Ambedkar Mahaparinirvan Divas 2025: आंबेडकरवादी कैसे करें : हिन्दू राष्ट्र का मुकाबला
Ambedkar Mahaparinirvan Divas 2025: 6 दिसंबर. 1956 में इसी दिन समय ठहर सा गया था, जब सदियों के दबे-कुचले अछूतों, सताए व दबाये गए लोगों तथा समाज के तिरस्कृत वर्ग के प्रबल पक्षधर, मानव जाति के इतिहास महानतम बुद्धिजीवी बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने अंतिम सांस ली थी.
लेखक: एचएल दुसाध
न्यूज़ इंप्रेशन
Delhi: 6 दिसंबर. 1956 में इसी दिन समय ठहर सा गया था, जब सदियों के दबे-कुचले अछूतों, सताए व दबाये गए लोगों तथा समाज के तिरस्कृत वर्ग के प्रबल पक्षधर, उनके अधिकारों व विशेषाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले अद्भूत योद्धा, योग्यतम प्रशासक, महान संविधानवेत्ता, कूटनीतिज्ञ व मानव जाति के इतिहास महानतम बुद्धिजीवी बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने अंतिम सांस ली थी. उनके परिनिर्वाण के बाद महानगरों, शहरों, कस्बों और गांवों में असंख्य शोकसभाएं आयोजित हुईं थीं. तब उन शोक सभाओं में देश व विशेषकर दलितों के लिए की गयी उनकी सेवाओं को याद करते हुए उनके उस श्रेष्ठ मिशन को पूरा करने का संकल्प लिया गया था, जिसके लिए वह आजीवन कठोर संघर्ष करते रहे. उनके ऐतिहासिक अवदानों को याद करने व उनके मिशन को पूरा करने का संकल्प लेने का सिलसिला आज भी जारी है और कल भी रहेगा. देश–विदेश के बड़े-बड़े शहरों से लेकर भारत के छोटे-छोटे कस्बों तक में उनका परिनिर्वाण दिवस मनाया जा रहा है. इस अवसर पर तमाम आंबेडकरवादी बाबा साहेब का मिशन पूरा करने का संकल्प लेंगे. ऐसे लोगों के लिए आज सबसे जरुरी है उस हिन्दू राष्ट्र के खतरे से पार पाने का संकल्प लेने की, जिसके विषय में वर्षों पहले बाबा साहेब ने सावधान करते हुए कहा था, ’अगर हिन्दू राष्ट्र मूर्त रूप लेता है तो इस देश के लिए बड़ा खतरा पैदा हो जायेगा. हिन्दू कुछ भी कहें पर, हिन्दू राज स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए एक आफत है. इस आधार पर हिन्दू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए ! ’वर्षो पहले डॉ. आंबेडकर ने जिस हिन्दू राष्ट्र रोकने का आह्वान किया था, वह चुनौती बनकर सामने खड़ा हो चुका है.
