NDA AND UPA Alliance News: यह 2020 वाली कांग्रेस नहीं है! सीट बंटवारे को लेकर एनडीए और इंडिया गठबंधन में आपसी रार 

NDA AND UPA Alliance News: इंडिया और एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर मची रार. दोनों गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर कई राउंड की बात हो चुकी है, पर, कोई ठोस परिणाम अबतक सामने नहीं आया है. एनडीए में जदयू , भाजपा, एलजेपी(आर), जीतनराम मांझी की हम(सेक्युलर ) और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी है.

 

लेखक: एच. एल. दुसाध

(लेखक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस( ओबीसी विभाग) के आइडियोलॉजिकल एडवाईजरी कमेटी के सदस्य हैं)

 

न्यूज इंप्रेशन, संवाददाता 

Delhi: बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा होने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं, लेकिन इसे लेकर राजनीतिक सरगर्मियां जोरों पर हैं! फिलहाल जो बात लोगों को आकर्षित कर रही है, वह है दोनों प्रमुख गठबंधनों: इंडिया और एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर मची रार. दोनों गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर कई राउंड की बात हो चुकी है, पर, कोई ठोस परिणाम अबतक सामने नहीं आया है. एनडीए में जदयू , भाजपा , एलजेपी(आर), जीतनराम मांझी की हम(सेक्युलर ) और उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी है. सूत्रों के मुताबिक जदयू और भाजपा 100-100 सीटों पर लड़ना चाहती हैं और शेष 43 में बाकी तीन दलों को निपटा देना चाहती है. लेकिन एनडीए के छोटे दलों के नेताओं की मांग बड़ी है. हम पार्टी के प्रमुख जीतनराम मांझी ने कहा दिया है,’ हमें 20 सीटें चाहिए . हम चाहते हैं कि हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा हर हालात में मान्यता प्राप्त पार्टी बन जाए . मान्यता प्राप्त करने के लिए हमें विधानसभा में आठ सीटें और कुल मतदान का 6 प्रतिशत वोट चाहिए. अगर हमें 20 सीटें नहीं मिलती हैं, तो हम 100 सीटों पर लड़ेंगे. हर जगह हमारे 10 – 15 हजार वोट हैं.’काबिले गौर है कि ‘हम’ ने 2020 में सात सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 4 पर विजय मिली थी. उधर एलजेपी भी ज्यादा सीटों की उम्मीद लगाये हुए है. एक समय 243 सीटों पर लड़ने की घोषणा करने वाली लोजपा की ओर से कहा जा रहा है ,’ हमें परफॉर्मेंस के आधार सीटें मिलनी चाहिए . हम ज्यादा सीटें जीतेंगे, तो इससे एनडीए ही मजबूत होगा. हम सभी 243 सीटों पर तैयारी कर रहे हैं ताकि हम अपने भी उम्मीदवार जितवाएं, और सहयोगी दलों के भी.’ जाहिर है कि जीतनराम मांझी और चिराग पासवान की मांगों से एनडीए में तनाव में है. इन दो दलित नेताओं की रस्साकशी से इतर उपेन्द्र कुशवाहा शांत हैं. वह कह रहे हैं,’ दूसरी पार्टियाँ कहती रहें, लेकिन हमको जब सीट शेयरिंग की टेबुल पर बात रखनी होगी , तभी रखेंगे.’ चूँकि एनडीए में मोदी की इच्छा ही सर्वोपरि है तथा वह गठबंधन दलों को साधने में माहिर हैं, इसलिए लोगों को लगता है कि वहां इंडिया के मुकाबले कम रार है.

