Bihar News: अतिपिछड़ा न्याय संकल्प के मायने
Bihar News: बिहार में पिछले 20 सालों से नीतीश कुमार की सरकार है, लेकिन उन्होंने अतिपिछडा समाज को न्याय दिलाने के फैसले नहीं लिए. हमने अतिपिछडा समाज के साथ बैठक की , समाज के लोगों से बात की और अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र तैयार कर दिया.
लेखक: एचएच दुसाध
Patna: बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर है. इस मामले में महागठबंधन काफी आगे है. वह एनडीए गठबंधन को मात देने के लिए अतीत के मुकाबले काफी सक्रिय है.इस मामले में 17 अगस्त से 1 सितम्बर तक चली 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ एक बहुत महत्वपूर्ण कदम रहा ,जिसमें करोड़ों लोगों ने भाग लिया. वोटर अधिकार यात्रा की चर्चा धीमी भी नहीं पडी थी तेजस्वी यादव बिहार अधिकार यात्रा पर निकल पड़े.16 से 20 सितम्बर तक चली इस यात्रा का भी बिहार की जनता ने भारी उत्साह के साथ स्वागत किया.पांच दिन की यह यात्रा उन दस जिलों से गुजरी, जो वोटर अधिकार यात्रा में छूट गए थे एवं जिसके अंतर्गत राजद द्वारा जीती गई 22 सीटें थीं. बिहार अधिकार यात्रा के कुछ ही दिन बाद पटना में महागठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस की ओर से एक और अभूतपूर्व आयोजन हो गया .अभूतपूर्व इसलिए कि महात्मा गांधी और कस्तूरबा बाई द्वार 1921 में स्थापित जिस सदाकत आश्रम में 24 सितम्बर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी(सीडब्ल्यूसी) की बैठक हुई वहां ऐसी बैठक 1940 में आयोजित हुई थी. पटना के गंगा तट पर अवस्थित सदाकत आश्रम स्वाधीनता आन्दोलन का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है. यहाँ की दीवारें उस दौर की कहानी समेटे हुए हैं, जब महात्मा गांधी अंग्रेजी सत्ता से निजात के लिए असहयोग आन्दोलन की नीव रखी थी. यही बैठकर गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी जैसे नेताओं ने असहयोग, सत्याग्रह और भारत छोडो आन्दोलन का खांका तैयार किया था. संघी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए बेचैन खड्गे की अध्यक्षता वाली आज की कांग्रेस ने भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संघर्ष की धड़कन इस आश्रम से प्रेरणा लेने के लिए 85 साल बाद फिर एक बार सीडब्ल्यूसी की बैठक निर्णय लिया, ताकि अंग्रेजी सत्ता की भाँति संघी सत्ता के अंत का रोड मैप तैयार हो सके. आजादी के बाद पहली बार 24 सितम्बर को सदाकत आश्रम में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के अन्य कई वरिष्ठ नेता मौजूद रहे. बैठक करीब साधे चार घंटे तक चली जिसमें दो प्रस्ताव पारित किये गए. एक राजनीतिक, दूसरा, बिहार की जनता से अपील. राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि राहुल गांधी के नेतृत्व में वोट चोरी के खिलाफ जो अभियान चला, वह जारी रहेगा. एक महीने में राहुल गांधी मिनी हाईड्रोजन , हाईड्रोजन बम. यूरेनियम बम सहित अलग-अलग बम फोड़ते रहेंगे. कांग्रेस ने दूसरे प्रस्ताव में जनता से अपने वोट की ताकत पहचानने की अपील की जिसमें कहा गया है कि कांग्रेस संसद के अन्दर और सडकों पर संघर्ष जारी रखने का वादा करती है. सदाकत आश्रम में सीडब्ल्यूसी की हुई बैठक के असर का संकेत करते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि ,’ तेलंगाना में सितम्बर 2023 में सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई थी और 2 महीने के अन्दर कांग्रेस की सरकार बनी थी. अब पटना में काउंटडाउन शुरू हो चुका है . बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने वाली ही.’बहरहाल कांग्रेस तेलंगाना का इतिहास दोहराने के लिए ऐतिहासिक सदाकत आश्रम में 85 साल बाद सीडब्ल्यूसी की बैठक करके ही संतुष्ट नहीं रह गई, उसने वहां की बैठक के कुछ घंटे के अंतराल के बाद पटना में एक अन्य जगह महागठबंधन में शामिल दलों के साथ मिलकर अतिपिछड़ों को लुभाने के लिए ‘अतिपिछडा न्याय संकल्प’ पत्र जारी कर बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दिया. 10 सूत्रीय संकल्प पत्र को अतिपिछड़ा वर्ग के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक उत्थान के लिए एक रोडमैप के रूप के रूप पेश किया गया है.इस पर राय देते हुए लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने कहा, ’बहुजनों को उनका पूरा हक़ और अधिकार दिलाने के लिए आज हमने ऐतिहासिक ‘अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र ‘ जारी किया है. बिहार में पिछले 20 सालों से नीतीश कुमार की सरकार है, लेकिन उन्होंने अतिपिछडा समाज को न्याय दिलाने के फैसले नहीं लिए. हमने अतिपिछडा समाज के साथ बैठक की , समाज के लोगों से बात की और अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र तैयार कर दिया.