सरकारी कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों के नामकरण में आई है तेजी
भारी अफ़सोस की बात है कि दलित-बहुजन समाज के अधिकांश नेता और बुद्धिजीवी मुंह बाये खड़े हिन्दू राष्ट्र के खतरे को उस हद तक महसूस नहीं कर रहे हैं. कोढ़ में खाज तो यह है की जिन हिन्दू राष्ट्र को जमीन पर उतारने में जो हिन्दुत्ववादी शक्तियां जुटी हुई हैं, उनका राजसत्ता पर प्रभावी नियंत्रण हो चुका है और दलित-पिछड़े समुदायों के ढेरों नेता और बुद्धिजीवी स्व-हित में उन्हीं के सहयोगी की भूमिका में आ गए हैं. लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि जो लोग हिन्दुत्ववादियों के प्रतिरोध में जुटे हैं, वे तक हिन्दू राष्ट्र के खतरे की ठीक से उपलब्धि नहीं कर पा रहे हैं, जबकि 2025 के शुरुआत से हिन्दू राष्ट्र रह-रह अपनी उपस्थिति का अहसास कराता रहा है. ताज़ी घटना इस एक दिसंबर की है. उस दिन प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम बदल दिया गया. अब इसे ‘सेवा तीर्थ’ के नाम से जाना जायेगा. उसी दिन देश भर के राजभवनों के नाम भी बदले गए. अब राज भवनों को लोक भवन के नाम से जाना जायेगा, जबकि उपराज्यपालों के कार्यालय ‘लोक निवास’ के नाम जाने जायेंगे. इसके पहले केंद्र सरकार ने राजपथ का नाम बदलकर ‘कर्तव्य पथ’ किया था. इसी तरह केन्द्रीय सचिवालय का नाम ‘कर्तव्य भवन’ किया गया, जिसके पीछे यह युक्ति खड़ा किया गया कि सार्वजनिक सेवा एक प्रतिबद्धता है. वहीं प्रधानमंत्री के आवास का नाम भी 2016 में बदला गया था. पहले प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास रेस कोर्स रोड कहलाता था, लेकिन 2016 में इसे बदलकर ‘कल्याण मार्ग’ किया गया. अधिकारीयों के मुताबिक यह नाम कल्याण का बोध कराता है. मोदी राज में पिछले एक दशक से सरकारी कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों के नामकरण में व्यापक बदलाव हुआ है, जिसमें अब और तेजी आ गई है. इसके पीछे कथित गुलामी के नामों का बोध मिटाने के साथ हिंदुत्व और हिन्दू राष्ट्र का अहसास कराना है. इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी ने 25 नवम्बर को राम मंदिर पर ध्वजारोहण करते हुए बड़ी घोषणा की. उस दिन मैकाले की शिक्षा पद्धति से उपजी मानसिकता के समूल नाश का आह्वान किया. उन्होंने दृढ़ता से कहा था कि मैकाले ने भारतीय समाज को उसकी समृद्ध सांस्कृतिक चेतना से विमुख करने के लिए जिस शिक्षा पद्धति का सूत्रपात किया, उसने हमें गुलामी की मानसिकता में धकेल दिया. आज जब राम मंदिर पर धर्म ध्वजा के मध्यम से देश अपनी सांस्कृतिक चेतना के एक और उत्कर्ष बिन्दु का साक्षी बन रहा है, तो इस अवसर पर हमें इस मानसिकता के खात्मे का संकल्प भी लेना होगा. 10 वर्ष बाद मैकाले की शिक्षा पद्धति के 200 साल पूरे हो जायेंगे. तब तक हमें इस मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति पा लेनी होगी. बहरहाल हाल के दिनों में सरकारी कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों के नामकरण में आई तेजी और मैकाले की शिक्षा पद्धति से उपजी मानसिकता के समूल नाश की दाम्भिक घोषणा इसलिए मुमकिन हो पाई क्योंकि हिन्दू राष्ट्र अपना असर दिखाने लगा है, सिर्फ इसकी औपचारिक घोषणा बाकी रह गई है. यह घोषणा भी जल्द ही हो जायेगी और मनुस्मृति आधारित इसका संविधान भी 2035 से लागू हो जायेगा, इसमें कोई संशय नहीं रहना चाहिए!