कांग्रेस को कम सीटें देने पर आमादा दिख रहा है: इंडिया ब्लॉक

इसमें कोई शक नहीं कि एनडीए के मुकाबले इंडिया गठबंधन में यह रार ज्यादे दिख रही है. कारण, महागठबंधन में शामिल सभी दल राजद से सम्मानजनक सीटों की मांग कर रहे हैं. बहरहाल महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर जो आन्तरिक संग्राम चल रहा है, उसमें कांग्रेस की दावेदारी से लगता है सबको आपत्ति है और उस पर दबाव बनाने में बाकी दल जुटे हुए है. अधिकांश दलों को लगता है कांग्रेस जितनी सीटों की मांग कर रही है, वह जायज नहीं है. कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए ही गठबंधन के सबसे बड़े घटक दल , राजद के मुखिया तेजस्वी यादव बिहार अधिकार यात्रा पर निकल चुके हैं,ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है. इसके साथ ही वह घोषणा कर चुके हैं कि राजद बिहार की सभी सीटों पर लड़ेगी. इस मामले में ताजा बयान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी लिबरेशन के दीपंकर भट्टाचार्य की ओर से जारी हुआ है. उन्होंने इस बार कांग्रेस को सीट बंटवारे की बातचीत में ज्यादा यथार्थवादी रुख अपनाने का सुझाव देते हुए कहा है कि कांग्रेस को 2020 विधानसभा चुनाव से सबक लेना चाहिए, जब उसने अपनी क्षमता से ज्यादे सीटें मांग ली थी , लेकिन प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा था.उन्होंने यह भी कहा है कि राजद भी छोटे दलों के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर ज्यादा लचीलापण दिखलाए, क्योंकि इस बार विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में नए दलों के आने की सम्भावना है, जिससे गठबंधन बड़ा हो सकता है.उन्होंने शेष में कहा कि उनकी पार्टी इस बार 243 में से कमसे कम 40 सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि 2020 में उसने केवल 19 सीट पर चुनाव लड़ा था. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगर इंडिया ब्लाक सत्ता में आता है, तो तेजस्वी ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे.बहरहाल कांग्रेस 2020 के मुकाबले कम सीटों पर लड़े , इसके लिए कुछ बुद्धिजीवियों, जो ऊपर से देखने में तो कट्टर लोहियावादी और आंबेडकरवाडी लगते हैं,पर असल में है प्रछन्न संघवादी, की ओर से आंकड़ों के जरिये यह संदेश देने का अभियान चलाया जा रहा है कि कांग्रेस महागठबंधन में एक डेढ़ दर्जन से ज्यादा सीटें पाने की योग्यता नहीं रखती. कांग्रेस को कम सीटों पर लड़ना चाहिए, ऐसा उपदेश करने वालों का आधार कांग्रेस का कमजोर संगठन और 2020 का उसका प्रदर्शन है!लेकिन ऐसी युक्ति रखने वाले भूल जाते है आज की कांग्रेस 2020 वाली नहीं है!

