Bihar News: बिहार की नयी सरकार:किसकी जीत किसकी हार
Bihar News: बिहार की नयी सरकार:किसकी जीत किसकी हार
Bihar News: इस बार सरकार बनी, वह पूरी तरह से एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार है। फिर भी लोगों के अंदर सबसे अधिक इस बात की चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह सरकार पांच साल चल सकती है।
अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Patna: बिहार में नई सरकार बन गई। सरकार उन्हीं गठबंधन की बनी, जिसकी पहले से भी सरकार थी। जो इस बार सरकार बनी, वह पूरी तरह से एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार है। फिर भी लोगों के अंदर सबसे अधिक इस बात की चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह सरकार पांच साल चल सकती है या….। जबकि 2020 से 2025 की सरकार के बीच में यह संशय नहीं देखा जा रहा था। आखिर संशय है तो क्यों है? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि इस बार भाजपा 89 विधायकों के साथ बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरकर सामने आई है। उस बार भी भाजपा 75 विधायकों के साथ दूसरे स्थान पर थी। वहीं जदयू 43 विधायकों के साथ तीसरे स्थान पर था। उस समय भाजपा को डर था कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनायेंगे, तो नीतीश कुमार राजद के साथ सरकार बना लेंगे और राजद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रुप में स्वीकार कर लेगा। नीतीश कुमार हाथ से निकल जायेंगे तो फिर बिहार में चुनाव जीतना भी मुश्किल हो जाएगा। आज भाजपा सोच रही है कि किसी तरह हम सरकार बनाने में कामयाब हो जायेंगे, तो फिर तो जमीन तैयार कर ही लेंगे।
अटल जी का सपना तभी साकार होगा, जब बिहार में भाजपा की सरकार होगी
इसी चाल के तहत् 2020 के चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृह मंत्री अमित शाह प्रचार के दौरान दोनों ने कहा था कि एनडीए गठबंधन की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बनेगी। परंतु 2025 के चुनावी सभा में न नरेंद्र मोदी ने ऐसा कहा न अमित शाह ने कहा कि बहुमत आने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। इसके बजाय दोनों यह कहते रहे कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ा जा रहा है परंतु यह नहीं कहा कि बहुमत आने के बाद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे। दूसरे, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जो बिहार में भाषण दिया था। उपमुख्यमंत्री विजय सिंहा ने जो एक वक्तव्य में कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी जी का सपना तभी साकार होगा, जब बिहार में भाजपा की अपनी सरकार होगी। जो दर्शाता है कि भाजपा के अंदर कई वर्षों से यह छटपटाहट रही है कि बिहार में भाजपा की पूर्ण सरकार बने।
विधानसभा स्पीकर का पद भी भाजपा ने ले लिया
इस बार बिहार विधानसभा के चुनाव में एनडीए गठबंधन को अप्रत्याशित सफलता मिली। यह सफलता उन्हें बेहतर क्रिया कलापों से मिली या फिर दूसरे हथकंडे से, इसपर हम जाना नहीं चाहते। क्योंकि जब अच्छे क्रिया कलाप होते, तो आनन फानन में मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य करवाकर मतदाताओं के करीब साठ लाख से ऊपर नाम नहीं काटे जाते। आचार संहिता लागू होने के बाद आनन फानन में महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपए नहीं डाले जाते। चुनावी सभाओं में कुर्सियां खाली नहीं रहती। 2020 में जब एनडीए की नई सरकार बनी थी, तो जदयू के 43 विधायकों के बाद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था।उस समय भी गृह मंत्रालय नीतीश जी के हाथों में था। परंतु इस बार 85 विधायकों के बाद नीतीश कुमार को गृह मंत्रालय भाजपा को देने के लिए विवश हो जाना पड़ा। दूसरे, विधानसभा स्पीकर का पद भी भाजपा ने ले लिया। बहुत कुछ खेल की संभावना इसी के अंदर छिपी हुई लगती है। वैसे नीतीश कुमार बस इसी में खुश दिख रहे हैं कि कुछ भी हो मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी तो हमारे पास है।
नीतीश को मात देकर CM की कुर्सी से बेदखल किया जा सकता
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के पास कुल 89 विधायक हैं और 20 चिराग पासवान के विधायक, पांच जीतनराम मांझी के विधायक और चार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के विधायक तो हमारे पास हैं ही। अगर हम पांच विधायकों को भी खरीद फरोख्त कर अपने पक्ष में ला लेते हैं, तो हमारी पूर्ण बहुमत की सरकार बन जाएगी और जब स्पीकर ही हमारे हैं, तो फिर इसमें किसी तरह की समस्या उत्पन्न नहीं होगी। ऐसी स्थिति में कभी भी नीतीश को मात देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल किया जा सकता है। कई राज्यों में भाजपा का ऐसा चरित्र देखा भी गया है। इधर, अगर जदयू की बात की जाए, तो ऐसा नहीं है कि इस बात को राजनीतिक विश्लेषक समझ रहे हैं और नीतीश कुमार नहीं समझ पा रहें हैं। वे भी जरूर समझ रहे होंगे, परंतु हो सकता है कि वह अलग दाव पेंच में लगे होंगे। क्योंकि वह राजनीति के माहिर खिलाड़ी खुद ही हैं।
भाजपा और जदयू के बीच चल रहा है, तू डाल डाल तो मैं पात-पात वाली खेल
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार यह सोच रहे होंगे कि अगर भाजपा ऐसा सोचेगी, तो हम एनडीए गठबंधन से अलग होकर महागठबंधन के विधायकों को साथ लेकर सरकार बना लेंगे। कुछ हद तक सोच तो सही है, क्योंकि महागठबंधन के सारे विधायकों और ओवैसी के विधायकों को लेकर संख्या 40 हो जाती है। जदयू के विधायकों की संख्या 85 है ही। इसलिए कुल मिलाकर 125 हो जाते हैं। एक बसपा और एक निर्दलीय विधायक आई पी गुप्ता पर जितना काग दृष्टि जदयू लगाए हुए है, उतना ही भाजपा भी लगाए हुए है। परंतु इस सोच में विधानसभा का स्पीकर निश्चित रूप से अड़ंगा लगा सकता है। भाजपा इसीलिए तो स्पीकर का पद अपने पास रख ली है। वैसे कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि गृह मंत्रालय उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को तो नीतीश कुमार ने सहजता के साथ दे दिया है, परंतु उसका कमान अपने हाथों में रखे हुए हैं। अर्थात बड़े बड़े पुलिस पदाधिकारियों का ट्रांसफर सम्राट चौधरी नहीं कर सकते हैं। मतलब जो भाजपा और जदयू के बीच जो खेल चल रहा है, उसमें तू डाल डाल तो मैं पात-पात वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। ऐसी स्थिति में अब यह देखना है कि सह और मात के खेल में जदयू आगे निकलता है या फिर भाजपा आगे निकलती है। पर अधिक संभावना है कि भाजपा ही आगे निकल सकती है, क्योंकि उसके पास स्पीकर का पद है। अब देखना है कि आने वाले दिनों में क्या क्या देखने के लिए मिलता है?
