Bihar News: बिहार में भाजपा का उल्टा दाव
Bihar News: भाजपा या एनडीए गठबंधन के प्रति आम जनता का रुझान कोई खास नहीं है। हां, नीतीश कुमार के प्रति है, क्योंकि नीतीश सरकार ने सड़क और बिजली की सुविधा जरूर कराई है।
अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar: वैसे अगर कहा जाए, तो बिहार में भाजपा या एनडीए गठबंधन के प्रति आम जनता का रुझान कोई खास नहीं है। हां, नीतीश कुमार के प्रति है, क्योंकि नीतीश सरकार ने सड़क और बिजली की सुविधा जरूर कराई है। देखने के लिए अस्पताल और विद्यालयों, महाविद्यालयों के भवन भी आलीशान दिखेंगे, पर उसके अंदर का सच कुछ उल्टा ही दिखेगा। न अस्पतालों में जन सामान्य जनता को सुविधाएं मिल पाती हैं और न ही विद्यालयों एवं महाविद्यालय में समुचित पढ़ाई ही हो पाती है। वैसे सरकार यह जरूर कहती है कि हमारे विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव नहीं है। तो सवाल यह उठता है कि आखिर बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ने क्यों नहीं जाते हैं? दूसरे नीतीश कुमार की सरकार में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। यहां के अफसर बिल्कुल बेलगाम हैं। बिहार वासी यह भली-भांति जानते हैं। मतलब जो भी है सिर्फ दिखावा है। नीतीश कुमार अब चाहकर भी कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। जदयू को छोड़कर एनडीए के सारे घटक दल भाजपा पर ही अपनी जीत के लिए निर्भर हैं। जबकि भाजपा के प्रति आम जनता का रुझान वैसा नहीं है। थोड़ी देर के लिए रुझान हो भी सकता था, पर नीतीश कुमार भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे का समर्थन नहीं कर पाते हैं। जबकि यह सभी जानते हैं कि भाजपा की राजनीति साम्प्रदायिक एजेंडे पर ही टिकी हुई है। इसलिए भी भाजपा अपनी जमीन तैयार करने में सफल नहीं हो पाती है।
भाजपा को जदयू जैसी पार्टी की बैशाखी की सख्त जरूरत
बिहार में भाजपा की अलोकप्रियता का ही परिणाम है कि अभी तक जमीन नहीं बन सकी है। उसे जदयू जैसी पार्टी की बैशाखी की सख्त जरूरत है। पहला कारण तो यह है कि उसके मुख्य वोटर सवर्ण और वैश्य जाति के लोग हैं। जिनकी संख्या का प्रतिशत उतना ही हो सकता है, जितना सिर्फ राजद के यादव जाति का है। दूसरे भाजपा के विधायक मंत्री या सांसद आदतन वही हिंदू मुसलमान का राग अलापते रहते हैं। क्योंकि किसी भी राज्य में उनलोग उससे अधिक कुछ सोच ही नहीं पाते हैं। फलस्वरुप दलित और पिछड़ों के बीच भाजपा की पैठ नहीं बन रही है। जबकि भाजपा लगातार दलितों और पिछड़ों के वोटबैंक में सेंधमारी करने का प्रयास करती जा रही है। हां, जो कट्टर हिंदुत्ववादी एजेंडे में विश्वास रखते हैं। धार्मिक अनुष्ठान में विश्वास रखते हैं, वैसे लोगों में कुछ भाजपा की पैठ है।
एनडीए की सभाओं में वह उत्साह नहीं दिखा
जब बिहार में महागठबंधन ने मतदान पुनरीक्षण सूची में वोट घोटाले के सवाल को लेकर यात्रा की शुरुआत की। जिसमें शुरू से अंत तक स्वत: स्फूर्त जो भीड़ उमड़ी। जिसमें राहुल, तेजस्वी सहित महागठबंधन के अन्य नेताओं के भाषण सुनने के लोग टूट रहे थे। जिन्हें लग रहा था कि महागठबंधन के लोग हमारे हक- अधिकार की बातें कर रहे हैं। उससे एनडीए के नेताओं के होश ही उड़ गए थे। खास करके यह बीजेपी सोचने लगी थी कि बिहार में चुनाव जीतकर सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा। इस बीच कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार दौरे पर आ चुके थे ।उनके कई वरिष्ठ मंत्री भी बिहार दौरे पर आ चुके थे, परंतु उसमें स्वत: स्फूर्त भीड़ कभी दिखाई नहीं पड़ी। बल्कि उसके लिए जिला के सरकारी व प्राइवेट विद्यालयों को बंद कर दिया गया था। जीविका से जुड़ी महिलाओं को प्रशासन के द्वारा पर प्रलोभन देकर सभा में मंगवाया गया था। आम दर्शकों को भाड़े पर मंगवाया गया था। तब जाकर उतनी भीड़ लग पाती थी। क्या यह बात सभी को समझ में आ रही थी, तो भाजपा नेताओं को यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि हमारे यहां भीड़ कैसे जुट रही है? क्योंकि एनडीए की सभाओं में वह उत्साह नहीं दिखा था जो उत्साह महागठबंधन की यात्रा में दिखा था। दूसरे बिहार चुनाव का जो सर्वे सर्वेक्षण आ रहा है, वह भी महागठबंधन के ही पक्ष में आ रहा है।
कोई अपना टेटन नहीं देखता है, पर दूसरे की फुलिया जरुर निहारता
इसी बीच एक कहावत चरितार्थ हो गई कि एक मंच से राहुल और तेजस्वी के आने के पहले किसी व्यक्ति ने मोदी की मां को लगाकर अपशब्द कह दिया। जो किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं था। ऐसा भी नहीं है कि गाली देने वाला व्यक्ति राजद या कांग्रेस या महागठबंधन के किसी भी घटक दल का वह कार्यकर्ता था। जिसे पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया था। लेकिन भाजपा को तो आम जनता के दिमाग को महागठबंधन की ओर से ध्यान हटाने के लिए मुद्दे की तलाश थी, वह मिल गया था। फिर क्या था ! जिस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पंजाब, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा में बाढ़ से आयी आफत की चिंता नहीं रही थी। उसने झटपट विदेश से आते ही एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आधे घंटा के भाषण में सिर्फ 25 मिनट अपनी मां के बारे में कहते रह गए कि हमारी मां को विपक्ष ने गाली दी। यह भी दर्शाया कि मेरी मां का अपमान देश का अपमान है ।पर कौन नहीं जानता कि किसी भी देश के प्रधानमंत्री की मां उसे देशभर के लोगों की मां नहीं होती है। दूसरी बात कि नरेंद्र मोदी को कहने में भी शर्म नहीं आ सका । क्योंकि पता नहीं कितनी बार संसद से लेकर सभाओं तक में सोनिया गांधी, ममता बनर्जी और न जाने खुद तो कितनी महिलाओं का अपमान किया है। उनके मंत्री, सांसद, विधायक ने भी विपक्षी पार्टी की महिलाओं को अपमानित करने का काम किया, लेकिन वही बात कि कोई अपना टेटन नहीं देखता है, पर दूसरे की फुलिया जरुर निहारता है। फिर क्या था! भाजपा के चंटु- मंटु नेताओं ने बिहार बिहार बंद का आह्वान कर दिया और उसे सफल बनाने के लिए न जाने कितनी महिलाओं को ज़लील किया। पर शर्म हया रहे तब न?