2020 के राहुल गांधी में आ गया है आज : जमीन- आसमान का फर्क

वास्तव में आज का सबसे बड़ा राजनीतिक विस्मय यह है कि राजनीति के बड़े-बड़े पंडित से लेकर इंडिया ब्लाक के नेता और बुद्धजीवी यह तथ्य विस्मृत किये जा रहे हैं कि आज की कांग्रेस 2020 वाली कांग्रेस नहीं है! खड्गे और राहुल गांधी के चमत्कारी नेतृत्व में केन्द्रीय सत्ता पर कब्ज़ा जमाने की दिशा में आगे बढ़ रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 2020 की अपनी दुर्बलताओं को अतिक्रम कर बहुत आगे निकल चुकी है.आज की राजनीति के केंद्र में कांग्रेस आ चुकी है और लोकप्रियता में इसके नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं. आज भारतीय राजनीति के केंद्र में एक से पांच तक राहुल गांधी हैं और मोदी सहित बाकी नेताओं की गिनती छठे नंबर से शुरू होती है.एक सर्वे के मुताबिक़ आज 20 करोड़ लोग सोशल मीडिया पर कांग्रेस का प्रचार अपनी मर्जी से कर रह्व हैं: 2020 ऐसी स्थिति नहीं थी.आज राहुल गांधी की रणनीति में कई लोगों को सुंग जू की झलक नजर आने लगी है. युद्ध नीति में सुंग जू को वही सम्मान हासिल है जो साइंस में न्यूटन को, राजनीति में चाणक्य को, धूर्तता में मैकियावेली को!आज बड़े-बड़े लेखक – पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषकों को उनमें महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, चे ग्वेरा की झलक दिखने लगे हैं.दो दिन पहले किसी व्यक्ति ने फेसबुक पर लिखा,’ राहुल गांधी ने जो कहा, वो सच हुआ है . वर्तमान राजनीति के सबसे बड़े चाणक्य बन गए हैं राहुल गांधी .उन्होंने जो कुछ कहा , वो सत्य साबित हुआ, देखिये कुछ उदहारण : राहुल गांधी जीएसटी पर सही थे; राहुल गांधी अमेरिकी टैरिफ पर सही थे; राहुल गांधी अडानी पर सही थे; राहुल गांधी इलेक्ट्रोल बोंड पर सही थे; राहुल गांधी कृषि कानून पर सही थे ; राहुल गांधी कोविड – 19 पर सही थे; राहुल गांधी नोटबंदी पर सही थे; राहुल गांधी जातिगत जनगणना पर सही थे ; राहुल गांधी एच- 1 बी वीजा पर सही थे; राहुल गांधी चीन और पकिस्तान के गंठजोड़ पर सही थे. राहुल गांधी की दूरदर्शी सोच कमाल की है.जिस दिन ये नेता प्रधानमत्री बनेगा , उस दिन भारत नई ऊँचाइयों को छू रहा होगा, इसमें कोई शक ही नहीं है’ राहुल गांधी की चेतावनी स्वरुप अतीत में कही गई सभी बातें सच साबित हो रही है, ऐसा कहने वाले आज की तारीख में एक दो नहीं, कोटि-कोटि लोग हैं.2020 में ऐसा कहने वाले शायद अंगुलिओं पर गिने जाने भर लोग होंगे. 2020 के राहुल गांधी को तीन ऐतिहासिक यात्राओं : भारत जोड़ो यात्रा; भारत जोड़ो न्याय यात्रा और वोटर अधिकार यात्रा ने जनप्रियता की उस बुलंदी पर पहुंचा दिया है, जिसे शायद ही किसी और भारतीय ने छुआ होगा! उनको अवाम किस रूप में ले रहा , इसे जांचने लिए मैंने इन पंक्तियों के लिखे जाने के पांच दिन पहले यह पोस्ट फेसबुक पर डाला था,’ अंग्रेजों से ज्यादा भयावह सत्ता के खिलाफ राहुल गांधी जो लड़ाई लड़ रहे हैं, वह सौ सुपरमैन भी मिलकर नहीं लड़ सकते थे.’ उस पोस्ट को 73 लोगों ने लाइक किया था, जबकि 23 लोगों ने उस पर कमेन्ट किया था. भारी विस्मय की बात है कि सिर्फ एक व्यक्ति को छोड़ कर सभी ने मेरे पोस्ट का खुलकर समर्थन किया था. जिसने समर्थन नहीं किया था ,उसने विनम्रता से यह लिखा था,’ कुछ ज्यादे ही हो रहा है सर!’ उसी दिन मैंने यह पोस्ट भी डाला था,’ भयावह हिन्दुत्ववादी सत्ता के खिलाफ राहुल गांधी का अत्यंत असाधारण संग्राम देख कर यह यकीन पुख्ता होता है कि भारत की ओर से अगले नोबेल विजेता वही होंगे.’ सुखद आश्चर्य का विषय है कि मेरे उस दावे पर किसी ने आपत्ति नहीं की थी: सभी ने एक तरह से समर्थन किया था.! ये थोड़े से दृष्टांत बताते हैं कि कांग्रेस के लिए आज फ्रंट फूट की राजनीति कर रहे राहुल गांधी में जमीन आसमान का फर्क आ चुका है. 2020 तक लुटियन जोन के आरामदायक कमरों में बैठकर राजनीति करने वाले राहुल गांधी को शायद राजनीतिक यात्राओं की अहमियत का भी इल्म नहीं था.लेकिन जब उन्हें इस बात का इल्म हुआ कि भारत में संवाद के सभी रास्ते बंद कर दिए गए है और मीडिया और संस्थाएं जनता से जुड़ने का माध्यम नहीं बन पा रही हैं, तो सीधे जनता के पास जाना होगा.वैसी स्थिति में 2020 के बाद पिछले तीन वर्षों में : 7 सितम्बर , 2022 से 1 सितम्बर, 2025 तक तीन यात्राओं के जरिये 12 हजार किमी से अधिक की दूरी तय कर राहुल गांधी ने जो एक अभूतपूर्व इतिहास रचा, उससे कांग्रेस और उनकी खुद की स्थिति में आश्चर्यजनक बदलाव आ गया है . राहुल गाधी की पहली यात्रा : भारत जोड़ो यात्रा उनके लिए एक तपस्या और स्वयं के खोज की तरह रही . इस यात्रा ने उन्हें एक ऐसे राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित होने में मदद की , जिसके सरोकार चुनावी राजनीति के गुणा- भाग से ऊपर हैं. इस यात्रा ने विपक्ष द्वारा हजारों करोड़ खर्च करके मीडिया में उनकी बनाई गई नकारात्मक छवि को ध्वस्त कर दिया . राहुल विरोधियों द्वारा जो उनकी ‘ अगंभीर, बेपरवाह, कमअक्ल और ‘पार्ट टाइम पॉलिटिसियन’ की छवि बनाई बनाई गई थी , भारत जोड़ो यात्रा ने उसे अतीत का विषय बना दिया.’ इसके कुछ अंतराल बाद ही 23-24 फरवरी, 2023 तक रायपुर में कांग्रेस का 85वां अधिवेशन आयोजित हुआ. लोकसभा चुनाव 2024 की पृष्ठभूमि में आयोजित उस अधिवेशन से हथियारों का एक ऐसा जखीरा निकला , जिसके समक्ष दुनिया की सबसे शक्तिशाली पार्टी भाजपा हार वरण करने के लिए बराबर अभिशप्त रही है.

