Bihar Election 2025 Exit Poll: एक्जिट पॉल की पोल
Bihar Election 2025 Exit Poll: बिहार विस चुनाव के जो एग्जिट पॉल आ रहे हैं, वे सचमुच काफी चौकाने वाले लग रहे हैं। चौंकाने वाले इसलिए भी लग रहे हैं कि खुद एग्जिट पॉल कई दृष्टिकोण से प्रश्न के घेरे में है।
अलखदेव प्रसाद ‘अचल’
न्यूज इंप्रेशन
Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव के जो एग्जिट पॉल आ रहे हैं, वे सचमुच काफी चौकाने वाले लग रहे हैं। चौंकाने वाले इसलिए भी लग रहे हैं कि खुद एग्जिट पॉल कई दृष्टिकोण से प्रश्न के घेरे में है। अब सवाल उठता है कि आखिर इस तरह के एग्जिट पॉल कैसे आ रहे हैं ? क्या एक्जिट पॉल दिखाने वाली एजेंसियों के लोग हर विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं से पूछताछ करने के लिए गए थे? ऐसे एक्जिट पॉल के मायने क्या हैं और एक्जिट पॉल करने वाली एजेंसियां कौन हैं? एकाएक कहां से टपक गयीं ऐसी एजेंसियां? जिनका कोई पहले से नाम नहीं जानता हो। पहले से जो एजेंसियां ऐसा काम नहीं की हो। फिर बिहार विधानसभा चुनाव का एक्जिट पॉल कैसे दिखाने लगीं? कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक्जिट पॉल दिखाने वाली सारी एजेंसियां नयी हैं। उन एजेंसियों का पहले से ऐसा कुछ भी नहीं रहा है कि चुनाव में एग्जिट पॉल दिखाते रहे हैं और वे एग्जिट पोल सही साबित होते रहे हैं। पिछली लोकसभा चुनाव में भी अधिकांश एक्जिट पॉल वाले एनडीए गठबंधन को 400 से पार बता रहे थे, परन्तु हुआ क्या था? इससे सभी अवगत हैं कि आज भी केन्द्र सरकार नीतीश और नायडू की बैशाखियों पर चल रही है।एक तो सिर्फ एक उदाहरण है। दूसरा यह कि किसी भी क्षेत्र में किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता यह नहीं बता पा रहे हैं कि एग्जिट पॉल दिखाने वाली एजेंसियां हमारे क्षेत्र में आई भी थी। पूछताछ की भी थी। जब एक्जिट पॉल दिखाने वाली एजेंसी के लोग कहीं नहीं गए थे, तो फिर आखिर एग्जिट पॉल दिखाने वाली यह एजेंसियां कहां से बैठे-बैठे यह मुआयना कर ली कि किस विधानसभा क्षेत्र से एनडीए गठबंधन का प्रत्याशी जीत रहा है या महागठबंधन का प्रत्याशी जीत रहा है? आखिर बैठे-बैठे इस तरह का एग्जिट पॉल दिखाने के पीछे क्या मायने हैं? मायने साफ नजर आ रहे हैं कि एग्जिट पॉल दिखाने वाली एजेंसियां जो एग्जिट पोल दिखा रही है, उसके पीछे कहीं बहुत बड़ा षड्यंत्र तो नहीं है ? और यह सब कुछ एनडीए सरकार दिखवा रही है। ताकि घालमेल करने में आसानी हो जाए।इसके एवज में एजेंसियों को मोटी कमाई हो रही है। और कुछ हो या न हो, पर इस तरह एग्जिट पॉल देखने पर पार्टी कार्यकर्ता , पार्टी समर्थक और जनता भ्रमित तो जरूर हो जाती है। जिसके पक्ष में एग्जिट पॉल दिखाई जाती है, वे पक्ष वाले चारों तरफ यह प्रचारित करते हैं कि देखिए एग्जिट पॉल भी हमलोगों के पक्ष में है। हमारे गठबंधन की ही सरकार बनने जा रही है। वहीं,विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में हताशा तो जरूर होती है।लगने लगता है कि सारी मेहनत बेकार हो गयी।वैसे लोग अगर कहते भी हैं कि एग्जिट गलत है, तो उनलोगों की बातें भी सुनने वाले नहीं होते हैं।
