Patna News: साहित्य अकादमी के उन्मेष में उन्मेष
Patna News: साहित्य अकादमी दिल्ली ने 25-28 सितंबर तक पटना के अशोका कन्वेंशन के ज्ञान भवन में ‘उन्मेष’ 2025 का भव्य कार्यक्रम करवाया, देश-विदेश से करीब एक सौ भाषाओं के क़रीब पांच सौ से ऊपर साहित्यकारों ने भाग लिया।
न्यूज इंप्रेशन, संवाददाता
Patna: साहित्य अकादमी दिल्ली ने 25-28 सितंबर तक पटना के अशोका कन्वेंशन के ज्ञान भवन में ‘उन्मेष’ 2025 का भव्य कार्यक्रम करवाया जिसमें देश-विदेश से करीब एक सौ भाषाओं के क़रीब पांच सौ से ऊपर साहित्यकारों ने भाग लिया।जिनके ठहरने से लेकर खाने तक की वीआईपी व्यवस्था की गयी थी। साहित्यकारों के लिए जो सुख- सुविधाएं मिलनी चाहिए थी, उसमें कहीं से भी कमी नहीं थी। ‘उन्मेष’ का अर्थ होता है आंखों का खुलना। साहित्य अकादमी इस कार्यक्रम के माध्यम से शायद लोगों की आंखें खोलना चाहती होगी, पर कुछ प्रमुख साहित्यिक संगठनों ने विरोध दर्ज कर साहित्य अकादमी की ही आंखें खोलते देखे गए।
जनवादी लेखक संघ ने किया विरोध
कार्यक्रम के शुरुआती दिन ही जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ और जन संस्कृति मंच जैसे साहित्यिक की ओर से इसका विरोध किया गया। विरोध करने वाले संगठनों ने अपने लेखकों से कार्यक्रम को बहिष्कार करने की घोषणा थी। जिसके पीछे कारण यह था कि साहित्य अकादमी के सचिव श्री के. श्रीनिवास राव पर महिला उत्पीड़न का मामला है, जो तमाम महिलाओं का अपमान है। साहित्य अकादमी को ऐसे लोगों को निष्कासित कर देना चाहिए। परंतु साहित्य अकादमी ने ऐसा नहीं किया। ऐसे साहित्यकारों का यह भी कहना है कि हम साहित्यकारों का दायित्व महिलाओं का सम्मान करना है। इसीलिए हम लोगों ने प्रतिरोध किया है। 25 सितंबर को जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच जुटान जैसे साहित्यिक संगठनों के चंद साहित्यकारों ने बैनर पट्टी लगाकर अशोका कन्वेंशन के गेट पर विरोध प्रदर्शन कर इसकी खानापूर्ति भी की थी। जबकि सोशल मीडिया पर अपनी सहमति जताने वालों में सैकड़ों की संख्या में थे। बहुत तो ऐसे थे, जो पटना में रहने के बावजूद विरोध प्रदर्शन में भाग नहीं ले सके।
विरोध प्रदर्शन करने वालों में एक भी साहित्यकार वैसे नहीं
सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि विरोध प्रदर्शन करने वालों में एक भी साहित्यकार वैसे नहीं थे, जिनका उन्मेष कार्यक्रम में शामिल किया गया था और उन्होंने विरोध जताया था। इसके बजाय वैसे साहित्यकार थे, जिन्हें साहित्य अकादमी ने कभी नहीं अपने कार्यक्रम में बुलाया था। इसीलिए कई वरिष्ठ साहित्यकारों का मानना है कि अगर वैसे लोगों के नाम इस कार्यक्रम में शामिल होते, तो स्वाभाविक रूप से उन लोग विरोध प्रदर्शन नहीं करते। उन्हें महिलाओं का अपमान नहीं सूझता। वैसे साहित्यकारों ने विरोध प्रदर्शन करने वालों पर यह टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ ने आज जिस विभूति नारायण राय को अपना राष्ट्रीय महासचिव बना रखा है। जिसने कभी अपने आलेखों के माध्यम से वरिष्ठ महिला साहित्यकार मैत्रेई पुष्पा सहित अन्य महिला साहित्यकारों पर अपमान जनक टिप्पणी की थी। जो तमाम महिला साहित्यकारों के लिए अपमान था।
संगठनों को यह सब क्यों नहीं सूझता है?
कभी हंस पत्रिका के संपादक राजेंद्र यादव जनवादी लेखक संघ से जुड़े होते थे और अधिकांश साहित्यकार यह जानते थे कि राजेंद्र यादव युवती प्रेमी हैं। वे जहां भी चलते थे, उनके साथ एक युवती जरूर होती थी। उस दिन न जनवादी लेखक संघ को या अन्य संगठनों को इससे मतलब था। क्या यह महिलाओं का अपमान नहीं था? आज भी बहुत ऐसे साहित्यकार हैं, जिन पर महिलाओं के साथ अभद्रता की कहानी सुनाने को मिलती रही है, लेकिन कोई भी साहित्यिक संगठन उसका प्रतिरोध नहीं करता, आखिर क्यों। जितने भी साहित्यिक संगठन हैं, उनमें श्रेष्ठ पदों पर सवर्ण जाति के लोग ही काबिज हैं। दलितों और पिछड़ों को हाशिए पर रखा जाता है। दलित और पिछड़ी जाति की महिलाओं को हाशिए पर रखा जाता है। क्या यह दलितों, पिछड़ों और महिलाओं का अपमान नहीं है? संगठनों को यह सब क्यों नहीं सूझता है?
उस समय यह तीनों संगठनों ने विरोध क्यों नहीं किया था?
वैसे वरिष्ठ साहित्यकारों का यह भी मानना है कि श्री के.निवास राव पर जिस महिला ने आरोप लगाया है कि 2018 से ही श्री के. श्री निवास राव मेरे साथ गलत हरकत कर रहे थे। तो सवाल यह उठता है कि उस समय वह महिला कहां थी? जो कई वर्षों के बाद अदालत में गई? जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ और जन संस्कृति मंच जैसे संगठन उस समय कहां थे, जिस समय महिला ने श्री के निवास राव पर आरोप लगाया था । उस समय विरोध क्यों नहीं किया था ? आज भी श्री के निवास पर कोर्ट का कोई फैसला नहीं आया है कि वे दोषी हैं। उनको सजा भी नहीं हुई है। सिर्फ महिला द्वारा आरोप लगाया गया है। हां, उस महिला के निष्कासन पर अगस्त माह में फैसला आया कि यह बदले की कार्रवाई लगती है, इसीलिए इस महिला को पुनर्बहाल किया जाए। फिर यह जो संगठन श्री के श्रीनिवास राव पर यौन उत्पीड़न को लेकर जो विरोध कर रहे हैं, वह कहीं से औचित्य पूर्ण नहीं लगता। दूसरे, महिला की पुनर्बहाल करने का फैसला अगस्त माह में ही आ चुका था। उस समय यह तीनों संगठनों ने विरोध क्यों नहीं किया था? जब 25 सितंबर से लेकर 28 सितंबर तक साहित्य अकादमी की ओर से पटना में उन्मेष कार्यक्रम करवाया जा रहा है तभी विरोध क्यों?