अपने पिता लालू प्रसाद यादव से प्रेरणा लेने में व्यर्थ रहे : तेजस्वी यादव

यह सत्य है कि संघ के अजस्र आनुषंगिक संगठनों के साथ देश के उच्च वर्ण के 90 % से अधिक साधु- संत , 90% से अधिक लेखक- पत्रकार, सेलेब्रेटीज और धन्नासेठ ही भाजपा की शक्ति के स्रोत हैं , जिस कारण यह दुनियां की सबसे शक्तिशाली पार्टी नजर आती है. लेकिन दुनिया की सबसे शक्तिशाली पार्टी होने के बावजूद इसको हराने जैसा आसान पॉलिटिकल टास्क कुछ नहीं हो सकता, बशर्ते कि चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित कर दिया जाय! चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करने से भाजपा हार वरण करने के सिवाय कुछ कर ही नहीं सकती, मोदी राज में इसका बड़ा दृष्टांत 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में स्थापित हुआ. उस चुनाव के मध्य जब मोहन भागवत आरक्षण के समी़क्षा की बात उठाए, उनकी बात को आधार बनाकर लालू प्रसाद ने जनता के बीच कहना शुरु किया था ,’ तुम आरक्षण का खात्मा करना चाहते हो, हम सत्ता में आये तो सबको सभी क्षेत्रों में संख्यानुपात में आरक्षण देंगे!’ संख्यानुपात में आरक्षण देने की उनकी बात वंचित वर्गों को स्पर्श कर गई और मोदी के लोकप्रियता के शिखर पर रहने के बावजूद भाजपा बिहार में बुरी तरह हारने के लिए विवश रही. भाजपा कभी अप्रतिरोध्य बन ही नहीं पाती,यदि देश के राजनीति की दिशा तय करने वाले यूपी- बिहार के मायावती – अखिलेश और तेजस्वी यादव जैसे क्षत्रप लालू यादव से प्रेरणा लेते हुए चुनावों को सामाजिक न्याय पर केंद्रित किये होते ! 2015 में सामाजिक न्याय के जरिए भाजपा को आसानी से मात देने का जो दृष्टांत बिहार में स्थापित हुआ, उसके बाद यूपी – बिहार में चार चुनाव हुए : 2017 में यूपी विधानसभा , 2019 में लोकसभा , 2020 में बिहार विधानसभा और 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव! इन चारों चुनावों में अज्ञात कारणों से मायावती , अखिलेश और तेजस्वी यादव ने सामाजिक न्याय के उस इकलौते व अचूक हथियार का जरा भी इस्तेमाल नहीं, जिसकी जोर से ही भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है.सबसे ताज्जुब की बात है कि खुद लालू जी के बेटे तेजस्वी यादव 2020 में उनकी तरह चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित न कर सके. 2015 में लालू प्रसाद यादव ने चुनाव पहले ही यह घोषणा कर कि मंडल ही बनेगा कमंडल की काट. उन्होंने बहुजनों को ललकारते हुए कहा था,’ ऐ 85 प्रतिशत वालों, उठो और मंडल से कमंडल फोड़ दो! उनकी इस घोषणा से वंचित बहुजनों में अपर कास्ट के खिलाफ जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ. लेकिन 2020 में तेजस्वी यादव न तो बहुजनों को अपर कास्ट के खिलाफ ध्रुवीकृत करने लायक कोई आह्वान किये और न ही अपने पिता की तरह सभी क्षेत्रों में दलित,पिछड़ों और अकलियतों को संख्यानुपात में आरक्षण दिलाने की बात किये. वह पूरे चुनाव ए टू जेड के लिए पढ़ाई, दवाई , कमाई , सिचाई, सुनवाई और कार्रवाई की घोषणा करते रहे. परिणामस्वरूप चुनाव में उनकी नैया किनारे जाकर डूब गई. तेजस्वी 2020 की हार से कोई सबक नहीं लिए और आज 2025 में भी 2020 की तरह ही पांच बातों- पढ़ाई, दवाई , कमाई , सिचाई, सुनवाई और कार्रवाई- की रट लगाये जा रहे.