बनकर तैयार हो गया है : हिन्दू राष्ट्र का संविधान
डॉ. आंबेडकर ने वर्षों पहले जिस हिन्दू राष्ट्र को रोकने का आह्वान किया था, उस भयावह हिन्दू राष्ट्र का संविधान तैयार हो चुका है, इसका इल्म बहुत कम आंबेडकरवादियों को है. अप्रिय सच्चाई यही है कि हिन्दू राष्ट्र के संविधान का प्रारूप 2025 के महाकुम्भ में सामने आ चुका है. इसे 12 महीने 12 दिन में 25 विद्वानों ने मिलकर तैयार किया है, जिसके पीछे चारों पीठ के शंकराचचार्यों की सहमति है. 501 पन्नों के इस संविधान की निर्माण समिति में उत्तर भारत के 14 और दक्षिण भारत के 11 विद्वान शामिल किए गए हैं. संविधान निर्माण समिति ने धर्मशास्त्रों के साथ ही रामराज्य, श्रीकृष्ण के राज्य, मनुस्मृति और चाणक्य के अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के बाद हिंदू राष्ट्र के संविधान को तैयार किया है. संविधान निर्माण समिति में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के विद्वान भी शामिल रहे. इसके संरक्षक शांभवी पीठाधीश्वर के अनुसार 2035 तक हिंदू राष्ट्र की घोषणा का लक्ष्य रखा गया है. संविधान निर्मात्री मंडली की और से कहा गया है कि हिंदू राष्ट्र के पहले संविधान के आधार पर देश गणराज्य होगा. चुनाव के आधार पर ही राष्ट्र के प्रमुख का चयन किया जाएगा. संविधान में यहां पर सभी को रहने का अधिकार रहेगा, लेकिन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ कार्य करने वालों को सख्त दंड का विधान भी बनाया गया है. संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष डॉ. कामेश्वर उपाध्याय के अनुसार हिंदू राष्ट्र में हर नागरिक के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य होगी. हिंदू राष्ट्र में वर्तमान कर प्रणाली नहीं रहेगी और कृषि को पूर्णत: कर मुक्त कर दिया जाएगा। कर चोरी पर कठोर दंड का विधान होगा. संविधान के अनुसार एकसदनात्मक व्यवस्थापिका होगी और सदन का नाम संसद नहीं हिंदू धर्म संसद होगा. हर संसदीय क्षेत्र में एक धर्म सांसद निर्वाचित होगा। पूरे देश में 543 धर्म सांसद निर्वाचित होंगे. धर्मसांसद के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 और मतदान करने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 16 वर्ष होगी. चुनाव लड़ने और लड़ाने का अधिकार केवल सनातन धर्म के अनुयायियों, भारतीय उप महाद्वीप के पंथ जैन, बौद्ध व सिख मत के अनुयायियों को होगा. विधर्मियों को मताधिकार से वंचित किया जायेगा. धर्मसांसद बनने के लिए उम्मीदवार को वैदिक गुरुकुल का छात्र होना अनिवार्य होगा. अध्यक्ष का चयन गुरुकुलों से होगा. धर्मशास्त्र और राजशास्त्र में पारंगत व्यक्ति जिसने राज्य संचालन का पांच वर्ष का व्यवहारिक अनुभव लिया हो वहीं राष्ट्रध्यक्ष पद के योग्य होगा. हिंदू राष्ट्र संविधान के अनुसार युद्ध के समय राजा को अपनी सेना का नेतृत्व करना होगा. राष्ट्राध्यक्ष विषय विशेषज्ञ, शास्त्र ज्ञाता, शूरवीर, शस्त्र चलाने में निपुण और प्रशिक्षित व्यक्तियों को ही मंत्री पद पर नियुक्त करना होगा. हिंदू राष्ट्र में हिंदू न्याय व्यवस्था लागू की जाएगी.यह संसार की सबसे प्राचीन न्याय व्यवस्था है.राष्ट्राध्यक्ष के नियंत्रण में मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीश होंगे. कोलेजियम जैसी कोई व्यवस्था नहीं रहेगी. भारतीय गुरुकुलों से निकलने वाले सर्वोच्च विधिवेत्ता ही न्यायाधीश के पद को सुशोभित करेंगे. सभी को त्वरित न्याय सुनिश्चित किया जाएगा. झूठे आरोप लगाने वालों पर भी दंड का विधान होगा. दंड सुधारात्मक होंगे. हिंदू राष्ट्र में प्राचीन वैदिक गुरुकुल प्रणाली को लागू किया जाएगा. अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को गुरुकुलों में परिवर्तित किया जाएगा और शासकीय धन से संचालित सभी मदरसे बंद किए जाएंगे. मनु और याज्ञवल्क की स्मृतियों का व्यावहारिक उपयोग किया जाएगा. पिता की मृत्यु के उपरांत श्राद्ध करने वाला उत्तराधिकारी होगा. एक पति, एक पत्नी प्रथा चलेगी. हिंदू विधि का अंतिम व सर्वोच्च उद्देश्य वर्णाश्रम व्यवस्था की पुन: स्थापना है. कर्म आधारित वर्ण-व्यवस्था को विधिक रूप दिया जाएगा! वैसे तो हिन्दू राष्ट्र का संविधान लागू किये बिना संघ काफी हद तक अपना लक्ष्य प्राप्त कर चुका है.तमाम संस्थाओं पर उच्च वर्ण का वर्चस्व कायम करने के साथ , वह सरकार की सैनिक स्कूलों के निर्माण की नई नीति का लाभ उठाकर हिन्दू राष्ट्र के लिए मनचाहा सैन्य – अधिकारी भी तैयार करने लगा है. चूँकि खुलकर भारतीय संविधान की जगह हिन्दू धर्माधारित विधान लागू करने के लिए हिन्दू राष्ट्र की घोषणा जरुरी है, इसलिए वह इस दिशा में आगे बढ़ रहा है,किन्तु राहुल गांधी उसकी राह में अवरोध बनकर खड़े हो गए हैं.