समाज के लिए कोई काम नहीं करते
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा, ’यह संकल्प पत्र रागुल गांधी जी , तेजस्वी जी और महागठबंधन के नेताओं ने तैयार किया है ‘हमारी सरकार सत्ता में आते ही हम इन बिन्दुओ पर काम करना शुरू कर देंगे.’ आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, ’हमारा विजन अतिपिछड़ा समाज को आगे बढाने के लिए है. वही एनडीए के सारे मंत्री समाज के सबसे बड़े दुश्मन है, जो सिर्फ अपने लाभ के लिए काम करते है, समाज के लिए कोई काम नहीं करते . सच्चाई यही है कि नीतीश कुमार और बीजेपी आरक्षण चोर है.‘वहीं इस संकल्प पत्र से संतुष्ट विकासशील इंसान पार्टी के संस्थापक मुकेश सहनी ने कहा, ’आज अतिपिछडा समाज के लिए जो घोषणाएं हुई हैं , निश्चय ही बड़ा बदलाव लेकर आयेंगी. जिस तरह से बाबा साहेब आंबेडकर जी ने दलित और आदिवासी वर्ग को आरक्षण देकर, उन्हें आगे बढ़ाया, ठीक उसी तरह से अतिपिछड़ा समाज के जीवन में भी उत्थान होगा.’ वास्तव में 24 सितम्बर को पटना से महागठबंधन की ओर से जो संकल्प पत्र जारी हुआ है, उसके असर का सही आंकलन वीआईपी पार्टी के संस्थापक ने किया है. महागठबंधन का संकल्प पत्र बिहार में जन्मे भोला पासवान शास्त्री, मुंगेरी लाल, कर्पूरी ठाकुर, जिन्होंने अतिपिछड़ों के विकास की ऐतिहासिक पहल की और जिन्हें अतिपिछड़ा समाज अपना मसीहा मानता है, की सोच से भी आगे निकल गया गया है.न्याय संकल्प पत्र में ये बिन्दु हैं: 1. आरक्षण की 50% सीमा बढ़ाने के लिए पास कानून को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए भेजेंगे: 2. पंचायत-नगर निकाय में आरक्षण 20% से बढ़ाकर 30% होगा: 3. सभी प्राइवेट कॉलेज-यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू होगा: 4. नियुक्तियों में ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ जैसी व्यवस्था खत्म होगी: 5. अतिपिछड़ा वर्ग की सूची में सही प्रतिनिधित्व के लिए कमेटी बनेगी: 6. एससी, एसटी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्गों के आवासीय भूमिहीनों को जमीन मिलेगी (शहर: 3 डेसिमल, गांव: 5 डेसिमल): 7. प्राइवेट स्कूलों की आधी आरक्षित सीटें एससी, एसटी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्गों बच्चों को मिलेंगी: 8. 25 करोड़ रूपये तक के सरकारी ठेकों/ आपूर्ति में. एससी, एसटी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्गों को 50% आरक्षण ; 9. अतिपिछड़ों के ख़िलाफ़ अत्याचार रोकने का कानून बनेगा और 10. आरक्षण देखने के लिए प्राधिकरण बनेगा, सूची में बदलाव केवल विधानसभा करेगी.
