Ravan Putla Daha in Bihar: रावण के बहाने राजनीति 

Ravan Putla Dahan in Bihar: बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड मुख्यालय में रावण का पुतला दहन किया गया। पुतला दहन एक भाजपा के पूर्व विधायक ने किया। पुतला दहन का आयोजन भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने किया। आने वाले अतिथियों को भगवा रंग के गमछा से स्वागत किया।

 

अलखदेव प्रसाद ‘अचल’

न्यूज इंप्रेशन 

 Bihar: रावण वास्तव में क्या था क्या नहीं, इसको कोई नहीं जानता। जो भी है, एक मिथक के रुप में दर्शाया गया है। हां, मिथक के रूप में रावण को एक अत्याचारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसीलिए जो हिंदूवादी हैं, वे रावण को अधर्म का प्रतीक मानते हुए पुतला दहन करते हैं। रावण ने क्या क्या अधर्म किया था, वह भी नहीं बता पाते हैं। बस इतना ही कि रावण अधर्मी था। आज के संदर्भ में अगर सोचा जाए, तो रावण पर भाजपा पूरी तरह से राजनीति कर रही है। और वह राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए कर रही है। जो सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं, देश के लिए भी दुर्भाग्य है। क्योंकि अधर्मी कभी अधर्म का नाश कर ही नहीं सकता। सबसे अधिक हास्यास्पद यह है कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में रहकर जिन वर्गों को हाशिए पर धकेल देना चाहती है, उन्हीं को हथियार बनाकर यह सब कुछ कर रही है। और लोग हैं, जो इसे धर्मांधता के चक्कर में समझ नहीं पा रहे हैं। 

 रावण का पुतला दहन करने वाले कौन लोग हैं?

पहली बात तो यह कि रावण कितना अत्याचारी था, इसका सीता हरण को छोड़कर कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है। वहां भी रावण को अत्याचारी करार देना अन्याय ही होगा। क्योंकि जिसकी बहन सूर्पनखा को राम और लक्ष्मण ने नाक काट दी हो, उसका भाई रावण भला इसे कैसे बर्दाश्त कर सकता था? आज गरीब से गरीब आदमी भी इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता है। उसमें भी कथा के अनुसार रावण ने राम को सबक सिखाने के लिए सिर्फ सीता का हरण किया था, पर हाथ तक नहीं पकड़ा था। चाहता तो वह कुछ भी कर सकता था, पर नहीं किया था। फिर अत्याचारी कैसे हो गया था? और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रावण को अत्याचारी कहकर आज जो हर साल रावण का पुतला दहन कर रहे हैं, वह पुतला दहन करने वाले कौन लोग हैं? पुतला दहन करने वाले तो रावण से भी कई गुणा दुराचारी खुद हैं। जिन्हें आम जनता भी जानती है। ये वे ही लोग हैं, जो जनता के पैसों को लूटकर करोड़ पति से अरबपति हो जा रहे हैं। सत्ता में रहकर ऐय्याशी का जीवन जी रहे हैं। दुष्कर्म के आरोपी होते हैं। दुराचारी, भ्रष्ट और न जाने और क्या-क्या खुद होते हैं। जिनमें अनगिनत अवगुण विद्यमान हैं।वे लोग रावण का पुतला दहन करने में अग्रणी रहते हैं। फिर रावण का पुतला दहन कर अधर्म पर धर्म का विजय प्राप्त कैसे करवाना चाहते हैं? सदियों से तो रावण के पुतले दहन किये जा रहे हैं और यह संदेश दिया जा रहा है कि इससे अधर्म पर धर्म का विजय प्राप्त होगा। पर कहां हो रहा है? सब कुछ तो और तेजी के साथ बढ़ता चला जा रहा है। आखिर कैसे?और वैसे ही लोगों के संरक्षण में बढ़ता जा रहा है, तो फिर रावण का पुतला दहन का क्या औचित्य रह जाता है?

 रावण के पुतला दहन में देखी जा रही है राजनीति 

आजकल तो रावण के पुतला दहन में भी राजनीति देखी जा रही है। पुतला दहन में भी छल छद्म का सहारा लिया जा रहा है। बिहार के औरंगाबाद जिले के हसपुरा प्रखंड मुख्यालय में रावण का पुतला दहन किया गया। पुतला दहन एक भाजपा के पूर्व विधायक ने किया। पुतला दहन का आयोजन भाजपा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने किया। आने वाले अतिथियों को भगवा रंग के गमछा से स्वागत किया। जिसमें शामिल होने वालों में न सिर्फ भाजपा के नेता और कार्यकर्ता थे, बल्कि प्रायः सभी पार्टियों के लोग, बुद्धिजीवी इसलिए शामिल थे कि रावण का पुतला दहन किया जाना था। यह दिखाना था कि हम लोग अधर्म पर धर्म का विजय चाहते हैं। परंतु रावण का जो पुतला बनाया गया था, वह भी एक राजनीति के तहत किया गया था। जिसमें भाजपाइयों की घटिया मानसिकता काम कर रही थी। इस घटिया मानसिकता के तहत रावण को जो पोशाक पहनाया गया था, वह लाल रंग का पहनाया गया था। कमर के नीचे ब्लू रंग का पहनाया गया था और रावण का गमछा हरा रंग का पहनाया गया था। पर रावण के शरीर में कहीं भगवा रंग का कपड़ा नहीं दिखा। जो यह दर्शाता है कि भाजपाई कितने शातिर दिमागी होते हैं। उन लोगों बड़ी चालाकी से यह सब कुछ करवाया था। कुछ बुद्धिजीवी लाल रंग को कम्युनिस्टों का प्रतीक माना। हरे गमछे को राजद का प्रतीक माना और ब्लू रंग को बसपा या आजाद पार्टी का प्रतीक माना। वैसे यदि रालोमो ,लोजपा, हम आदि पार्टियों के झंडों में भी हरे और ब्लू रंग दिख जाते हैं। इसके माध्यम से भाजपाइयों ने एक चाल के तहत रावण के पुतले को बनवाया था कि इन्हीं रंग वाले यहां रावण के रूप में हैं। इन्हें मिटाने की जरूरत है।

कोई राम के आदर्शों पर चलने का नहीं कर रहा है प्रयास

आज देश भर में हिन्दुत्व के नाम पर जो राजनीतिक पार्टी इसको सबसे अधिक हवा दे रही है, उसी से दलितों को पिछड़ों को सबसे अधिक खतरा है। वह खतरा आने वाले दिनों में नहीं है, बल्कि उन खतरों की चपेट में लोग आज भी हैं, पर धर्मांधता की वजह से एहसास नहीं हो रहा है। या यों कहिए धर्म की घुट्टी पिलाकर एहसास नहीं होने दिया जा रहा है। भाजपा की इसी चाल को लोग समझ नहीं पा रहे हैं। हास्यास्पद यही है कि कोई राम के आदर्शों पर चलने का प्रयास नहीं कर रहा है, बल्कि सिर्फ राम और रावण के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। ऐसी स्थिति में आम जनता का कितना भला हो सकता है?    

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