एसआईआर के जरिये चुनावी निरंकुशता की और बढ़ रहा है : भारत
आज आंबेडकरवादियों को यह बात भी गांठ बाँध लेने की जरुरत है कि केचुआ के सहयोग से मोदी सरकार ने लोकतंत्र को अपहृत कर देश को चुनावी निरंकुशता वाले देशों की श्रेणी में पहुंचा दिया गया है. विश्व के विभिन्न संस्थान, जो दुनिया के लोकतान्त्रिक मूल्यों का अध्ययन करते हैं, ने निष्कर्ष दिया है कि भारत चुनावी निरंकुशता वाले देशों की श्रेणी में आ गया है और ‘बंद लोकतंत्र’ की ओर अग्रसर है.चुनावी निरंकुशता एक ऐसी संकर व्यवस्था है, जिसमें नियमित चुनाव होते है, लेकिन ये चुनाव लोकतान्त्रिक स्वतंत्रता और निष्पक्षता के मानको को पूरा नहीं कर पाते.इस व्यवस्था में लोकतंत्र का दिखावा होता है, लेकिन सत्तावादी तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे की राजनीतिक दमन और अनुचित चुनाव! जिस बंद लोकतंत्र की ओर भारत अग्रसर है , उसका मतलब होता है एक ऐसा लोकतंत्र जिसमे चुनाव तो होते हैं, लेकिन सत्ता,संसाधन और निर्णय कुछ ही लोगों के नियंत्रण में रहते हैं. यह वास्तविक लोकतंत्र नहीं माना जाता, बल्कि एक तरह का आंशिक या नियंत्रित लोकतंत्र होता है.लोकतान्त्रिक मूल्यों का अध्ययन वाले अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के मुताबिक ‘चुनावी लोकतंत्र’ के रूप में मशहूर भारत की स्थिति अब उतनी ही निरंकुश देश की हो चली है, जितनी कि उसके पडोसी देश पकिस्तान की है. भारत में निरंकुशता की स्थिति बांग्लादेश और नेपाल से भी ख़राब है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नीतियों से शक्ति के स्रोतों पर हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग से जन्मे लोगों 80 से 90 % कब्ज़ा जमवा कर संविधान को काफी हद व्यर्थ कर ही दिया है, अब केचुआ के सहयोग से देश में चुनावी निरंकुशता को बढ़ावा देकर को संविधान को पूरी तरह प्रभावहीन करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है और इसमें जरिया बन रहा है ; एसआईआर (विशेष गहन संशोधन ).