24 सितम्बर को अतिपिछडा न्याय संकल्प जारी हुआ
महागठबंधन द्वारा जारी अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र की अहमियत समझने के लिए एससी, एसटी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्गों के साथ हुए अन्याय का इतिहास जान लेना पड़ेगा, जिसके प्रतिकार के लिए संविधान की उद्देश्यिका में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय सुलभ कराने का प्रावधान घोषित करना पड़ा एवं कालांतर में जिनके लिए सामाजिक न्याय का अभियान चलाना पड़ा और इसी क्रम में महागठबंधन की ओर से 24 सितम्बर को अतिपिछडा न्याय संकल्प जारी हुआ. जहां तक अतिपिछड़ों के साथ पिछड़ों, एससी, एसटी के सामाजिक अन्याय के दलदल में फंसने का सवाल है, इसके लिए जिम्मेवार हिन्दू धर्म का प्राणाधार वह वर्ण- व्यवस्था रही है, जिसके, जिसके द्वारा सहस्रों साल से भारत का हिन्दू समाज परिचालित होता रहा है. हिन्दू धर्म का प्राण वर्ण- व्यवस्था मूलतः शक्ति के स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक और धार्मिक – के बंटवारे की व्यवस्था रही. शक्ति के स्रोतों का बंटवारा चार वर्णों- ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र(ओबीसी,इबीसी) अतिशूद्रों(अस्पृश्यों)- के लिए निर्दिष्ट पेशे/ कर्मों के जरिये किया गया. विभिन्न वर्णों के लिए निदिष्ट कर्म ही उनके धर्म रहे. वर्ण – व्यवस्था में ब्राह्मण का धर्म (कर्म ) अध्ययन- अध्यापन, राज्य संचालन में मंत्रणा-दान और पौरोहित्य रहा. क्षत्रिय का धर्म भूस्वामित्व, सैन्य- वृत्ति एवं राज्य –संचालन रहा, जबकि वैश्य का कर्म(धर्म) पशुपालन एवं व्यवसाय- वाणिज्य रहा. शुद्रातिशूद्रों का धर्म(कर्म) रहा तीन उच्चतर वर्णों(ब्राह्मण- क्षत्रिय और वैश्यों) की निष्काम सेवा. वर्ण- धर्म में पेशों की विचलनशीलता निषिद्ध रही, क्योंकि इससे कर्म- संकरता की सृष्टि होती और कर्म-संकरता धर्मशास्त्रों द्वारा पूरी तरह निषिद्ध रही. कर्म-संकरता की सृष्टि होने पर इहलोक में राजदंड तो परलोक में नरक का सामना करना पड़ता. धर्मशास्त्रों द्वारा पेशे/ कर्मों के विचलनशीलता की निषेधाज्ञा के फलस्वरूप वर्ण- व्यवस्था ने एक आरक्षण –व्यवस्था: हिन्दू आरक्षण व्यवस्था का रूप ले लिया, जिसमें भिन्न- भिन्न वर्णों के निर्दिष्ट पेशे/कर्म , उनके लिए अपरिवर्तित रूप से चिरकाल के लिए आरक्षित होकर रह गए. इस क्रम में हिन्दू आरक्षण में ब्राह्मणों के लिए पौरोहित्य व बौद्धिक पेशे तो क्षत्रियों के लिए भूस्वामित्व, राज्य संचालन और सैन्य-कार्य तो वैश्यों के लिए पशु-पालन व व्यवसाय- वाणिज्य के कार्य चिरकाल के लिए आरक्षित होकर रह गये.हिन्दू आरक्षण में शुद्रातिशूद्रों के हिस्से में शक्ति के स्रोतों- आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक , धार्मिक – एक कतरा भी नहीं आया. दुनिया के महान समाज विज्ञानी कार्ल मार्क्स के अनुसार दुनिया का इतिहास अगर वर्ग संघर्ष का इतिहास है तो भारत में वह आरक्षण में क्रियाशील रहा . कारण, वितरणवादी वर्ण-व्यवस्था से भारत में प्रभुत्वशाली और सर्वहारा : उन दो वर्गों का निर्माण हुआ, जो मार्क्स के अनुसार उत्पादन के साधनों के असमान वितरण के मुद्दे पर दुनिया के हर देश और हर काल में परस्पर संघर्षरत रहे. वर्ण – व्यवस्था द्वारा सर्वस्व- हारा में तब्दील किये गए मूलनिवासी हजारों साल से शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी के लिए हिन्दू आरक्षणवादियों के खिलाफ संघर्षरत रहे . मध्ययुग में अगर इस संघर्ष को रैदास, कबीर, चोखामेला इत्यादि संतों ने नेतृत्व दिया तो आधुनिक भारत में फुले, शाहूजी , पेरियार इत्यादि शूद्रों के साथ दलित बाबा साहेब आंबेडकर ने नेतृत्व दिया. सबसे पहले भारत समाज