Bihar News: जनमत से नहीं तिकड़म से जीता एनडीए 

Bihar News: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पूरी तरह से महागठबंधन की लहर रहने के बावजूद अगर एनडीए भारी मतों से से जीत हासिल कर लिया, इसका अंदाजा स्वत: लगाया जा सकता है कि एनडीए कैसे जीत गया?

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन 

Bokaro: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पूरी तरह से महागठबंधन की लहर रहने के बावजूद अगर एनडीए भारी मतों से से जीत हासिल कर लिया, इसका अंदाजा स्वत: लगाया जा सकता है कि एनडीए कैसे जीत गया? अगर कोई कहता है कि एनडीए सरकार ने इतना कल्याणकारी योजनाएं चलाई, जिससे बिहार के मतदाता इतने खुश थे कि मतदाताओं ने जमकर एनडीए के पक्ष में वोटिंग की। इसीलिए एनडीए भारी बहुमत में आ गया। अब सवाल उठता है कि अगर नीतीश सरकार ने बहुत काम किया था। जिस बिहार की जनता का दिल जीत लिया था, तो फिर चुनाव के ठीक पहले वृद्धा पेंशन 400 से 1100, 125 यूनिट बिजली फ्री और महिलाओं के खाते में 10,000 रुपए डालने की क्यों जरूरत पड़ गई थी? करीब 20 वर्षों से सत्ता तो नीतीश जी के ही हाथों में थी। उस दौरान नीतीश जी ने ऐसा क्यों नहीं सोचा था? चुनाव के पहले ही ऐसी सद्बुद्धि क्यों आयी?जाहिर है कि नीतीश सरकार को यह एहसास हो गया था कि अगर कुछ तिकड़म नहीं लगाएंगे, तो इस बार चुनाव जीतना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा। इसलिए चुनाव के ठीक पहले जनता को नकद लाभ पहुंचाना शुरू कर दिया था। जिसका लाभ भी जरूर मिला। जबकि यह कहना कि सिर्फ इसी से एनडीए गठबंधन की सरकार बन गई, यह किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है। क्योंकि आज भी राजद भले ही 25 सीटों पर सिमट गई है, यों कहिए कि सिमटा दी गयी है, परन्तु उसका वोट प्रतिशत भाजपा और जदयू से भी कहीं अधिक है। इस खेल में चुनाव आयोग की भूमिका काफी निंदनीय रही है जो अब अखबारों में बड़ा बड़ा विज्ञापन छपवाकर निष्पक्ष चुनाव कराने का स्वांग रच रहा है।

चुनाव आयोग इस समय केंद्र सरकार की कठपुतली बन गया 

यह तो सर्वविदित है कि चुनाव आयोग इस समय केंद्र सरकार की कठपुतली बन गया है। जो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा राज्य के चुनाव में भाजपा को जिताने के पक्ष में अप्रत्यक्ष रूप से मदद पहुंचाता रहा है। बिहार में एनडीए सरकार को इतना के बावजूद भी लग रहा था कि बिहार के विकास में हमारी सरकार का बहुत बड़ा योगदान रहा है, तो फिर आपा धापी में एस आई आर करवाने के लिए चुनाव आयोग पर दबाव नहीं बनाती। चुनाव आयोग एस आई आर में कुछ नहीं किया ।बस इतना ही किया कि जिन पर यह शक हुआ कि इस समुदाय के लोग महागठबंधन के समर्थक होंगे, तो उनके नाम को बड़ी चतुराई के साथ हटाने का काम किया और कुछ एनडीए के समर्थक बोकस वोटरों का नाम जोड़ने का भी काम किया। ऐसा करीब 60 लाख से ऊपर मतदाताओं के नाम काटे गए थे। औसतन हर विधानसभा क्षेत्र में करीब दस बारह हजार वोटरों के नाम काटे गए थे। अगर दो जगहों पर नाम वाले वोटरों को हटाया गया, तो हमारा भी नाम दो जगहों पर था।एक जगह हमने कोई कागजात नहीं जमा किया था, फिर भी वोटर लिस्ट में मेरा नाम जुड़ा ही हुआ था।अब जरा सोचिए कि कैसा संसोधन हुआ था। बहुत विधानसभा में कुछ सौ तो कुछ हजार वोटों से एनडीए प्रत्याशियों ने जो जीत हासिल की, वह सिर्फ चुनाव आयोग ने एस आई आर की वजह से किया।

