Aadivasi Maha Aakrosh Rally: अधिकार की रक्षा के लिए सड़कों पर आदिवासियों का उतरा जन सैलाब, दो घंटे तक जिला मुख्यालय पर किया जोरदार प्रदर्शन
Aadivasi Maha Aakrosh Rally: आदिवासी समुदाय के संवैधानिक हक-अधिकार बचाने, आदिवासी एकता को बुलंद करने व कुड़मी को आदिवासी समाज में घुसपैठ करने से रोकने के लिए आदिवासी बचाओ मोर्चा के बैनर तले समाज के लोगों ने बुधवार को जिला मुख्यालय पर आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन किया।
न्यूज इंप्रेशन, संवाददाता
Bokaro: आदिवासी समुदाय के संवैधानिक हक-अधिकार बचाने, आदिवासी एकता को बुलंद करने व कुड़मी को आदिवासी समाज में घुसपैठ करने से रोकने के लिए आदिवासी बचाओ मोर्चा के बैनर तले समाज के लोगों ने बुधवार को जिला मुख्यालय पर आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन किया। विधि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गयी थी। नया मोड़ बिरसा चौक से जुलूस की शक्ल में पैदल मार्च करते हुए हजारों की संख्या में करीब ढाई बजे लोग जिला मुख्यालय पहुंचे। नया मोड़ से जिला मुख्यालय तक सड़कों पर आदिवासियों का सैलाब नजर आया। पहली बार इतनी तादाद में एक साथ लोग देखे गये। महारैली में पुरूषों से अधिक महिलाओं की संख्या थी। अधिकांश के हाथों में झंडा व श्लोग लिखा तख्ती था। पारंपरिक वेशभूषा के साथ हाथ में तीर-धनुष व कुल्हाडी थामे हुए थे। पूरे रास्ते आदिवासी जिंदा बाद व एक तीर-एक कमान, आदिवासी एक समान का नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। दिन के 2.40 बजे मुख्यालय में भारी भीड़ जमा हो गयी। प्रदर्शनकारियों ने करीब दो घंटे तक जिला समाहरणालय के दोनों गेट पर प्रदर्शन किया।
बिरसा चौक से समाहरणालय तक जनसैलाब
जिले के नौ प्रखंडों गोमिया, चास, पेटरवार, चंद्रपुरा, कसमार, नावाडीह, तेनुघाट और बेरमो, रजरप्पा सहित दूरदराज़ इलाकों से हजारों आदिवासी रैली में शामिल हुए। पारंपरिक वेशभूषा, तीर-धनुष और भाला-परसा लिए आदिवासी बिरसा चौक पहुंचे। सभी ने भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया और जय जोहार के नारों के साथ रैली आगे बढ़ी।
कुर्मी समाज की एसटी में शामिल होने की मांग अनुचित
अध्यक्षता आदिवासी बचाओ मोर्चा के अध्यक्ष अमित सोरेन ने सभा की अध्यक्षता की। संचालन पंकज मरांडी और सोहराय हांसदा ने किया। वक्ताओं ने कहा कि आदिवासी पहचान कोई कागज़ी दस्तावेज नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और अस्तित्व से जुड़ी है। उन्होंने चेताया कि कुर्मी समाज की एसटी में शामिल होने की मांग अनुचित, असंवैधानिक और षड्यंत्रपूर्ण है। प्रतिनिधिमंडल ने उपायुक्त अजय नाथ झा और पुलिस अधीक्षक हरविंदर सिंह को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों के नाम ज्ञापन सौंपा। डीसी को ज्ञापन सौंपने वालों में कुमार आकाश टुडू, अनिल मुर्मू, सोहराय हसदा, मंतोष सोरेन, अजीत मुर्मू, महेश सोरेन, सोहन हेमराम, अजय किसको, मनीष मुंडा, उमाशंकर मोदी, दिलीप हेमब्रम, लुदू मांझी, पंकज मरांडी, दशरथ टुडू, अजीत किसको, शांति सोरेन, बलबीर मुर्मू, अजय हेंब्रम, भीमसेन सोरेन, रूपचंद मुर्मू, सोहन हेंब्रम, प्रेम बास्के, विजय मांझी, जितेंद्र मुर्मू, रामकुमार हांसदा शामिल थे।
कुर्मी और कुडमी जातियां एसटी श्रेणी में शामिल नहीं हो सकतीं
ज्ञापन में कहा गया कि कुर्मी समुदाय द्वारा आदिवासी अधिकारों-आरक्षण, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, भूमि अधिकार, पेसा कानून और पांचवीं अनुसूची पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास आदिवासी समाज के पूर्वजों के बलिदान और संघर्ष से प्राप्त अधिकारों को हड़पने का है। बताया कि मानवशास्त्रीय अध्ययन, लुकर समिति की रिपोर्ट, पुरातात्विक खोज और जनसंख्या आनुवंशिकी सिद्ध करती है कि कुर्मी और कुडमी जातियां एसटी श्रेणी में शामिल नहीं हो सकतीं। यदि प्रशासन ने इस दिशा में कोई कदम उठाया, तो आदिवासी समाज सड़कों पर उतरकर उलगुलान की परंपरा को दोहराएगा।