काबिले गौर है कि विगत दो वर्षों में जिस तरह राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय के एजेंडे हो शिखर प्रदान कर दिया है, उससे हिन्दुत्ववादी भाजपा के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो गया है. इसका प्रमाण 2024 लोकसभा चुनाव में मिला, जब चुनाव आयोग का सहयोग लेकर मोदी खुद को निश्चित हार से बचाने तथा विपक्ष को सत्ता में आने से रोकने में सफल हुए थे. लोकसभा में अपनी हार टालने के बाद मोदी केचुआ के सहारे एसआईआर की प्रक्रिया चला कर लोकतंत्र को अपहृत करने की दिशा में अग्रसर हुए और बिहार में मनचाहा परिणाम पाने के बाद 12 राज्यों में यह प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है. एसआईआर की यह प्रक्रिया अब उन दलित, आदिवासी और पिछड़ों को मताधिकार से वंचित करने का जरिया बन गई है, जिनका राजनीति में हस्तक्षेप हिन्दू धर्म में अधर्म घोषित रहा है. राजनीति में इनका हस्तक्षेप हिन्दू धर्म के विरुद्ध होने के कारण ही हिन्दुत्ववादी मोदी सरकार इनको वोटाधिकार से वंचित करने के लिए निर्ममता से वैसा ही लोकतंत्र विरोधी उपक्रम चलाएगी जैसा, आरक्षण से महरूम करने के लिए सरकारी उपक्रमों को बेचने जैसा देश विरोधी कृत्य अंजाम दी. यह देश विरोधी काम इसलिए अंजाम दिया गया क्योंकि आरक्षण से दलित-पिछडन को उन पेशों को अपनाने का अवसर मिल जाता था, जो पेशे/ कर्म हिन्दू धर्मशास्त्रों द्वारा इनके लिए अधर्म घोषित रहे. एसआईआर की प्रक्रिया के जरिये मोदी सरकार हर राज्य में लाख – करोडो वोट दो कारणों से काटेगी. एक तो इससे चुनाव में विजय सुनिश्चित कर लेगी, दूसरा, दलित, आदिवासी , पिछड़ों को राजनीति के अधिकार से वंचित का पुण्य का काम कर लेगी.लेकिन एसआईआर का संभावित परिणाम जानने के बावजूद विपक्षी दल और बहुजन एक्टिविस्ट इसके विरुद्ध अपेक्षित मात्र में सक्रिय नहीं हैं, इसलिए निकट भविष्य में भारत का हिन्दू राष्ट्र घोषित होना और इसमें मनुस्मृति आधारित संविधान लागू होना तय सा दिख रहा है,इसलिए आंबेडकरवादियों को हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ कुछ अलग रणनीति के साथ सामने आना होगा!
हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य
बहरहाल एसआईआर की प्रक्रिया परवान चढ़ने के बाद आज की तारीख में हिन्दू राष्ट्र को रोकना प्रायः नामुमकिन हो जायेगा और एसआईआर अपना रंग दिखाएगी ही दिखाएगी. कारण, यह प्रक्रिया अब रुकने को नहीं है. इन पंक्तियों के लिखे जाने के दौरान खुद सुप्रीम कोर्ट ने इसे हरी झंडी दिखा दी है. ऐसे में अब आंबेडकरवादियों के सामने एक ही रास्ता है बचता है और वह है हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ आरपार की लड़ाई ! लेकिन आरपार की लड़ाई में उतरने के पहले सबसे जरुरी है इसका लक्ष्य जान लेना, जिससे बड़े-बड़े विद्वान तक अनजान हैं. जहाँ तक इसके लक्ष्य का सवाल है गूगल कहता है,’हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य हिन्दू लोगों को उनकी संस्कृति की सुरक्षा और संरक्षण है,जिसमें राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को पश्चिमी विचारों के बजाय स्वदेशी विचारों पर आधारित करने पर जोर दिया जाता है. इसके समर्थकों के अनुसार इसका उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जो हिन्दू मान्यताओं, मूल्यों और सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा दे , जिसमें धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष जैसे चार पुरुषार्थो को जीवन का लक्ष्य माना जाता है.’सरल शब्दों में कहा जाय तो हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य वर्ण–व्यवस्था आधारित एक ऐसा समाज बनाना है,जो मुख्यतः मनुस्मृति द्वारा परिचालित होगा,ऐसा हिन्दू राष्ट्र पर अध्ययन करने वाले तमाम अध्येता कहते हैं. खुद हिंदुत्व को परिभाषित करने वाले सावरकर का कहना रहा, ’मनुस्मृति वह धर्मग्रंथ है जो हमारे हिंदू राष्ट्र के लिए वेदों के बाद सर्वाधिक पूजनीय है और जो प्राचीन काल से हमारी संस्कृति-रीति-रिवाजों, विचारों और व्यवहार का आधार बन गया है. इस पुस्तक ने सदियों से हमारे राष्ट्र की आध्यात्मिक और दिव्य यात्रा को संहिताबद्ध किया है. आज भी करोड़ों हिंदू अपने जीवन और व्यवहार में जिन नियमों का पालन करते हैं, वे मनुस्मृति पर आधारित हैं. आज मनुस्मृति हिन्दू कानून है. यही मूलभूत है.’ और ‘भारत के नए संविधान की सबसे बुरी बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है… इसमें प्राचीन भारतीय संवैधानिक कानूनों, संस्थाओं, नामकरण और पदावली का कोई निशान नहीं है.