को आर्य – आर्येतर दो भागों बंटने वाले ज्योतिराव फुले ने कांटे से कांटा निकालने की योजना के तहत 1873 में अपनी महानतम रचना ‘गुलामगिरी’ में आरक्षण रूपी हथियार को सामने लाया. बाद में इसी हथियार का इस्तेमाल करते हुए उनके योग्य अनुसरणकारी शाहूजी महाराज ने 26 जुलाई , 1902 को कोल्हापुर में दलित – पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू कर हिन्दू आरक्षण के खिलाफ एक क्रांति ही घटित कर दिया. दो दशकों के अंतराल के बाद इसी हिन्दू आरक्षण के खिलाफ संघर्ष चला कर ‘दक्षिण एशिया के सुकरात’ पेरियार ने दक्षिण भारत का इतिहास ही बदल दिया. उन्होंने जस्टिस पार्टी के तत्वावधान में 27 दिसंबर, 1929 को पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 70 प्रतिशत आरक्षण का अध्यादेश ही जारी करवा दिया. यह अध्यादेश तमिलनाडु में ‘कम्युनल जीओ’ के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ, जिसमें सभी जाति- धर्मों के लोगों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान था. भारत में कानूनन आरक्षण की वह पहली व्यवस्था थी .लेकिन कानूनन आरक्षण को बड़ा विस्तार तब मिला , जब डॉ. आंबेडकर संघर्षों के फलस्वरूप पूना पैक्ट के जरिये दलित- आदिवासियों को आरक्षण मिला,जिसमें सरकारी नौकरियों के साथ संसद/ विधासभा की सीटों में भी आरक्षण का प्रावधान था. बाद में उन्होंने संविधान की धारा 335 के अनुसार एससी – एसटी के लिए सरकारी नौकरियों में सीटें आरक्षित करने का प्रधान किया, तो धारा 334 केन्द्रीय संसद एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं में निर्दिष्ट संख्यक सीटें आरक्षित करने का प्रावधान रचा. इसी संविधान में जो धारा 340 का प्रावधान रचा उससे परवर्ती काल में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार ओबीसी को भी आरक्षण मिला!
बिहार में ओबीसी आरक्षण का इतिहास 1978 में शुरू होता है
बिहार में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण का इतिहास 1978 में शुरू होता है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भोला पासवान शास्त्री द्वारा पिछड़ों के हित में गठित मुंगरी लाल आयोग की अनुशंसाओं का अनुसरण करते हुए ‘कर्पूरी आरक्षण फॉर्मूला’ लागू किया था, जिसमें पिछड़े वर्गों को 26% आरक्षण दिया गया. यह केंद्र सरकार द्वारा मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने से काफी पहले हुआ था. 7 अगस्त, 1990 को, वी.पी. सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी के लिए सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर 27% आरक्षण की घोषणा की.इसे बाद में 18% अत्यंत पिछड़ी जातियों और 3% पिछड़ी महिलाओं में विभाजित किया. हाल ही में, 2023 में बिहार की आरक्षण नीति को बढ़ाकर 75% किया गया, लेकिन जून 2024 में पटना उच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया. बहरहाल हिन्दू आरक्षण के खिलाफ संघर्ष के फलस्वरूप वंचितों के लिए मानवतावादी आरक्षण जरुर लागू हुआ, किन्तु इससे वे सामाजिक अन्याय के दलदल से पूरी तरह नहीं उबर सकते थे. उबरते तब जब उन्हें शक्ति के समस्त स्रोतों में वाजिब हिस्सेदारी मिलती. अतिपिछड़ों सहित अन्य आरक्षित वर्गों को शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी का क्रांतिकारी उपाय पहली बार 24 सितम्बर, 2025 को महागठबंधन द्वारा जारी अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र में सामने आया . इस मामले में संकल्प पत्र का सूत्र नंबर 8 बहुत महत्वपूर्ण है,जिसमें 25 करोड़ तक के सरकारी ठेकों/ आपूर्ति में. एससी, एसटी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्गों को 50% आरक्षण देने की बात कही गई