फर्जी इतिहास और सांस्कृतिक लूट का विरोध
प्रतिनिधियों ने कहा कि कुर्मी समाज द्वारा चुवाड़ भूमिज विद्रोह, कोल विद्रोह और संताल हूल के नायकों के नामों में गलत उल्लेख कर इतिहास तोड़ा-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। वक्ताओं ने इसे भोले-भाले आदिवासी समाज के साथ सांस्कृतिक धोखाधड़ी और लूट बताया। रैली में फर्जी इतिहास गढ़ने वाले मुर्दाबाद के भी नारे लगे। सभा को पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, ज्योतना केरकेट्टा, निशा भगत, मोर्चा के सचिव रमेश मुर्मू, कुमार आकाश टुडू, सुनीता टुडू, अजय हेंब्रम और प्रदीप सोरेन सहित कई नेताओं ने संबोधित किया। सभी ने जोर देकर कहा कि आदिवासी समाज अपने अधिकारों और अस्मिता की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। चेतावनी दी गयी कि यदि उनकी संस्कृति और पहचान से खिलवाड़ हुआ, तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। हमारी पहचान पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
सेवा शिविर लगाया गया
रैली में शामिल लोगों के लिए सेक्टर-2 स्थित गुरुद्वारा मोड़ पर सेक्टर 12 सरना विकास समिति द्वारा संजू सामंता, करतार समानता और मनीष मुंडा के नेतृत्व में शरबत और शीतल जल का वितरण किया गया।
सुरक्षा के पुख्या इंतजाम
विधि व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए नया मोड से लेकर जिला मुख्यालय के बीच हर चौक-चौराहे पर मजिस्ट्रेट व पुलिस बल की तैनाती की गयी थी। कई जगह बांस से बैरिकेटिंग की गयी थी। इस बावत चास एसडीओ प्रांजल ढांडा ने बताया कि सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अलग-अलग स्थानों पर 20 से मजिस्ट्रेट सहित भारी संख्या में पुलिस जवानों व अधिकारियों की तैनाती की गयी है। जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन के चलते रोड़ जाम हो गया। दो पहिया व चार पहिया वाहनों को गुजरने में भारी मशक्त करना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने सादगी व शालीनता का परिचय दिया। करीब एक घंटे तक जाम की स्थिति बनी रही, पर यहां एक भी पुलिस जवान नजर नहीं आए।
कुर्मी समुदाय द्वारा असंवैधानिक रूप से अनुसूचित जनजाति में शामिल होना
आदिवासी समुदाय के संवैधानिक हक-अधिकार, राजनीतिक आरक्षण, प्रतिनिधित्व एवं हिस्सेदारी, नौकरी में आरक्षण, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण, भूमि अधिकार तथा आदिवासियों के गौरवशाली एवं संघर्षपूर्ण इतिहास — जैसे तिलका मांझी (प्रथम स्वतंत्रता सेनानी, 1785 ई.), चुवाड़ भूमिज विद्रोह (1799 ई.), कोल विद्रोह (1831 ई.), विलकिंसन नियम (1837 ई.), वीर बुधु भगत आंदोलन (1792–1832 ई.), पोटो हो विद्रोह (1837 ई.), संताल हूल (1855 ई.), संताल परगना काश्तकारी अधिनियम (1855–56/1949 ई.), तथा बिरसा मुंडा के उलगुलान (19सी00 ई.) के परिणामस्वरूप प्राप्त छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 और पाँचवीं अनुसूची व पेसा कानून, 1996 — को धूमिल करने तथा कब्जा करने का षड्यंत्र झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुर्मी समुदाय द्वारा किया जा रहा है।
कुर्मी समुदाय के सामाजिक संगठन, राजनीतिक दल और अन्य संस्थाएँ कई वर्षों से “रेल टेका”, “डहर छेंका” जैसे आंदोलनों के माध्यम से अलोकतांत्रिक ढंग से अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की मांग कर रहे हैं। वे वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाकर राजनीतिक सौदेबाज़ी कर रहे हैं।
