Bihar News : मताधिकार से अभिवंचितों को वंचित करने की साज़िश 

Bihar News: कभी वोटर कार्ड को भी वैध माना जाता रहा था। राशन कार्ड को भी वैध माना जाता रहा था। परन्तु चुनाव आयोग ने इनमें से एक को भी वैध नहीं माना है। अब सवाल है कि जो शिक्षित होंगे, वे तो स्कूल कॉलेज का प्रमाण पत्र दे सकेंगे, परंतु अशिक्षित वर्ग वह प्रमाण पत्र कहां से लाएगा?

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन

 

Bihar : जिस प्रकार से बिहार में विधानसभा चुनाव के ठीक तीन महीने पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का पुनरीक्षण करने की घोषणा करने के साथ उसकी प्रक्रिया पूरी करने के लिए कार्य प्रारंभ करवा दिया है। यह कुछ और नहीं बल्कि पिछड़ी, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक जातियों को मताधिकार से वंचित करने की एक सुनियोजित साज़िश है। इसे कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारे पर यह सब कुछ कर रहा है। क्योंकि भाजपा यह समझने लगी है कि हमारे लिए बिहार में चुनाव जीतना आसान नहीं है। फिर क्यों न वैसे मतदाताओं को ही मताधिकार से वंचित कर दिया जाए। भले लोगों को लग रहा है कि सिर्फ मताधिकार से ही वंचित होना पड़ेगा। नहीं, आने वाले दिनों में वैसे लोगों को भारत की नागरिकता से भी वंचित होना पड़ सकता है। केंद्र सरकार यही तो चाहती है। इसके संदर्भ में बिहार में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के बहाने केन्द्र सरकार गरीबों, दलितों अभिवंचितों और अल्पसंख्यकों को मताधिकार से वंचित करना चाहती है। चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारे पर यह सब करवा रहा है। तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाया है। इसीलिए बिहार में विपक्षी दल के लोग इसका पूरजोर विरोध कर रहे हैं।

अभिवंचित लोग मताधिकार से पूरी तरह से वंचित हो जाएंगे

सबसे बड़ा सवाल है कि अगर चुनाव आयोग को यही काम करवाना था, तो क्या उसे मालूम नहीं था कि अक्टूबर 2025 में बिहार में विधानसभा का चुनाव करवाना है? इसके लिए पहले से ही चुनाव आयोग ने पहल क्यों नहीं की थी? चुनाव आयोग को इसके लिए एकाएक कदम क्यों उठाना पड़ा? क्या चुनाव आयोग को पता नहीं था कि बिहार में बरसात के मौसम में खासकर उत्तरी बिहार में अधिकांश नदियों में बाढ़ आ जाती है? लोगों का जन जीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाता है? ऐसी स्थिति में लोग अपना जीवन बचाने में लगे रहेंगे या मतदाता सूची में नाम जोड़वाने के लिए प्रमाण पत्र का दिखाने में लगेंगे ? पहले जब भी मतदाता सूची का पुनरीक्षण हुआ है, तो उसमें साल भर से ऊपर के समय लगते रहे हैं फिर भी उनमें त्रुटियां रहती रही हैं। फिर चुनाव आयोग बिहार में तीन महीने के अंदर कैसे मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य करवा लेगा? क्या नहीं लगता है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही होगी? क्या यह किसी भी कीमत पर संभव है? अगर संभव है, तो यही कि जहां बिहार में करीब सात करोड़ मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में रहा है, उसमें अगर आधे-अधूरे भी हो जाते हैं, उन्हीं लोगों का नाम जोड़कर मतदाता सूची बनवा देगा और कह देगा कि जिन्होंने प्रमाण पत्र नहीं दिखाया, इसलिए उनका नाम नहीं जुड़ सका। फिर अभिवंचित लोग मताधिकार से पूरी तरह से वंचित हो जाएंगे। यह कितना उचित कदम होगा? क्या यह गरीबों को मतदाता सूची से वंचित करने की एक साजिश नहीं है?

जो खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं, वैसे जन्म प्रमाण पत्र कहां से सकेंगे?