है. निजीकरण और कम्प्यूटर क्रांति के बाद सरकारी नौकरियों में पारंपरिक आरक्षण तेजी से अपना प्रभाव खोने लगा था. इसे देखते हुए नई सदी में दलित बुद्धिजीवी नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग- व्यापार में वंचितों को हिस्सेदारी दिलाने का अभियान चलाने लगे थे. इस दिशा में 2002 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने भोपाल घोषणा पत्र जारी कर वंचितों को नौकरियों से आगे बढ़कर अन्य क्षेत्र में आरक्षण को विस्तार दिलाने का ऐतिहासिक काम किया. तब मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार क्रांतिकारी भोपाल घोषणापत्र ही जारी कर संतुष्ट न हो सकी , बल्कि मुख्यमंत्री दिग्विजय ने 27 अगस्त , 2002 मध्य प्रदेश में सप्लायर डाइवर्सिटी लागू कर उद्योग – व्यापार में आरक्षण की अभूतपूर्व पहल की. इसके बाद 2009 में यूपी की मायावती सरकार ने 25 लाख तक के ठेकों में आरक्षण की शुरुआत की. बाद में अन्य सरकारों ने इसमें वृद्धि की. इस क्रम में 2020 में झारखण्ड की हेमंत सोरेन सरकार ने 25 करोड़ तक ठेकों में एसटी, एससी, ओबीसी को प्राथमिकता देने की घोषणा की. झारखण्ड के बाद बिहार में महागठबंधन ने 25 करोड़ के ठेकों में आरक्षण दिलाने का वादा किया है. यदि महागठबंधन की सरकार सत्ता में आती है तो उम्मीद की जा सकती है वह 25 करोड़ के सरकारी ठेकों के साथ सप्लाई , डीलरशिप इत्यादि में भी इसका विस्त्तार करेंगी . क्योंकि राहुल गांधी आरक्षित वर्गों को उद्योग-व्यापार में हिस्सेदारी दिलाने की लगातार हिमायत किये जा रहे है. अतः ठेकों में आरक्षण की घोषणा बिहार के अतिपिछड़ों सहित अन्य आरक्षित वर्गों को संविधान की उद्देश्यिका में वर्णित आर्थिक न्याय सुलभ कराने की क्रान्तिकारी पहल करेगा ! हिन्दू आरक्षण से मिले सामाजिक अन्याय से उबारने के लिए जो ऐतिहासिक काम हुए , उस पर पानी फेरने के लिए हिन्दू आरक्षणवादी तरह-तरह का उपाय करते रहते हैं, जिनमें एक है ‘नॉट फाउंड सूटेबल’! इस सम्बन्ध में अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र एक नई उम्मीद जगाता है. संकल्प पत्र का बिन्दु नंबर 3 और 7 प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में वंचितों को हिस्सेदारी दिलाने के साथ , उन्हें निजी करण के बढ़ते सैलाब से बचाने की उम्मीद जगाता है. आरक्षण की 50% सीमा टूटने से इसका विस्तार 100% तक हो जायेगा . इससे संख्यानुपात में आरक्षण के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा.इसी तरह पंचायत-नगर निकायों में आरक्षण 20% से 30% तक विस्तार और एससी, एसटी, पिछड़ा, अतिपिछड़ा वर्गों के आवासीय भूमिहीनों के लिए शहरों में 3 डेसिमल, और गावों में 5 डेसिमल का वादा भी हिन्दू आरक्षण के अन्याय से राहत दिलाने में काफी कारगर हो सकता है. कुल मिलाकर महागठबंधन के अतिपिछडा न्याय संकल्प पत्र ने नीतीश कुमार के जनाधार को पूर्ववत रहने की सम्भावना पर संदेह पैदा कर दिया है. बिहार की राजनीति में अतिपिछड़ा वर्ग का 36% वोट बैंक है. इसे मुख्यमंत्री का मजबूत आधार माना जाता रहा है, जिस पर 24 सितम्बर के बाद प्रश्न चिन्ह लग गया है. संभवतः इस खतरे को भांपते हुए ही ही नरेंद्र मोदी ने न्याय संकल्प घोषणा के एक दिन बाद 26 सितम्बर को मुख्यमंत्री रोजगार योजना की घोषणा के साथ वहां की 75 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हजार डलवा दिया. महिलाओं के खाते में इस नकद के हस्तांतरण को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की किरकिरी हो रही है. लोग इसे वोट खरीदने से जोड़कर देख रहे हैं.
(लेखक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस( ओबीसी विभाग) के आइडियोलॉजिकल एडवाईजरी कमेटी के सदस्य हैं)