दूसरे , एक्जिट पॉल अपने पक्ष दिखवाने के पीछे सरकार का यही मंशा रहता है कि पहले से मतगणना में पदाधिकारी के दिमाग में यह बात बैठ जाए कि लगता है कि सरकार इसी की आने वाली है। इसीलिए इसके पक्ष में ही काम करने में हमारा भी फायदा है। इसलिए जहां थोड़ी बहुत उलट फेर करने के लिए सरकार की ओर से दबाव बनाया जाता है, वहां वे पदाधिकारी भी उस दबाव में आ जाते हैं और फिर सरकार को इसका सीधा लाभ हो जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस समय चुनाव आयोग पूरी तरह से केंद्र सरकार की मुट्ठी में है। चुनाव आयोग केंद्र सरकार के ही इशारे पर सारा काम कर रहा है । अगर केंद्र सरकार चुनाव आयोग को मतगणना के दौरान थोड़ा बहुत उलट फेर करने के लिए दबाव बनाएगी, तो चुनाव आयोग आसानी से वैसा कर सकता है और बहुमत न आने पर भी बहुमत दिलवा सकता है। बाद में अगर विपक्षी इस पर आपत्ति जताता भी है तो सरकार के पक्षधर यह प्रचारित करेंगे कि विपक्षी हार जाने की वजह से ऐसा अनाप-शनाप बातें कर रहा है। क्योंकि एग्जिट पॉल तो पहले से ही हम लोगों के पक्ष में दिखा रहा था।
बिहार के चुनाव के लिए यह सब पहले से भी होता रहा है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जहां महागठबंधन बहुमत में आ गया था, परंतु दस बारह सीटों पर जानबूझकर 1000 वोटो से कम पर जीत का फासला दिखाकर एनडीए के प्रत्याशियों को जीत का प्रमाण पत्र दे दिया था। कहीं तो पहले महागठबंधन के प्रत्याशी की जीत की घोषणा भी कर दी गयी थी, कुछ घंटों के बाद एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी को जीत का प्रमाण पत्र दे दिया गया था।फिर कैसे कहा जाए कि इस बार चुनाव आयोग वैसा नहीं कर सकेगा? क्योंकि चुनाव आयोग तो ऐसे ही चाहे विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव, संदेह के घेरे में रहा है। महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव को सभी लोग देख चुके हैं कि किस तरह से मतदाता महागठबंधन के पक्ष में रहे थे। भाजपा के प्रत्याशी क्षेत्र में खदेड़े जा रहे थे। उनकी सभाओं में भीड़ तक नहीं हो पाती थी,इसके बावजूद भी चुनाव आयोग ने उलट फेर करवा कर वहां भाजपा को बहुमत में ला दिया था। अगर बिहार की बात करें, तो जब एनडीए सरकार ने बहुत किया था, तो फिर आचार-संहिता लागू होने पर महिलाओं के खाते में अप्रत्यक्ष घूस के रूप में दस दस हजार रुपए भेजने की जरूरत क्यों पड़ी थी। प्रधानमंत्री को रोड शो और गृहमंत्री को हप्तों तक पटना में डेरा क्यों डालना पड़ा था? प्रायः सभी यूट्यूब चैनल वाले ग्राउंड रिपोर्ट में यह दिखा रहे थे कि चारों तरफ महागठबंधन की लहर है। बिहार की जनता भी समझ रही थी। यह सभी ने देखा बिहार में महागठबंधन के पक्ष में ही लहर रही। एनडीए के प्रत्याशी तो दर्जनों जगहों पर अपने क्षेत्र में खदेड़े तक गए। उन्हें मतदाताओं से गालियां तक सुननी पड़ी। भाजपा प्रत्याशियों के ऊपर गोबर भी फेंके गए। फिर भी अगर बिहार में एनडीए जीत जाती है, तो इससे स्पष्ट है कि घाल मेल करके ही जीत सकती है। अब देखना है कि केंद्र और राज्य सरकार इस चुनाव में कितना घाल मेल कर पाती है?