मनुस्मृति: शक्ति के स्रोतों के बंटवारे की व्यवस्था
बहरहाल जिस मनुस्मृति आधारित समाज का निर्माण हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य है, उस मनुस्मृति का अबतक ठीक से अध्ययन नहीं हुआ. अगर होता तो पता चलता प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था और न्याय प्रणाली का आधार बनी मनुस्मृति बुनियादी तौर पर शक्ति के स्रोतों(आर्थिक- राजनीतिक- शैक्षिक– धार्मिक) के बंटवारे की एक अनोखी व्यवस्था के रूप में क्रियाशील रही है , जिसमें शक्ति के समस्त स्रोत सिर्फ हिन्दू ईश्वर के उत्तमांग(मुख- बाहु- जंघे) से जन्मे अपर कास्ट पुरुषों के लिए अधिकृत रहे. अपर कास्ट पुरुषों को छोड़कर दलित, आदिवासी , पिछड़े और यहाँ तक कि खुद सवर्णों की आधी आबादी के लिए शक्ति के स्रोत पूरी तरह अधर्म व निषिद्ध रहे! तो हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ आरपार की लड़ाई का मन बनाने के पहले यह बात गांठ बाँध लेनी पड़ेगी कि हिन्दू राष्ट्र की घोषणा के लिए सौ सालों से प्रयासरत आरएसएस का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र के जरिये शक्ति के समस्त स्रोत 7.5% संख्या के स्वामी अपर कास्ट पुरुषो को सौंपना तथा शुद्रातिशूद्र और महिलाओं से युक्त शेष 92 % आबादी को इससे पूरी तरह बहिष्कृत कर उस स्टेज में पहुचाना है, जिसमें बने रहने का निर्देश तमाम हिन्दू धर्मशास्त्र देते हैं! जहां तक मनुस्मृति के लागू होने का सवाल आजाद भारत में यह अघोषित रूप लम्बे समय से लागू रही, जिसमें 2014 के बाद भारी उछाल आ गया. इस दौर में हिंदुत्ववादी मोदी सरकार ने जो नीतियाँ बनाई , उससे बड़ी तेजी से शक्ति के समस्त स्रोत अपर कास्ट के हाथों जाने के हालात बने, जिसकी साक्ष्य वहन करती है मई , 2024 में आई ‘वर्ल्ड इनइक्वालिटी लैब- 2024’ की रिपोर्ट ! उस रिपोर्ट में यह तथ्य उभर कर सामने आया था कि देश की संपत्ति में 89% हिस्सेदारी सामान्य वर्ग अर्थात अपर कास्ट की है , जबकि दलित समुदाय की हिस्सेदारी मात्र 2.8 %. वहीं भारत के विशालतम समुदाय ओबीसी की देश की धन- संपदा में महज 9 % की हिस्सेदारी है. आज यदि कोई गौर से देखे तो पता चलेगा कि पूरे देश में जो असंख्य गगनचुम्बी भवन खड़े हैं, उनमें 80-90 प्रतिशत फ्लैट्स अपर कास्ट के हैं. मेट्रोपोलिटन शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में छोटी-छोटी दुकानों से लेकर बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में 80-90 प्रतिशत दूकानें इन्हीं की है. चार से आठ-आठ लेन की सड़कों पर चमचमाती गाड़ियों का जो सैलाब नजर आता है, उनमें 90 प्रतिशत से ज्यादे गाड़ियां इन्हीं की होती हैं. देश के जनमत निर्माण में लगे छोटे-बड़े अख़बारों से लेकर तमाम चैनल प्राय इन्ही के हैं. फिल्म और मनोरंजन तथा ज्ञान-उद्योग पर 90 प्रतिशत से ज्यादा कब्ज़ा इन्ही का है. संसद, विधानसभाओं में वंचित वर्गों के जनप्रतिनिधियों की संख्या भले ही ठीक-ठाक हो, किन्तु मंत्रिमंडलों में दबदबा इन्हीं