकर रहने लगे, तो उनलोगों ने जमीन कैसे खरीदी ? यहां के स्थाई निवासी कैसे बन गए? यहां के वोटर लिस्ट में नाम कैसे जुड़वा लिये ? कौन जोड़ दिया उनलोगों का नाम कि सरकार को आज याद आ रही है? यह सब कुछ करने वाले विपक्षी दल के लोग तो नहीं होंगे? रोहिंग्या तो सिर्फ बहाना है। सच तो यह है कि उन्हीं के बहाने यहां के अन्य अल्पसंख्यकों के साथ-साथ यहां के दलितों, अभिवंचितों, पिछड़ों आदिवासियों को मताधिकार से वंचित करना है। आगे चलकर उन्हें यहां की नागरिकता से भी वंचित करना है। सरकार के इस खेल को समझना पड़ेगा? यह भी संभव है कि चुनाव आयोग सिर्फ बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण का नाटक कर रहा हो और मतदाता सूची पहले से ही बनकर तैयार भी हो गया हो। सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग ने पहले ही वैसे मतदाताओं का नाम भी हटवा दिया हो,जो एनडीए के वोटर न हों।

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