जदयू महज 18% वोट लाकर 85 सीट पर जीत दर्ज कर लिया 

फिर कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार से जिन राज्यों में मजदूरी करने वाले श्रमिक दूसरे राज्यों में थे, वैसे लाखों लोगों को रिजर्वेशन चुनाव में मतदान करने के लिए मंगाए गए थे, तो वैसे लोग किसके पक्ष में मतदान किए होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है ? तीसरे, जहां महागठबंधन के कुछ प्रत्याशियों को छोड़कर अधिकांश प्रत्याशियों को चुनाव में खर्च करने के लिए इतने पैसे तक नहीं थे। जैसे -तैसे करके चुनाव का प्रबंधन किया। वहीन कहा जाता है कि एनडीए के प्रत्याशियों को ऊपर से 2 करोड़ रुपए से लेकर 5 करोड़ रुपए तक उन्हें उपलब्ध कराया गया। जिसका उपयोग मतदाताओं को पैसा का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में करना था। वैसा ही किया भी गया। यानी करीब करीब 10 हजार से लेकर 20 हजार मतदाताओं को पैसे पर खरीदे गए। पैसे बांटते कहीं-कहीं के वीडियो भी वायरल हुए थे। फिर भी चुनाव आयोग खामोश रहा था। जो दर्शाता है कि चुनाव आयोग एनडीए के पक्ष में खड़ा था।यही अंदर का सच भी है और यही एनडीए गठबंधन को भारी बहुमत से दिल जीत दर्ज करने का खेल भी है। चुनाव परिणाम के बाद एनडीए गठबंधन के कार्यकर्ता और पक्षधर यह बताते हैं कि जनता का रुझान एनडीए गठबंधन के प्रति था। सवाल यह है कि अगर जनता का रुझान एनडीए गठबंधन की तरफ था, तो एनडीए गठबंधन के ही विधायकों और मंत्रियों को अपने ही क्षेत्र में खदेड़ा क्यों गया था? उनपर गोबर क्यों फेक गए थे था? उनके विरोध में मुर्दाबाद के नारे क्यों लगाए गए थे ? काले झंडे क्यों दिखाए गए थे? यही दर्शाता है कि एनडीए सरकार के प्रति जनता के मन में आक्रोश था। जब जनता का एनडीए सरकार के प्रति अधिक रुझान था, तो उनके बड़े-बड़े नेताओं की चुनावी सभा में भीड़ क्यों नहीं होती थी? भीड़ के लिए सरकारी मशीनरी का उपयोग क्यों किया जाता था? चुनावी सभा क्यों रद्द करनी पड़ती थी? वहीं जहां भी तेजस्वी और राहुल की सभा होती थी, तो बगैर प्रबंधन के वहां अपार भीड़ देखने के लिए क्यों मिलती थी? तो क्या राहुल और तेजस्वी कोई ऐसा चमत्कारिक आदमी थे? जिनको देखने के लिए जनता उनकी सभा में जैसे तैसे कर पहुंचती थी? सबसे तो अजूबा यह है बिहार चुनाव में इस बार राजद का वोट प्रतिशत जहां करीब 23 प्रतिशत रहा, वह 25 सीट पर सिमट गया और भाजपा का वोट प्रतिशत 20% है फिर भी 89 सीट हासिल की। जदयू महज 18% वोट लाकर 85 सीट पर जीत दर्ज कर लिया। यह कौन-सा खेल है भाई? इसका मतलब है कि एनडीए सरकार ने इस बार मन बना लिया था कि एन-केन-प्रकारेण किसी भी प्रकार इस बार की विधानसभा का चुनाव जीत लेना है और विपक्ष को काफी कमजोर बना देना है।

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