Bihar News: महागठबंधन के जीतने के ठोस कारण हैं
Bihar News : 11 November को बिहार विधानसभा चुनाव -2025 के दूसरे व अंतिम चरण का मतदान है. इस चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर 3,70,13, 556 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. अंतिम चरण में एनडीए की ओर से भाजपा के 53, जदयू के 44 ,लोजपा(रा)के 15, राष्ट्रीय लोक के 4 और हम के छः प्रत्यासी मैदान में हैं।
लेखक: एचएल दुसाध
न्यूज़ इंप्रेशन
Bihar: 11 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव -2025 के दूसरे व अंतिम चरण का मतदान है. इस चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर 3,70,13, 556 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. अंतिम चरण में एनडीए की ओर से भाजपा के 53 , जदयू के 44 ,लोजपा(रा)के 15, राष्ट्रीय लोक के 4 और हम के छः प्रत्यासी मैदान में हैं, जबकि महागठबंधन की ओर से राजद के 70, कांग्रेस के 37, वीआईपी के 8. सीपीआई के चार, सीपीआई( एमएल ) के छः और सीपीआई के एक प्रत्याशी के भाग्य का फैसला होना है.पहले चरण की बम्पर वोटिंग के बाद का इतिहास इस चरण में दोहराया जाता है कि नहीं, लोगों की निगाहें इस बात पर टिकी हुई है . इस चुनाव में कौन विजेता बनकर उभरता है, इसका कुछ-कुछ अनुमान आज चुनाव ख़त्म होने के बाद शुरू होने वाले एग्जिट पोल से लगाया जा सकेगा. किन्तु,जिस तरह पहले चरण में बम्पर वोटिंग हुई, उसके बाद से अधिकाँश विश्लेषक ही महागठबंधन के विजय की भविष्यवाणी करने लगे हैं . अब जबकि दूसरे चरण का वोट उन इलाकों में हो रहा है, जहां महागठबंधन ने 2020 में स्वीप किया था, इसलिए विश्लेषक और जोर गले से उसके विजय का दावा करने लगे हैं. बहारहाल महागठबंधन के विजेता के रूप में उभरने की भारी सम्भावना है, इस राय से यह लेखक भी सहमत है. महागठबंधन इस बार निश्चित रूप से विजेता के रूप में उभर सकता है, इसे जानने के लिए 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम पर एक बार फिर नजर दौड़ा लेना होगा!
राहुल गांधी ; राजनीति के पारस पत्थर
2020 में मतों की गिनती 10 नवम्बर को हुई थी और एनडीए अर्थात मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 125 नीर्वाचित विधायकों के साथ विजेता के रूप में उभरा था, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं. अन्य छोटे दलों ने 7 सीटों पर विजय प्राप्त की थी , जबकि केवल एक निर्वाचित विधायक निर्दलीय था. दोनों गठबंधनों के बीच 0.03% वोट का अंतर था. इस अंतर के कारण महागठबंधन 12,000 और दर्जन भर से कुछ अधिक सीटों से हार गया था.निहायत ही मामूली अंतर से हुई गठबंधन की हार के लिए तब अधिकाश विश्लेषकों ने ही कांग्रेस के कमजोर कमजोर प्रदर्शन को जिम्मेवार ठहराया गया था,जो 70 सीटों पर लड़कर सिर्फ 19 सीटें जीतने में सफल हुई थी. बहरहाल अगर 2020 में कांग्रेस ही हार की सबसे कमजोर कड़ी थी तो मानना हो महागठबंधन इस बार जरुर सत्ता पर काबिज होने जा रहा. कारण, जो कांग्रेस 2020 में महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी थी, वह इस बार कई गुना ताकतवर बनकर चुनाव में उतरी है. 2020 में कांग्रेस एक सवर्णवादी पार्टी थी. किन्तु फरवरी 2023 में रायपुर में हुए अपने 85 वें अधिवेशन से उसने जिस तरह सामाजिक न्याय का दामन थामने के बाद , उससे वह एक सामाजिक न्यायवादी दल में तब्दील हो गई. इससे 2020 वाली कांग्रेस में आज जमीन – आसमान का अंतर आ गया है. खड्गे और राहुल गांधी के चमत्कारी नेतृत्व में केन्द्रीय सत्ता पर कब्ज़ा जमाने की दिशा में आगे बढ़ रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 2020 की अपनी दुर्बलताओं को अतिक्रम कर आज बहुत आगे निकल चुकी है.