चुनाव आयोग ने 1987 के पहले 1987 से लेकर 2004 के बीच और 2004 से लेकर अबतक के मतदाताओं के लिए मतदाता सूची में नाम दर्ज करवाने के लिए अलग-अलग नियम बनाएं हैं। जिसे पूरा कर पाना अधिकांश लोगों के लिए संभव नहीं है। क्योंकि वे प्रमाण पत्र गरीबों पास होंगे ही नहीं। किन्हीं मतदाताओं को अपना जन्म प्रमाण पत्र देना होगा, आवासीय प्रमाण पत्र देना होगा, किन्हीं को अपने प्रमाण पत्र के साथ-साथ अपने माता-पिता के जन्म का प्रमाण पत्र देना होगा। सवाल यह है कि जिस समाज में आज भी निरक्षरों की संख्या अधिक है, आज भी जो खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं, वैसे लोगों के पास अपना जन्म प्रमाण पत्र और माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र कहां से सकेंगे? अगर नहीं मिल सकेंगे, तो चुनाव आयोग के नियमानुसार वैसे लोगों को तो मताधिकार के अधिकार से वंचित होना पड़ेगा? जो सरकार चाहती भी है। बहुत ऐसे गरीब परिवार हैं, जिनके पास कोई कागजात नहीं है। सिर्फ शरीर भर है, परन्तु कई पीढ़ियों से रहते रहे हैं। वैसे लोग भला प्रमाण पत्र कैसे प्रस्तुत कर सकेंगे?

अशिक्षित वर्ग वह प्रमाण पत्र कहां से लाएगा?

सबसे हास्यास्पद तो यह है कि जो सरकार प्रमाण पत्र के लिए आधार कार्ड को कभी पहली प्राथमिकता दी थी। हर सरकारी काम के लिए आधार कार्ड का होना आवश्यक बताई थी। मतदाता सूची के पुनरीक्षण में उस आधार कार्ड को वैध नहीं बताया गया है। कभी वोटर कार्ड को भी वैध माना जाता रहा था। राशन कार्ड को भी वैध माना जाता रहा था। परन्तु चुनाव आयोग ने इनमें से एक को भी वैध नहीं माना है। अब सवाल है कि जो शिक्षित होंगे, वे तो स्कूल कॉलेज का प्रमाण पत्र दे सकेंगे, परंतु अशिक्षित वर्ग वह प्रमाण पत्र कहां से लाएगा? जो नौकरी पेशा में हैं, उनके पास तो प्रमाण पत्र हैं, लेकिन सभी तो नौकरी पेशा में नहीं है? फिर वैसे लोग प्रमाण पत्र कहां से प्रस्तुत कर सकेंगे? सबसे बड़ी समस्या यह है कि आखिर किसके निर्देश पर चुनाव आयोग ने एकाएक ऐसी घोषणा की? इसे भी तीन महीने के अंदर फाइनल कर देना है। सवाल यह है कि बिहार के बहुत ऐसे लोग हैं, जो दूसरे राज्यों में जाकर सरकारी या गैर सरकारी नौकरी कर रहे हैं, वैसे लोगों की संख्या करोड़ों में है।तो क्या सभी लोग दौड़कर मतदाता सूची में नाम दर्ज करवाने के लिए बिहार आएंगे? अगर कोई घर आ भी आ जाएंगे, तो कोई जरूरी है कि बीएलओ से मुलाकात हो ही जाएगी ? फिर उनलोग अपना काम धाम छोड़कर मतदाता सूची में नाम जोड़वाने के लिए सरकारी दफ्तर का चक्कर लगाते रहेंगे?

भाजपा दबंग जातियों को अपना कोर वोटर मानती है

सबसे बड़ी बात तो यह है कि चुनाव आयोग ने भले ही यह कहा हो कि हमने ऐसा फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची से निकाल बाहर करने के लिए नियम लगाया है। परंतु सच्चाई यही है कि फर्जी मतदाता उसी तरह से बने रहेंगे। जब महाराष्ट्र और अन्य भाजपा शासित राज्यों में फर्जी मतदाता बढ़ रहे हैं उसमें चुनाव आयोग का ही तो हाथ है। वास्तविकता तो यह है कि ऐसा कर चुनाव आयोग केंद्र सरकार के इशारे पर सभी वर्गों के गरीब, पिछड़े, अभिवंचित आदिवासी, अल्पसंख्यक वर्गों को प्रमाण पत्र के अभाव में मतदाता सूची से बाहर करना चाहता है। भाजपा दबंग जातियों को अपना कोर वोटर मानती है। यहां का दबंग समाज पहले से ही धूर्त और चालक रहा है। वह पहले से भी नाजायज फायदा उठाते रहा है और आज भी नाजायज फायदा अवश्य उठाएगा। उन लोगों के पास प्रमाण पत्र न भी रहेंगे,फिर भी जैसे-तैसे फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर देंगे और अपने फर्जी लोगों का नाम जोड़वा देंगे। वैसे लोगों में अधिकांश भाजपा के ही समर्थक होंगे। ऐसी स्थिति में बिहार में एनडीए गठबंधन को जीत दर्ज करने में आसानी हो जाएगी। इसी के लिए केन्द्र सरकार चुनाव आयोग को मोहरा बनाकर यह सब कुछ करवा रही ह। इसलिए आम लोगों को भी इसका पुरजोर विरोध करने की जरूरत है।

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