लालू यादव से प्रेरणा लिए : सिर्फ राहुल गांधी

2015 के लालू प्रसाद यादव के बाद किसी ने सामाजिक न्याय के जोर से भाजपा को शिकस्त देने का मन बनाया तो वह राहुल गांधी रहे . उन्होंने इसी मकसद से फरवरी 2023 में रायपुर अधिवेशन में सामाजिक न्याय के जखीरे को सामने लाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया. रायपुर से निकले सामाजिक न्याय केन्द्रित प्रस्तावों के बाद कांग्रेस ने खुद को सवर्णवादी से सामाजिक न्यायवादी दल के रूप में परिणित कर लिया ,जिसके समक्ष पुराने सामाजिक न्यायवादी दल बौने बन गए. रायपुर अधिवेशन के बाद कांग्रेस ने चुनावों को सामाजिक न्याय पर केंद्रित करने का पहला प्रयोग मई 2023 में कर्नाटक में किया , जो बहुत ही सफल रहा. इस प्रयोग से उत्साहित होकर उसने 2023 के शेष में आयोजित 5 राज्यों – राजस्थान , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम – के विधानसभा चुनावों सामाजिक न्याय पर केंद्रित किया. पर, 3 दिसंबर को जब चुनाव परिणाम आया , देखा गया कि तेलंगाना को छोड़कर बाकी राज्यों में भारी संभावना जगाकर भी पार्टी कर्नाटक की सफलता को दोहराने में विफल रही. आज पता चल रहा है कि केचुआ और मोदी सरकार की मिलीभगत से तब कांग्रेस कर्णाटक का कारनामा दोहराने में विफल रही थी . लेकिन इस आघात के बावजूद राहुल गांधी टूटे नहीं और भारत जोड़ों न्याय यात्रा में 2024 के लोकसभा चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित होने लायक स्थिति में पहुंचा कर पांच न्याय , 25 गारंटी से युक्त ऐतिहासिक न्याय – पत्र के साथ चुनावी जंग में उतर गए. राहुल गांधी ने यात्रा में रायपुर से निकले विचार को आगे बढ़ाते हुए जो कुछ कहा उसका विस्तृत रूप 5 अप्रैल की शाम 5 न्याय , 25 गारंटी और 300 वादों से युक्त न्याय- पत्र नामक कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र के रूप में सामने आया. उस न्याय पत्र को तमाम राजनीतिक विश्लेषकों ने क्रांतिकारी दस्तावेज करार देते हुए माना था कि ऐसा घोषणापत्र आजाद भारत में कभी नहीं आया.