आज की राजनीति के केंद्र में कांग्रेस आ चुकी है और लोकप्रियता में इसके नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. आज भारतीय राजनीति के केंद्र में एक से पांच तक राहुल गांधी हैं और मोदी सहित बाकी नेताओं की गिनती छठे नंबर से शुरू होती है.एक सर्वे के मुताबिक़ आज 20 करोड़ लोग सोशल मीडिया पर कांग्रेस का प्रचार अपनी मर्जी से कर रहे हैं: 2020 में ऐसी स्थिति नहीं थी.आज राहुल गांधी की रणनीति में कई लोगों को सुंग जू की झलक नजर आने लगी है. युद्ध नीति में सुंग जू को वही सम्मान हासिल है जो साइंस में न्यूटन को, राजनीति में चाणक्य को, धूर्तता में मैकियावेली को! जिस तरह राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के एजेंडे को विस्तार देने का काम किया,उससे आज वह सामाजिक न्याय के मामले में भारत के तमाम बहुजनवादी दलों को बहुत पीछे छोड़ दी है. आज राहुल गांधी ,उस सामाजिक न्याय की राजनीति को चरम पर पहुंचा दिए हैं, जिस पर चुनाव केन्द्रित होने पर भाजपा हार वरण करने के लिए बराबर अभिशप्त रही. सामाजिक न्याय के जोर से वह भाजपा को कर्णाटक और तेलंगाना में शिकस्त देने में सफल रहे. राहुल गांधी 2024 के चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करके मोदी सरकार को लगभग सत्ता से बेदखल कर दिए थे, मगर केचुआ की जोर से मोदी सत्ता बचाने में कामयाब रहे. आज राहुल गांधी की स्थिति , उस पारस पत्थर जैसी हो गई है ,जिसके स्पर्श मात्र से कोई भी धातु सोना बन जाती है. राजनीति के इसी पारस पत्थर के संस्पर्श से 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव सपा को ऐतिहासिक विजय दिलाने में सफल रहे.अब बिहार विधानसभा चुनाव में वही सुखद अवसर तेजस्वी यादव को मिलने जा रहा है !पढ़ाई, दवाई , कमाई , सिचाई, सुनवाई और कार्रवाई से आगे बढ़कर : बिहार चुनाव केन्द्रित हो गया है सामाजिक न्याय पर 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार के लिए जिम्मेवार बताने वाले विश्लेषकों ने कभी यह बताने का प्रयास नहीं किया कि उस चुनाव को तेजस्वी यादव ने उस सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने का प्रयास ही नहीं किया, जिस पर केन्द्रित होने पर भाजपा हार वरण करने के लिए बराबर अभिशप्त रही है. चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करने से भाजपा हार वरण करने के सिवाय कुछ कर ही नहीं सकती, मोदी राज में इसका बड़ा दृष्टांत 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में स्थापित हुआ. उस चुनाव के मध्य जब मोहन भागवत आरक्षण के समी़क्षा की बात उठाए, उनकी बात को आधार बनाकर लालू प्रसाद ने जनता के बीच कहना शुरु किया था ,’ तुम आरक्षण का खात्मा करना चाहते हो, हम सत्ता में आये तो सबको सभी क्षेत्रों में संख्यानुपात में आरक्षण देंगे!’ संख्यानुपात में आरक्षण देने की उनकी बात वंचित वर्गों को स्पर्श कर गई और मोदी के लोकप्रियता के शिखर पर रहने के बावजूद भाजपा बिहार में बुरी तरह हारने के लिए विवश रही. भाजपा कभी अप्रतिरोध्य बन ही नहीं पाती,यदि देश के राजनीति की दिशा तय करने वाले यूपी- बिहार के मायावती – अखिलेश और तेजस्वी यादव जैसे क्षत्रप लालू यादव से प्रेरणा लेते हुए चुनावों को सामाजिक न्याय पर केंद्रित किये होते ! 2015 में सामाजिक न्याय के जरिए भाजपा को आसानी से मात देने का जो दृष्टांत बिहार में स्थापित हुआ, उसके बाद यूपी – बिहार में चार चुनाव हुए : 2017 में यूपी विधानसभा , 2019 में लोकसभा , 2020 में बिहार विधानसभा और 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव! इन चारों चुनावों में अज्ञात कारणों से मायावती , अखिलेश और तेजस्वी यादव ने सामाजिक न्याय के उस इकलौते व अचूक हथियार का जरा भी इस्तेमाल नहीं, जिसकी जोर से ही भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है.