का है. मंत्रिमंडलों में लिए गए फैसलों को अमलीजामा पहनाने वाले 80-90 प्रतिशत अधिकारी इन्हीं वर्गों से हैं. न्यायिक सेवा, शासन-प्रशासन,उद्योग-व्यापार, फिल्म-मीडिया,धर्म और ज्ञान क्षेत्र में भारत के अपर कास्ट जैसा दबदबा आज की तारीख में दुनिया में कहीं नहीं है. मोदी राज में अघोषित मनुस्मृति लागू होने के चलते भारत के आधी आबादी की स्थिति बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, चीन इत्यादि पाड़ोसी मुल्को से भी बदतर हुई है. इसका बेहद कारुणिक चित्र 2006 से हर साल वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित ‘ ग्लोबल जेंडर गैप के 2021’ की रिपोर्ट में सामने आई,जिसमे बताया गया कि भारत की आबादी को आर्थिक रूप से पुरुषों की बराबरी में आने में 257 साल लगेंगे. बहरहाल दलित- आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं इत्यादि कि इतनी कारुणिक स्थिति तब है, जब भारत में अघोषित रूप से मनुस्मृति लागू है. लेकिन भविष्य में जब हिन्दू राष्ट्र में घोषित रूप से मनुस्मृति लागू होगी, तब दलित, आदिवासी , पिछड़े, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की स्थिति कैसे होगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है.
हिन्दू राष्ट्र के मुकाबले के लिए: दलित- बहुजनों को देना होगा शक्ति के समस्त स्रोतों में हिस्सेदारी का सपना
बहरहाल हिन्दू राष्ट्र का सफलता से मुकाबला करना है तो दो बातों का सद्व्यवहार करना जरुरी है.पहला, शक्ति के समस्त स्रोतों पर अपर कास्ट के औसतन 80 से 90 % वर्चस्व से भारत में उस सापेक्षिक वंचना (रिलेटिव डिप्राईवेशन) के तुंग पर पहुँचने के अभूतपूर्व हालात पूँजीभूत हो गए हैं, जो क्रांति की आग में घी का काम करती है. आज के भारत में सापेक्षित वंचना के जो हालात हैं, ऐसे हालात न तो फ्रांसीसी क्रांति में रहे और न ही रूस की वोल्सेविक क्रांति में. इसी के अहसास लबरेज होने के बाद दक्षिण अफ्रीका में ख़त्म हो गई भारतके अपर कास्ट जैसे गोरों की सत्ता.आंबेडकरवादियों को वंचितों में यह अहसास पैदा करने का अनवरत प्रयास चलाना होगा. चूँकि संघ-भाजपा के हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य शक्ति के समस्त स्रोत 7.5 % संख्या वाले अपर कास्ट के हाथ में देना है और आम वंचित हिन्दू इससे अनजान हैं, इसलिए यदि हिन्दू राष्ट्र मुकाबला करना है तो दलित, आदिवासी, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और आधी आबादी को मनुस्मृति के अर्थशास्त्र से अवगत कराने का अनवरत प्रयास चलाना होगा. यही नहीं दलित बहुजनों की मानसिक समस्या शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी की चाह(एस्पिरेशन) पैदा न होना भी है. उनमें यह चाह कूंट–कूंट भरने का प्रयास चलाना होगा. जिस दिन यह चाह ठीक से पैदा हो गई, दलित- बहुजन भारत को अफ्रीका बनाने की दिशा में अग्रसर हो जायेंगे. इस मामले में बहुजन डाइवर्सिटी मिशन का निम्न दस सूत्रीय एजेंडा काफी कारगर हो सकता है!