इंडिया वाले मत भूलें कि यह 2020 वाली कांग्रेस नहीं है

जो लोग यह मानकर चल रहे थे कि यह चुनाव महज एक औपचारिकता है और मोदी के नेतृत्व में एनडीए 400 पार कर लेगा, ऐसे लोगों की धारणा में कांग्रेस के घोषणापत्र ने रातोंरात बदलाव ला दिया. वास्तव में कांग्रेस का घोषणापत्र सामाजिक न्याय का परमाणु बम था, जिसकी अनुगूँज पूरे देश में सुनाई पड़ी और भाजपा दहल गई. आरक्षण का  50 प्रतिशत दायरा तोड़ने, महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण देने, अमेरिका की भांति ही भारत मे डाइवर्सिटी कमीशन(विविधता आयोग) गठित करने, राष्ट्रव्यापी आर्थिक- सामाजिक जनगणना कराने, एससी,एसटी,ओबीसी के लिए आरक्षित सभी रिक्त पदों को एक साल मे भरने,सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों में संविदा की जगह स्थायी नौकरी देने, एससी,एसटी वर्ग के ठेकेदारों को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक खरीद का दायरा बढ़ाने, सामाजिक न्याय का संदेश फैलाने के लिए बहुजन समाज सुधारकों की जीवनी और उनके कार्यों को विद्यालयों के पाठ्यक्रम मे शामिल करने,  शैक्षणिक परिसरों में पसरे भेदभाव को खत्म करने के लिए रोहित वेमुला अधिनियम बनाने सहित ढेरों ऐसी बातें कांग्रेस के घोषणापत्र में थीं, जिससे चुनाव अभूतपूर्व रूप से सामाजिक न्याय पर केंद्रित हो गया: ऊपर से राहुल गांधी द्वारा संविधान और आरक्षण बचाने की घोषणा ने सामाजिक न्याय के मुद्दे को और ऊंचाई दे दी. राहुल गांधी के सामाजिकवादी एजेंडे के बाद मोदी की विदाई तय थी पर, केचुआ और मोदी सरकार की मिली भगत से राहुल गांधी इतिहास रचने से महरूम हो गए. यह कांग्रेस के न्यायपत्र का कमाल था कि कमजोर संगठन के बावजूद राहुल गांधी अखिलेश यादव के साथ गए, ऐसा जनोन्माद पैदा होता रहा ही मंच टूट जाते रहे. न्याय पत्र के जरिये राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के साथ मिलकर जो जनोन्माद पैदा किया, उससे राम मंदिर निर्माण के जरिये तैयार किया गया माहौल ध्वस्त हो गया और इंडिया गठबंधन भाजपा के सबसे पंसंदीदे गढ़ में चमत्कार करने में सफल हो गया. राहुल गांधी ने 2024 की लोकसभा चुनाव में रह गई कमियों को दूर कर लिया है. वोटर अधिकार यात्रा के जरिये अवाम को वोट चोरी के खिलाफ अपना कर्तव्य निर्वहन के लिए तैयार कर लिया है: साथ में प्रतिनिधित्व से आगे बढ़कर पॉवर स्ट्रक्चर में जितनी आबादी, उतना हक़ की बात उठाकर 2024 के न्यायपत्र को आज और धारदार बना दिया है. ऐसे में बिहार में यदि इंडिया ब्लाक के दल कांग्रेस के सौ सीटें भी दे दे तो घाटे में नहीं रहेंगे. इसलिए सीट बंटवारे के समय इंडिया के घटक दल यह बात अपने जेहन में जरुर रखें कि यह 2020 वाली कांग्रेस नहीं है !

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