सबसे ताज्जुब की बात है कि खुद लालू जी के बेटे तेजस्वी यादव 2020 में उनकी तरह चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित न कर सके. 2015 में लालू प्रसाद यादव ने चुनाव पहले ही यह घोषणा कर कि मंडल ही बनेगा कमंडल की काट. उन्होंने बहुजनों को ललकारते हुए कहा था,’ ऐ 85 प्रतिशत वालों, उठो और मंडल से कमंडल फोड़ दो! उनकी इस घोषणा से वंचित बहुजनों में अपर कास्ट के खिलाफ जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ. लेकिन 2020 में तेजस्वी यादव न तो बहुजनों को अपर कास्ट के खिलाफ ध्रुवीकृत करने लायक कोई आह्वान किये और न ही अपने पिता की तरह सभी क्षेत्रों में दलित, पिछड़ों और अकलियतों को संख्यानुपात में आरक्षण दिलाने की बात किये. वह पूरे चुनाव ए टू जेड के लिए पढ़ाई, दवाई , कमाई , सिचाई, सुनवाई और कार्रवाई की घोषणा करते रहे. परिणामस्वरूप चुनाव में उनकी नैया किनारे जाकर डूब गई. तेजस्वी 2020 की हार से कोई सबक नहीं लिए और 2025 में भी 2020 की तरह ही पांच बातों- पढ़ाई, दवाई , कमाई , सिचाई, सुनवाई और कार्रवाई- की रट लगाये जा रहे थे .वह तो भला हो राहुल गांधी का कि 2025 का बिहार चुनाव अब 2024 के लोकसभा चुनाव की भांति पूरी तरह उस सामाजिक न्याय पर केन्द्रित हो गया है, जो भाजपा के लिए मौत का फरमान साबित होता है !
महागठबंधन के संकल्प पत्र से बढ़ी है उसके विजय की सम्भावना!
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिस 5 न्याय , 25 गारंटी और 300 वादों से युक्त ‘न्याय-पत्र’ के रूप में आजाद भारत की हिस्ट्री का सबसे क्रांतिकारी घोषणापत्र तैयार किया था, उसी की आत्मा उधार लेकर महागठबंधन ने 2025 के बिहार चुनाव का अपना घोषणापत्र निकाला है. इसमें सत्ता में आने पर 20 दिनों के अन्दर अधिनियम ला कर हर परिवार में कमसे कम एक एक सदस्य को नौकरी देने;सभी जीविका दीदियों को स्थायी करने एवं उनको 30 हजार प्रतिमाह वेतन देने; माई-बहन योजना के तहत प्रतिमान 2,500 आर्थिक सहायता देने ; नवोदय विद्यालय के तर्ज पर प्रत्येक अनुमंडल में कर्पूरी ठाकुर आवासीय विद्यालय की स्थापना करने, शिक्षा के क्षेत्र में संविदा प्रणाली समाप्त करने, 100 महिला कॉलेज खोलने, पटना में सावित्रीबाई फुले-फातिमा शेख विश्वविद्यालय की स्थापना करने; पटना विश्व विद्यालय को केन्द्रीय विश्व विद्यालय का दर्जा दिलाने ; हर ग्रेजुएट एवं पोस्ट –ग्रेजुएट को 2 से 3 हजार बेरोजगारी भत्ता देने; संविदा कर्मियों को चरणबद्ध तरीके से स्थाई करने, आउट सोर्सिंग प्रणाली समाप्त करने इत्यादि जैसी घोषणाएं मतदाताओं को अवश्य ही उद्वेलित करेंगी , ऐसा संकल्प पत्र की समीक्षा करने वाले अधिकांश विश्लेषकों का मानना है. लेकिन इंडिया गठबंधन के ऐतिहासिक संकल्प पत्र की सबसे क्रांतिकारी घोषणा है 25 करोड़ तक सरकारी ठेकों/आपूर्ति कार्यो में अतिपिछडा , अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति के 50 % आरक्षण. इस घोषणापत्र ने 2020 के मुकाबले 2025 में महागठबंधन की सम्भावना बहुत ज्यादा बढ़ा दी है.इधर पहले चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन राहुल गाधी ने जिस तरह नौकरशाही और कार्पोरेट सेक्टर के साथ सेना में 10% उच्च जातियों के वर्चस्व को लेकर सवाल उठाया है और उस पर जिस तरह की उग्र प्रतिक्रिया भाजपा की ओर से आई है, उससे पहली बार देश में संदेश गया है कि आने वाले दिनों में सेना में भी आरक्षण लागू हो सकता है. इसका वंचित जाति के वोटरों पर क्या असर हो सकता है,इसकी सहज कल्पना की जासकती है.
वोट चोर – गद्दी छोड़ से उद्वेलित हैं बिहार के मतदाता भी !