कुर्मी महतो समुदाय द्वारा छल-कपट से फर्जी इतिहास रचा जा रहा है — जैसे चुवाड़ भूमिज विद्रोह में रघुनाथ सिंह गजम भूमिज को “कुर्मी महतो” के रूप में प्रस्तुत करना, कोल विद्रोह में “बुली महतो” और संताल हूल में “चान्कू महतो” के नामों का झूठा उल्लेख करना। यह सब भोले-भाले आदिवासी समाज के साथ धोखाधड़ी है।
कुर्मी समुदाय के कुछ तत्व झूठे इतिहास, मिथ्या सभ्यता और फर्जी लेखन के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, जबकि ऐतिहासिक तथ्य, मानवशास्त्रीय अध्ययन, पुरातत्वविदों की खोज, लुकर समिति की रिपोर्ट, जनसंख्या आनुवंशिकी (Population Genetics) और जनजातीय संशोधनों से यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि कुडमी/कुर्मी जाति किसी भी प्रमाण के आधार पर अनुसूचित जनजाति नहीं हो सकती।
आदिवासी पूर्वजों के बलिदान और शहादत से हमें अनेक अधिकार प्राप्त हुए हैं, जैसे —
बिरसा मुंडा के उलगुलान के बाद 11 नवंबर 1908 को लागू छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act, 1908), जिसके अंतर्गत आदिवासियों की भूमि धारा 46(क) में संरक्षित है, जबकि पिछड़े वर्ग की कुर्मी जाति की भूमि धारा 46(ख) में संरक्षित है।
CNT Act, 1908 की विभिन्न धाराएँ — (8), (10), (18), (29), (46)(क), (48), (48)(क), (49), (71), (71)(क), (71)(ख), (239), (240), (255), (256) — आदिवासी भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं, जबकि कुर्मी/कुडमी जाति केवल धारा 46(ख) में पिछड़ी जाति के रूप में उल्लिखित है।
संताल हूल (1855 ई.) के उपरांत बने संताल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1855–56 (1949) के तहत संताल परगना के छह जिलों की भूमि संरक्षित की गई है।
भारत की पहली जनगणना अंग्रेजों द्वारा 1871–72 ई. में की गई थी, जिसमें आदिवासियों को “Aboriginal” कॉलम में दर्ज किया गया था। आगे की जनगणनाओं में —
1881 में “Aboriginal”,
1891 में “Animistic”,
1901, 1911 में “Animistic”,
1921, 1931, 1941 में “Tribal Religion” कॉलम में रखा गया,
और स्वतंत्र भारत की प्रथम जनगणना 1951 में भी “Other” श्रेणी के अंतर्गत “Tribal Religion” में दर्ज किया गया।
जनगणना 1931 (खंड 1) — J.H. Hutton के साथ परिचय, के.एस. सिंह (निदेशक, Anthropological Survey of India) — के अनुसार:
पृष्ठ 210: “Statement-VI, Size of Families by Caste or Religion of Family” में कुर्मी जाति को हिंदू धर्म के अंतर्गत ब्राह्मण, कायस्थ, राजपूत, विश्वकर्मा, यादव आदि के साथ उल्लेखित किया गया है। (Annexure-I)
पृष्ठ 209: “Statement-V, Duration of Marriage…” में भी कुर्मी हिंदू श्रेणी में दर्ज है। (Annexure-II)
पृष्ठ 475: बंगाल खंड में लिखा है कि कुर्मी ब्रिटिश जिलों में रहते हैं; परंतु जनगणना अधीक्षक ने कुर्मी/कुडमी को “संदिग्ध” माना है और उन्हें आदिवासी सूची से बाहर रखा है। (Annexure-III)
पृष्ठ 233: कुर्मी-कुनबी समूह को “क्षत्रिय” सामाजिक विस्तार में वर्णित किया गया है। (Annexure-IV)
पृष्ठ 225: शारदा एक्ट (1930–31) के अंतर्गत कुर्मी-कुनबी समूह को शीर्ष पर रखा गया है, जिससे सिद्ध होता है कि दोनों एक ही समुदाय हैं। (Annexure-V)
पृष्ठ 296: कुर्मी कृषक वर्ग से संबंधित हैं; उन्होंने अपने पारंपरिक कृषि व्यवसाय को 50% तक भी नहीं छोड़ा है। (Annexure-VI)
पृष्ठ 459: ब्राह्मण और कुर्मी दोनों जातियों में “Palae-Dravidian element” समान पाया गया है, जिससे दोनों में घनिष्ठ संबंध सिद्ध होता है। (Annexure-VII)
उपरोक्त तथ्यों का गंभीरता से परीक्षण कर जनजातीय समुदायों के संवैधानिक अधिकारों — अनुच्छेद 15(4), 16(4), 19, 25, 46, 243, 244, 330, 332, पाँचवीं अनुसूची, CNT Act 1908, SPT Act 1949, तथा पेसा कानून 1996 — को संरक्षण प्रदान किया जाए, ताकि जनजातीय समाज का अस्तित्व एवं सम्मान सुरक्षित रह सके।