राहुल गांधी के प्रयास से जहाँ लम्बे अन्तराल के बाद 2025 में बिहार विधानसभा का चुनाव सामाजिक न्याय पर केन्द्रित होकर तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनने की सम्भावना को नई उंचाई दिया है, उसमें वोट चोरी की जागरूकता ने और बुलंदी प्रदान कर दी है, जिसका श्रेय अगस्त के शेष में निकली 1300 किमी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को जाता है. इस यात्रा ने बिहार के जन-जन तक संदेश पहुंचा दिया है कि देश बेचवा मोदी सरकार की हाल के दिनों की चुनावी सफलता चुनाव आयोग के साथ मिल कर की गई वोट चोरी नहीं, वोट की डकैती का परिणाम है.इस यात्रा ने आज ख़त्म होने वाली बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को भारी बढ़त दिला दी. इसके बाद राहुल गांधी प्रायः दो महीने के लिए बिहार चुनाव प्रचार से दूरी बना लिए. इससे महागठबंधन के समर्थकों में कुछ निराशा जरुर पैदा हुई. इस बीच महागठबंधन के प्रचार भार तेजस्वी यादव संभाले रहे. राहुल गांधी सबसे बिलम्ब से प्रचारमें जुटे,लेकिन नौकरशाही, प्राइवेट यूनिवर्सिटीयों, अस्पताल, मीडिया इत्यादि में बहुजनों की हिस्सेदारी की बात जोर-शोर से उठाये जाने के कारण, उनकी हर सभा चर्चा का विषय बनती रही. इसी यात्रा में उन्होंने 4 नवम्बर को औरंगाबाद में सेना में आरक्षण का मुद्दा उठाकर वंचितों को सुखद आश्चर्य में डाल दिया. लेकिन इसके अगले दिन उन्होंने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर वोट- चोरी पर जो हाइड्रोजन बम फोड़ा , वह पिछले एक महीने से चल रही चुनाव प्रचार की सबसे बड़ा घटना साबित हुई. अबतक राहुल गांधी वोट चोरी पर कई खुलासे किये थे पर, बिहार विधानसभा चुनाव का यह सबसे विस्फोटक खुलासा साबित हुआ.इसके अगले दिन :6 नवम्बर को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का वोट पड़ा ,जिसमें अतीत के सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त हो गए. 6 नवंबर के मतदान में वोट प्रतिशत की आश्चर्यजनक वृद्धि को लोगों ने महागठबंधन की सत्ता में वापसी के रूप में देखा: अगले दिन भारी मतदान पर बिहारवासियों को धन्यवाद देते हुए तेजस्वी यादव रो पड़े!
सारे लक्षण एनडीए के खिलाफ दिख रहे हैं
चुनाव के सारे लक्षण आज एनडीए के प्रतिकूल दिख रहे हैं. मतदाताओं में बहुत पहले संदेश चला गया था कि भाजपा नितीश के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी और जीतने पर पिछले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहराते हुए अपने दल का सीएम घोषित कर देगी. महागठबंधन द्वारा तेजस्वी को सीएम फेस घोषित किये जाने के बाद , एनडीए ने जब उन्हें सीएम फेस घोषित नहीं किया,नीतीश समर्थक भारी आहत हुए. उन्हें लगा यदि कुछ उपाय नहीं किया गया तो उन्हें एक असहाय पूर्व सीएम बनकर रह जाना पड़ा. उसके बाद फिजा में यह बात तैरने लगी,’ जहाँ दिखे भाजपा- लोजपा, वहा लालटेन ही तीर है !’ इधर खबर फ़ैल गई कि नीतीश समर्थक इस बार चिराग से 2020 का हिसाब पूरा करने में जुट गए हैं. भाजपा की चाल-ढाल देखते हुए नितीश कुमार ने मोदी से दूरी बना ली और पटना में उनके रोड शो तक में शामिल नहीं हुए. पहले चरण की बम्पर वोटिंग के बाद मोदी दिखाना शुरू किये कि नरेन्द्र – नितीश साथ हैं.पर , अनुकूल असर न होते देख चुनाव प्रचार ख़त्म होने डेढ़ दिन पूर्व वह बिहार छोड़ दिए. कुल मिलाकर एनडीए में चल रहे घाट-प्रतिघात के खेल से उसकी की वापसी की सम्भावना निहायत ही क्षीण हो गई है. इतने प्रतिकूल हालात के बावजूद अगर एनडीए जीत जाता है तो देश में सीधा संदेश जायेगा कि मोदी एंड क. ने वोट चोरी का एक और अध्याय रचा है.इससे उसे सत्ता तो मिल जाएगी पर, उसके खिलाफ अवाम में जो अविश्वास पनपेगा, वह उसके लिए बहुत नुकसानदेह होगा !
(लेखक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ओबीसी विभाग)के एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं)
